भगवान् शब्द आते ही ह्रदय में शांति, न्याय, अनुकंपा की याद आने लगती है पर वास्तव में हम कभी यह जानने की इच्छा ही नहीं रखते की भगवान क्या है? भगवान् सच हैं या झूठ? क्या सिर्फ भगवान के बारे में इस समाज या दुनिया से सुन लेना काफी है या फिर सच जानना भी जरूरी है।
आज हम जरा गहराई से भगवान् शब्द का अध्ययन करेंगे और समझेंगे क्या मात्र देवी देवताओं को भगवान कहा जा सकता है? या फिर भगवान का असली अर्थ कुछ और है?
आइये समझते हैं इस लेख के माध्यम से की
भगवान क्या है?
भगवान हमारे मन की छवि मात्र है, भगवान हमारे जीवन के वह पात्र (कैरेक्टर) हैं, जिन्हें कभी हमने जाना नहीं, समझा नहीं बस मान लिया।
ठीक इसी तरह जैसे हमें बचपन में बता दिया गया की बारहवीं तक पढ़ाई करनी होती है, फिर नौकरी करनी होती है, फिर शादी करके बच्चे पैदा करने होते है। और फिर एक दिन इसी तरह बुढापा आता है और व्यक्ति मर जाता है।
आप देख पाएंगे जीवन हमारा पहले से ही तयशुदा है जिसमें हमें काफी हद तक बुद्धि का इस्तेमाल करने की आवश्यकता ही नहीं है, इसी तरह भगवान भी हमारी इस जिन्दगी के एक पात्र है।
जो कभी त्यौहार जैसे दिवाली, होली इत्यादि पर्वों पर हमारे सामने आते हैं, या फिर सुबह शाम कुछ क्षण जब हम उनकी प्रतिमा के सामने सर झुकाते हैं तो वह हमें याद आ जाते हैं।
लेकिन आप पाएंगे जिस तरह हमने एक तरह के स्क्रिप्टेड (ढर्राबद्ध) तरीके से जीवन जीने को ही जिन्दगी मान लिया है उसी तरह भगवान को भी हमने कभी जाना नहीं है सिर्फ माना है।
भगवान कौन हैं?
सत्य, शान्ति, करुणा, मुक्ति यह सभी भगवान के अन्य नाम हैं, और चूँकि यह सभी मनुष्य के भीतर हैं, अतः जिसके जीवन में सच्चाई है, सहजता है और करुणा है वही स्वयं में भगवान है।
भगवान कोई बाहरी प्रतिमा नहीं यदि हम भगवान को कोई शक्ति या ऊँचा व्यक्ति मान लें तो फिर हम उन्हें बाहर खोजने लगेंगे। और सचमुच हमने देवी देवताओं को खुद से अलग जाना है और इसी वजह से कई तरह के अंधविश्वासों ने हमें लपेटा है।
हमने कभी यह समझा ही नहीं की राम, कृष्ण हमारे भीतर हैं यदि हम उनकी भाँती अपने जीवन में त्याग, अनुशाशन, प्रेम, करुणा लायेंगे तो भगवान स्वयं हमारे भीतर हमारे पास रहेंगे।
देखिये न जब हम भगवान को बाहर ढूंढते हैं तो ढूँढने से पूर्व आप यह मान लेते हैं की आपने जीवन से प्रेम, करुणा, सत्य, शांति खो दी है और अब आप जब खुद ही असत्य हो गए तो क्या आप सत्य को ढूंढ सकते हैं?
क्या ये दुनिया भगवान ने बनाई है?
जी नहीं, यह दुनिया मनुष्य की कल्पना मात्र है। क्योंकि यह संसार दिखाई किसे देता है? मनुष्य की इन्द्रियों (नाक, कान,आँख इत्यादि) को, अतः इस संसार में भाँती भाँती की चीजों को अनुभव करने वाला व्यक्ति ही कहता है उसके लिए संसार या यह दुनिया है।
इस संसार में हम जिन भी चीजों को या घटनाओं को देखते हैं उनको हम एक विशेष नाम दे देते हैं, और उसी के अनुसार फिर उसका अर्थ सबकी नजर में अलग अलग होता है।
कोई कहता है ये संसार बुरा है तो कोई कहता है अच्छा है, कोई कहता है न अच्छा है न बुरा है तो यह सब कल्पना करने वाला कौन है? व्यक्ति है।
तो इसलिए ये पूरा संसार ही मानव की कल्पना है। इस दुनिया को गलत या सही बताने वाला व्यक्ति ही बचा न रहे तो फिर क्या वह कह पायेगा की संसार भगवान ने बनाया है?
वास्तव में हम जैसे होते हैं वैसा ही संसार भी हमारे लिए होता है।
इसलिए सबकी नजर में संसार की परिभाषा, अनुभव अलग अलग हैं, अगर वाकई भगवान इस संसार को बनाते तो फिर यह सभी की नजर में एक जैसा होता।
सबसे शक्तिशाली भगवान कौन हैं?
इस पृथ्वी पर जिस व्यक्ति के लिए जो चीज़ या विषय सबसे ऊपर है वही उसके लिए भगवान है, उदाहरण के लिए यदि आपके लिए पैसा सबसे बड़ी चीज़ है।
तो पैसा आपके लिए भगवान हो गया। या फिर अगर आपके लिए मान-सम्मान सबसे ऊँची चीज़ है तो पद प्रतिष्ठा आपके लिए भगवान साबित होगी।
इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य की इच्छा के आधार पर कहा जा सकता है की हर मनुष्य का भगवान् अलग अलग है, इसलिए एक सांसारिक व्यक्ति की तुलना में उन ऋषियों, संतों के लिए भगवान अलग अलग होंगे।
संत, ऋषि-मुनि जिन्हें सत्य, करुणा, शांति बेहद प्रिय है उनके लिए भगवान उपनिषद, ग्रन्थ हो सकते हैं जिनमें कही गई बातें उन्हें संसार रूपी मायाजाल से बाहर निकालकर सत्य की तरफ ले गई। और वे आत्मस्थ हो सके।
कलयुग का भगवान कौन है?
