बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता तो क्या करें| 100% कारगर उपाय

बेहद कम ऐसे माता पिता होते हैं, जिनके बच्चों का दिल पढ़ाई में आसानी से लग जाता है, क्योंकि अधिकांश अभिभावकों की यही समस्या रहती है की उनके बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता, अतः इस समस्या का हल आपको इस लेख में मिलेगा।

बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता

जैसा की आप जानते होंगे एक समझदार व्यक्ति बनने के लिए पढ़ाई कितनी अनिवार्य है, अतः बचपन से ही बच्चों को पढ़ाई लिखाई करने के लिए जोर दिया जाता है ताकि वो समाज और दुनियारी को अच्छी तरह समझ सके।

पर बच्चों पर खूब सारा समय, और पैसा निवेश करने के बाद भी माता पिता देखते हैं की पढ़ाई के प्रति उनमें कोई दिलचस्पी उत्पन्न नहीं होती, बल्कि खेलने, मौज मस्ती करने में अपना समय बिताना उन्हें ज्यादा पसंद होता है।

अतः अगर आप भी इसी समस्या से झूठ रहे हैं और जानना चाहते हैं की बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता तो क्या करें? तो आपको आज का यह लेख ध्यानपूर्वक पढना चाहिए।

बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता तो क्या करें | आजमायें कारगर उपाय

यहाँ हम आपके साथ कुछ आजमाए गए टिप्स सांझा कर रहे हैं, बतौर अभिभावक आप अगर बच्चों की पढाई के प्रति गम्भीर हैं और आप चाहते हैं।

 वो जागरूक और शिक्षित व्यक्ति बनें तो यह काम जबरदस्ती नहीं होगा। बल्कि आप होश विचार से और अपनी समझ से बच्चों का मन पढ़ाई में आसानी से लगा सकते हैं।

#1. पहले उन्हें पढ़ाई की जरूरत समझायें।

ये बिलकुल जरूरी नहीं की आप बच्चों को अधिक न पढ़ाएं तब भी वह जिन्दगी न जी पायें। वे तब भी कपडे पहनेंगे, भाषा सीख लेंगे और यहाँ तक की पेट चलाने के लिए कोई काम धंधा भी कर लेंगे।

पढ़ाई की अहमियत समझाएं

और इसका उदाहरण कई सारे लोग आज हमारे पास मौजूद हैं। अतः ऐसे में सवाल है की आखिर जिस विषय को या सिलेबस को आप बच्चे को पढ़ाना चाह रहे हैं, और जिसके लिए आपने ट्यूशन और स्कूल भेज रहे हैं पहले आप उसे साफ साफ़ ये बताइए तो सही की उसे वह विषय क्यों पढना है?

है की उन्हें आवश्यकता ही नहीं पता चलती। अतः बच्चों को कोई भाषा सिखानी है, गणित या विज्ञान या किसी भी विषय में अच्छा स्टूडेंट बनाना है तो पहले जानिए उसे सीखने की क्या वजह है, और फिर बच्चे को समझाइये।

अतः जब तक उसे पढ़ाई की जरूरत मालूम नहीं हो पाएगी तो उस विषय को ध्यान से पढ़ ही नहीं पायेगा। अधिकांश बच्चों के पढ़ाई में मन न लगने और अधिक शिक्षा हासिल न करने का यही कारण होता।

#2. अपनी चाहत बच्चे पर न थोपें।

बच्चे की उम्र 5-10 वर्ष होती है और कई माँ बाप तभी से ये इरादा कर लेते हैं की बच्चे का भविष्य क्या होगा? उदाहरण के लिए एक दुकानदार या व्यापारी यह ठान लेता है की उसे बड़े होकर अपना व्यापार संतान के हाथों में सौंपना है।

अपनी मर्जी न थोपें

अतः इसी तरह आपने भी ये ठान लिया है की बच्चे को डॉक्टर, इंजिनियर, व्यापारी या अपनी इच्छा के अनुरूप कुछ और बनाना है तो फिर ये सम्भव है की आपके और बच्चे के बीच पढ़ाई के कारण संघर्ष चलता रहेगा।

 और भारतीय परिवारों में लड़के हो या लड़की दोनों पर बचपन से ही माता पिता उम्मीदों का जाल ऐसे बुनते हैं की उन्हें फिर पढ़ाई बोझ लगने लगती है।

अगर वाकई बच्चे को पढ़ाना है तो ऐसा करना छोड़ दीजिये।

#3. बच्चे का इरादा पूछिए।

हर बच्चे की अपनी इच्छाएं और लक्ष्य होते हैं। अतः इससे पहले की आप उन्हें किसी ख़ास कोर्स या डिग्री को करने के लिए उन पर जोर डालें। अगर बच्चे के प्रति थोडा सा भी प्रेम है और चाहते हैं उसके और आपके बीच सम्बन्ध बेहतर हो तो उसकी इच्छा पूछिए।

