सच्चा गुरु कौन है? जानिए गुरु की पहचान कैसे करें

इस युग में जहाँ स्वयं को गुरु/बाबा बताने वाले खूब घूम रहे हैं, उन्हीं में से यदि आप सच्चे गुरु की पहचान करना चाहते हैं तो आपको पता होना चाहिए असली गुरु कौन है, गुरु की पहचान कैसे करते हैं।

गुरु कौन है

भारत की भूमि में प्राचीन काल से ही गुरु की भूमिका और उनका आदर करने की परम्परा काफी समय से चली आ रही है।

संतों, ऋषियों और महापुरुषों ने गुरुओं पर अनेक कविताएं लिखी। कबीर साहब तो यहाँ तक कह गए की शीश (कटने) पर भी गुरु मिले तो भी बड़े सौभाग्य की बात है। इसलिए वे लोग जो संसार के बन्धनों से मुक्ति की इच्छा रखते थे।

कभी किताबों और ग्रन्थों ने तो कभी साकार गुरु ने उन्हें जीवन में महान कार्य करने में मदद की। पर जितना जरूरी है जीवन में एक सही गुरु का होना उतना ही जरूरी है एक नकली, झूठे गुरु की पहचान करना।

क्योंकि बाजार में आजकल स्वयं को तत्व ज्ञानी, भगवान का दर्जा देने वाले अनेक लोग हैं जो कहते हैं की वो भगवान के सच्चे सेवक हैं, और फिर ऐसे ही लोग लोगों के बीच कई तरह अन्धविश्वास और भ्रम फैलाते हैं फिर इन्सान की स्तिथि सुधरने की बजाय और बिगडती जाती है।

असली गुरु कौन है| गुरु की परिभाषा

जो इन्सान को उसके भ्रमों को झूठा बतलाकर उसे सच्चाई से वाकिफ करवाए उसे गुरु कहा  जाता है, दूसरे शब्दों में जो तुम्हें अन्धकार से रौशनी की तरफ ले जाए वही असल मायने में गुरु है।

पर प्रायः गुरु शब्द का ख्याल आते ही हमारे दिमाग में किसी व्यक्ति की छवि प्रकट हो जाती है। लेकिन यह आवश्यक बिलकुल नहीं की हमेशा गुरु आपके समक्ष बैठा हुआ हो।

बहुत से लोग जिन्हें संसार में कोई सच्चा गुरु नहीं मिलता वो फिर ज्ञान हासिल करने के लिए किताबों, धर्मग्रन्थों, उपनिषदों के पास जाते हैं।

इस प्रकार कई बार व्यक्ति को यह भी मालूम नहीं हो पाता की उसकी आस्था किस गुरु में है, उदाहरण के लिए उपनिषदों का ज्ञान बहुत लाभदाई है इस संसार में जीवन जीने के लिए, पर चूँकि उपनिषदों की रचना किसी एक विशेष ऋषि द्वारा नहीं की गई।

अतः ऐसी स्तिथि में इंसान का गुरु कोई एक व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि वह धार्मिक ग्रन्थ हो जाता है जिससे उसने शिक्षा हासिल की है।

सच्चा गुरु कैसे चुनें | सच्चे गुरु की पहचान क्या है?

आप जैसे हैं वैसे बने रहते हुए आप एक सच्चे गुरु की पहचान नहीं कर सकते। जी हाँ जैसे आप हैं वैसा ही आप गुरु भी चुनेंगे। उदाहरण के लिये आपके मन में यदि खूब पैसा कमाने और अमीर बनने की चाहत है ताकि आप भविष्य में मजे करें।

तो जाहिर है आप किसी ऐसे ही इन्सान को गुरु बनायेंगे जो आपके अमीर बनने के सपने को और फैला सके। जो आपको बताये की कैसे आप कम समय में थोड़ी सी मेहनत करते हुए कैसे अमीरों वाला जीवन जी सकते हैं।

