क्या भगत सिंह नास्तिक थे? जानें अन्दर की बात

अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ भारत की आजादी में भगत सिंह के योगदान को हर बच्चा बच्चा जानता है, ऐसे में जब भी उनको याद किया जाता है तो कुछ लोगों के मन में अक्सर प्रश्न उठता है की क्या भगत सिंह नास्तिक थे?

क्या भगत सिंह नास्तिक थे

एक धार्मिक देश होने के नाते जितने भी महापुरुष, संत इस धरती पर पैदा हुए उनके महान कार्यों को अंजाम देने में धार्मिक ग्रन्थों ने बड़ी भूमिका निभाई। 

पर इसी धरती पर एक ऐसा भी क्रन्तिकारी पैदा हुआ जिसने साफ़ कह दिया की आजादी मुझे प्यारी है पर मैं नहीं मानता भगवान जैसी कोई चीज़ इस संसार में है।

जी हाँ, आजादी की लड़ाई में जेल में रहने के दौरान उन्होंने 24 पेजों का एक आर्टिकल लिखा जिसका विषय था “मैं क्यों नास्तिक हूँ” और इस लेख को पढ़कर साफ़ साफ़ पता चलता है की उनका देवी देवता, भगवान ईश्वर में किसी तरह का विश्वास नही था। 

पर ये बात थोड़ी गले उतरती नही की धर्म ही तो हमें प्रेम, करुणा, आजादी की सीख देता है, और एक युवा जिसके देश प्रेम को देखकर कहीं से नहीं लगता यह इंसान अधार्मिक है तो फिर आखिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा की मैं नास्तिक हूँ।

जी हाँ, आखिर ऐसा क्या हुआ की बचपन से भगवान, ईश्वर पर गहरी आस्था रखने वाले इस क्रांतिकारी ने खुद को नास्तिक घोषित किया इसे जानने के लिए हमें पूरी कहानी जाननी होगी।

क्या भगत सिंह नास्तिक थे? जानें सच्चाई!

 जी नहीं, भगत सिंह धर्म के विरुद्ध नही थे, बस उनकी किसी भी धार्मिक परम्परा, मान्यता और ईश्वर तथा धर्म के नाम पर चल रहे पाखंड में किसी तरह की आस्था नहीं थी।

 भगत सिंह से बड़ा आस्तिक इंसान ढूँढना मुश्किल है क्योंकि त्याग, प्रेम, करुणा, स्वंतत्रता जैसे सभी धार्मिक गुण भगत सिंह में मौजूद थे।

 असल में जानवर और इंसान में यही फर्क है की एक पशु सिर्फ अपने पेट के लिए जीते हैं जबकि इंसान के लिए पेट से ज्यादा कुछ और है, कुछ है जिसके लिए प्राणों को भी गवा देना उसके लिए स्वीकार है।

 पर आज की तरह उस समय भी धार्मिक व्यक्ति को एक ऐसे इंसान के रूप में देखा जाता था जिसने भगवा रंग धारण किया हो, जिसके माथे पर तिलक हो और जो सुबह शाम पूजा पाठ करता हो इत्यादि।

 गुलामी की बेड़ियों में लिपटे उस दौर में हर भारतीय का एक ही धर्म होना चाहिए था स्वयं को आजाद करना, और स्वयं को आजादी तभी मिल सकती थी जब पूरा देश आजाद हो। पर इस वास्तविक धर्म पर चलने की बजाय लोगों ने धर्म के नाम पर कई तरह की कुरीतियाँ चलाई हुई थी।

 और यह सब देखकर भगत सिंह जान गए थे की ऐसी धार्मिकता का कोई लाभ नहीं जिससे मनुष्य अपने असली परेशानी को भूलकर बाकी चीजों में ध्यान भटका ले।

 अतः उन्हें साफ़ कहना पड़ा की मेरा भगवान, अल्लाह या किसी भी धर्म से सरोकार नहीं है, और शहीद होने से कुछ समय पहले अपने लेख “मैं नास्तिक क्यों हूँ” में उन्होंने ये बात साफ़ कही की मैं जानता हूँ।

