कर्म क्या है? सिद्धांत और अच्छे बुरे कर्मों का महत्व

सही कर्म करोगे तो इसका परिणाम अच्छा मिलेगा यह हम आमतौर पर सुनते हैं पर वास्तव में कर्म क्या है? कर्म का सिद्धांत क्या है? कर्म का चुनाव कैसे चुनें? हमें मालूम नहीं होता।

कर्म क्या है

इसलिए आज हम कर्म के विषय पर जरा बारीकी से समझेंगे क्योंकि जब जीवन में कर्म तो निरंतर सभी को करने हैं तो क्यों न इस विषय पर जरा खुलकर बातचीत की जाए।

कई बार लोगों के मन में इस तरह के प्रश्न आते हैं की मुझे कौन सी नौकरी करनी चाहिए? या फिर अंधकार और पाप की इस दुनिया में जब सब लोग बुरे कामों की तरफ बढ़ रहे हैं तो ऐसे समय में मेरे लिए सही कर्म क्या है?

एक बार कर्म की पहले को ध्यान से समझ लें तो आपके लिए सही निर्णय लेना आसान हो जाएगा।

कर्म क्या है | What is Karma in Hindi

 कर्ता द्वारा अपने उद्देश्य की पूर्ती हेतु लिया गया निर्णय कर्म कहलाता है। कर्म से आशय क्रिया/काम से है। चूँकि जीते जी कर्म करने के सिवा उसके पास कोई विल्कप नही होता अतः मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न कर्म करता है लेकिन किसी भी कर्म को करने से पहले उसे करने वाला कर्ता पीछे उपस्तिथ रहता है।

उस कर्ता को हम सीधे तौर पर देख तो नहीं सकते, क्योंकि सीधे तौर पर हमें हमारे कर्मों से ही हमें जांचा परखा जाता है। लेकिन जैसा की हमने कहा जब भी कोई कर्म इंसान करता है उसके पीछे कर्ता का कोई न कोई मकसद जरुर होता है, इसलिए कर्म अच्छे या बुरे नहीं होते बल्कि कर्ता की नियत कैसी है ये महत्वपूर्ण होता है।

उदाहरण के लिए किसी गरीब को रोटी देना एक श्रेष्ठ कर्म माना जाता है, पर यदि कर्ता इस उद्देश्य से उसे रोटी दे रहा है की समाज में उसे प्रतिष्ठा मिले, उसे वोट मिले तो क्या आप तब भी कहेंगे की उस मनुष्य से ठीक कर्म किया?

नहीं न, पर हम बाहर से जांच लेते हैं की मनुष्य के कर्म क्या हैं? पर भीतर बैठे कर्ता की मंशा हम समझ नहीं पाते।

अतः कर्म से पहले आता है कर्ता, अगर कर्ता की नियत भलाई की है तो फिर यह इंसान जो भी कर्म करेगा वो निश्चित रूप से अच्छे ही होंगे।

इसलिए कहा गया की कर्मों से ज्यादा मन को देखो। एक स्वच्छ मन से व्यस्क इन्सान यदि बच्चों वाली हरकतें भी करता है तो ठीक है, लेकिन यदि कपटी इरादे से वो किसी की भलाई भी करता है तो वो बुरा कर्म कहलायेगा।

इसी तरह सम्भव है की कोई कहे मैं समाज सेवा करना चाहता हूँ, लेकिन उसके भीतर पैसे और पावर की भूख है तो ऐसा इन्सान फिर जो भी कर्म करेगा अपने गलत इरादों को पूरा करना कहलायेगा।

 कर्म का सिद्धांत क्या है? 

