अधिकांश घरों में गीता को आज भी माथे पर रखकर पूजा जाता है, इस धर्म ग्रन्थ को मंदिरों में विशेष स्थान दिया जाता है, पर अगर आप आज भी लोगों से पूछें आखिर भगवदगीता में क्या लिखा है? तो इस प्रश्न का कोई जवाब उनके पास नहीं होता!
भगवद गीता में कुछ ऐसे मार्मिक श्लोक हैं जिन्हें कोई समझ ले और अपने जीवन में उतार ले तो जिन्दगी आनंद से भर जायेगी। छोटी छोटी बातें जिनपर अक्सर हम लड़ते झगड़ते हैं उनकी परवाह होनी बंद हो जाएगी।
जी हाँ, पर इस सबके लिए हमें पहले श्रीमदभगवद गीता को अपने दिल में स्थान देना होगा।
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तभी श्री कृष्ण हमें अपना आशीर्वाद देंगे, और हम एक सही जिन्दगी जियेंगे! आज हम गीता में श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद की मुख्य बातें आपके समक्ष रख रहे हैं।
भगवद गीता में क्या लिखा है?
गीता के 18 अध्यायों में जीवन का सार है, गीता में कुछ ऐसे गूढ़ रहस्य छिपे हैं जिन्हें समझकर आप कहेंगे हाँ, वाकई कृष्ण कोई आम व्यक्तित्व नहीं थे। उनके विराट रूप और उनकी माया को अगर समझना है तो हमें गीता के करीब आना ही होगा।
भगवद गीता पढ़कर आपके मन में सनातन धर्म के प्रति सच्ची आस्था जागृत होगी। और धर्म के नाम पर जो कुछ अन्धविश्वास समाज में तथाकथित गुरुओं ने फैलाया है, आपको उनका ढोंग भी स्पष्ट दिखेगा। तो आइये ध्यान से समझते हैं उन सभी बातों को।
#1. निष्काम भाव से ऊँचे कर्म करने की सीख
मनुष्य को जन्म लेने के बाद प्रति पल कर्म तो करना ही पड़ता है। भगवद गीता हमें निष्काम कर्म का संदेश देकर फल प्राप्ति की इच्छा किये बिना जीवन में ऊँचे कार्य करने का संदेश देती है।
नि:स्वार्थ भाव माने निष्काम होकर फायदा या घाटे की चिंता किये बिना सब आप किसी सच्चे कार्य को करने लगते हैं तो जीवन में परम आनन्द की अनुभूति होती है इसी को श्री कृष्ण ने गीता में निष्कामता कहा है।
#2. परिणाम की फ़िक्र नहीं, सही कार्य में डूबो!
हम लोग प्रयास से ज्यादा परिणामों की फ़िक्र करते हैं। हम नहीं जानते खेल, पढ़ाई या जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसने कितनी मेहनत की, हम बधाई सिर्फ परिणाम के आधार पर देते हैं। और कृष्ण भी धर्म युद्ध में खड़े अर्जुन से गांडीव उठाकर लड़ने के लिए कहते हैं।
पर कृष्ण यह नहीं कहते की युद्ध करो ताकि इसे जीतकर हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठकर सुख को भोगो! तुम बस युद्ध करो क्योंकि इस समय तुम्हारा यही धर्म है। इस प्रक्रार गीता हमें सही कर्म करने के लिए प्रेरित करती है।
#3. सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ती करना चोर की निशानी है।
चोरी करने का अर्थ यह नहीं की आप दूसरे का हिस्सा खाएं, बल्कि आपके जीवन में पैसा, समय, उर्जा इत्यादि जो कुछ भी संसाधन के रूप में मौजूद है! यदि आप सिर्फ अपने संसाधनों का इस्तेमाल अपना पेट भरने के लिए, मजे करने के लिए कर रहे हैं।
तो गीता में इसे पाप कहा गया है! इसकी बजाय व्यक्ति को अपने संसाधनों को जीवन में किसी ऊँचे कार्य में समर्पित कर देना चाहिए, फिर उसके बाद जो बचे उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए!
4. यज्ञ का अर्थ निष्काम कर्म से है
गीता में कई बार आपको यज्ञ, आहुति जैसे शब्द देखने को मिलेंगे, पर यहां पर यज्ञ से आशय धुआं, लकड़ी, अग्नि इत्यादि से नहीं है।
गीता में यज्ञ से तात्पर्य निष्काम कर्म से है, यानी जिन्दगी में किसी ऊँचे/बड़े काम को करने का फैसला करना और फिर उस काम को करने में अपना सब कुछ लगाकर एक सही जिन्दगी जीना ही यज्ञ कहलाता है।
इस प्रक्रार श्रीमदभगवदगीता हमें यज्ञ का सही अर्थ बतलाकर जीवन में निष्काम भाव से कर्म करने की सीख देती है।
5. मेरी शरण में आ जाओ, चिंता मुक्त हो जाओगे!
