आत्मज्ञान क्या है? आत्मज्ञानी होने की विधि

कहते हैं जीवन में सही फैसले लेने के लिए आत्मज्ञान होना जरूरी है, पर आत्मज्ञान शब्द बहुत भारी प्रतीत होता है? इसलिए आज हम सरल शब्दों में जानेंगे की आत्मज्ञान क्या है? आत्मज्ञानी होने की विधि ? और इसके लाभ समझने जा रहे हैं।

आत्मज्ञान क्या है

हिन्दू धर्म के सभी प्रमुख ग्रन्थ जैसे भगवद्गीता, उपनिषद, वेदांत में आत्मज्ञान के विषय पर जोर दिया गया है,  पर अफ़सोस कई सारे लोग जिनकी भगवान् धर्म में आस्था होती है उन्हें भी आत्मज्ञान नहीं होता।

हालांकि इन्हीं में से जब कुछ लोगों की इस विषय को जानने की इच्छा होती है वो इन्टरनेट पर आकर सर्च करते हैं।

दुर्भाग्य से जिस इन्टरनेट का उपयोग लोगो को सही जानकारी बताने के लिए करना चाहिए था, आज के समय में उसी का उपयोग आत्मज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय पर तरह तरह की भ्रांतियां, अन्धविश्वास फैलाने के लिए कहा जा रहा है।

मार्किट में बहुत से गुरु घूम रहे हैं जो कहते हैं आत्मज्ञानी होना है तो कुछ पढने की या समझने की जरूरत नहीं बस फलानी विधि अपनाओ आपका काम हो जाएगा। और इन्हीं सब बातों से लोगों को बेवकूफ बनाकर उन्हें ठगने का काम किया जा रहा है।

पर हम चाहते हैं की आप सच्चाई के करीब आयें और इस विषय को ध्यानपूर्वक समझें, आइये इसके लिए जानते हैं की

आत्मज्ञान क्या है? 

आत्मज्ञान से आशय आंतरिक ज्ञान से है। अन्य शब्दों में स्वयं को जानना माने भीतर कौन है जो हमेशा शांति, सुख की तलाश में रहता है और जिसे दुःख से छुटकारा पाना है। अगर यह सब चाहने वाला मन है तो फिर कैसे इसे असीम शांति की तरफ ले जाए जाए? यह जानना ही आत्मज्ञान है।

अतः जो व्यक्ति अपने मन, संसार को और आत्मा को समझ लेता है, और फिर जो बात समझ में आई है उसी के अनुरूप जीवन जीने लगता है उसे आत्मज्ञानी कहकर सम्बोधित किया जाता है।

पर समाज में जिस तरह संसार के विषय में भाषा, पदार्थ का ज्ञान दिया जाता है उसी तरह हमें बचपन से आत्मज्ञान की शिक्षा दी नहीं जाती। और दुर्भाग्य की बात है जीवन भर आत्मज्ञान की शिक्षा से वंचित होने के कारण एक व्यक्ति घटिया जीवन जीने को मजबूर हो जाता है और अंततः इस संसार से विदा हो जाता है।

आत्मज्ञान होना क्यों जरूरी है?

हर वह इन्सान जो अपनी जिन्दगी से संतुष्ट नहीं है, वह सच्चाई और प्रेम से भरा आनंदमयी जीवन जीना चाहता है, वह व्यर्थ की ठोकरें, धोखे खाने से बचना चाहता है और सही जीवन जीना चाहता है ऐसे इंसान का आत्मज्ञानी होना बेहद जरूरी है।

देखिये अपनी जिन्दगी में हम कोई भी कर्म क्यों करते हैं? ताकि अंततः हमें सुकून, चैन मिल सकें।

ठीक है, और कौन है जो भीतर निर्धारित करता है की मुझे क्या करना है क्या नहीं?

उसका नाम है “मन“। इसलिए मन को समझना, इसकी चाहत को जानना बेहद जरूरी है। मन तो बेचारा नामसझ, बेईमान है जो जानते बूझते किसी चीज़ से शांति नहीं मिलेगी, फिर भी उसी की तरफ भागता है।

इसलिए इस मन को भटकने की बजाय इसे वास्तविक शांति और सच्चाई तक ले जाने के लिए आत्मज्ञान जरूरी है। जी हाँ सच्चाई का दूसरा नाम ही है आत्मज्ञान।

आत्मज्ञान इंसान को उसकी वर्तमान हालत के बारे में बताता है, उसके भीतर कितनी कमियां है,कितना लालच, कितना डर, कितना प्रेम, कितना त्याग सब कुछ इन्सान का सच उघेडकर उसके सामने रख देता है।

यानि आत्मज्ञान इंसान के लिए आईने की भाँती होता है जो इन्सान के बारे में सब कुछ स्पष्ट कर देता है।

आत्मज्ञान होने पर क्या होता है?

