अप्प दीपो भव: महात्मा बुद्ध का यह अंतिम संदेश हर इन्सान के लिए लाभकारी है। पर सवाल आता है जब इन्सान ही अपना हितैषी है तो उसके जीवन में गुरु की उपयोगिता कितनी है? आइये जानते हैं।
देखिये बुद्ध के मुख से निकले इन तीन शब्दों को समझना उतना ही जरूरी है जितना की बुद्ध के जीवन को, अधिकांश लोग जो बुद्ध को नमन करके सर झुकाते हैं, बुद्ध की दी गई शिक्षाओं का असर उनके जीवन में नहीं होता।
और परिणाम यह होता है की वो महापुरुषों के विचारों को भी अपनी इच्छा से तोड़ मरोड़ कर उनका वैसा ही इस्तेमाल करते हैं जैसे उनके इरादे होते हैं। ठीक वैसे जैसे एक शराबी अपनी शराब को सही ठहराने के लिए ये तक कह देता है की शराब पीना कोई बुरी बात नहीं है, रामायण में ऐसा कहीं नहीं लिखा है।
तो अगर हम जरा सा अपने स्वार्थ के चश्मे को उतारकर वास्तव में समझेंगे की बुद्ध के इस कथन के पीछे क्या मकसद था तो यह हमारी जिन्दगी बदल सकता है।
बुद्ध को अप्प दीपो भव: कहने की आवश्यकता क्यों पड़ी
भारत के विश्वगुरु होने से लेकर उसके पतन के पीछे अनेक कारण रहे, जिनमें अन्धविश्वास और कुरीतियाँ प्रमुख कारण रहे।
आज भी हम समाज में धर्म के नाम पर जिस तरह का भेदभाव, अंधविश्वास देखते हैं बुद्ध के समय में यह चीजें चरम सीमा पर थी।
हालत ऐसी थी थी इन्सान के लिए भगवान अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के साधन थे। अगर घर में रोटी नहीं है, घर में कलेश हो रहा है, या कोई नशे में डूबा हुआ है तो जितनी भी समस्याएं इन्सान के समक्ष मौजूद थी।
इन्सान उन समस्याओं को ठीक करने के लिए भगवान से फरियाद करता था। जब बुद्ध ने देखा किस तरह लोग धर्म के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं तो उनको कहना पड़ा अप्प दीपो भव।
ताकि वे लोग जो अपने जीवन की खराब स्तिथि का जिम्मेदार किसी राजा को, इंसान को या भगवान को मानते हैं वैसे ऐसे लोग अपनी हालत का संज्ञान लेकर अपनी परेशानियों को ठीक करने के लिए स्वयं ही प्रयास करें।
अगर गरीबी है, रोटी नहीं है तो मेहनत करें। अगर किसी के लिए अत्याचार हो रहा है तो वो खुद इसके लिए आवाज उठाये। कोई किसी की बैसाखी के सहारे आगे न बढ़ सके। इसके लिए यह सीख दी गई थी।
हालाँकि बाद में इसी शिक्षा का इस्तेमाल लोगों ने सच्चाई के रास्ते पर चलने की बजाय अपने अहंकार के लिए कर दिया। वे कहने लग गये की बुद्ध कह गये की इन्सान को अपने मन के मुताबिक़ कर्म करने चाहिए।
जी नहीं, बुद्ध की यह गहरी सीख हम सभी को जीवन का गहरा संदेश देती है आइये जानते हैं की
अप्प दीपो भव: का वास्तविक अर्थ क्या है?
महात्मा बुद्ध द्वारा अपने शिष्यों को दिए गए इस अंतिम संदेश का अर्थ है स्वयं के प्रकाश में जियो।
पर हम आमतौर पर जैसा जीवन जीते हैं वो अन्धकार से भरा होता है, क्योंकी हमें आत्मज्ञान नहीं होता। इसलिए हम जीवन के जो भी फैसले लेते हैं वो सभी नामसझी में लिए जाते हैं।
लेकिन जब जीवन में आत्मज्ञान होता है तो भीतर एक दीपक की भाँती एक प्रकाश होता है। आपकी समझ ही प्रकाश बन जाती है अतः आप जो भी कर्म करते हो वो आपके लिए और दुनिया के लिए भले होते हैं।
अतः वे लोग जिन्हें आत्मज्ञान नहीं है और कहते हैं हम अपनी भलाई खुद कर लेंगे, बुद्ध की भी यही सीख थी। ऐसे लोग खतरनाक हो जाते हैं।
आज हम अधिकांश जिन लोगों को देखते हैं वे ऐसे ही हैं वो शरीर, मन और जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते लेकिन उन्हें लगता है जिन्दगी में हम जो करेंगे वो अच्छा होगा।
अरे भाई। बात समझो अप्प दीपो भवः का ये अर्थ नहीं होता की आपको किसी गुरु की आवश्यकता नहीं है, आपको किसी ज्ञान की जरूरत नहीं है।
बल्कि बुद्ध की यह पंक्ति तो उन्हीं लोगों के लिए है जो आत्मज्ञान में जी रहे हैं, इसलिए तो यह उनकी आखिरी शिक्षा थी। बिना आत्मज्ञान के तो ये सीख भयंकर है।
