बच्चे हो या बड़े आत्मा का विषय लोगों के बीच हमेशा से ही रहस्यमई रहा है, लेकिन सीधे तौर पर आत्मा क्या है? इसका अनुभव कैसे हो? मरने के बाद आत्मा का क्या होता है? इन सवालों के सीधे जवाब पाना थोडा मुश्किल है।
हालाँकि आत्मा के बारे में हमने टीवी सीरियल्स पर और फिल्मों में कई तरह की बातें सुनी हैं, लेकिन अगर आप केवल मनोरंजन के लिए नहीं अपितु आत्मा की सच्चाई को जानने के लेकर जिज्ञासु हैं तो आज हम आपको आत्मा का सच बिलकुल सरल और सटीक शब्दों से पहुँचाने जा रहे हैं।
आत्मा क्या है? भगवद गीता के अनुसार
भगवान् कृष्ण भगवदगीता अध्याय 2, 23वें श्लोक में कहते हैं
अनुवाद: शस्त्र आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसको सुखा नहीं सकती।नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः
इस प्रकार कृष्ण सीधे तौर पर अर्जुन को बतला रहे हैं की हे पार्थ! आत्मा सदैव अजर है, अमर है, उसको न मिटाया जा सकता है न वो कभी पैदा होता है।
मनुष्य के जन्म से पूर्व और मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व बने रहता है। आत्मा के बारे में कृष्ण का ये व्यक्तव्य सुनकर अब मन में ये बात आती है की दुनिया में तो जो कुछ है वो कुछ समय बाद मिटता जरुर है।इन्सान का शरीर, घर, रिश्ते, वस्तुएं सब कुछ तो एक समय के बाद मिट जाती हैं या बदल जाती हैं।
तो आखिर क्या है इस सांसारिक जगत में जो अविनाशी है, अटल है, कभी बदल नहीं सकता।
आसान शब्दों में कहें तो वो है “सत्य” जी हाँ और मात्र सत्य है जो सदा था, है और रहेगा! कभी समाप्त नहीं होगा उसी को कृष्ण ने गीता में आत्मा और ऋषियों ने उपनिषदों में ब्रह्म कहकर सम्बोधित किया है!
अब आत्मा क्या है? ये जान लेने के बाद जाहिर सी बात है चूँकि दुनिया में आत्मा के बारे में लोगों के मन में बहुत से सवाल रहते हैं तो उन्हीं सवालों के कुछ जवाब हमने आपके साथ सांझा किये हैं ताकि आत्मा से जुडी कोई गलतफहमी मन में आपके शेष न रहे!
क्या शरीर में आत्मा होती है?
देखिये सत्य की सीमाएं नहीं होती इसीलिए उसे असीम या अनंत कहा जाता है! अब आप अपना शरीर देखिये क्या वो सीमित है या अनंत है?
शरीर हमारा छोटा सा है तो जाहिर सी बात है इस शरीर में छोटी चीज ही प्रवेश कर सकती है? पर चूँकि सत्य अनंत है, असीमित है तो भला आत्मा उसमें कैसे प्रवेश कर सकती है?
पर चूँकि हमें लगता है आत्मा का नाम सत्य नहीं है, आत्मा तो कोई पारलौकिक चीज़ है, कोई दिव्य हवा है या ज्योति है जो मनुष्य के भीतर जाती है जैसा की हमने फिल्मों में देखा है!
इसलिए हम आत्मा के नाम पर फ़ालतू की कहानियां सुनते हैं पर अगर हमने जरा भी आत्मा के बारे में कुछ पढ़ा होता तो हम कहते की सच्चाई तो पहले से ही है यानी आत्मा तो शाश्वत है, मनुष्य के मरने या जीने से उसका कोई सम्बन्ध नहीं!
जिस तरह प्रेम, करुणा होती है न उसी तरह सत्य भी होता है जिसे हम देख नहीं सकते, छू नहीं सकते पर उसके होने का प्रमाण यही है की हम सभी को सच्चाई प्रिय है! हम अभी सच जानने को लेकर उतावले रहते हैं!
याद रखें आत्मा को अनिकेत भी कहा गया है! वो संसार के भीतर नहीं है, बल्कि संसार उसके भीतर है! क्योंकि प्रकृति में जो कुछ होता है वो सीमित होता है और आत्मा असीमित है!
मरने के बाद आत्मा कहाँ जाती है?
सर्वप्रथम यह समझें की आत्मा हर काल में, हर क्षण मौजूद हैं मनुष्य के जन्म लेने से पूर्व भी उसका अस्तित्व था और उसके मरने के बाद भी वो रहेगी।
तो जिसका समबन्ध ही नहीं हैं मनुष्य के जन्म लेने से और मरने से तो कैसे किसी की मृत्यु होने पर आत्मा उड़ जायेगा या जल जाएगी?