गीता में अर्जुन को साफ-साफ कृष्ण कहते हैं की सब धर्मों का त्याग करके तुम मेरी शरण में आ जाओ मामेकम शरणम। जब तुम पूरी निष्ठा के साथ धर्म यानी सच्चाई की खातिर जीवन जियोगे तो तुम्हारे सुख और दुःख दोनों मुझे समर्पित हो जाएंगे।
दुर्भाग्य से हम सभी कृष्ण की ओर जाने की बजाय अपने मन को खुश करने के लिए ही कर्म करते हैं जिससे हमें दुःख ही मिलता है।
6. विचार, वृति और आत्मा
हमारे मस्तिष्क में आने वाले सभी ख्याल हमारी वृतियों (Instinct) से जुड़े होते हैं इसलिए अगर कोई ख्याल बार बार हमारे दिमाग में आता है तो सोच सोच कर हम उस ख्याल को नहीं मिटा सकते।
क्योंकि विचारों पर वृत्तियां भारी पड़ती है जैसे आपको वासना के विचार आ रहे हैं तो आप जितना वासना के विषय पर सोचेंगे उतनी ही समस्या बढ़ती है इसलिए किसी भी वृति पर मात्र आत्मा यानी सच्चाई ही भारी पड़ती है।
7. कर्म से पूर्व ज्ञान
भगवद गीता में अर्जुन और श्री कृष्ण के बीच संवाद के दौरान अर्जुन कई बार कृष्ण से पूछते हैं कि अब आप ही बता दीजिए मैं क्या करूं? कैसे अपनी बुद्धि स्थिर रखूं? एक ज्ञानी व्यक्ति के क्या लक्षण हैं, वह किन कार्यों को करता है।
जवाब में श्री कृष्ण कहते हैं अगर बिना ज्ञान के किसी भी कर्म को आपने किया, तो वह मूर्खता हो गई लेकिन जो कर्म आप अपनी समझ/ बोध से करने का निर्णय लेते हैं वह श्रेष्ठ है।
8. कर्मकांड नहीं ज्ञान कांड की तरफ बढ़ें
जब अर्जुन युद्ध ना करने के पक्ष में तर्क देते हुए कहते हैं की अगर युद्ध करते हुए कौरव मारे गए तो उनकी पत्नियों का क्या होगा? फिर वह किसी और जाति या कुल में शादी कर लेंगी इससे वर्णसंकर पैदा होगा और धर्म का नाश हो जाएगा।
इसपर श्री कृष्ण कहते हैं अर्जुन इन कर्मकांडों ने तुम्हारी बुद्धि हर ली है तुम सब इन सब का त्याग करो, इस समय तुम्हारा एकमात्र धर्म है युद्ध करना।
9. आत्मा न जन्म लेती है न मरती है
आजकल कई सारे तथाकथित गुरुओं द्वारा अध्यात्म के नाम पर आत्मा के जरिए लोगों को बहुत बेवकूफ बनाया जा रहा है कोई कहता है आत्मा उड़ रही है तो कहता है मुझे आत्मा का अहसास हुआ।
लेकिन श्री कृष्ण साफ शब्दों में बताते हैं आत्मा न कभी जन्म लेती है न कोई उसे नाश कर सकता है! न उसे नष्ट किया जा सकता है न उसे बनाया जा सकता है तो भला बताइए उसे कैसे हमारी इंद्रियां देख सकती हैं? या महसूस कर सकती हैं?
याद रखें आत्मा का अर्थ है सत्य, और सच्चाई कभी न तो जन्म लेती है और न पैदा होती है।
10. मोह ग्रस्त होना शुभ नहीं
हमारे समाज में और परिवारों में ममता शब्द बहुत प्रचलित हैं हमें लगता है मोह ममता बहुत जरूरी है कृष्ण कहते हैं अर्जुन तुम मोहग्रस्त हो चुके हो, तुम्हें अपने प्रिय जनों के खातिर धर्म और अधर्म का अंतर भी नहीं दिखाई दे रहा है। इसलिए व्यक्ति के मन में मोह नहीं प्रेम होना चाहिए।
पढ़ें:- मोह और प्रेम में अंतर
11. भीतर ही हैं दानव और देवता!
