आजकल मेडिटेशन शब्द बाजार में काफी लोकप्रिय हैं, अनेक बाबा और गुरु हमें मेडिटेशन करने और ध्यान के चमत्कारिक अनुभव पाने की बात करते हैं। पर ध्यान के नाम पर ये सब जो चल रहा है इसकी सच्चाई आज हम आपको बताएँगे।
देखिये, ध्यानमग्न होना बेहद शुभ बात है, अगर आपको जीवन में कोई भी सार्थक काम करना है तो बिना मन को एकाग्र किये आप उस काम को अच्छे से नहीं कर पायेंगे।
लेकिन ध्यान खतरनाक तब हो जाता है जब यह इंसान की घटिया जिन्दगी को बदलकर उसे सही जीवन जीने की राह दिखाने की बजाय उसे उसी हाल में छोड़ देता है।
देखा होगा बहुत से लोग लालच और स्वार्थ की खातिर न काम बदलते न सोच बदलते और न ही उनका जीवन बदलता पर फिर भी वे ध्यान करने की विधि खोजते हैं, ताकि जीवन में जो उनकी परेशानियां चल रही हैं उससे उन्हें थोड़ी राहत मिल सके। जैसे नशा करने से होता है।
तो ध्यान की विधियों के चक्कर में आप किसी के झांसे में न फंसे, इसके लिए आज हम विस्तार से इस विषय पर बात करने जा रहे हैं।
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ध्यान के चमत्कारिक अनुभव| सच या फिर धोखा
अगर आप ध्यान करके कुछ विशेष अनुभव पाना चाहते हैं जिससे जीवन में बेचैनी और तनाव कम हो सके। तो इससे पूर्व आपको ध्यान की कोई विधि बताई जाए। आपको अपनी समस्या बतानी होगी।
जिस प्रकार आप बिना यह जाने की मेरी बिमारी क्या है? इसके बिना किसी भी दवाई को खाना आपको और परेशानी में डाल सकता है।
ठीक, इसी प्रकार बिना यह जाने की समस्या क्या है, उसका कारण और उपाय क्या है अगर आप ध्यान करने लगेंगे तो आप बड़ी परेशानी में घिर सकते हैं। क्योंकि ये बात तो जाहिर है की समस्या आपके जीवन में है और उसी समस्या को खत्म करने के लिए आप ध्यान की विधि खोजना चाहते हैं।
मान लीजिये आपको किसी वस्तु के छिन जाने का डर है या फिर नौकरी चले जाने का डर है, और इसी डर से कई बार आप गहरे तनाव में चले जाते हैं तो बताइए सुबह उठकर ध्यान आपको कितनी देर तक शांति और राहत दे देगा?
महज थोड़ी देर के लिए न, ध्यान क्रिया से बाहर आने के बाद आपके दिमाग में फिर नौकरी या आपकी प्रिय वस्तु के खोने का डर लगा रहेगा।
बस इस समस्या का एक उपाय यही है की आप नौकरी या उस प्रिय वस्तु को महत्व देना जैसे ही कम कर देंगे आपकी समस्या भी खत्म हो जाएगी।
आप कहेंगे जिस चीज़ को बचाना मेरे बस में नहीं भला मैं क्यों उसके लिए चिंता करूँ, अगर वो चीज़ ही ऐसी है जिसे बचाने में ही आपको बार बार डरना पड़ता है आप खुद ही उसे त्याग दीजिये। टेंशन खत्म।।
लेकिन बस ये समझें बिना की हमारी मूल समस्या और उसका निदान क्या है? हम ध्यान और कई तरह की फलानी चीजें करने लग जाते हैं। यहाँ पर समझने योग्य बात है की अध्यात्म आपको ध्यान करने, भगवान की पूजा करने के लिए नहीं कहता।
अध्यात्म के अनुसार होश में रहकर अपनी हालत को स्वीकार करना ही ध्यान है। दूसरे शब्दों में अपने कष्टों को समझते हुए उनसे बाहर निकलना ही ध्यान है।
ध्यान से समबन्धित भ्रम | सावधान रहें!
आइये अब हम ध्यान के विषय पर फैले भ्रम और झूठी बातों पर विस्तार से जानते हैं, ताकि आप किसी की व्यर्थ बातों को मानकर उनके झांसे में फंसने की बजाय खुद भी सजग हो सकें और दूसरों को भी जागरूक कर सकें।
#1. विशेष अवस्था में आँख बंद कर बैठना
हमें बचपन से यह बता दिया गया है की सुबह जल्दी उठकर ध्यान करो, इससे अनेक फायदे मिलेंगे। पर कुछ समय तक आलती-पालती मारकर आँख बंद करने की यह प्रक्रिया ध्यान की बहुत सतही परिभाषा है।
और बताइए जिस व्यक्ति के जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा हो, वह योगासन, प्राणायाम इत्यादि क्यों करेगा? इन्सान ध्यान इसलिए करता है न ताकि उसका मानसिक और शारीरिक रूप से स्वास्थ्य बेहतर हो, अब यदि कोई व्यक्ति पहले से ही एक सही जिन्दगी जी रहा है।
माने वह ध्यान में जीवन जी रहा है तो क्या लोगों को साबित करने के लिए जरूरी है की वो आँख बंदकर किसी शांत जगह पर बैठा दिखाई दे, तभी वह ध्यानी कहलायेगा?
