अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है? जानें असली वजह

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बुरे बनो, अच्छों को दुनिया जीने नहीं देती, अक्सर इस तरह की बातों को लोग खूब कहते हैं! वे कहते हैं कलयुग में अच्छा इंसान बनना ठीक नहीं है क्या यह सच है? आखिर अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?

अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?

समाज में दो तरह के लोग पाए जाते हैं एक वो जो नैतिकता का पालन करते हैं उन्हें अच्छा कहा जाता है, और दूसरी तरफ वे लोग जो समाज के ढर्रे पर नहीं चलते उन्हें बुरा कहा जाता है!

और प्रायः यह देखा जाता है की जिन्हें हम बुरा कहते हैं वे लोग ज्यादा सुखी और सुविधा का जीवन जीते हैं, जो जितना अय्यास होगा वो उतना ही बेख़ौफ़ होता है! और लोग ऐसे लोगों से डरते भी हैं और उनकी बात भी मानते हैं!

ऐसे में कई बार जो लोग खुद को अच्छा मानते हैं उनके मन में अच्छाई के प्रति विद्रोह उठता है वे कहते हैं अच्छे लोगों के साथ नाइंसाफी होती है, बुरा और लालची बनने में ही फायदा है तो आइये जानते हैं

आखिर अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?

वास्तव में समाज जिन लोगों को अच्छा कहता है, वे समाज की मान्यताओं को स्वीकृति देते हैं और उनके आदेशों का पालन करते हैं, दूसरी तरफ वे लोग जो समाज की इच्छाओं के विरुद्ध कार्य करते हैं वो बुरे हो जाते हैं!

इस तरह आप समझ सकते हैं की हमारी अच्छे और बुरे की परिभाषा सच्चाई पर नहीं बल्कि समाज पर आधारित है! अगर आप समाज की मर्जी के अनुरूप काम करते हैं तो आपको शाबासी मिलेगी, इसके विपरीत आप कुछ और कार्य करते हैं तो आपकी आलोचना होगी!

वास्तव में अच्छे और बुरे लोग दोनों समाज की मुट्ठी में कैद होते हैं! ऐसे लोगों को समाज जब चाहे अच्छा और जब चाहे बुरा बनाने की शक्ति रखता है!

उदाहरण के लिए अगर आप मारपीट गाली गलौज नहीं करते, प्यारी प्यारी बातें करते हैं, कभी किसी की मदद या पंडितों को दान दक्षिण दे देते हैं, नशापान नहीं करते, शादी शुदा जीवन जीते हैं तो समाज आपको एक अच्छा इंसान घोषित कर देता है!

अब जो व्यक्ति समाज की इन मान्यताओं का पालन करता है, वो खुद को अच्छा समझने लगता है! अब ऐसे में जब कोई व्यक्ति नशापान करता है, गाली गलौज और मारपीट करता है, मदद की बजाय वह दूसरों से हमेशा कुछ पाने की सोचता है लेकिन इसके बावजूद लोग उससे डरते हैं, उसे सलाम ठोकते हैं!

तो ऐसे में उस अच्छे इंसान के मन में बड़ी तकलीफ होती है क्योंकि वो जानता है की वो तो दूसरों को खुश करने के लिए बहुत नियमों का पालन करता है, पर यहाँ ऐसा व्यक्ति जो समाज की बातों को भी नहीं मानता फिर भी सीना ठोक के जिन्दगी जी रहा है!

तो ऐसे में तथाकथित अच्छे लोगों के मन में भारी दुःख होता है! और वे कई बार बुरा कदम उठाने की भी सोचते हैं!

इंसान अच्छा या बुरा नहीं बोधवान होना चाहिए

अगर आप बिना बुरा बने एक मुक्त और सुन्दर जीवन जीना चाहते हैं तो आपको समाज के द्वारा लगाये जाने वाले अच्छे/ बुरे के खेल से बाहर आना होगा!

देखिये, अच्छाई और बुराई दोनों बहुत सतही चीजें हैं कोई इंसान अच्छा है या बुरा हम इस चीज़ को देखकर फैसला नहीं कर सकते की वह करता क्या है?

समाज में दो तरह के लोग हो सकते हैं एक बोधवान और बेहोश! बेहोश मनुष्य वे हैं जो अज्ञानी हैं जिन्हें खुद का और संसार का ज्ञान नहीं है!

दूसरी तरफ बोधवान मनुष्य से आशय उस व्यक्ति से है जो अपनी हालत के प्रति जागृत है जिसे मालूम है की उसे क्या चाहिए और क्या चीजें उसे जीवन में पाना है!

अब दुर्भाग्य यह है की अधिकतर लोग अज्ञानी यानी बेहोश ही पैदा होते हैं और उसी बेहोशी में जीवन गुजार देते हैं, उदाहरण के लिए एक व्यक्ति जो अज्ञानी है और खुद को दानी समझता है अगर वह किसी रोते बिलखते को 400 रूपये दे देता है!

और उसी पैसे का प्रयोग वह दूसरा व्यक्ति शराब पीने के लिए कर देता है तो क्या उस व्यक्ति की वास्तव में मदद हुई? नहीं न

इसलिए अगर व्यक्ति बोधवान नहीं है तो इसका अर्थ है वह बेहोश है, और बेहोश इंसान जो भी नेक कार्य यानी अच्छे कार्य करेगा उससे किसी का भला कैसे हो सकता है!

अतः भला करने या मदद करने का अधिकार मात्र बोधवान व्यक्ति को है, क्योंकि वो जानता है की किस व्यक्ति को उसे क्या देना है!

कृष्ण हैं बोध स्वरूप | बोधवान कैसे बनें?

कृष्ण को हम एक मूर्ती और प्रतिमा के तौर पर पूजते हैं, हमें लगता है हाथों में मुरली लिए कन्हैया ही वास्तव में कृष्ण में हैं! परन्तु कृष्ण से मिलना है तो वास्तव में हमें भगवद गीता पढनी चाहिए! क्योंकि कृष्ण का वास्तविक सम्बन्ध मात्र भगवद गीता से है!

गीता के चौथे अध्याय के 11वें श्लोक में स्वयं भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की आप मुझे जिस रूप में भजते हो मैं आपको उसी रूप में उपलब्ध होता हूँ! तुम मेरी माया को पूजते हो तो मैं तुम्हें माया पाने में मदद करता हूँ! लेकिन अगर तुम मुझ बोध स्वरूप पूजते हो तो मैं तुम्हें बोध देता हूँ!

बोध से आशय समझ से है, अर्थात अपनी वर्तमान हालत का पता होना ये जानना की मन क्या है, ये शरीर क्या है? और मन इधर उधर भागता क्यों है? ये जानना और फिर मन को सच्चाई की तरफ ले जाना ही बोध है!

कृष्ण माने वो जो बोधस्वरूप हैं, आपके पास जितना बोध होगा उसके जीवन में कृष्ण उतने ही निकट होंगे! और जो कृष्ण के जितना निकट होगा उसके जीवन में आनदं, रस उतना अधिक होगा! आनन्द रुपया, गाडी और तमाम तरह की संसारिक चीजों में नहीं!

जिसके जीवन में बोध की जितनी कमी होगी उसके जीवन में उतने ही कष्ट होंगे!

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात आखिर अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है? इस बात को आप भली भाँती समझ चुके होंगे, हमें उम्मीद है इस लेख से जीवन में स्पष्टता और गहराई मिली होगी, यदि जानकारी पसंद आई है तो कृपया इस लेख को शेयर कर दें!

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