गीता में कृष्ण कई बार देवत्व की बात करते हैं वहां देवत्व से आशय इंद्र, सूर्य जैसे देवताओं से नहीं बल्कि हमारे ही मन के उस हिस्से से है जो हमेशा सच की ओर जाने की कोशिश करता है।
लेकिन उस सच को दबाने के लिए मन का दूसरा हिस्सा उस पर भारी पड़ जाता है, कृष्ण कहते हैं जो तुम्हें सच्चाई तक ले जाए वही दानव है और जो उसका विरोध करें वही राक्षस है।
12. मात्र आत्मज्ञानी ही सनातनी है
सरल शब्दों में आत्मज्ञान का अर्थ है खुद को जानना और साफ-साफ यह देखना की इस संसार से जो हम उम्मीदें लगाये बैठे रहते हैं, वो उम्मीद कभी पूरी होती नहीं है।
मात्र जो यह जान जाता है वह फिर इस संसार में रहते हुए भी छोटी मोटी चीजों से नहीं बल्कि कृष्ण से माने सच्चाई से प्रेम करता है क्योंकि सत्य को पाकर आनंद मिलता है। आत्मज्ञानी होने के लिए वेदांत पढना बेहद जरूरी है!
13. ऊंची कामना रखो | आनंद स्वभाव है।
कृष्ण कहते हैं छोटी इच्छाएं रखना बुरा नहीं है लेकिन इन छोटी इच्छाओं को पूरा करके आपको वो आनन्द नहीं मिल सकता जिसकी आप तलाश करते हैं। असल में वो आनन्द दुनिया की किसी चीज में है ही नहीं।
कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे पा लेने से मन भर जाए, इसलिए ज्ञानियों ने कहा की आनन्द पाना है तो तुम्हें कुछ ऐसा पाना होगा जो तुम्हारी छोटी इच्छाओं से बहुत बड़ा हो, वो कुछ ऐसा हो जिसे पाया नहीं जा सकता लेकिन हाँ उसके करीब जाया जा सकता है।
और वो चीज कोई और नहीं,सत्य है! वो व्यक्ति जो सच्चाई से जी रहा हो, जीवन में सच्चा काम कर रहा हो जान लीजिये वो आनन्द में है और जो ये जानते हुए भी की काम झूठा है और तब भी उसे किये जा रहा हो जान लीजिये आनन्द उससे दूर हो गया।
14. न कर्म त्याग, न साधारण कर्म
लोगों के बीच यह बड़ी भ्रांति रहती है की गीता में कृष्ण कहते हैं कि त्याग करते जाओ, जो व्यक्ति जीतना त्यागी होगी उसे हम उतना कृष्ण भक्त मानते हैं।
वास्तव में कृष्ण किसी भी विशेष चीज का त्याग करने के लिए नहीं कहते! वे कहते हैं सिर्फ त्याग उस चीज का होना चाहिए जिससे आपको दुख मिल रहा है।
भगवद गीता जी हमें सिखाती हैं की जानो किन कार्यों को करने से आपको दुःख मिला, एक बार जान गए और उस कर्म को त्यागकर जीवन में किसी सही कर्म करने में जीवन का सार है।
15. जो मुझे जैसे भजेगा, मैं उसे वैसे उपलब्ध हूँ!
भगवदगीता में कृष्ण अर्जुन के बीच संवाद जब आगे बढ़ता है तो श्री कृष्ण कहते हैं की यह तुम पर निर्भर करता है तुम्हें मेरी माया चाहिए या मैं चाहिए।
जिन्हें मेरी माया यानी ये संसार और संसार के लोग, वस्तुएं अच्छी लगती लगती है मैं उनकी मनोकामना पूरी करके उन्हें वह दे देता हूं और जिन्हें मुझसे प्रेम है मैं उनके लिए सदैव उपलब्ध हूँ।
16. शरीर से आगे है चेतना
चेतना यानी मन जो लगातार इस जगत में शांति पाने की कोशिश में लगा हुआ है कभी यहां जाना, कभी वह काम कर लेना, कभी सो जाना इत्यादि! कर्म कोई भी हो उसके पीछे लक्ष्य होता है शान्ति पाना!
इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं तुम जानवरों की भांति एक शरीर नहीं हो तुम एक चेतना हो जिसे आत्मा यानी सत्य तक पहुंचे बगैर चैन नहीं आएगा। तो संक्षेप में कहें तो मन को झूठ से बचाकर उसे सच्चाई तक ले जाना ही मनुष्य का धर्म है।
17. स्थितप्रज्ञ हो जाओ अर्जुन।
अपनी इच्छा और कामनाओं का त्याग करके जिस इंसान की बुद्धि आत्मा में स्थित हो जाए यानी जो व्यक्ति अपने मन के कहने से नहीं बल्कि आत्मा यानी सत्य के पथ पर चले मात्र वही स्थितप्रज्ञ है। ऐसे इंसान को सुख-दुख, मोह इत्यादि विचलित नहीं कर पाती।
18. संसाधनों का सही उपयोग
गीता में कृष्ण कहते हैं कि भोगी लोग संसाधनों का प्रयोग अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए करते हैं।
लेकिन जो व्यक्ति अपनी उर्जा, अपने पैसे, समय इत्यादि संसाधनों का प्रयोग बिना फल की इच्छा किये बिना किसी सार्थक कार्य (सच्चे कार्य) लिए करते हैं, ऐसे लोग मेरी शरण में जाते हैं।
19. कृष्ण हर क्षेत्र में हैं!
हमें लगता है जो व्यक्ति धार्मिक है वह सिर्फ धर्म की शिक्षा दे सकता है, लेकिन कृष्ण का जीवन हमें सिखाता है की वह हर क्षेत्र में मौजूद थे।
वह युद्ध के मैदान में अर्जुन के सारथी हैं तो बाहर अर्जुन के एक भाई और मित्र के रुप में उपस्तिथ हैं। वे राजनीति भी जानते हैं और युद्ध नीति भी, आप खुद से पूछें क्या आप जीवन के किसी क्षेत्र से भाग तो नहीं रहे हैं।
20. कृष्ण हमसे दूर नहीं हैं
श्री कृष्ण न तो किसी विशेष स्थान पर मौजूद हैं और नहीं किसी मंदिर में, कृष्ण हमारे भीतर सदैव आत्मा यानी सत्य के रूप में मौजूद हैं।
मन का वह हिस्सा जो आपको अधर्म के विरुद्ध लड़ने के लिए और सच का साथ देने को कहता है वही कृष्ण है इसलिए जो व्यक्ति आत्मज्ञानी हो जाता है वह अन्दर से कृष्णमय हो जाता है।
21. बोधवान बनो
अर्जुन, चाहते हैं श्री कृष्ण उन्हें कोई लक्षण बता दे ताकि उन्हें पता चल जाये की फलाना काम करने से कोई ज्ञानी हो जाता है! परन्तु कृष्ण कहते हैं आत्म ज्ञानी बनो (खुद को और इस संसार को जानो) ऐसा इंसान कुछ भी कर्म करेगा।
वह श्रेष्ठ होगा वहीँ दूसरी तरफ बिना समझ के किया गया कार्य आपको अंधेरे की तरफ ले जाएगा! बोध यानि जीवन में समझदारी आने के साथ-साथ करुणा और प्रेम भी आता है।
22. कर्मयोगी बनो
कुछ पाने की आस के बगैर जो व्यक्ति निरंतर किसी ऊँचे सतकार्य में डूबा हुआ है वह निष्काम कर्म योगी है उसे नहीं पता इस काम से क्या परिणाम आएगा।
मुझे हानि होगी या लाभ होगा? बस वह अपना कर्म कर रहा है क्योंकि वह सही है। पर हम राधे-राधे, हरे-कृष्णा का भजन तो खूब करते हैं लेकिन गीता पढ़कर आत्मज्ञान हासिल कर निष्काम कर्म में डूबकर कृष्ण को पाने की चेष्टा बिल्कुल नहीं करते।
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FAQ~ भगवद गीता में क्या लिखा है
हिन्दुओं के श्रेष्ट ग्रन्थ श्रीमदभागवत गीता के रचियता महर्षि वेदव्यास हैं, जिन्होंने 5070 वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र में हुए इस धर्म युद्ध में अर्जुन के मन की हालत और कृष्ण के उपदेश का विस्तार पूर्वक वर्णन किया।
श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे पार्थ, मन बड़ा चंचल है जो चारों दिशाओं में घूमता रहता है, इसे वश में करना कठिन है परन्तु निरंतर अभ्यास और साधना के बल पर इस पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
अंतिम शब्द
तो साथियों अध्याय में हमने जाना भगवद गीता में क्या लिखा है? इसके अलावा श्रीमद्भागवत गीता के कई श्लोकों में कई बेहद उपयोगी बातें कही गई हैं! जिनसे मनुष्य का जीवन सार्थक होता है, जिनका विवरण हम गीता के अन्य अध्यायों के अध्ययन के पश्चात करेंगे। उम्मीद है यह लेख आपको पसंद आया होगा और आप इसे शेयर भी जरुर करेंगे।