ध्यान क्या है? लाभ, विधि, कैसे करें| जानें सब कुछ

0
मुझे सुनना है

क्या ध्यान का अर्थ सुबह निश्चित समय पर उठकर कुछ पलों के लिए आँख बंदकर किसी वस्तु या व्यक्ति पर ध्यान केन्द्रित करना है? या फिर ध्यान का उच्चतम और वास्तविक अर्थ कुछ और है आज हम समझेंगे ध्यान क्या है? कैसे करें इस लेख में।

बाजार में ध्यान यानि मेडिटेशन इस समय काफी चर्चा में हैं और बुद्धिमान लोग इसका व्यापार में उपयोग कर इससे अच्छा पैसा भी कमा रहे हैं। लेकिन ध्यान की सच्चाई से लोग दूर हो रहे हैं, अतः वे लोग जो ध्यान का सरल और सटीक अर्थ जानना चाहते हैं उन्हें इस लेख को ध्यानपूर्वक पढने का प्रयास करना चाहिए।

ध्यान क्या है

ध्यान क्या है? What is Meditation in Hindi

बेहोशी में न रहना अर्थात होश में जीवन जीना ही ध्यान है, ध्यान व्यक्ति का स्वभाव है। जब मन स्वयं को सत्य (परमात्मा) का सेवक मान कर जीवन जीता है यही ध्यान है, दूसरे शब्दों में कहें तो ध्यान ही श्रृद्धा है।

देखिये मन अगर किसी भी इमेज (छवि) का ध्यान करता है तो चूँकि वह छवि भी मन का एक दायरा है, मन का ही काल्पनिक विषय है इसलिए किसी भी ऑब्जेक्ट, व्यक्ति या इश्वर जिनकी छवि हमारे दिमाग में हैं उसे याद करने का अर्थ ध्यान नही होता!

मन से बाहर का विषय सिर्फ सत्य है!

अतः जब मन को यह ज्ञात हो जाये की उसके आगे भी कोई है जिसे साधु-संतों ने सत्य या परम कहा है जिसका न रंग है, न रूप है न आकार है लेकिन वो जो है और सर्वदा रहेगा उसे सत्य मानकर जब मन उसको समर्पित हो जाये तो समझ लीजिये वह व्यक्ति ध्यानी अथवा ध्यानमय है।

मन कभी इतना भ्रमित न हो जाये की वह स्वयं को सेवक के अलावा कुछ और समझ ले, अतः वह उस एक के समक्ष जो न कोई इंसान है और न ही जिसकी कोई मूर्ती (प्रतिमा) है उसके समक्ष आदर के साथ झुका रहे यही एक ध्यानी व्यक्ति का जीवन होता है।

दिमाग में विचार भले सैकड़ों आ जाये, लेकिन ह्रदय में जिसके सत्य स्थापित है तो फिर ऐसे व्यक्ति को ध्यानी की संज्ञा दी गई है।

ध्यान किसका करना चाहिए?

यह प्रश्न ही उचित नहीं है क्योंकि ध्यान किसी वस्तु,व्यक्ति,इकाई का नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए यदि आपको कोई कहे किसी एक देवता, भगवान का ध्यान करने के लिए तो ऐसी अवस्था में यह भी तो संभव है की आप फिर दूसरे, तीसरे या चौथे भगवान या देवता का भी ध्यान करें।

इस प्रकार अलग अलग छवियों, देवताओं के नाम भी अलग अलग होंगे। लेकिन हमने जाना है की ध्यान उसी का हो सकता है जो सत्य/ परम है जिसका न कोई रंग है, न रूप है इसलिए उसकी छवि मन बना ही नहीं सकता।

उदहारण के लिए मैं आपको कहूँ सत्य…. तो बताइए आपके मन में किसी इंसान की या, वस्तु की छवि आ रही है? शायद नहीं…

ध्यान का वस्तविक अर्थ ही यह है की हम नहीं जानते ध्यान किसका करना है? क्योंकि सत्य अज्ञेय है वो जिसे जाना नहीं जा सकता। मन को लगता है यहाँ सब कुछ है जिसे वह जान लेगा, पर जैसे ही मन को अपनी भूल का अहसास हुआ की कुछ है जो उसके मन के दायरे में नहीं आता मन उसी क्षण ध्यान में लीन हो जाता है।

इसलिए यह बात कही जाती है जो उसका ध्यान करता है, (ऊपर वाले का जिसे सत्य कहते हैं) उसे फिर किसी और के सामने सर झुकाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

ध्यान की विधि क्या है?