बच्चे का इरादा क्या है

सम्भव है वो पढ़ाई में रुचि कम रखता हो और क्रिकेट या किसी अन्य खेल में उसकी रूचि हो, इसी तरह सम्भव हो उसे ड्राइंग में या संगीत में रुचि हो और वो भविष्य में उस फील्ड में कुछ अच्छा कर सकता हो।

अगर आपको लगता है बाकी चीजों को करने में तो बहुत पैसा चाहिए? तो यकीन मानिए इन्टरनेट और टेक्नोलॉजी के जमाने में अपने पैशन को फॉलो करके जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए बहुत पैसे की जरूरत नहीं है। अगर बच्चा खुश होकर लगन के साथ काम करेगा तो वह एक अच्छा छात्र भी बनेगा।

#4. खुद पर ध्यान दें, बच्चे आपसे ही सीखते हैं।

हमें लगता है बच्चे सिर्फ स्कूल में किताबों से सीखते हैं और जो बातें हम उन्हें अच्छी अच्छी बताते हैं उन्हीं से उन पर प्रभाव पड़ता है। पर वास्तव में बच्चों को अपने घर में, दोस्तों के साथ जैसा माहौल मिलता है वैसा ही वो सीखते रहते हैं।

खुद पर ध्यान दें!

उदाहरण के लिए आप खुद शराब पीते हैं, गाली गलौज करते हैं और अपने बच्चे को ये चीजें करने के लिए मना करते हैं तो ऐसा नहीं हो सकता की उसे जो दिख रहा है और जो बातें सुनाई दे रही है उसे याद न हो।

इसलिए कहा गया है की अच्छे माँ बाप वही हो सकते हैं जो पहले एक गुरु हो। अगर आप खुद अच्छे इंसान नहीं है और बच्चे को अपने साथ रखकर उसे अच्छा बनाना चाहते हैं तो ये बड़ी घातक बात है ऐसे में बच्चे के साथ अन्याय होगा।

#5. उदाहरण बनें, बातें नहीं।

बहुत से माता पिता अपने बच्चों की तुलना पड़ोस के शर्मा जी के बच्चों से से तो कभी किसी सरकारी पद वाले व्यक्ति से करते हैं। खासकर मिडल क्लास परिवारों में ऐसा खूब होता है।

बातें नहीं उदाहरण बनिए

तो अगर आप चाहते हैं बच्चे मन लगाकर पढ़ाई करें तो आपको खुद ऐसा बनना होगा जो पढ़ाई के प्रति उत्सुक रहें। खासकर अगर बच्चे छोटे हैं तो अगर आप पढ़ाई या कोई भी अच्छी आदत आप उन्हें सिखाना चाहते हैं तो पहले आप वो आदत स्वयं में विकसित करें।

चाहते हैं आप की सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई करें, तो आप भी जल्दी उठें और किताबों को उठा लीजिये। अगर इच्छा है की उसका स्वास्थ्य ठीक हो वो सुबह कसरत करें तो आप भी करने लग जाइए। फिर देखिये जैसा आप चाहते हैं बच्चा वैसा बनता है की नहीं।

#6. समझें बच्चे को मानसिक भोजन कहाँ से मिल रहा है?

आज के सोशल मीडिया, इन्टरनेट के दौर में बच्चों को मोबाइल, टीवी और यार दोस्तों से दूर रखना लगभग असंभव है। और यही चीजें ऐसी हैं जिनसे सबसे ज्यादा कुप्रभाव बच्चों पर पड़ता है।

बच्चे का मानसिक भोजन

इसलिए अगर जानना है की कहाँ से बच्चे के मन में जहर घोला जा रहा है तो बस देख लीजिये किन लोगों के साथ वो उठता बैठता है, किन लोगों की बातें सुनता है।  क्या चीजें देखना पसंद करता है?

