धर्म और अध्यात्म में 10 बड़े अंतर| दोनों के बीच असली भेद

अधिकांश लोग धर्म और अध्यात्म में अंतर नहीं जानते। उन्हें लगता है यदि कोई व्यक्ति अध्यात्मिक है तो इसका अर्थ है हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख इत्यादि किसी एक धर्म में उसकी गहरी आस्था होगी।

धर्म और अध्यात्म में अंतर

पर यदि हम आपको कहें यह सच नहीं है, एक अध्यात्मिक इंसान की छवि जो हमने बनाई हुई है, उससे वह काफी अलग होता है। जी हाँ अध्यात्मिक होने के लिए यह बिलकुल आवश्यक नहीं होता की आप किसी धर्म के इश्वर के आगे सर झुकाएं, उस पंथ की परम्पराओं को मानें।

और यह भी संभव है की कोई धार्मिक इंसान हो जो देवी देवता, अल्लाह या किसी गॉड को मानते हुए उनका ध्यान करें। पर अध्यात्म से उसका दूर दूर तक कोई वास्ता न हो। जी हाँ आपको जानकार हैरानी होगी की अधिकांश लोग हमारे समाज में धार्मिक तो हैं पर अध्यात्मिक नही हैं।

तो चलिए आज हम इन दोनों के बीच इस विशेष अंतर को ध्यान से समझते हैं। और हाँ इस लेख के प्रति मन में कोई भी सवाल हो तो आप 8512820608 पर सांझा कर सकते हैं।

समाज में धर्म से क्या आशय होता है?

व्यवहारिक तौर पर किसी मान्यता, परम्परा को आगे बढाने का नाम ही धर्म है। जी हाँ अपने सुखी जीवन हेतु मनवांछित फल पाने की कामना हेतु इश्वर, गॉड/ भगवान को प्रसन्न करना धर्म है।

अतः जनमानस की दृष्टि में एक धार्मिक व्यक्ति वह होता है जो किसी प्रमुख पंथ को माने, उस धर्म की परम्परा, नियम और रीती रिवाजों का पालन करे। खास तरह के वस्त्र पहने, भाषा को अपनाएँ और साथ ही अपने धर्मग्रन्थों को पढ़कर उनका सम्मान करे।

किसी भी धर्म के अनुयाई (followers) होते हैं, वे अपने अपने धर्म पर नाज करते हैं। भारत में मुख्यतया चार धर्म हैं और इन धर्मों में आस्था रखने वाले लोग अपने अपने ईश्वर को प्रसन्न करते हैं।

जिस व्यक्ति की जिस धर्म में आस्था होती है, वह सुख की स्तिथि में अपने सुखों को बढाने की प्रार्थना ईश्वर से करता है, वहीँ दुःख आने पर उसका समाधान करने की प्रार्थना भी वह उसी ईश्वर से करता है।

धर्म की यह व्याख्या और विस्तृत हो सकती है, पर हाँ मोटे तौर पर कह सकते हैं की इन्सान का जिस परिवार में जन्म होता है, वही उसका धर्म निर्धारित कर देता है और फिर समाज में प्रचलित मान्यताओं को स्वीकार कर यदि वह उनका पालन करता है तो उसे धार्मिक घोषित कर दिया जाता है।

अध्यात्म क्या है? What is Spirituality in Hindi

अध्यात्म यानी आत्म जिज्ञासा, व्यवहारिक तौर पर कहें तो सच्चाई की नियत के साथ अपने जीवन को देखना ही अध्यात्म है। अपने मन की आशाओं, अपने दुःख, बेचैनी, लालच, डर से परिचित होने के बाद उस स्तिथि को बेहतर बनाना ही अध्यात्म का एकमात्र लक्ष्य है।

हम प्रायः जैसा जीवन जीते हैं उसमें डर भी होता है, लालच भी पाया जाता है और तमाम तरह की अन्य कमियाँ हमारे भीतर होती हैं जिनकी वजह से हम परेशान और एक शोषित जीवन जीते हैं। पर अध्यात्म कहता है की सारे दुखों की जड़ तुम ही हो छोडो धर्म, पूजा पाठ और किसी भी तरह के गॉड को मानना।

पहले तुम अपनी समस्याओं को देखो और इमानदारी से उन समस्याओं को हल करो। जो बेचैनी लेकर पैदा हुए हो वैसा हो जाना तुम्हारी नियति नही है। तुम बड़े आनंद के अधिकारी हो, तुम क्यों निराशा भरा जीवन जीते हो, जिन उम्मीदों के कारण दिन रात बेचैन होते हो, जिस जगह जाकर मन खराब होता हो आज ही उस संगती को त्याग दो।

अतः संक्षेप में कहें तो संसार की बजाय अपना ध्यान खुद पर लगाकर अपना ही कल्याण करना अध्यात्म का परम लक्ष्य है।