कर्म के सिद्धांत के अनुसार कर्म अच्छे हो या बुरे दोनों का फल तत्काल मिलता है, अर्थात इन्सान को अच्छे कर्म करने के लिए पहले अच्छा बनना पड़ता है।

अतः अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को परिणाम का इन्तेजार नहीं करना पड़ता, बल्कि सही काम से पहले उसके विचार शुद्ध हो गए, उसका मन साफ़ हो गया अतः उस नेक मन से वो जो भी करेगा वह शुभ होगा।

दूसरी तरफ आप कोई बुरा कर्म करते हैं तो आप उसी पल बुरे हो गये जिस पल आपने बुरा करने का फैसला लिया था अतः अब आप जो भी बुरा कार्य करोगे आप गलत इरादे से ही कर पाओगे। क्योंकि आप मन में बुरा सोचकर कोई भी अच्छा कर्म नहीं कर सकते।

उदाहरण के लिए किसी की हत्या करने से पहले इन्सान को भीतर से हत्यारा बनना पड़ेगा उसी तरह चोरी करने से पहले उसे मन में चोर बनना होगा तभी वह चोरी कर पायेगा।

अतः इस बात से आप समझ सकते हैं की कर्म का सिद्धांत यह बिलकुल नहीं कहता की आपके शुभ या अशुभ कर्मों का फल आपको अगले जन्म में मृत्यु के पश्चात मिलेगा।

जैसा की हमारे समाज में प्रचलित है यह एक झूठी अवधारणा है आपको इससे बचना चाहिए। आपको अच्छे कर्म इसलिए करना चाहिए क्योंकि इसी जीवन में इसी पल आप बुरे न बन सके।

अच्छे कर्म किसका प्रतीक हैं?

अच्छे कर्म देवत्व का प्रतीक हैं, हमारे ही भीतर राक्षस भी बैठा है जो अपने फायदे के लिए लोगों से, प्रकृति से भी खिलवाड़ करना चाहता है वहीं हमारे अन्दर देवता भी विराजमान हैं जो हमें झूठ, असत्य के आगे न झुकने के लिए बल देते हैं।

पर आमतौर पर हमारे भीतर झूठ, अशांति के रूप में राक्षस हम पर हावी रहता है, यह जानते हुए भी क्या बुरा है, किस चीज़ से हमारे जीवन में सच्चाई, शान्ति नहीं आ सकती।

उस काम को भी हम बार बार करते हैं जो ये दर्शाता है की भीतर का राक्षस हमें बुरे कर्म को करने के लिए प्रेरित करता है। और हम 100 में से 90 मामलों में उस राक्षस के सामने हार जाते हैं।

लेकिन कभी ऐसा भी होता है की हम किसी चीज़ के लिए किसी भी कीमत पर पीछे नही हट सकते यही बात दर्शाता है की भीतर देवत्व है।

उदाहरण के लिए आप यह जान गए की जानवरों की हत्या करना ठीक नहीं है, और उन्हें अपना भोजन बनाने का कोई अधिकार मनुष्य के पास नहीं है। अब आप भले ही कितने भूखे हों आप कह रहे हैं की जान चली जाए पर दूसरे प्राणी का खून पीकर मैं जिन्दा होना नहीं चाहता।

इसी तरह जब आप जीवन में सच्चाई को इतना सम्मान देते हैं और किसी सही चीज़ के लिए अडिग रहते हैं तो समझ लीजियेगा की आपके भीतर राम हैं जो आपको झूठ के आगे झुकने से बचाते हैं।

लेकिन अगर भीतर ऐसा कुछ नहीं है जिससे आपको प्रेम हो तो और जिसकी रक्षा के लिए आप कुछ भी कर सकते हैं तो समझ लीजियेगा आपने अपने हृदय में राम की जगह राक्षस को दी है।

कर्म की विशेषताएं 

जंगलों में आप जायेंगे तो कोई भी जानवर काम नहीं करता वो सिर्फ अपना पेट चलाने के लिये इधर से उधर घूमते फिरते हैं, इन्सान ही है।

एकमात्र इस पृथ्वी में जिसके लिए पेट भरने से भी ज्यादा कुछ और जरूरी है। इन्सान ही हैं जो शांति और तृप्ति की तलाश में कई कर्म करता है, तो आइये जानते हैं मनुष्य को मिले इस उपहार का उसे कैसे फायदा होता है।