जैसे ही इंसान को अपने भीतर की सच्चाई का अहसास होता है वो डर जाता है। उसका भ्रम टूट जाता है वो कहता है मैं तो स्वयं को बड़ा ईमानदार और नेक इंसान समझता था।

पर मेरी हालत तो बहुत बुरी है, अब ऐसी स्तिथि में उसके सामने 2 विकल्प होते हैं या तो अपनी हकीकत जानने के बाद वो अपनी कमियां सुधारे या फिर दूसरा वो सच मालूम आया है उस पर पर्दा डालकर जैसी जिन्दगी पहले जी रहा था वैसा ही रहने दें।

पर जानकार अफ़सोस होगा की इन्सान को सच से बड़ी नफरत उठती है, इसलिए अधिकांश लोग जिन्हें अपना सच दिख चुका होता है वे कहते हैं की अब अपनी हालत सुधारनी है तो जीवन बदलना होगा।

पर जीवन बदलने में तो तकलीफ होती है न, इसलिए अधिकतर लोग सच जानकर भी स्वीकार करके उसे सुधारने से कतराते हैं इसलिए विरला होता है कोई जो साफ़ देखे भीतर कितना लालच,डर,कपट, झूठ है और फिर अपनी हालत को ठीक करने की हिम्मत जुटाए।

इसलिए आत्मज्ञानियों की संख्या बहुत कम होती है, बुद्ध, भगत सिंह, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद जैसे लोगों की संख्या कम ही होती है।

दूसरी तरफ मूर्फ़, नासमझ और या कहें की बेईमान लोगों की संख्या ज्यादा होती है, और उनका जीवन घोर दुःख और अन्धकार में बीतता है।

आत्मज्ञान के अभाव में अधिकांश लोग पूरी जिन्दगी पैसे के पीछे भागते हैं, और उस पैसे को पाकर वह सुख के पीछे भागते हैं, पर वह पाते हैं जितना वो सुख के करीब जाते हैं उतना ही दुःख पीछे पीछे आता है।

इस सुख के पीछे भागने के दौरान लोग घर, गाडी, सन्तान इत्यादि वो सब कुछ इक्कठा करने की कोशिश करते हैं पर सुख उन्हें उससे भी नहीं नहीं मिलता।

इसलिए ज्ञानी जन कह गए की आत्मज्ञान के बिना जीवन में प्रगति होना संभव नहीं है, आत्मज्ञान की कमी के चलते इंसान जीवन में वह सब कुछ पाने या एकत्रित करने का प्रयास करता है जो अंत समय में उसके कोई काम नहीं आता।

अतः अंततः आत्मज्ञान ही इंसान को यह बताता है की तुम शरीर नहीं हो, तुम चेतना हो और इस चेतना को सत्य यानि आत्मा तक ले जाना ही तुम्हारे मानव जीवन का उद्देश्य है। दूसरे शब्दों में अपने मन को आनंद तक ले जाना ही मनुष्य का लक्ष्य है, इसलिए कहा गया की आत्मा ही आनंद स्वरूप है।

आत्मज्ञान कैसे होता है?

इंसान के भीतर खुद की सच्चाई जानने की नियत हो तो आत्मज्ञानी होना सरल हो जाता है। जी हाँ, जरा सा आप चौक्कने रहो और अपने जीवन की गतिविधियों को गौर से देखें की आप दिनभर किन कामों को करते हो, क्या खाते हो, किसके साथ समय बिताते हो।

इसके अलावा यह देखना की किन बातों पर तुरंत आपको गुस्सा आ जाता है, और किन लोगों के सामने आने पर भीतर खलबली मच जाती है, किसके बिना आप 2 पल रह नही पाते। अर्थात खुद पर नजर रखना ही आत्मज्ञान है।

संक्षेप में कहें तो किस पल आपके मन की स्तिथि कैसी होती है? कब भीतर लालच, डर उठता है और कब आपको दया, प्रेम की भावना आती है यह सब देखना ही आत्मज्ञान कहलाता है।

उदाहरण के लिए आपने अपनी दिनचर्या को ध्यान से देखा और पाया की मेरा जीवन बहुत खराब चल रहा है, आपने देखा की मैं यह जानते हुए की कुछ लोगों की संगती ठीक नहीं है।

उनके साथ रहता हूँ, मैं देख रहा हूँ कब मुझे किसी की बात पर गुस्सा आता है, मैं देख रहा हूँ की मजबूरी के नाम पर मैं कितने फालतू के काम करता हूँ।

कुल मिलाकर देख पा रहा हूँ जीवन को बदलने की जरूरत है, अभी कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अब ऐसी स्तिथि में मेरा लक्ष्य सही संगती ढूंढना, सही काम की तलाश करना, और जीवन में जो कुछ फ़ालतू था उसे हटाकर वो करना है जिससे मेरा जीवन बेहतर हो।

अब चाहे पुराने जीवन को बदलने में मुझे कितनी ही तकलीफ क्यों न आ जाये, मैं उन्हें सहूंगा और जो मुझे सही दिखता है उसे करने का पूरा प्रयास करूँगा। मैं अपने आलस्य, डर, लालच सभी चीजों से लडूंगा और सही काम का प्रयत्न करूंगा, वास्तव में यह पूरी प्रक्रिया आत्मज्ञान की है।

इससे आप समझ सकते हैं की आत्मज्ञानी होने के लिए आपको सुबह शाम कोई ध्यान की विधि या कुछ और उपाय अपनाने की जरूरत नहीं है, कोई भी बच्चा, जवान,बूढा व्यक्ति की नियत साफ़ हो तो वो आत्मज्ञानी हो सकता है।

आत्मज्ञानी की पहचान क्या ?