 ऐसे समय में इश्वर का ध्यान करना मन को शान्ति देता है पर खैर चूँकि मैंने स्वयं को नास्तिक घोषित किया है अतः अब भी ईश्वर को न मानने के अपने फैसले पर अडिग रहूँगा।

भगत सिंह की सच्ची धार्मिकता का सबूत

 बात उस समय की है जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे उसी दौरान ग़दर पार्टी के नेता सरदार रणधीर सिंह भी जेल में स्वंत्रता आन्दोलन की सजा काट रहे थे, पर जब उन्हें इस देशभक्त के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने पहले तो भगत सिंह से मिलना अस्वीकार कर दिया।

 क्योंकि उनके अनुसार भगत सिंह ने अपने केश कटवा लिए हैं जो की धर्म के खिलाफ है, यह सुनकर भगत सिंह जवाब में पत्र लिखते हुए कहते हैं की मैं सिक्ख धर्म की अंग अंग कटवाने की परम्परा से भली भाँती अवगत हूँ।

 आज तो मैंने देश के लिए सिर्फ केश कटवाएं हैं पर कल को जरूरत पड़ी तो गर्दन कटवाने के लिए भी पूरी तरह तैयार हूँ। यह जवाब सुनकर रणधीर सिंह उनसे मिलने के लिए आतुर हो जाते हैं।

 भगत सिंह के अनुसार हमारी रियासत के दो पक्ष हैं एक है संस्कृतिक जो हमें निष्काम सेवा, बलिदान, त्याग, सच्चाई के रास्ते पर अडिग रहना सिखाता है जिसपर मेरा गहरा विश्वास है, पर दूसरी तरफ धर्म के नाम तमाम तरह का जो आडम्बर, अन्धविश्वास और मान्यताएं रची गई हैं इनसे मेरा कोई सरोकार नहीं है।

 पाठकों, भगत सिंह की ये बातें बताने के लिए काफी थी की भगत सिंह विशुद्ध धर्म जिसे अध्यात्म भी कहते हैं, उसपर वह कितना विश्वास करते थे पर धर्म के नाम पर चल रही काल्पनिक कहानियों के प्रति उनके मन में कोई भी सम्मान नही था।

भगत सिंह को किताबों से बेहद लगाव था, 23 की उम्र तक आते आते वो भगवदगीता, उपनिषद जैसे अनेक धार्मिक ग्रन्थों के साथ साथ सैकड़ों किताबें पढ़ चुके थे। फांसी में चढने से ठीक पहले उन्होंने अपने आखिरी चंद मिनट भी किताबों के साथ ही बिताये।

पढने के प्रति उनकी दीवानगी यह साफ़ दर्शाती है की यह इंसान जानने का इच्छुक था, उसने देश ही दुनिया के इतिहास के क्रांतिवीरों के बारे में पढ़ा था जिसने उनके भीतर देशप्रेम की ज्वाला को और भभकाने की भावना का संचार किया।

पढ़ें:- क्या भगत सिंह नास्तिक थे 

 क्या भगत सिंह भगवान को मानते थे?

 जी नहीं, भगत सिंह किसी दैवीय सत्ता पर यकीन नहीं रखते थे, जेल में रहने के दौरान उन्होंने खुद ये बात कही की वे अक्सर इश्वर को मानने की बजाय, इस विषय पर तर्क रखते थे।

 हालाँकि इस बात में को दो राय नहीं की धार्मिक पुस्तकों और महान लोगों के बारे में पढ़कर उन्हें एक ऊँचा जीवन जीने की प्रेरणा मिलती रही लेकिन कोई ईश्वर है जो इस संसार की रचना कर रहा है और सभी का भाग्य लिखता है इस तरह की बातों को भगत सिंह का कोई भी समर्थन प्राप्त नही था।

 भगत सिंह ने भगवान के बारे में क्या कहा?