#1. सही कर्म, सही जिन्दगी।

कर्म की सबसे बड़ी विशेषता यही है की यह हमारी जिन्दगी को सार्थक बना देते हैं, इंसान बेहद कम समय के लिए इस पृथ्वी में आता है और यही चार दिन का जीवन उसके लिए मौका होता है की या तो वह इस जिन्दगी को अय्याशी करने में, मजे मारने में, भोग में गवा दे।

या फिर इसी जिन्दगी में अपने तमाम तरह के दुखों से, अपनी ही बेड़ियों को काटकार मुक्त हो सके।

अगर आप ऐसे कर्म कर रहे हैं जिससे आपकी जेब ही नहीं भर रही बल्कि इस समाज, दुनिया का भला होता है तो ये शुभ कर्म यानी सही कर्म हैं लेकिन अगर कोई जिन्दगी अपना ही पेट चलाने के लिए और सुख भोगने के लिए जी जा रहा है तो इस अनमोल जीवन को गंवा बैठोगे।

सही जिन्दगी जीना थोडा मुश्किल और अलग जरूर है पर इस जिन्दगी को जीने का बड़ा लाभ होता है की आपको किसी से बेवजह डरना नही पड़ता, दुनिया के इशारों पर चलना नहीं पड़ता। आपको किसी की गुलामी नहीं सहनी पड़ती। किसी को धोखा नहीं देना पड़ता ऐसा जीवन जीना भी कोई आम बात है क्या?

#2. चुनाव का अधिकार

कृष्ण भगवान गीता में अर्जुन को स्पष्ट कह रहे हैं की देख अर्जुन कर्म से तो तू बच नहीं सकता, कर्म तो करने होंगे ही। लेकिन कर्म कैसे करने हैं ये चुनाव सदा हमारे पास मौजूद है। हम जैसे कर्म करने का चुनाव करेंगे वैसा ही हमें फल भुगतने के लिए तैयार रहना होगा

हम चाहे तो कृष्ण को पाने के लिए भी कर्म कर सकते हैं, वहीँ हम चाहे तो भीतर के रावण को खुश करने के लिए भी कर्म कर सकते हैं।

एक बात तय है जो भी चुनाव हम करेंगे उसी के अनुरूप हमें फल चखने को मिलगा। अतः आज ही देखिये अपनी जिन्दगी को क्या आप कृष्ण के साथ हैं या फिर रावण के।

#3. कर्म आपको दुखों से आजाद करते हैं।

कर्म ही इंसान को परेशानी में डालते हैं, उसे गलत रिश्ते, गलत नौकरी चुनने के लिए मजबूर करते हैं। लेकिन यही कर्म उसे उसके जीवन में मौजूद तमाम तरह के दुखों से आजाद कर सकते हैं। तो जरा खुद से पूछिए क्या आपके कर्मों से आपके जीवन में शान्ति आ रही है, प्रेम बढ़ रहा है या फिर इर्ष्या और द्वेष बढ़ रहा है?

जी हाँ कर्म की बड़ी विशेषता यह है की यह आपको साफ साफ़ बता देते हैं की जीवन दुःख और बन्धनों में बीत रहा है या फिर आजादी और प्रेम में। आप अगर फैसला ले लें की जीवन में कुछ हो जाए शांति, सच्चाई और आजादी के साथ समझौता नहीं करूंगा तो फिर आपके कर्म भी वैसे ही हो जायेंगे।

लेकिन अगर लालच और डर ज्यादा हावी हो गए तो समझ लीजियेगा अब आपके ही कर्म आपको और ज्यादा तकलीफ देंगे।

#4. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

इस बात में कोई दो राय नहीं आपके कर्मों का प्रभाव आपके मन और शरीर दोनों पर पड़ता है। यदि इन्सान के कर्मों में हिंसा, द्वेष शामिल है।

तो जाहिर है उस काम को करके मन भी गंदा होगा। दूसरी तरफ यदि कर्म का उद्देश्य दूसरे की भलाई और बेहतरी है तो आपके मन पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