धर्म और अध्यात्म में मुख्य अंतर

  1. धर्म तमाम तरह की क्रियाओं, आचरण करने का नाम है। कोई फलाने वस्त्र पहनें, आचरण करें किसी भाषा में बातचीत करे तो हम उसका सम्बन्ध धर्म से जोड़ते हैं, इसके विपरीत अध्यात्म आपको किसी विशेष विधि को अपनाने के लिए नहीं कहता। जो विधि आपको अपने दुखों से मुक्त कराये वही आपके लिए शुभ है।
  2. धर्म पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं को आगे बढाने का नाम है। जबकि अध्यात्म व्यक्ति को सभी तरह की विचारधारा, कर्मकाण्ड, से आजाद कर देता है।
  3. धर्म सुख पाने का नाम है। चाहे संकट का समय हो या फिर किसी मनोकामना को पाकर उसका सुख भोगना हो व्यक्ति अपने छोटे छोटे सुखों के लिए अपने गॉड/भगवान/अल्लाह के पास जाता है। दूसरी तरफ अध्यात्म आपको इन छोटे छोटे सुखों के पीछे भागकर फिर से दुखी होने की अपेक्षा उस ऊँचे सुख को पाने के लिए कहता है जो शाश्वत आपके पास रहेगा।
  4. धर्म का नाम, प्रतीक और पहचान होती है उसमें अनुयाई होते हैं जो किसी विशेष बात को मानते हैं पर अध्यात्म मात्र सच्चाई का साधक होता है। सत्य के सिवा वहां किसी गुरु, भगवान् का जिक्र नहीं किया जाता। अध्यात्म कहता है सच ही परमात्मा है वही सबका बाप है।
  5. आमतौर पर जिस धर्म में व्यक्ति की आस्था होती है वह उसके केन्द्रीय गॉड को प्रसन्न करने का प्रयास करता है। विशेषकर वह धार्मिक पर्व इसलिए मनाता है ताकि वह ईश्वर को खुश कर सके। पर चूँकि अध्यात्म में कोई देवता, कोई गॉड नही है वहां मात्र सत्य है। और सच्चाई का जब न कोई रूप है न रंग है भला उसे कौन प्रसन्न कर सकता है?
  6. प्रायः धार्मिक व्यक्ति को कोई समस्या होती है तो वह अपने दुःख के समाधान के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है। पर दूसरी तरफ अध्यात्म साफ़ कहता है जानो की समस्या कहाँ है? और लगता है आपके नियन्त्रण में है तो उसे ठीक करो अन्यथा उसे अपने हाल पर छोड़ दो।
  7. धर्म व्यक्ति को विशेष नियम और त्याग का संदेश देता है अध्यात्म नहीं। सुबह शाम पूजा पाठ करना, धर्मग्रन्थ को पढना, खास तरह के वस्त्र पहनना, विधियाँ आजमाना ये सब धर्म में आजमाया जाता है अध्यात्म व्यक्ति को ऐसी किसी भी चीज़ के लिये प्रोत्साहित नही करता।
  8. धर्मग्रन्थों में आमतौर पर हमें किसी धर्म विशेष के गॉड की कहानियां और उनका जीवन व्रतांत पढने को मिलता है जैसे रामायण, कुरान इत्यादि। दूसरी तरफ अध्यात्मिक ग्रन्थ वे हैं जहाँ पर देवता और लोगों की नहीं बल्कि मन, प्रकृति और सत्य की बात की जाती है, भगवदगीता, उपनिषद एक अध्यात्मिक ग्रन्थ है।
  9. जो कुछ हमारी इन्द्रियां देख सकती हैं, महसूस कर सकती हैं सब प्रकृति के क्षेत्र में आता है । गॉड की हम पूजा करते हैं उन्होंने सामान्य मनुष्य होकर भी महान कर्म किये फिर चाहे जीसस हो भगवान राम हो। अतः ये सभी प्रकृति के क्षेत्र में आते हैं। तो धर्म संसार पूजन की बात करता है, वहीँ अध्यात्म में सबसे ऊँचा मात्र सत्य है।
  10. धर्म मान्यता विश्वास का बल देता है जबकि अध्यात्म व्यक्ति को जिज्ञासा करने, सवाल पूछने के लिए प्रेरित करता है। आमतौर पर धार्मिक व्यक्ति से आशा की जाती है वह चुपचाप अपनी परम्पराओं, मान्यताओं को आगे बढाए लेकिन अध्यात्म कहता है एक एक कर्म जो तुम कर रहे हो पहले जानो तो सही कर क्या रहे हो और उसका लाभ क्या होगा?

