बड़ा हुआ तो क्या हुआ दोहे का वास्तविक और सच्चा अर्थ | कबीर साहब

किताबों में, भजनों में कबीर साहब के दोहे अमृत की भांति बरसते हैं, इस लेख में आपको उन्हीं का प्रसिद्ध दोहा बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर दोहे का सही अर्थ विस्तार से बताया जा रहा है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ दोहे का अर्थ

कई सदियाँ बीत चुकी हैं, लेकिन आज भी कबीर साहब के दोहों की उपयोगिता और प्रासंगिकता कम नहीं हुई है, उनके दोहे हमें जीवन की गहरी सीख देते हैं। और पाठकों को सच्चा और प्रेमपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे यह अनमोल जीवन व्यर्थ न जा पायें।

भले आज के इस दौर में नई पीढ़ी को कबीर साहब, बुल्लेशाह, मीराबाई से कोई प्रयोजन नहीं, पर ऐसा करके नयी पीढ़ी के जीवन में आनन्द/ शान्ति आई है या फिर वह अधिक निराशा और तनाव में जीवन जी रही है।

हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाएँ, जिन महान संतों, ऋषियों की वजह से भारत का इतिहास गौरवशाली है, हमें उनकी बातों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। आइये इस लेख में इस दोहे का जमीन और वास्तविक अर्थ आपके समक्ष सांझा करते हैं।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ दोहे का सरल और सच्चा अर्थ

यहाँ कबीर साहब ने बड़ा शब्द का प्रयोग किसी मनुष्य के लिए नहीं बल्कि उनके लिए किया है जो व्रहद है, असीम है जिसे ब्रह्म कहते हैं।

क्योंकि मात्र सत्य ही परम है, सबसे ऊँचा है। बाकी संसार में आप जिस भी चीज़ को ऊँचा कहेंगे वो तुलनात्मक रूप से ऊँचा होगा, कोई इंसान या वस्तु ऊँचा है हम तभी कहते हैं जब कोई चीज़ उससे छोटी होती है।

अतः मात्र ब्रह्मा यानी सच सबसे बड़ा है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। और सच  उतना अधिक बढेगा, कम नहीं होगा।

कबीर साहब कहते हैं जब आपके भीतर सत्य प्रकाशित हो जाता है, आप सच्चाई भरा जीवन जीते हैं तो इसका फायदा दूसरों को भी जरुर मिलेगा।

पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर

 कबीर साहब कह रहे हैं की आपके सही होने का लाभ बाकी पथिकों को भी जरुर मिलेगा। और आप भी निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे।

बड़ा होने यानी बडप्पन का अर्थ ही यह है की आप अब सत्य के एक माध्यम बन जायेंगे, और आपसे दूसरों को मिलने वाले लाभ से आशय यह नहीं है की आप किसी को दाना पानी दे दें, कुछ उसकी मदद कर दें।

नहीं सत्य से तो एक ही लाभ होता है वो दूसरे को भी सच्चाई दे देता है। क्योंकि हम झूठे, अज्ञानी और भ्रम में रहते हैं इसलिए हमें दुःख मिलता है। लेकिन अगर हमें सच मिल जाये तो हम फिर एक सही जीवन जीना शुरू करते हैं।

जो आपके पास वही आप बांटोगे!

कबीर साहब कहते हैं जिस प्रकार एक वृक्ष अपने सारे फल बिना किसी लाभ की इच्छा के दूसरों को अर्पित करते हैं, उसी तरह सच्चाई का जीवन जीने वाले लोग दूसरों तक सच पहुंचाकर उन्हें अन्धकार से रौशनी की तरफ ले जाते हैं।

ध्यान देने योग्य बात है की यहाँ सच्चाई से आशय उस तरह की थोथली सच्चाई से नहीं है जो हम आमतौर पर कहते हैं की मैंने किसी का पैसा नहीं चुराया या किसी को झूठ नहीं बोला तो हम सच्चे हो गए।

नहीं, जब आप अपनी इच्छाओं की खातिर नहीं बल्कि बिना कुछ लाभ की आशा के किसी ऊँचे और जरूरी काम के लिए जीना शुरू कर देते हैं तो यह एक सच्चा जीवन है।