है न, आजकल मार्किट में बहुत ऐसे गुरु घूम रहे हैं जो अपना कोर्स बेचकर लोगों को अमीर बनाने के सपने दिखा रहे हैं। तो यहाँ पर हम उस गुरु के खराब कोर्स की बात नहीं करेंगे, हम यहाँ बात कर रहे हैं उस शिष्य की जिसके मन में लालच है तो वो ऐसे ही इन्सान को गुरु बनाएगा जो उसके लालच को और बढ़ाये।

यही नहीं यदि शिष्य डरपोक है, तो वह ऐसे इन्सान को गुरु बनाएगा जो उसे मोटिवेशन दे। वो ये मानने को तैयार ही नहीं होगा की मोटिवेशन से ज्यादा जरूरी है ये समझना की डर की असली वजह क्या है और इलाज क्या है? इसकी बजाय वो मोटिवेशन लेना अधिक पसंद करेगा।

तो अपने ढूंढें अगर हम गुरु को ढूँढने जायेंगे तो जाहिर है जैसे हम हैं वैसा ही गुरु भी खोज लेंगे।

और सच्चा गुरु तो वह है न, जो हम जैसे हैं हमें वैसा रहने ही न दें, गुरु ऐसा हो न जो सिर्फ बातें न करता हो उसका जीवन भी ऐसा ही हो, जो हमारे भ्रम हमारे अन्धविश्वास को मिटाए ताकि जिन्दगी में जो अशांति थी वो दूर हो और हमारे जीवन में समझ बढे और शान्ति आये और हम बेहतर जीवन जी पाए।

अब आपको ये देखना है की कैसे आप जीवन में एक सच्चा गुरु पा सकते हैं, वो गुरु आपको कहाँ मिलेंगे।

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साकार और निराकार गुरु में अंतर

साकार गुरु से आशय उस व्यक्ति से है जो शिष्य के समक्ष बैठकर ज्ञान देता है, साथ ही व्यक्ति जब गुरु द्वारा रचित किताबों से या उसके रिकॉर्ड किये गए प्रवचनों को सुनकर ज्ञान प्राप्त करता है तो उसे साकार गुरु ही कहा जाता है।

जीवन में साकार गुरु की बेहद अधिक महत्वता है क्योंकि हमारा मन तो सदैव बुरे विचारों की तरफ भागता है ऐसे में साकार गुरु हमें जीवन में भटकने से बचाता है।

हम जिन्दगी में सही राह पर चले इसके लिए साकार गुरु हमें जरूरत पड़ने पर हौसला देता है तो कभी दंड भी देता है ताकि हम सुधर सके।

दूसरी तरफ निराकार गुरु से आशय किसी व्यक्ति या भौतिक इन्सान से नहीं है, जब इन्सान को पेड़, वायु, जल, चाँद, आसमान इत्यादि को देखकर ज्ञान हासिल होने लगे तो उस व्यक्ति के लिए प्रकृति में मौजूद यही चीजें उसका गुरु बन जाती हैं।

पर जिस तरह का हम जीवन जीते हैं उसमें निराकार से ज्यादा साकार गुरु से सीखने की सम्भावना होती है।

जब व्यक्ति इतना बोधवान हो जाये की उसे अब शरीर रूप में मौजूद गुरु की जरूरत ही नहीं पड़े, उसका ज्ञान इतना उत्कृष्ट हो जाए की अब उसे गुरु के भी सहारे की आवश्यकता नहीं तो फिर ऐसे मुक्त व्यक्ति को चलते फिरते कई चीजों को देखकर ज्ञान हो जाता है।

उदाहरण के लिए कबीर साहब को एक चक्की देखकर भी ऐसी गहरी बात समझ में आ जाती थी की वे कहते थे चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ॥ तो इतनी समझ हममें हो की हम निराकार गुरु से सीख सकें उसके लिए पहले हमें साकार गुरु के बताये रास्ते पर चलना जरूरी हो जाता है।

इस बात में कोई दो राय नहीं की दोनों गुरु की महत्वता है लेकिन हम जैसे हैं, जिन परिस्तिथियों में हम जीवन जीते हैं हमारे लिए तो एक सच्चा साकार गुरु होना जरूरी है। और यदि हम गुरु की कृपा से और अपनी मेहनत और साधना से यदि ज्ञान हासिल कर लते हैं।

माने दुनियादारी हमें समझ आ जाती है और हम जीवन में जो सही है उसे पाने के लिए काम करने लगते हैं तो फिर इंसान का नजरिया इतना बदल जाता है की उसे अब छोटी छोटी चीजों से भी काफी कुछ सीखने को मिलता है।

गुरु और भगवान में क्या अंतर है?

