बेबी – बेबी वाला प्यार Chapter 8 | Full Book Summary in Hindi

प्रायः आप देखते होंगे जब एक जोड़ा आपस में नजदीक आता है, फिर चाहे वह पति पत्नी हो, आजकल के युवक/युवतियां हो या फिर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग, अक्सर ये प्यार में एक दुसरे को बाबु, बेबी कहकर बुलाते हैं! बेबी बेबी वाला प्यार

बेबी बेबी वाला प्यार

इस अध्याय में आचार्य जी इस बेबी बेबी वाले प्यार की हकीकत हमारे सामने रखते हैं। और बता रहे हैं ये बेबी सोना बोलने के पीछे इंसान की मंशा क्या होती है? क्यों किसी से सुख भोगने के लिए ये कहना जरुरी हो जाता है? इन विषय पर विस्तार से इस अध्याय में चर्चा की गई है!

प्यार में एक दूसरे को बेबी बोलने की असली वजह

प्रश्नकर्ता“- ” आचार्य जी आजकल के छोटे बड़े सब आशिक एक दुसरे को प्रेम के नाम पर बेबी-बेबी क्यों कहते हैं? क्या वजह होगी”

आचार्य जी:- देखिये, बेबी मतलब क्या होता है एक बच्चा, जिसका शरीर सॉफ्ट/कोमल होता है, उसमें समझ चेतना बिलकुल शून्य होती है! और जागरूकता न होने की वजह से उसे जिस राह ले चलो ये उसी राह चल देगा! इसलिए एक बचा सिर्फ देह/शरीर मात्र होता है।

समझिये इंसान प्यार के नाम पर दो चीज़े कर सकता है, एक ये की वो अपने प्रेमी को बच्चे से बड़ा बना दे, दूसरा उसकी चेतना, समझ को खोखला करके उसे बड़े से बच्चा बना दे।

और समाज में अधिकतर लोग आपकी चेतना को गिराने का करते हैं, क्योंकि किसी को बेबी बनाकर जो सुख आप उससे लेना चाहते हैं वो मिलना बहुत आसान हो जाता है।

और प्रेम में किसी को बेबियाना का सीधा अर्थ है की आप दूसरे व्यक्ति को भी बेबी के तल पर लाना चाहते हैं, एक बेबी को जैसे चाहे अपनी बात मनवा सकते हो, उसके मुंह में आप कुछ भी डाल सकते हो, उसके कपडे खोल सकते हो! और मीठी मीठी बातें करके कोई लालच देकर जैसा चाहे उसके साथ कर सकते हो।

इसलिए जब किसी अधेड़ उम्र की स्त्री या पुरुष को बेबी बनाया जाता है। तो शरीर से तो वो बिलकुल सुडौल, चुस्त दुरुस्त लेकिन चेतना उसकी बिलकुल निम्न, इसलिए फिर ऐसे लोगों के प्यार में आपको नंगापन देखने को मिलता है, समझदारी नहीं।

आचार्य जी कहते हैं एक बेबी वो होता है जिसका मानसिक स्तर बिलकुल जीरो हो, जिसके पास खुद के बचाव की शक्ति नहीं होती, अतः कृपा करके किसी का बेबी मत बन जाना…

प्रेम में मैच्योरिटी आपको सुहाएगी नहीं

आगे आचार्य जी कहते हैं सच्चा प्रेमी अगर आपको कहीं मिल भी गया जो तुम्हारे भले के लिए आपकी समझ को ऊँचा उठाये, तुम्हें सही मार्ग पर ले जाए वो व्यक्ति तुम्हें भायेगा नहीं..

उल्टा कह दोगे की ये समझदारी यहाँ नहीं चलेगी, जैसे है हम अच्छे हैं, हम अच्छे नहीं लगते तो निकलो अपने रस्ते।

आप सोचिये कोई बुद्ध जैसा व्यक्ति आपके जीवन में आये, जिसकी चेतना बिलकुल उच्च स्तर पर हो, उसका आईक्यू 150 हो, जो जान रहा हो आपको देखकर आपके मन की स्तिथि क्या है, क्या तुमको ऐसे से प्यार आएगा।

इसलिए जिन्दगी चाहे कितनी भी गई गुजरी चल रही हो, किसी ऐसे व्यक्ति की संगती करने के बजाय जो तुम्हारे जीवन को ऊँचा उठाये तुम्हारे डर, लालच, निर्भरता को कम करे।

तुम किसी ऐसे का हाथ पकड लेते हो जो बिलकुल अपने स्वार्थ के लिए आपका शोषण करने के लिए तैयार बैठा हो।

और वो चाहते ही हैं आप खुद को बेबी मानें

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड में ये बेबी वाला ट्रेंड बहोत चल रहा है, इसका असर युवाओं और मूवी के दर्शकों पर भी देखने को मिलता है”