इसलिए आत्मा यानी सत्य जस का तस ही रहता है, शरीर मर जाता है, प्रकृति में नए जीव का निर्माण होता है, इसलिए शरीर बदलते रहते हैं पर आत्मा सदैव एक ही है।
आत्मा की आवाज कैसे होती है?
सत्य की कोई आवाज नहीं होती, इसलिए आत्मा की कोई ध्वनि नहीं होती। लोगों के बीच एक भ्रामक धारणा यह है की उन्हें लगता है मरने के बाद आत्मा से तरह तरह की ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं।
परन्तु अगर आपको सच जानना है तो समझ लीजिये आत्मा से किसी तरह की ध्वनी या तरंगे नहीं उठती! वे लोग जो इस तरह की बातें करते हैं उन्हें निश्चित ही आत्मा के बारे में जानना अति आवश्यक हो जाता है!
आत्मा कितने प्रकार की होती है?
आत्मा को अनवय कहा गया है क्योंकि उसके कोई हिस्से नहीं होते, आत्मा एक होती है,जो अखंड है। आत्मा कोई विषय या शरीर का भाग नहीं है जिसका अनेक भागों में विभाजन किया जा सके!
ठीक वैसे जैसे सच्चाई के अलग अलग प्रकार हो सकते हैं? नहीं न इसी तरह आत्मा के ढेरों प्रकार हो ऐसा सम्भव नहीं है!अगर कोई कहता है आत्मा का एक प्रकार रोशनी देता है और दूसरा प्रकार द्वेष, क्रोध और आपका अहित चाहता है।
तो समझ जाइए यह इंसान मूर्ख है इसे आत्मा के विषय पर कोई जानकारी नहीं है। आत्मा अकल्प है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, जिसे देखा न जा सके तो क्या उसको विभिन्न प्रकारों में बांटा जा सकता है!
आत्मा का धर्म क्या है?
आत्मा अर्थात सत्य का कोई धर्म नहीं होता, इन्सान का धर्म होता है की वह सच्चाई और इमानदारी के मार्ग पर चलकर अपने मन की बेचैनी, निराशा को मिटाकर शांति की तरफ ले जा सके।
पर चूँकि मनुष्य अज्ञानी होता है वह स्वयं धर्म के मार्ग पर नहीं चलना चाहता इसलिए फिर वह आत्मा के धर्म को लेकर जवाब खोजता है!
आत्मा से कैसे बात कर सकते हैं?
क्या आप सत्य से बात कर सकते हैं, नहीं न इसी तरह आत्मा न तो शरीर है जिसकी कोई आवाज है, न रंग है, रूप है जिससे आप प्रत्यक्ष रूप से या किसी के माध्यम से बात कर सकते हैं।
समाज में वे लोग जो कहते हैं मेरी आत्मा से बातचीत होती है, ऐसे लोग आमतौर पर अन्धविश्वास फैलाते हैं।
हालाँकि यह संभव है जो लोग सच्चाई का जीवन जीते हैं अपने मन पर नहीं बल्कि ह्रदय केन्द्रित जीवन जीते हैं। सिर्फ उन्हें कहने का अधिकार है की हम आत्मस्थ होकर जीवन जीते हैं! यानी आत्मा के आधार पर जीवन जीते हैं।
आत्मा क्या खाती है?
आत्मा कोई शरीर थोड़ी है जिसे जीवित रहने के लिए भोजन, पानी की आवश्यकता पड़ेगी। आत्मा का अर्थ है सत्य, और सच्चाई तो सदा से ही विधमान है। सच्चाई को जीवित रहने के लिए किसी चीज़ को ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं होती।
सौ झूठ मिलकर भी सच्चाई का बाल बांका नहीं कर सकते। पर यदि आप सोचते हैं की शरीर के भीतर आत्मा कहाँ पर होती है और उसका भोजन क्या है? तो फिर इस सवाल का जवाब आपको कहीं भी नहीं मिल सकता। क्योंकी ये प्रश्न ही व्यर्थ है।
ईश्वर और आत्मा में क्या अंतर है?
देखिये मनुष्य का धर्म है सच्चाई पर चलना यानी सत्य को पाना! अतः मनुष्य को सत्य तक ले जाने में भगवान की भूमिका विशेष है!
समझिएगा भगवान या जिन्हें हम ईश्वर कहते हैं वो हमारे जीवन में एक द्वार की भांति हैं जिनके माध्यम से हम सत्य को प्राप्त कर सकते हैं! भगवान राम को ईश्वर के रूप में पूजने पर हमें ये संदेश मिलता है की हम भी अपने जीवन में सच्चाई को सबसे बड़ा स्थान दें!