भगवान वो हैं जिनके जैसा हम बनना चाहते हैं और गुरु एक माध्यम हैं जो हमें उनके जैसा बनने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में भगवान एक आसमान हैं, और पंक्षी वो इन्सान है जो ऊँचे से ऊँचा उड़कर आसमान को छूने की इच्छा रखता है।

लेकिन चाहे वो कितनी ही उड़ान भर ले चूँकि उसके पंखों में इतने सामर्थ्य नही की वो आसमान में ही पहुँच जाए, इसी प्रकार इंसान उस पंक्षी की भाँती है जो अपने सीमित सामर्थ्य से ऊँचे से ऊँचा जीवन जिए भले ही वो भगवान की बराबरी नही कर सकता।

और गुरु ही वह साधन है जो इन्सान को ऊँचा उठाने का काम करता है, जो उसे कचरे के ढेर से उठाकर उसे साफ सुथरे आसन पर बैठने के लिए प्रेरित करता है।

उदाहरण के लिए हम सब जीवन में राम भगवान जैसी ऊँचाइयाँ पाना चाहते हैं। ताकि हमारे निजी स्वार्थों से ज्यादा हम अपना जीवन उस कार्य को समर्पित कर दें जो इस समय करना जरूरी है।

अब गुरु की भूमिका यह है की हमें वह हमारे अज्ञान, भ्रम और भीतर की डरपोक और लालची वृतियों का सामना कर हमें उस सही कर्म करने के लिए अग्रसर करें।

गुरु क्यों जरूरी है? गुरु का जीवन में महत्व

बिना गुरु के ज्ञान नहीं और बिना ज्ञान के जीवन बेकार।

ये पंक्ति गुरु की भूमिका को समझाने के लिए पर्याप्त है।

हम इंसान कीचड़ में लथपथ पैदा होते हैं, क्योंकि पैदा होते ही एक पशु में जो आदतें/ वृतियां होती हैं वो सभी हमारे भीतर होती हैं, लालच, डर, वासना, इत्यादि एक जानवर में भी होते हैं और इन्सान में भी।

यहाँ तक की अगर इन्सान को पैदा होते ही जंगल में छोड़ दिया जाए जंगली जानवरों के बीच तो ये बात जाहिर है की अगर वो कुछ सालों तक जिन्दा रहा तो वो एक जानवर के तौर पर ही बाहर आएगा।

पर परमात्मा ने चूँकि हमें जानवरों से विशेष बनाया है, हमें सोचने समझने की बुद्धि दी है अतः गुरु के पास ये जिम्मेदारी हो जाती है की वो हमें ज्ञान देकर हमें एक पशु से इंसान बनाये।

पर अधिकतर लोग ज्ञान को तव्वजो न देकर वासना, लालच को जीवन में ज्यादा महत्व देते हैं और अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेते हैं।

क्योंकि ज्ञान हमें इस समाज, दुनिया और हमारे जो आतंरिक बंधन है उनसे मुक्ति दिलाता है पर जब हम गुरु से और ज्ञान से वंचित हो जाते हैं तो फिर एक घटिया जीवन बिताने के लिए इंसान मजबूर हो जाता है।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के बाद असली गुरु कौन है? यह आपको पता चल गया होगा, इस लेख को पढने के बाद आपके मन में गुरु को लेकर क्या छवि है कमेन्ट में बताएं, साथ ही यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई है, तो इसे शेयर भी कर दें।

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