आचार्य जी:- एक 18 वर्ष की युवती जिसे चार लोग हर समय बेबी-बेबी कहकर बुलाते हो, स्वयं घर में उसे बेबी कहकर सम्बोधित किया जाता हो तो फिर वो खुद को बेबी मान ही लेती है।

उम्र के साथ जहाँ उसमें परिपक्वता आनी चाहिए थी, इसके उलट उसका व्यवहार, आचरण, रहन सहन, कपडे बिलकुल एक बेबी के समान हो जाते हैं।

और समाज में एक वर्ग बिलकुल तैयार बैठा है जो चाहता ही है की आप बेबी बने रहें.. ताकि अपना मतलब साधने में उन्हें बड़ी आसानी हो।

क्योंकि एक व्यस्क स्त्री जिसमें परिपक्वता है, समझदारी है ऐसे को अपने झांसे में लेकर उसका शोषण करने में बहुत शक्ति चाहिए।

लेकिन जब उन्हें कोई मिल जाये ऐसा जिसकी चेतना पहले से ही बिलकुल शून्य है, तो फिर अपनी हरकतों को अंजाम देना उनके लिए बहुत आसान हो जाता है।

रिश्ते में सूखापन, प्रेम की कमी क्यों

प्रश्नकर्ता पूछ रहे हैं ” आचार्य जी ऐसे भी प्रेमी जोड़े होते हैं जिनमें बहार से बौद्धिक चर्चाएँ होती है, और जीवन उनका सामान्य जैसा प्रतीत होता है, पर प्रेम की कमी और सूखापन उनके रिश्तों में भी साफ़ दिखाई देता है”

आचार्य जी:- सच्चा प्रेम तीसरे तल की बात होती है, क्योंकि प्रेम न तो शरीर से होता है और न विचारों से, प्रेम तो विचारों से भी ऊपर उठ जाता है।

आपकी बात से बिलकुल सहमत हूँ की दो लोग या पतिपत्नी जिनके बीच बौद्धिक चर्चाएँ होती हों, और स्पष्ट तौर पर किसी तरह का द्वेष न दिखाई देता हो पर उनके बीच प्रेम न हो.. ये सम्भव हो सकता है क्योंकि ये बौद्धिक चर्चा करने वाला भी शायद अहंकार ही हो।

प्रेम तो वहां है जहाँ इन्सान अपना स्वार्थ भूल जाता है, और कहता है मेरी फिक्र छोडो मेरे साथी का भला होना चाहिए, और जो इंसान ये कह पा रहा है और वाकई करके दिखा रहा है समझ लो वो अब ऊपर उठ चुका है।

इसलिए ये नियत की बात है की तुम आखिर चाहते क्या हो?

घर में अभिभावकों द्वारा बच्चों को बाबु कहना

प्रश्नकर्ता: “आचार्य जी, महज टीवी, फिल्मों और समाज में ही नहीं बल्कि घरों में प्रायः वयस्कों पर भी माता पिता द्वारा बच्चों की तरह व्यवहार किया जाता है, कहाँ तक ऐसा उचित है “

आचार्य जी : ये सही प्रश्न उठाया, बेटा हो गया है तीस साल का लेकीन माँ का व्यवहार अभी भी उससे 5 साल के बच्चे की तरह है।

आचार्य जी कह रहे हैं पुराने उदाहरणों को देखिये भारत में तो ये परम्परा रही है की माँएं भी एक उम्र के बाद पुत्रों को आप कहकर सम्बोधित करती थी।

माँ जानती थी की मैं बच्चे की शुभचिंतक हूँ, चूँकि उम्र के साथ बेटे की चेतना भी अब जवान हो चुकी है इसलिए बेटे/बेटी को मात्र शरीर की तरह नही देखा जाता था।

उन्हें प्रायः उनकी उपलब्धि के आधार पर सम्बोधित किया जाता था. पर आजकल ऐसा न होने के पीछे हमारी विकृत प्रेम की परिभाषा और शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है जो हमें विजडम एडुकेशन से वंचित रखती है!

इस पुस्तक के पिछले अध्याय –

« प्रेम का नाम, हवस का काम | Chpater 7

« प्रेम की भीख नहीं मांगते, न प्रेम दया में देते हैं Chapter 6 

« चिंता करते रहने को प्रेम नहीं कहते! Chapter 5

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी हमें बेबी-बेबी वाला प्यार के पीछे का असली सच समझाने का प्रयास करते हैं, अध्याय में आचर्य जी प्रेम में सम्बन्ध कैसे होने चाहिए? प्रेमियों के बीच सम्भोग भी कब उच्च स्तर का होता है? इसकी खुल के चर्चा होती है!

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