ट्विटर समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हिन्दुओं द्वारा अक्सर जय श्री राम ट्रेंड में लाया जाता है पर वास्तव में इस शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है? हम नहीं जानते।
हिन्दू होने के नाते हम सभी अपने देवताओं की पूजा करें, उनका जयकारा करें ताकि उनके जीवन से सीख लेकर हम भी जीवन में एक बेहतर इन्सान बन सके। ये सोच बहुत बढ़िया है।
लेकिन ये बड़ी बात हास्यप्रद हो जाती है जब हम राम के जीवन की मूलभूत बातें भी नहीं जानते और हम उनका गुणगान करें। एक इन्सान से भी प्रेम करने के लिए हम उसके करीब आते हैं ताकि उसे समझ सकें उसकी मदद कर सके।
लेकिन भगवान जो हमारी आस्था के प्रतीक हैं, जिनसे इन्सान का दिल का रिश्ता होता हैं, उनके ही जीवन से अनभिज्ञ रहकर उन्हें पूजना कहाँ तक समझदारी है? नहीं है न, आइये जय श्री राम का नारा लगाने से पूर्व जानते हैं
राम कौन हैं? क्यों उन्हें दुनिया पूजती हैं?
राम त्याग, अनुशासन, वीरता, प्रेम की मूर्ती हैं। राम वो हैं जिन्हें जीवन ने अनेक तरह के उपहार दिए, सीता जैसी पत्नी दी, लंका जैसी विजय दी, लव कुश जैसे नन्हे सुकुमार दिए पर राम तो लगातार धर्म और सत्य की खातिर उन्हें त्यागते ही जाते हैं।
और हम वो हैं जो 2 रूपये नहीं छोड़ पाते, राम वो हैं जिन्होंने सच्चाई की खातिर, धर्म के लिए के लिए अपने ऐशो आराम, सब राजपाठ छोड दिया। राम वो हैं जिन्होंने इच्छाओं की खातिर नहीं बल्कि हमेशा धर्म के लिए कर्म किया।
दूसरी तरफ हम हैं जिनका सत्य से कोई लेना देना नहीं, हम वो हैं जो एक एक कर्म अपनी मनोकमाना की पूर्ती के लिए करते हैं। यही कारण है की राम के जीवन को समझकर उनसे सीख लेकर एक महान और ऊँचा जीवन जीने में तो कठिनाई होती है न इसकी बजाय जय श्री राम नारे लगा देना आसान है।
अतः हम पाते हैं की हर हिन्दू भगवान श्री राम के नाम के नारे लगाता तो है पर उसके जीवन में राम जैसा कुछ होता नहीं है।
जय श्री राम का अर्थ हमें देता है ये संदेश
इस अभिव्यक्ति का शाब्दिक अर्थ “भगवान श्री राम की जीत” है। यह पंक्ति स्वयं में विशेष है क्योंकी यह इन्सान को गहरा संदेश देती है। जिस स्थान पर श्री राम की जीत का नारा लगाया जा रहा है, वास्तव में वहां सच्चाई की विजय होगी।
भगवान श्री राम को हम सच्चाई की मूर्ती के रूप में पूजते हैं, उन्हें याद करते ही हमें झूठ, असत्य के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा मिलती है।
इसलिए वह इन्सान जो सच्चे उद्देश्य के साथ कोई कर्म कर रहा है, झूठ के खिलाफ खड़े होकर सच्चाई पर बल दे रहा है उस इन्सान के लिए यह पंक्ति विशेष है।
क्योंकी वो उसका महत्व भली भाँती जानता है। इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति जिसका सच्चाई से, राम से कोई लेना देना नहीं है जो अपने स्वार्थ के खातिर कर्म कर रहा हो, जिसे झूठे लोग ही सुहाते हों ऐसे इन्सान के लिए यह पंक्ति कोई विशेष मायने नहीं रखती।
क्योंकी वास्तव में वो समझता की राम नाम हमें क्या संदेश देता है। तो वो जैसे जी रहा है, वो वैसे जीना स्वीकार नहीं करता। वो जिन चीजों के पीछे भागकर जिन्दगी गंवा रहा है वो उन चीजों को मूल्य देना बंद कर देता।
पर जब मुख में राम हों और भीतर राम से कोई लेना देना न हो तो जीवन नीरस रहता है, फिर मन संसार में उन चीजों में खुशियाँ ढूँढने की कोशिश करता है जो उसे ख़ुशी दे ही नही सकती।
राम का सच्चा भक्त कैसे बनें?
भक्त होने का अर्थ है अपने आराध्य के बारे में जानना, उनकी शिक्षाओं का पालन कर उनका वास्तविक सम्मान करना। अतः जो व्यक्ति राम की सच्ची भक्ति करना चाहता है वो सर्वप्रथम श्री राम के बारे में जानने का प्रयास करता है।
श्री राम के जीवन को समझने के दो माध्यम हैं, पहला रामायण दूसरा योगावशिष्ट सार।
रामायण जहाँ हमें राम जी के जन्म से लेकर उनके द्वारा जीवन में किये गए महान कार्यों से हमें परिचित करवाती है।
दूसरी तरफ योगावशिष्ट सार, प्रभु श्री राम और उनके गुरु वशिष्ठ के बीच किया गया संवाद है। 16 वर्ष की आयु में जब भगवान श्री राम भारत भ्रमण कर चुके थे तो उनके मन में जीवन से समबन्धित कई प्रश्न थे जिनके जवाब पाने हेतु उनके पिता ने श्री राम को उनके गुरु वशिष्ठ के पास भेजा।
कैसे प्रभु श्री राम के विचारों ने ऊँचाईयां छुई और कैसे उन्होंने महान कर्म किए अगर यह समझना है तो आपको गुरु शिष्य की यह बातचीत योगावशिष्ट सार में पढनी चाहिए।
इस प्रकार जो प्रभु श्री राम के जीवन को करीब से समझता है, वो जान लेता है की हम सभी के जीवन में राम जी की भाँती अनेक चुनौतियाँ हैं। जिस तरह श्री राम के पास ये विकल्प था की वो मोह को, सुख सुविधाओं को चुनें या फिर धर्म यानि सच्चाई को चुनें।
उसी तरह हमारे जीवन में कई ऐसे पल आते हैं जब मन सच्चे काम को करने का विरोध करता है, मन हमें डराता है और कहता है की सही काम करने की बजाय झूठे काम में तारीफ़ मिलती है। अतः अधिकांश लोग अपने उसी मन को सुनकर झूठे और गलत रास्ते पर चलने का फैसला करते हैं।
पर राम का जो सच्चा भक्त होता है क्योंकी वो जानता है की राम जी का जीवन हमें क्या संदेश देता है? वो जानता है ये जीवन हमें क्यों मिला है और कैसे जीना चाहिए। अतः वो राम के बताये रास्ते पर ऐसे जीता है जिससे की मुख में उसके राम हों न हो पर भीतर राम जरुर होते हैं।
ऐसा इन्सान दुनिया में गर्व के साथ जीता है।
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के बाद जय श्री राम का वस्तविक अर्थ क्या है? यह पंक्ति कौन सा खास संदेश देती है अब आप भली भाँती जान गये होंगे। अगर अभी भी मन में इस लेख के सम्बन्ध में कोई प्रश्न है तो आप इस whatsapp नम्बर 8512820608 पर सांझा कर सकते हैं, साथ ही लेख उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर भी कर दें।