#2. ध्यान पहले विधि बाद में।
कई सारे तथाकथित धार्मिक या अध्यात्मिक गुरु बिना यह पूछे लोगों से की उनकी समस्या क्या है? वो उन्हें ध्यान के चमत्कारिक अनुभव के लिए कुछ खास ध्यान की विधियाँ और उनके फायदे बता देते हैं। लेकिन क्या उनसे फायदा होता है, नहीं।
क्योंकि जिस तरह मंजिल तक पहुँचने के लिए यात्री को पहले होश में होना जरूरी है ताकि वह सही रास्ते का चुनाव कर सके। इसी प्रकार ध्यान की विधि आजमाने के लिए भी पहले ध्यान में होना जरूरी है।
ध्यान का वास्तविक अर्थ है अपनी स्तिथि के बारे में इमानदारी से ज्ञान होना, ध्यान माने होश आपको बताता है की जिन्दगी में क्या समस्या है और फिर आप यह निर्धारित कर पाते हैं की मेरी समस्या का उपाय क्या होगा।
#3. वैसा बने-बने शांति मिल जाएगी।
इन्सान सोचता है शांति बहुत हल्की चीज़ है, और उसे पाने के लिए बस सुबह या शाम एक घंटा आँख बंदकर करके परमात्मा को याद कर लो, शान्ति मिल जाएगी। पर वास्तव में जैसे आप हैं वैसे बने रहते हुए शांति पाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।
शांति कोई भौतिक वस्तु नहीं है जिसको खरीद कर या जिसके करीब जाकर उसे पकड़ लें। इसलिए शांति वास्तव में पानी है तो अहंकार मिटाना होगा।
हम आमतौर पर अपने अहंकार यानि मैं के कहने पर चलते हैं लेकिन जब व्यक्ति सत्य की दिशा में चलता है तो उसका अहम मिटना शुरू हो जाता है, और यहीं से उसे असल शांति प्राप्त हो पाती है।
लेकिन जब हम ध्यान करते हैं, उसमें हमारा अहंकार मिटने की बजाय बढ़ता है आप कहते हैं मैंने ध्यान किया।
#4. ध्यान कामना पूर्ती के लिए नहीं होता!
ऊपर हमने जाना वास्तव में ध्यान क्या है? और उसका उद्देश्य भीतर के अहंकार यानी जो मैं, मैं भीतर से करता है इसको खत्म करना होता है। पर प्रायः लोग जब ध्यान करते हैं उसके पीछे उनकी कामना रहती है। वो सोचते हैं कल से ध्यान की विधि अपनाऊंगा करूँगा ताकि मैं मन लगाकर काम धंधा करूंगा।
इस तरह लोग अपने स्वार्थ, लालच की पूर्ती के खातिर ध्यान करने लगते हैं। पर अगर आप जीवन में शांति, स्पस्टता लाना चाहते हैं तो समझियेगा शांति कई चीजें खरीदकर और अपनी इच्छाएं पूरी करने से नहीं मिलेगी। अगर आप ध्यान इसीलिए कर रहे हैं ताकि कुछ पा सकूं तो फिर इसे आप ध्यान नहीं कह सकते।
#5. सत्य के सिवा कोई ध्येय नहीं होता।
जीवन इस तरह जीना जिसमें सत्य यानि परमात्मा को पाने के सिवा कोई उद्देश्य न हों, वही ध्यान होता है। पर अगर आपके जीवन में कोई आकर्षक व्यक्ति या वस्तु है जिसे पाने के लिए आप ध्यान कर रहे हैं तो आपका ध्यान निरर्थक है।
हमारा मकसद जीवन में कई तरह की चीजों को या लोगों को पाना होता है और उसी की प्राप्ति के चक्कर में हम ध्यान को अपना माध्यम बना लेते हैं। याद रखना आप भले सालों तक ध्यान की किसी विधि में बैठे रहें अगर उससे आप परमात्मा के करीब नहीं आ रहे हैं तो कोई फायदा नहीं।
परमात्मा के समीप आने का आशय है आपके कर्म उपरवाले को समर्पित हो गये हैं, आपने ऐसे कार्य का चुनाव किया है जिसे करने से आप के जीवन में राम उतरते हैं, जो इन्सान ऐसा हो जाता है फिर उसकी सारी चिंताएं और दुःख राम को समर्पित हो जाते हैं।
#6. ध्यान की एकमात्र विधि नहीं होती।
हमें लगता है ध्यान किसी विशेष अवस्था में बैठने या खड़े होने से होता है नहीं, जो व्यक्ति जागृत है, होश में है ऐसा ध्यानी व्यक्ति जैसे जीवन जीता है, जो काम करता है वही ध्यान की विधियाँ बन जाती हैं।
क्योंकि वो ध्यान में पहले से है तो अब वो खाना खाए या बनाये, या कहीं भी जाए ये सब ध्यान की विधियाँ हैं क्योंकि पहले वो ध्यान में हैं बाद में ध्यान की विधियाँ बनी।
इसे जानकार आप यह समझ रहे होंगे की ध्यानी वह नहीं जो पर्वत पर ध्यान में बैठा है। बल्कि ध्यानी वो है जिसका मन राम में लगा हुआ है, जैसे संत कबीर उन्होंने अपना जीवन ही सच्चाई को, राम को समर्पित कर दिया।
अब भले उन्होंने प्राणायाम, योगासन जीवन में नहीं किया हो लेकिन जितना होश और जाग्रति में उन्होंने जीवन जिया शायद ही किसी ने जिया होगा। तभी आज हम सभी उन्हें नमन करते हैं।
लेकिन हम उल्टा करते हैं हम ध्यान में नहीं रहते लेकिन ध्यान की विधियाँ अपना लेते हैं जिससे हमें कोई फायदा नहीं होता।
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के बाद ध्यान के चमत्कारिक अनुभव की सच्चाई आपको मालूम हो गई होगी, आशा है यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। और आप ध्यान के इन बेकार के चक्करों को न पड़करअपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति पाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।