ठीक वैसे जैसे किसी पागल को आप गाडी की चाबी दे दें और वो कहे मैं अपना काम खुद कर लूँगा। वो क्या करेगा आप भली भाँती जानते हैं।
बिना आत्मज्ञान के हमारी स्तिथि ऐसी ही होती है।
हम सभी को अभी प्रकाश की आवश्यकता है।
अपना दीपक स्वयं बनने से पूर्व हमें ये स्वीकार करना होगा की अभी हमारे भीतर ज्ञान का दीपक जला नहीं है, अभी हम अज्ञानी हैं।
अगर हम पहले से ही आत्मज्ञानी होते तो हमारी जिन्दगी में आनन्द, प्रेम, शांति होती। और वो तो हैं नहीं यानी जैसे हम सोचते हैं जैसे हम जी रहे हैं वो नासमझी में जीवन जिया जा रहा है वरना इतना कुछ पाने के बाद भी हम बेचैन क्यों होते।
तो जो इन्सान यह समझ लेता है, जो जान लेता है की हमारी हालत बहुत खराब है हम मोह में, अज्ञान में, लालच की खातिर जी रहे हैं और जिन्दगी को बर्बाद कर रहे हैं।
फिर वो इंसान अन्धकार से प्रकाश की तरफ बढ़ता है। वो कहता है अब मुझे किसी ऐसे की तलाश है जो मुझे मेरे बन्धनों से मुक्ति दे सके जो मुझे सही राह दिखाकर मेरी बेचैनी को, मेरी पीड़ा को खत्म करने में मेरी मदद करे।
उसी इंसान को गुरु कहा जाता है, गुरु एक डॉक्टर की भाँती होती है जो मरीज (अज्ञानी व्यक्ति) को दवा के रूप में समझ, मुक्ति देता है। महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकान्द जैसे महान लोगों ने समाज के लिए एक गुरु की भाँती ही काम किया।
दुर्भाग्य से बहुत से लोग गुरु द्वारा बताई गई विधियों को स्वीकार नहीं करते, वे कहते हैं हमें किसी गुरु की जरूरत नहीं हम अपनी मदद कर लेंगे ऐसे लोग गुरु के सामने होते हुए भी उसके आशीर्वाद से वंचित रह जाते हैं और पूरा जीवन बेहोश होकर जीवन बिताते हैं।
पर वे लोग जो गुरु की बताई विधियों को एक दवा के रूप में स्वीकार करते हैं उनके जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलता है। और इस प्रकाश के साए में जीने वाला व्यक्ति जीवन में जो भी फैसले लेता है वो उसे जीवन में आनंद से भर देते हैं।
क्योंकी समझ में, होश में जीना वास्तव में बहुत खूबसूरत होता है। ठीक वैसे जैसे अच्छी जगह पर खड़े रहकर आँखों के खुले रहने भर से हमें सुन्दर नजारे दिख जाते हैं, हमें आँखों से कुछ खास नहीं करना पड़ता। इसी प्रकार आपका होश में जीना ही आपके जीवन को सुन्दर बनाता है।
और इस प्रकार गुरु की शरण में आकर जो व्यक्ति माया को, संसार को और आत्मा को समझ लेता है फिर ऐसे लोगों को बुद्ध की अंतिम सीख होती है की जाओ। अप्प दीपो भवः, अब अपने प्रकाश से और लोगों को भी सच्चाई तक शान्ति तक ले जाने में मदद करो।
पर वे लोग जो इस पंक्ति का सही अर्थ नहीं समझ पाते। वे लोग इस शब्द का यूँ ही साधारण अर्थ निकालते हैं वे कहते हैं अपनी बुद्धि से कर्म करो जैसा मन कहता है वैसा करो। जी नहीं बुद्ध मन से जीने की बात नहीं कह रहे हैं बुद्ध कह रहे हैं सच्चाई के केंद्र से जियो जो सच्चा है वो करो।
और सत्य से जीने के लिए पहले आत्मज्ञान यानी भीतर का दीप प्रज्वलित होना जरूरी है। और चूँकि अधिकांश लोग उस दीपक को जलने ही नहीं देते अतः वे सच्चाई से सदा दूर ही रहते हैं।
पर यदि आप उन लोगों में से नहीं है, आप वास्तव में ज्ञान के प्रकाश में यानी समझदारी में, सच्चाई से जीवन जीना चाहते हैं तो आप किसी गुरु की शरण में आ सकते हैं।
जानें: कलयुग में सच्चा गुरु कौन है? कैसे पहचानें।
अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के बाद अप्प दीपो भव: का सरल और स्पष्ट उत्तर मिल गया होगा। अभी भी लेख के प्रति मन में कोई प्रश्न है तो आप 8512820608 whatsapp नम्बर पर सांझा कर सकते हैं। साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है आप इसे शेयर भी जरुर कर दें।