यदि आप किसी कार्य विशेष को करने से पहले मन में आने वाली अडचनों को दूर करने के लिए और उस कार्य में निरन्तरता से डूबने के लिए ध्यान की विधि खोज रहे हैं तो आपको यह पता होना चाहिए।

की व्यक्ति की परिस्तिथियों के अनुसार ध्यान की विधियाँ भी अलग अलग हैं, एक विधि ध्यान की किसी व्यक्ति पर लागू होती है तो यह आवश्यक नहीं की वही विधि दूसरे व्यक्ति पर सही तरह से कार्य करे।

 उदाहरण के लिए बतौर छात्र आपके लिए ध्यान की उच्चतम विधि हो सकती है सुनना, वहीँ दूसरे व्यक्ति के लिए कोई और विधि होगी। अतः किसी की बताई गई ध्यान की विधि आपको फायदा दे यह आवश्यक नहीं है।

इसलिए ध्यान की सर्वोत्तम पद्दति यही है की किसी उचित कार्य को करने के दौरान अगर आपका ध्यान भंग होता है तो, तुरंत आपका मन ही आपको यह उपाय सुझा दें, जिससे आप वापस उस सही काम को करने में डूब जाए।

ठीक उसी प्रकार जैसे शरीर में चोट लगने पर दिमाग तुरंत इसे ठीक करने के भी उपचार ढूंढ लेता है न इसी प्रकार ध्यान की विधि आपके पास ऐसी हो जैसे ही किसी सही कार्य को करने पर आपका मन भटके तो तुरंत अन्दर से आप सजग हो जाये और अपने ध्यान को फिर से सही जगह टिकाने के लिए उचित प्रयास करे।

अन्यथा आप ध्यान की कितनी विधियाँ अपना लें वो ज्यादा चलेंगी नहीं आपने प्रायः देखा होगा लोग ध्यान में बैठते तो हैं परन्तु कुछ समय बाद उठ भी जाते हैं, प्रातः काल उठे एक घंटा ध्यान में बैठे और उठ गए, ध्यान की इस विधि के बाद फिर से वहीँ सब कुछ दिमाग में चलने लग गया जो पहले चलता था। इसलिए स्वयं के बोध (समझ) के  बाहर की कोई विधि कार्य नहीं करती।

ध्यान ऐसा हो जो टूटे ही नहीं, पर ध्यान की जो भी विधियाँ हमें किताबों में या गुरुओं द्वारा बताई गई है वो सीमित है, वह विधियाँ कुछ समय बाद टूट ही जाती है।

ध्यान के लाभ? Benefits of Meditation in Hindi

ध्यान यानि श्रृद्धा में इतनी शक्ति है की वह व्यक्ति का जीवन ही बदल देती है जो व्यक्ति सच्चाई की तरफ उन्मुख होकर ध्यानस्थ जीवन जीता है उसे प्रमुख लाभ होते हैं।

  • आज दुनिया की बड़ी आबादी मानसिक चिंता, विकारों में झूझ रही है,लेकिन सच्चाई और ध्यानस्थ व्यक्ति चूँकि ह्रदय के केंद्र से जीवन जीता है अतः उसे इस तरह की परेशानियां नहीं सताती।
  • ध्यान आपको इस दुनिया की हकीकत से रूबरू करवाता है, कौन सी चीजें विश्वास के लायक है कौन सी नहीं आप जान जाते हैं।
  • ध्यानी व्यक्ति को म्रत्यु का भय कम हो जाता है।
  • बिना ध्यान के जीवन बेहोशी के समान है, जिस मार्ग में व्यक्ति को ठोकर,निराशा के सिवा कुछ नहीं मिलता।
  • ध्यान आपको सही और उचित कर्म करने की प्रेरणा देता है।
  • ध्यान जीवन को सुन्दर बना देता हैं, जीवन में वे लोग जो ऊँचे से ऊँचा कार्य कर इस जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं उन्हें ध्यान का महत्व मालूम होना चाहिए।
  • ध्यान मन को निर्मल कर देता है, मन में लालच, द्वेष और तमाम तरह की अन्य धारणाओं से इन्सान को मुक्त कर देता है।
  • ध्यान को बोध भी कहा गया है, जो जीवन जीने हेतु आवश्यक होता है।

कृष्ण का ध्यान करने का क्या अर्थ है?

सत्य को केंद्र बनाकर जीवन जीना ही ध्यान है, अर्थात सत्य के अलावा बाकी सभी चीजों से स्वयं को दूर कर देना। जिस व्यक्ति के जीवन में कृष्ण हैं उसके जीवन में सत्य होगा, और सत्य ही फिर निर्धारित करता है की आपको इस संसार में लोगों से और चीजों से क्या रिश्ता रखना है।

 गीता में कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की मैं हूँ, अर्थात सत्य है और इसके सिवा सभी चीजें मूल्य हीन हैं। इसलिए फिर वही सत्य अर्जुन को वह कर्म करने के लिए प्रेरित कर देता है जो करना उसके लिए उस पल सही था।

और जो व्यक्ति बाकी चीजों को मूल्यहीन मानकर सिर्फ कृष्ण को मूल्य देता है फिर उसे यह बड़ा फायदा होता है की वह फिर बाकी चीजों या लोगों से मोह या आसक्त नहीं होता। वह किसी निष्पक्ष होकर जीवन में निर्णय लेता है।