तो इसलिए जब भी कोई नौकरी, व्यापार चुनें खुद से जरूर पूछियेगा की इससे मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। साथ ही शरीर पर भी कर्मों का प्रभाव पड़ता है।

सही काम करने का बड़ा फायदा यह रहता है आप उसमें भरपूर उर्जा लगा पाते हैं, अतः आपको अच्छी नींद आती है, अच्छे काम से आने वाले आत्मविश्वास से आँखे चमकती है और तनाव और बीमारियाँ कम होती हैं।

#5. कर्म अनुभव देते हैं।

देखा है बुजुर्ग लोग अक्सर कहते पाए जाते हैं की देखो बेटा हमने अपनी जिन्दगी ऐसे जी, ऐसे कार्य किये इत्यादि। तो चाहे आप जीवन में अच्छे कर्म करें या फिर फालतू के कार्यों में ही जिन्दगी गुजार दें, दोनों ही परिस्तिथियों में एक बात निश्चित है की आपके पास अनुभव जरुर होंगे।

हालाँकि बुरे कार्य करने पर इंसान को जो अनुभव होते हैं उससे उसे अपनी गलती पर पछतावा होता है, और अगर आपने बहुत देर नहीं की हो तो सम्भव है आप अपनी गलतियों को भी सुधार लें।

इसी तरह अगर आपने अच्छे काम किये हैं तो जाहिर हैं उसका अच्छा परिणाम भी हुआ होगा और आप उसी अनुभव को फिर आप दूसरों के साथ भी सांझा करेंगे।

हमारे लिए सही कर्म क्या है? कैसे चुनें?

अगर आप जानना चाहते हैं की जिन्दगी में सही काम या सही नौकरी का चयन कैसे करें, तो देखिये दो तरीके हैं सही कार्य का चयन करने के, पहला अपने आंतरिक जगत को देखिये।

और जानिये कौन सी आपकी कमजोरियां हैं, जिनके आगे आप घुटने टेक देते हैं। तो आपके लिए सही कार्य वह है जिस काम को करने से आपकी यह कमजोरी टूटे।

उदाहरण के लिए आपके मन में पैसों के प्रति अधिक मोह और लालच है तो ऐसी नौकरी पकडिये जिसमें काम अच्छा हो लोगों की भलाई होती हो अब भले इस काम में पैसा कम मिले।

इसी तरह अगर आपको लोगो से बातचीत करने में डर लगता है तो काम ऐसा चुनिए जिसमें आप ज्यादा से ज्यादा लोगों से बातचीत कर सके।

दूसरा, अगर आप पाते हैं आपके मन में न लालच है और न कोई अधिक कमजोरी है और आप बस एक सही काम को चुनना चाहते हैं जिसे करके जिन्दगी जीना सार्थक हो तो देखिये दुनिया में बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें करके प्रकृति और दुनिया का भला होता है। पर ऐसे काम आपको नौकरी डॉट कॉम में नहीं मिलेंगे।

आपका प्रेम ही आपको रास्ता बतायेगा जिससे आप उस काम को करने के तरीके तलाशेंगे। मन में अगर प्रेम है तो आप उस काम को करने का तरीका ढूंढ ही निकालेंगे। इस तरह का काम करने का बड़ा फायदा यह होता है की आपको काम से फुर्सत नहीं मिलती आप खाली नहीं बैठे रहते।

क्योंकि काम से जब आपको प्रेम हो जाता है तो फिर आप घड़ी में समय नहीं देखते आप फिर उस काम को करते रहते हैं।

कर्म कतने प्रकार के हैं?