 आज बच्चों का दुश्मन कोई डाकू या चोर नहीं बल्कि टीवी, मीडिया और वे सभी मोटिवेशनल स्पीकर्ष और इन्फ़्लुएन्सर्स हैं जो बच्चों को अपने फायदे के लिए गलत चीजों की तरफ धकेलना चाहते है।

#7. बच्चों को संस्कार देने का अधिकार मात्र गुरु को

जब बच्चे छोटे होते हैं या वह किशोरावस्था में होते हैं तो इस दौरान जो भी घर में बड़ा होता है फिर चाहे वह चाचा, ताऊ, दादा-दादी, फूफा, नानी मां-बाप सभी को यह अधिकार दे देते हैं कि वे बच्चों को संस्कारित करें उन्हें सिखाएं।

संस्कार देना गुरु का अधिकार

और यह स्थिति लगभग सभी के साथ होती है लेकिन अगर उनकी बातें फायदेमंद होती तो आज समाज में लोग खराब नहीं होते अतः जब तक आप इस बात को नहीं समझते की किसी भी ऐरे गैरों की बातों को बच्चों को स्वीकार नहीं करना है।

 मात्र बच्चों में संस्कार देने का अधिकार एक गुरु को है क्योंकि सिर्फ वही जानता है कि बच्चों के लिए क्या ठीक है और क्या नहीं, अगर यह अधिकार आप सभी को दे देंगे तो ऐसे में बच्चों के साथ अन्याय होगा वह कई चीजों को सीखेंगे और फिर गलत ही करेंगे।

#8. बच्चों के माहौल पर ध्यान दें। 

ऊपर हमने इस बात को विस्तार में समझा है कि बच्चे आपके ऑर्डर का पालन नहीं करते बल्कि वह जैसा देखते हैं, सुनते हैं वैसा ही सीखते हैं अगर चाहते हैं वाकई बच्चों की भलाई तो उनके माहौल पर ध्यान दीजिए।

पढ़ाई के माहौल पर ध्यान दें

अगर माता-पिता घर में छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई करते हैं, डर और लालच के खिलाफ अक्सर आप हार मान लेते हैं और झूठ को आपने जिंदगी का सहारा बनाया हुआ है तो इतना तय है कि आप अपने बच्चे को आप खुद राम तो नहीं बन पाएंगे।

वह भी आपके जैसे ही बन जाएंगे अतः घर में, परिवार में, या खेल के मैदान में जहाँ कहीं भी आपका बच्चा होता है देखिये वहां का माहौल कैसा है।

#9. सिर्फ अच्छे अंक लाना मकसद नहीं।

बच्चों को पढ़ाई लिखाई करवाने का मकसद सिर्फ क्लास में टॉप करना बिल्कुल नहीं हो सकता। अगर आप इस वजह से यह सर्च कर रहे हैं कि बच्चों में पढ़ाई में मन नहीं लगता तो क्या करें?

अच्छे अंक पर नहीं जीवन पर ध्यान दें

तो आपको बच्च्चे के अच्छे अंक लाने के बारे में बाद में सोचना है और वास्तविक जिंदगी में वह कैसा इन्सान बनना चाहता है इस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

देखिए हर बच्चे की पढ़ाई में रुचि और क्षमता अलग-अलग होती है तो संभव है आपके बच्चे पढाई में औसत हो और वह क्लास में टॉप ना कर पायें?

अतः इस बात से आपको ना तो उन्हें निराश होना है और न ही उन्हें निराश करना है। पढ़ाई लिखाई का मकसद एक अच्छा इंसान बनना होना चाहिए, देखिये क्या वह बन पा रहे हैं।

क्योंकि पढ़ाई में नकल करके टॉप कर जाने से कहीं बेहतर है कि आप अपनी बुद्धि से पास हो जाए आप बताइए आप कैसा छात्र बनना चाहते हैं टॉप करने वाला या फिर अपनी बुद्धि के बल पर पास होने वाला।

#10. सांसारिक शिक्षा के साथ आत्मज्ञान की शिक्षा जरूरी है।

 आज हमारे सभी स्कूल, कॉलेज जैसे शैक्षणिक संस्थान बच्चों को सांसारिक शिक्षा देने उन्हें इस काबिल बनाने में पर्याप्त है कि वह पढ़ लिख कर अपना रोजगार कर सके।

आत्मज्ञान जरूरी है

 लेकिन एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए जीवन में सच्चाई, शांति और स्पष्टता कितनी आवश्यक है यह कोई भी कॉलेज या स्कूल नहीं पढ़ात।  जिससे सिद्ध होता है की भौतिक जीवन में तो एक स्टूडेंट अच्छा और ज्ञान हासिल कर लेता है उसे नौकरी और पैसा भी अच्छा लगा देता।|

लेकिन उसके बावजूद दु:खी रहता है, उसके अंदर लालच और डर बढ़ता जाता है अगर आप चाहते हैं वाकई बच्चा सिर्फ पैसे कमाने की मशीन रह जाए तो उसे आत्मज्ञान की शिक्षा देना बहुत जरूरी है।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता तो क्या करें? इस प्रश्न का सीधा और स्पष्ट उत्तर आपको मिल चुका होगा। उम्मीद है इन टिप्स का पालन करके आपके बच्चे और बेहतर पढ़ाई कर पायेंगे। आशा है इस लेख में दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी और आप इसे शेयर भी करेंगे।

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