तो अगर हमें सत्य यानि आत्मा के करीब जाना है तो भगवान हमारे लिए उस द्वार (गेट) की तरह हैं जिनके दर्शन से हमें सच्चाई भरा जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है!
तो वो व्यक्ति जो आत्मस्थ होना चाहता है, आत्मा में लीन होकर जीना चाहते हैं भगवान उसके लिए एक अलार्म की तरह हैं वो जब जब भगवान राम, कृष्ण या शिव जी की मूर्ती को देखेगा उसे याद आ जायेगा की सत्य पर चलना ही मनुष्य का एकमात्र धर्म है!
अतः भगवान की पूजा, मूर्ती पूजा इसलिए जरूरी है क्योंकि इनको याद करके हमें अपनी मंजिल आत्मा तक पहुँचने में मदद मिलती है!
इसलिए हम पाते हैं सनातन धर्म में भगवान, मूर्ती और इतनी सारी धार्मिक कहानियां इसलिए हैं ताकि हम सत्य के करीब आयें! इसके अलावा धर्म का और तमाम तरह की परम्पराओं का कोई और उद्देश्य नहीं!
लेकिन अगर आपने भगवान को बस अपनी इच्छापूर्ति का साधन बना लिया, आप यदि सिर्फ कुछ मांगने के लिए अपनी इच्छा पूरी करने के लिए भगवान के आगे सर झुकाते हैं तो फिर आप बड़े लाभ से वंचित रह जायेंगे!
आत्मा कैसी दिखती है?
आत्मा का कोई रंग, रूप, आकार नहीं होता तो भला उसे कौन देख सकता है। वो निराकार है, निर्गुण है, अविनाशी है, अमर है उसकी न तो कोई कल्पना कर सकता है। न कोई उसके बारे में कुछ बता सकता है।
क्योंकी संसार में उसी वस्तु का तो रंग रूप, आकार होता है न जिस वस्तु को हम देख सकते हैं या छू सकते हैं। पर चूँकि आत्मा शरीर का कोई अंग या पदार्थ तो है नहीं जिसको देखा जा सके। इसलिए उसे देखना या उसके बारे में अधिक बातचीत करना भी उसका अपमान करने जैसा प्रतीत होता है।
वेदों में आत्मा कहाँ होती है?
वेदों की आत्मा उपनिषदों में बसती है, क्योंकि वास्तव में उपनिषद ही हमें हमारे जीवन की सच्चाई बताते हैं। उन्हीं के माध्यम से हमें हमारी बेचैनी का कारण और समाधान मिलता है।
अतः वे लोग जो आत्मा से जुडी कई मनगढ़ंत बातों को स्वीकार करने की बजाय सत्य को समझना चाहते हैं उन्हें उपनिषदों में ऋषियों द्वारा आत्मा के विषय में कही गई बातें जरुर पढनी चाहिए। पेश हैं उपनिषदों के कुछ प्रमुख सूत्र जो आत्मा को सम्बोधित करते हैं। तत्वमसि
FAQ~ आत्मा क्या है? से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
पृथ्वी पर जन्म लेने वाले जीव की उम्र का अनुमान लगाया जा सकता हैं! परन्तु आत्मा यानी सच्चाई की कोई उम्र नहीं होती!
आत्मा अर्थात सत्य कभी नहीं भटकता बल्कि इन्सान का मन सुख की तलाश में यहाँ से वहां भटकता रहता है! और यही मन कई तरह की मनगढंत बातें बनाता है!
आत्मा अज्ञेय है, उसके रंग, रूप के आधार पर उसे नहीं पहचाना जा सकता! इसलिए जानने वालों ने कहा की सत्य की खोज मत करो, जिन्दगी में जो झूठा है, उसे त्यागते चलो!
आत्मा मनुष्य के भीतर समाई नहीं है, वो मनुष्य के अंदर नहीं है! अतः मनुष्य की मृत्यु या जन्म का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता!
आत्मा किसी विशिष्ट स्थान पर नहीं निवास करती, जिस तरह सत्य सब जगह होता है उसी तरह आत्मा हर काल में, हर जगह मौजूद होती है!
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अंतिम शब्द
तो साथियों आत्मा क्या है? के विषय पर यह कुछ मूल प्रश्न हमने जाने, आशा है आप आत्मा के विषय पर विस्तार से जानना चाहते होंगे, अगर आप इस लेख में दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो कृपया इसे शेयर करना बिलकुल मत भूलियेगा।