कलयुग में धन सम्पदा ही मनुष्य के लिए भगवान बन चुकी है, क्योंकि इस संसार में अधिकांश लोग पैसे के नशे में चूर हो रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं अधिक धन पाकर वह तमाम तरह की विलासिता की वस्तुओं को भोग सकते हैं।
आनन्द पा सकते हैं और जीवन में मौजूद तमाम तरह के बन्धनों, कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं।
इसलिए धन को पाने की खातिर वह बुरे से बुरा कर्म करने को भी तैयार हैं। इसलिए यह कहना गलत ही होगा की आज मनुष्य के आराध्य भगवान शिव, कृष्ण हैं नहीं।
क्योंकि यदि वह उसके लिए भगवान होते तो वह कृष्ण की गीता को पढता, शिव के जीवन से सीख लेकर उन्हें अपने जीवन में स्थान देता।
पर चूँकि आज मनुष्य के लिए सबसे बड़ा विषय धन बन चुका है। इसलिए किसी भी देवी देवता की उपासना भी वह करता है तो इसलिए ताकि उसकी खोखली इच्छाएं पूरी हो सके और वह अपने अभिमान का जश्न मना सके।
भगवान कौन है? और कहां है?
भगवान हमारे भीतर सत्य यानी आत्मा के रूप में हर जगह, प्रत्येक समय मौजूद हैं, उन्हें बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं, पर चूँकि हम झूठा जीवन जीते हैं।
और सुख के लिए तमाम तरह के व्यर्थ के कार्यों में लिप्त रहते हैं इसलिए मन की इच्छा पर चलने की वजह से हम हृदय में मौजूद आत्मा से दूर हो जाते हैं।
जो व्यक्ति कृष्ण को आत्मा जानकार जीवन जियेगा निश्चित ही उसके जीवन में कृष्ण के गुण विद्धमान होंगे, उसके दिल में प्रेम होगा, चेतना में बल होगा, असत्य से उसे अनासक्ति होगी और सत्य के लिए वह जीवन जियेगा।
उसके जीवन में भी सुख दुःख होंगे पर वह उन्हें जिन्दगी का एक हिस्सा मानकर आत्मस्थ होकर जियेगा और सही कर्म कर इस जीवन को सार्थक करेगा। और तमाम तरह के बन्धनों से छुटकारा पायेगा।
भगवान होने का सबसे बड़ा सबूत क्या है?
भगवान होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है की जब जब हमें बेचैनी होती है तब तब भगवान को याद करने से दिल को गहरी ठंडक पहुँचती है।
आत्मा सत्य है, अविनाशी है ये संसार झूठ है और जब तक हम इस संसार को सच मानते हुए यहाँ पर ऐसे जीवन जियेंगे जैसे की यह सच है और आत्मा को दिल में स्थान नहीं देंगे तब तक यूँ ही बेचैन रहेंगे।
और भगवान की भूमिका ही हमारे जीवन में सर्वाधिक इसलिए है ताकि हमारा मन आत्मा तक पहुँच सके।
भगवान के सभी अवतारों श्री कृष्ण हो या प्रभु श्री राम, शिव जिन्हें भी आप पूजते हैं वे सदैव हमें सच्चाई के मार्ग पर चलकर सही कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।
कृष्ण हो या राम दोनों का जीवन हमें धर्म के रास्ते पर चलना सिखाता है? धर्म क्या है, धर्म की परिभाषा जानने के बाद आपको मालूम होता है इस दुनिया में हम सुख भोगने के लिए नहीं आये है बल्कि तमाम तरह के बन्धनों, दुखों से मुक्ति के लिए आये हैं।
और जो व्यक्ति पूरी तरह मुक्त हो जाता है फिर वह सांसारिक व्यक्ति की भांति मन के रास्ते पर नहीं बल्कि आत्मा के चलाए आगे बढ़ता है। और फिर उसके लिए सुख और दुःख दोनों बराबर हो जाते है यही महान ग्रन्थ गीता का संदेश है।
असली भगवान कौन हैं?
असली भगवान का अर्थ आपके लिए यदि उससे है जो सबसे ऊँचा है, अविनाशी है, सदा था है और रहेगा तो बता दें सत्य जिसे ब्रह्म कहा गया है वो सबसे ऊँचा है, बाकी सभी देवी देवता, धर्म, सम्प्रदाय सब उसी के नीचे हैं।
आप चाहे कृष्ण को पूजें, या राम को या अल्लाह को या जीसस को सत्य सनातन है, अविनाशी है वो अजर है अमर है उसी का अन्य नाम आत्मा है।
वह न दिखाई देता है न जिसे कभी पकड़ा जा सकता है जो समय से भी आगे का है अर्थात काल से परे है और जो हमारे मिटने के बाद भी रहेगा वही सर्वोच्च है जिसे सत्य या आत्मा कहा गया है।
➥ कर्मयोग क्या है| एक कर्मयोगी का जीवन कैसा होता है?
➥ मन क्या है? मन को काबू/ शांत कैसे रखें?
अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात भगवान क्या है? इस विषय पर गहराई से जानकारी मिली होगी, यह लेख आचार्य प्रशांत जी की शिक्षाओं पर आधारित हैं जिन्होंने धर्म सम्बन्धी विषयों पर अपने विचार रखकर लोगों को सच्चाई और विशुद्ध धर्म से परिचित करवाया है।