 भगत सिंह नास्तिक थे जो भगवान जैसी किसी दैवीय सत्ता के होने पर विश्वास नही रखते थे। जेल में रहने के दौरान अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वो ये बात कहते रहे की मैंने अपने सुखद दिनों में भगवान या ईश्वर के सामने सर नहीं झुकाया, मैंने कभी उन्हें धन्यवाद व्यक्त नही किया।

और अब जब मेरे जीवन का अंत निकट है ऐसी स्तिथि में यदि प्रार्थना, मन्त्र जाप इत्यादि करके मैं भगवान को याद करता हूँ तो यह मेरे सिद्धांतों के विरुद्ध जाने की बात होगी।

ऐसा कहकर उन्होंने ईश्वर की इबादत करने की बजाय अपना खाली समय पुस्तकों को पढने में बिताया। वे जेल में रहकर ही अक्सर लेख लिखकर अपने विचारों को सामान्य जनता तक सांझा करते थे।

भगत सिंह की नास्तिकता को लेकर कोई प्रश्न है या राय है तो आप बेझिझक अपने विचारों को इस whatsapp नंबर 8512820608 पर सांझा कर सकते हैं।

 भगत सिंह एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे

एक अध्यात्मिक व्यक्ति सच्चाई का साधक होता है, जहाँ धार्मिक व्यक्ति ईश्वर के होने पर यकीन रखता है वहीँ एक अध्यात्मिक व्यक्ति के लिए सत्य ही परमात्मा होता है। अध्यात्मिक व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रार्थना नहीं करता, वह तो जिस पल जो सही है बस उसे निष्काम भाव से पूरी इमानदारी से करता है।

 इसलिए जिस व्यक्ति के भीतर सच्चाई,प्रेम,करुणा, त्याग, अनुशासन हो समझ लीजियेगा वह अध्यात्मिक है, और कोई अध्यात्मिक है या नहीं उसके जीवन के क्रियाकलापों को देखकर यह आसानी से पता किया जा सकता है।

भगत सिंह का जीवन साफ़ साफ उनके अध्यात्मिक होने का संदेश देता है। अपने लिए नही बल्कि देश प्रेम के खातिर अपने जीवन का बलिदान कर देना, छोटी ही उम्र में घर बार त्यागकर देश की सेवा करने का फैसला लेना, झूठ के प्रति उनका विद्रोह यह साफ़ दर्शाता है की भगत सिंह एक आम सांसारिक व्यक्ति से कितने अलग थे।

एक आम व्यक्ति का पूरा जीवन अपने और अपने परिवार के स्वार्थों को पूरा करने में बीत जाता है, सोचिये अपने मतलब से आगे दूसरों की भलाई के लिए जिन्दगी ही दाव पर लगाने के लिए कितना बड़ा दिल चाहिए।

अध्यात्मिक होने के उनके विचारों की झलक लाहौर जेल से लिखे गए मैं नास्तिक क्यों हूँ? में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। जिसमें वे साफ कहते हैं की जिस दिन इंसान के लिए अपने स्वार्थ के साथ जीने से अधिक जरूरी कमजोर, पीड़ितों की सहायता करना होगा उसी दिन से आजादी का युग शुरू होगा।

भगत सिंह का यह अध्यात्मिक कथन आज भी उतना ही उपयोगी है जितना पहले था आज भी मनुष्य धर्म के नाम पर पांखड और अंधविश्वासों से ऐसी बेड़ियों पर उलझा हुआ है जिससे बाहर निकलना उसके लिए मुश्किल है, आज भी झूठे और अधर्मी लोगों का राज है।

ऐसे अधर्मी लोगों से निर्दोष जानवरों और लोगों की जान बचाने के लिए आज भी भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के विद्रोह की जरूरत है।

मात्र कुछ अधर्मी लोगों के कारण पूरी पृथ्वी विनाश की कगार पर है, और जब तक उन्हें मिटाया नहीं जाता तब तक यह शोषण चलता रहेगा। अगर आप भी बुराई और अधर्म से लड़ना चाहते हैं और जीवन में क्रांति कर धर्म की लड़ाई लड़ना चाहते हैं तो आपका अध्यात्मिक होना बहुत जरूरी है।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात क्या भगत सिंह नास्तिक थे? इस प्रश्न का सीधा और सटीक उत्तर आपको इस लेख में मिल गया होगा, इस लेख को पढ़कर यदि जीवन में स्पष्टता आई है और भगत सिंह के महान जीवन से आपको कुछ सीखने को मिला है, तो कृपया इस लेख को अधिक से अधिक सांझा कर इसे अन्य लोगों तक जरुर पहुंचाएं।

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