धर्म और अध्यात्म दोनों का एक होना जरूरी

हम जैसा जीवन जीते हैं, जिस धर्म का स्वयं को अनुयाई बताते हैं उसके मुताबिक कर्तव्य, धर्म और अध्यात्म तीनों अलग अलग जरूरी हैं।

अपने परिवार और समाज के प्रति जो हमारी जिम्मेदारियां हैं उसे हम कर्तव्य कहते हैं, किसी विशेष तरह का आचरण करने, परम्परा को यथावत आगे बढ़ाना धर्म है और अध्यात्म इन दोनों से आगे की चीज़ है जो हमें आत्मजिज्ञासा करने की शक्ति देता है।

ऐसा ही है न, हमारे मन का मानसिक मॉडल जो इन तीनों में भेद करता है। पर अगर एक समाज हो जहाँ धार्मिक परम्पराओं पर ठोस विश्वास रखने और पंडितों, धर्मगुरुओं की बातों पर आँख मूंदकर यकीन करने की बजाय लोग सच्चाई जानने पर यकीन रखते हों।

तो ऐसे समाज में आप पायेंगे धर्म, कर्तव्य और अध्यात्म तीनों का आपस में मिलन हो जाता है यह तीनों एक ही बात है। आइये जानते हैं कैसे

देखिये धर्म हो या अध्यात्म व्यक्ति के जीवन में इसीलिए होते हैं ताकि व्यक्ति जीवन में मूर्खता करने से बचे उसे कम से कम दुःख हो और वह एक सही जीवन जी सके।

ऐसे में व्यक्ति का पहला और सबसे बड़ा कर्तव्य या धर्म क्या है? एक सही जिन्दगी जीना।

तो इस तरह धर्म और कर्तव्य का मिलन हो गया और अब सवाल है एक सही जिन्दगी कैसे जी सकती है। इसे जानने के लिए अब अध्यात्म की आवश्यकता पड़ेगी, क्योंकि जिन्दगी अच्छी या बुरी जीनी तो हमें हैं, तो पहले हमें खुद को समझना होगा।

और यही पर गलती हो जाती है, हमें लगता है खुद को जानने की क्या जरूरत। ये मन क्या है? ये क्या पाना चाहता है? ये शरीर क्या है? इसे शांति कैसे मिलेगी? बिना इन प्रश्नों का जवाब पाए बिना हम कोई भी कर्म कर लेते हैं।

और उसका परिणाम ये होता है की चाहे इंसान कुछ भी कर ले, मन उसका शांत ही नही होता। आज इसी बात का परिणाम यह है की खुद को शांत और खुश करने के लिए हमने प्रकृति को भी कहीं का नहीं छोड़ा।

सारे जंगल मिट गए, जानवर लुप्त होने की कगार में है, जितना विकाश हमने अपने लिए किया उतने बड़े खतरे के संकट में आज हम हैं। तो ये होता है जब हम खुद को नहीं जानते, हम जब खुद को शांत नही कर पाते तो हम दुनिया में अपनी शांति तलाशते हैं और फिर लोगों का और इस प्रकृति का नाश करते हैं।

पर चूँकि व्यक्ति अगर अध्यात्मिक होगा यानि जिसे अपना हाल मालूम होगा ऐसे इंसान को अपना कर्तव्य और धर्म भी मालूम होगा। अतः हम कह सकते हैं की कर्तव्य, धर्म और अध्यात्म तीनों एक ही हैं, पर चूँकि हम नासमझ हैं इसलिए हमें यह तीनों अलग अलग दिखाई देते हैं।

इसलिए स्वयं भगवान् श्री कृष्ण को कहना पड़ा अर्जुन सब धर्मों को त्यागकर तुम मेरी अर्थात सत्य की शरण में आ जाओ।

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FAQ~ धर्म और अध्यात्म से समबन्धित प्रश्न

 

Q: क्या धर्म अध्यात्म एक ही है।

Ans: विशुद्ध धर्म ही अध्यात्म है, अर्थात धर्म को यदि हम मान्यताओं, परम्पराओं तक सीमित न रखें। धर्म को हम सच्चाई,शान्ति का लक्ष्य माने तो निश्चित रूप से अध्यात्म और धर्म एक ही हैं

 

Q: धार्मिक और आध्यात्मिक से आप क्या समझते हैं?

Ans: धार्मिक व्यक्ति वह जो ईश्वर और धर्म के विषय में समाज, परिवार द्वारा बताई गई मान्यताओं को यथावत स्वीकार करें। दूसरी तरफ वह व्यक्ति जो जिज्ञासा रखता हो, जिसके लिए विश्वास करने से अधिक महत्वूर्ण सच्चाई जानने से है वह अध्यात्मिक कहलाता है।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद धर्म और अध्यात्म में अंतर आपको भली भाँती मालूम हो गया होगा, लेख को पढ़कर मन में कोई जिज्ञासा या सवाल है तो आप कमेन्ट में पूछ सकते हैं, साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर कर अन्य धार्मिक लोगों को भी इस सच्चाई से अवगत कराएँ।

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