कोई व्यक्ति आत्मज्ञानी है या नहीं यह जानना हो तो उसका जीवन देख लीजिये। कोई व्यक्ति क्या खाता है, किन लोगों के साथ बैठता है, क्या पढता है, क्या सुनता है, और क्या कर्म करता है अर्थात किसी के रोजमर्रा के जीवन को देखकर बताया जा सकता है की कोई आत्मज्ञानी है की नहीं।

आत्मज्ञानी वह जिसे खुद का ज्ञान हो और जिसे साफ साफ़ मालूम हो की उसे जीवन क्यों मिला है? और उसका लक्ष्य क्या है? अब यह जानने के बाद इंसान उस कार्य को करने से पीछे हटे तो उसे आत्मज्ञानी नहीं कहा जा सकता।

आपको अनेक लोग मिल जायेंगे जो ज्ञान की बातें करेंगे लेकिन जीवन में कहीं भी वो ज्ञान दिखता नहीं, वो इन्सान कहेगा की आलस्य, क्रोध ठीक नहीं होते और उसकी जिन्दगी को देखें तो कोई ढंग का काम नहीं करता और छोटी छोटी बातों पर उसे क्रोध आ जाता है।

इसलिए कहा गया की आत्मज्ञानी की पहचान करनी है तो उसके शब्दों को नहीं उसके उसके जीवन को देखिये, राम राम कहने वाले करोड़ों हैं पर राम जैसा जीवन जीने के लिए जो प्रेम,साहस और धैर्य चाहिए वो हर किसी के बूते सम्भव नहीं।

आत्मज्ञान की विधि | आत्मज्ञान की 3 विधियाँ

ज्ञानियों ने आत्मज्ञानी होने की तीन विधियां बताई हैं, ये विधियाँ हर व्यक्ति के हिसाब से भिन्न भिन्न लोगों पर लागू होती हैं।

पहली विधि उन लोगों के लिए है जिन्हें कर्म, धर्म, मुक्ति, सत्य इत्यादि बातें समझ में नहीं आती, ये निम्नतम तल के लोग हैं इन्हें आत्मज्ञान की दिशा में बढ़ने के लिए सबसे पहले संसार का ज्ञान होना आवश्यक होना है। अतः वे लोग जो आत्मज्ञानी होना चाहते हैं उनके लिए पहली सीढ़ी यही है की वो संसार को जानें, घूमें, किताबें पढ़ें इत्यादि।

दूसरी विधि उन लोगों के लिए है जिन्हें अब संसार का खेल समझ आने लगा है, अर्थात वे जान गए हैं की संसार कैसे चल रहा है? और जिसने दुनियादारी का अनुभव ले लिया है और जान चुके है की यहाँ ऐसा कुछ नहीं जो मन को तृप्त कर सके।

अब ऐसे लोगों के लिए आत्मज्ञान यानी खुद को जानने की विधि यह है की वो अपने कर्मों को देखें। दिनभर आप क्या करते हैं यह ध्यान से समझ लिया तो आप जान जायेंगे की आप कितने पानी में हैं।

आत्मज्ञान की तीसरी विधि सबसे उच्चतम विधि है, जिसके अनुसार तुम संसार और कर्मों को नहीं बल्कि अपने विचारों को देख लो, क्योंकि कर्म तो आप बाद में करते हो पहले आपके मन में विचार आते हैं, तो ये देख लो की मन में क्या विचार घूम रहे हैं, ये विचार क्यों आ रहे हैं?

इस तरह जैसे जैसे आप गहराई में जायेंगे तो आप मूल वृति तब पहुँच जायेंगे। आप यह जान पाएंगे की कोई भी विचार और कर्म हम इसलिए करते हैं क्योंकि भीतर कोई मूल वृति जैसे लालच, डर, कामवासना,मोह, इत्यादि हमसे वो काम करवाना चाहती है।

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तो साथियों आत्मज्ञान क्या है? कैसे होता है? इस विषय पर पढने के पश्चात यदि आपके मन में किसी तरह का प्रश्न या समस्या है तो बेझिझक अपने सवालों को कमेन्ट बॉक्स में बता सकते हैं, साथ ही यह लेख उपयोगी साबित हुआ है तो कृपया इसे शेयर भी अवश्य कर दें।

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