ध्यान क्या नहीं है? ध्यान से जुडी भ्रांतियां

सत्य के अलावा जब भी हम अपने मन में किसी भगवान, वस्तु या या व्यक्ति को केंद्र बनाकर उस पर पूरा ध्यान लगाते हैं तो आप उसी पर एकाग्र होने लगते हैं जिसे आपने केंद्र बनाया है।

अतः जब आप किसी भी विषय की छवि बनाकर उसमें ध्यान केन्द्रित करते हैं, तो वह छवि तो सत्य होती नहीं, क्योंकि नाम रूप, रंग,आकार सीमित होते हैं और जो सीमित चीजें हैं वो मनुष्य को शांति देती नहीं।

देखिये न आपके पास जो कुछ है वो सीमित ही तो है फिर चाहे वह परिवार हो, पैसा हो, जमीन हो इत्यादि। और उन सभी से संतुष्टि और शांति नहीं मिलती तो व्यक्ति ध्यान की तरफ आता है।

और मात्र सत्य है जो सीमित नहीं है अन्नत है, जो बहुत बहुत बड़ा है पर जब आप हृदय में सत्य को विराजमान करने की बजाय यूँ ही किसी मूर्ती को या व्यक्ति को जगह दे देते हैं तो फिर आपको बेचैनी होने लगती है।

जब मन में इतनी विनम्रता आ जाये की उसे अहसास हो की मेरे ह्रदय में कुछ है जो मुझसे और इस संसार से बड़ा है उसको सत्य मानकर आप उसके समक्ष सर झुका देते हो और सच्चाई की तरफ जीवन में उन्मुख हो जाते हैं तो समझिये मात्र तभी ध्यान है।

  • आँख बन्द कर किसी वस्तु के बारे में विचार करते रहना ध्यान नहीं है।
  • भगवान या ईश्वर की माला जपते रहना ध्यान नहीं है।
  • किसी भी तरह क्रिया जैसे योग, व्यायाम ध्यान नहीं है।
  • ध्यान के लिए यह आवश्यक नहीं की आप ऊँचे पहाड़ या पर्वतीय स्थलों पर जाएँ।

आत्मा क्या है| आत्मा का असली सच

 सनातन धर्म क्या है | जानिए असली सनातनी कौन है

FAQ ~ ध्यान से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर

मेडिटेशन कितनी देर करना चाहिए?

सही जीवन जीने के लिए ध्यान हर पल हर समय होना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन का अवलोकन कर सके। और भीतर जो बुराई, कपट लालच जैसी वृतियां बैठी हुई हैं, उन्हें दूर कर सके। इसके विपरीत जो व्यक्ति ध्यान में नहीं है वह बेहोशी का जीवन जीते हैं।

मेडिटेशन करने का सही तरीका क्या है?

मेडिटेशन करने की कोई खास विधि नहीं है, जिस पल आपकी भावनाएं, विचार शांत हो जाये और आपको अपनी वस्तविक स्तिथि का ज्ञान हो जाये, अपने जीवन में सभी गुण दोषों के बारे में पता चल जाये यही मेडिटेशन है।

मेडिटेशन क्यों जरूरी है?

ध्यान का अर्थ समझ अर्थात बोध से है, और बिना बोध के जीवन अंधकारमय है, अगर व्यक्ति को आत्मज्ञान नहीं है, तो फिर उसके द्वारा लिए गए निर्णय भी डर, लालच के आधार पर होंगे। इसलिए जीवन में ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए ध्यान अत्यंत जरूरी हो जाता है।

मेडिटेशन कितने मिनट करना चाहिए?

मेडिटेशन करने का निश्चित समय और अवधि नहीं होती, जब आप किसी भी समय अपने जीवन के प्रति सजग होकर ध्यान से अपने भीतर झांकते हैं तो इसका अर्थ है आप ध्यान में है। प्रातः काल किसी निश्चित समय पर उठकर आँख बंद कर ध्यान करना मेडिटेशन नहीं होता।

ध्यान का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
 

वे लोग जो आनन्दमय जीवन जीना चाहते हैं, जीवन में गलत फैसले लेकर दुखों से खुद का बचाव करना चाहते हैं उनके लिए ध्यान की भूमिका बेहद अहम् है। ध्यान आपको बारीकी से जीवन का विश्लेष्ण करने में मदद करता है। जब सोचिये किसी छोटे से कार्य को भी बिना ध्यान के किया जाये तो उसमें गलती की कितनी गुंजाईश रहती है तो सोचिये जब पूरा जीवन ही हम बिना ध्यान के गुजार दें तो कैसा होगा।
 

अंतिम शब्द

तो साथियों इस पोस्ट को पढने के पश्चात ध्यान क्या है? आप भली भाँती जान गए होंगे, पोस्ट में दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो कृपया इस लेख को सोशल मीडिया पर सांझा करना तो बनता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here