इसलिए अगर जानना है की आपके जीवन में भी सत्य, ब्रह्म आया है और आप सच्चाई भरा जीवन जी रहे हैं की नहीं तो कबीर साहब कह रहे हैं एक ही तरीका है, देखिये क्या आपके माध्यम से कुछ बंट रहा है या फिर नहीं।

 जैसे कबीर जहाँ कहीं भी होते घर में बाजार में उनके मुख से राम और सच्चाई के ही बोल निकलते थे, क्योंकि वो खुद सच्च्चा जीवन जी रहे थे। अतः आप देखिये आप कैसा जीवन जी रहे हैं वैसा ही आप दूसरों को बाँटेंगे।

अगर आप स्वार्थी हैं, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही दिनभर काम करते हैं, इसके लिए आप दूसरों से झूठ बोलना भी पसंद करते हैं तो आप दूसरे को भी वही दे पाएंगे जो आपके मन में है। इसलिए कहा गया है जो आपके पास है वही आप दूसरों को बांटेगे।

आप शराबी हैं तो आप शराब बांटेंगे, आप लालची हैं तो दूसरे को भी लालच देंगे, आप डरपोक हैं तो दूसरे को भी डरायेंगे। आप बीमार हैं तो दूसरे को बीमारी देंगे और आपमें प्रेम है तो आप प्रेम बांटेगे बात इतनी सरल और साधारण है।

फल लागे अति दूर का वास्तविक अर्थ

यहाँ फल से आशय सफलता से है, कबीर साहब कह रहे हैं जिस प्रकार एक वृक्ष फलों से झूला होने के बावजूद भी वह फल अपने लिए नहीं बटोरता। यानी जो फल उसमें लगे हैं वो जड से बहुत दूर हैं।

उसी तरह एक ज्ञानी व्यक्ति जिन अच्छे कर्मों को वो करता है वह उन कर्मों का परिणाम खुद भोगने की इच्छा नहीं रखता। एक वृक्ष की भाँती उसे भी पेड़ में लगने वाले फलों से कोई मोह या लगाव नहीं होता। लेकिन फल का लालच न होने के बाद भी वह कर्म करता रहता है जैसे एक वृक्ष करता है।

अब आप यहाँ समझ सकते हैं जो व्यक्ति वास्तव में बड़ा हो रहा है, यानी जो सच्चाई की तरफ बढ़ रहा है आम इन्सान की भाँती आप भी उसे खूब कर्म करते देखेंगे लेकिन उस कर्म के पीछे कुछ पाने की लालसा उस व्यक्ति के मन में नहीं होगी।

कबीर साहब कहते हैं आपका जीवन वृक्ष की भांति होना चाहिए, आपकी मदद से जो लोग तप रहे हैं, झुलस रहे हैं उन्हें ठंडी छाया मिल सके। और जितना आप में बडप्पन आयगा, उतने अधिक लोगों को छाया मिलना शुरू होगी।

तो जिस इन्सान की जड़ें गहरी हैं, जो सत्यानिष्ट है उसे न फिर सुख न दुःख से लगाव होगा वो बस एक घने वृक्ष की भाँती अपना कार्य करेगा। एक वृक्ष में जिस तरह पत्ते झड़ते हैं, फिर फूल आते हैं इसी तरह इन्सान को भी कभी सुख तो कभी दुःख से गुजरना पड़ता है।

पर जो इन सबके बीच एकाग्र, ध्यानस्थ होकर इन चीजों की प्रवाह किये बगैर सच्चाई भरा जीवन जीता है वह ब्रह्मलीन हो जाता है। सभी दुखों, बन्धनों से उसे मुक्ति मिल जाती है।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर दोहे का अर्थ सरल और स्पष्ट शब्दों में आपको मिल गया होगा, उपरोक्त लेख को पढ़कर मन में कोई प्रश्न है या सुझाव है तो नीचे दिए कमेन्ट बॉक्स में आप पूछ सकते हैं। साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर भी कर दें।

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