कर्म तो जन्म के पश्चात सभी करते हैं, पर कर्मों में भिन्नता पाई जाती है। कर्मों को अच्छा या बुरा घोषित भी किया जाता है, अतः धर्मग्रन्थों में अनेक जगह कर्म, अकर्म, पाप कर्म इत्यादि की बात संतों द्वारा कही गई है। इसी कारण कर्मों को मुख्यतया तीन भागों में विभाजित किया गया है।

कर्माणि कतिविधानी संतित्ति चेत

आगामिसंचितप्रारब्ध त्रिविधानी सन्ति ~ तत्वबोध

अर्थात कर्म के तीन प्रकार होते हैं आगामी, संचित और प्रारब्ध|

#1. आगामी कर्म

आदि शंकराचार्य के तत्वबोध के अनुसार “ज्ञान की उत्पत्ति के पश्चात ज्ञानी के शरीर के द्वारा जो पाप-पुण्यरूप कर्म होते हैं, वे आगामी कर्म के नाम से जाने जाते हैं”

आगामी कर्म ज्ञान से नष्ट होते हैं। आगामी कर्म का कमल के फूल की पंखुड़ी पर जल के समान ही ज्ञानी के साथ कोई सम्बन्ध होता नहीं

ज्ञानोदय यानी अहम का नष्ट होना। आमतौर व्यक्ति के सभी कर्म “मैं” के केंद्र से होते हैं जैसा उसका मन कहता है वो वैसा करता है। लेकिन जो व्यक्ति वास्तव में ज्ञानी होता है वो जानता है मेरे दुःख और बन्धनों का कारण तो अहम ही है। और मुझे यदि जीवन में शांति और आजादी चाहिए तो मुझे अहम को त्यागना पड़ेगा।

इसलिए जहाँ एक सांसारिक व्यक्ति मन के कहने पर चलता है वहीँ एक ज्ञानी व्यक्ति के एक एक कर्म, और विचार सच्चाई से प्रेरित होकर निकलते हैं। यानी वह मन के कहने पर नहीं सच्चाई/आत्मा के कहने पर चलता है। उसे पूछो ये कर्म क्यों किया? वो कहेगा पता नहीं बस मुझे सबसे सही और सच्चा ये काम लगा इसलिए किया।

इस प्रकार जो व्यक्ति आत्मा (सच्चाई) के प्रकाश में कर्म करता है उन कर्मों को आगामी कर्म कहा जाता है। जो व्यक्ति ऐसे जीने लग जाए फिर वह सब तरह के पाप पुण्य से मुक्त हो जाता है। क्योंकी पाप या पुन्य या किसी भी तरह का कर्मफल भोगने वाला जो मन(अहंकार) था वो तो अब ज्ञानी में बचा नहीं।

इसलिए ज्ञानी व्यक्ति फिर आजाद मुक्त जीता है, सब कर्मफलों से वह आजाद होता है न उसे उपहार की लालसा है न उसे दंड पाने का डर।

#2. प्रारब्ध कर्म

जो इस शरीर को उत्पन्न करके, इस लोक में सुख दुःख आदि देने वाले कर्म हैं, जिसका भोग करने से ही नष्ट होते हैं उसे प्रारब्ध कर्म जानें~ तत्वबोध

जब तक इंसान का ज्ञानोदय नहीं हुआ है, अर्थात जब तक व्यक्ति इसी भाव में जी रहा है की मैं एक शरीर हूँ, तब तक उसे सुख दुःख यानी कर्मफल तो भोगने पड़ेंगे। मात्र ज्ञानी है अर्थात जिसका ज्ञानोदय हुआ वो प्रारब्ध कर्म से मुक्त हो जाता है क्योंकी वो जानता है की सच्चाई क्या है।

जानें: मैं कौन हूँ| मेरी असली पहचान शरीर या फिर कुछ और

#3. संचित कर्म

अनंत कोटि जन्म में पूर्व में अर्जित किये हुए कर्म, जो बीजरूप से स्तिथ हैं, उसे संचित कर्म जानें।

मैं ब्रह्म हूँ इस निश्चय से संचित कर्म नष्ट होते हैं~ तत्वबोध 

पैदा होने से ही हम सभी के अन्दर कुछ संस्कार पूर्ववत हैं। जो बीज के रूप में पहले से हमारे पास मौजूद हैं और जिनसे हमें यह रूप मिला है उन्हें संचित कर्म कहा जाता है।

उदाहरण के लिए आज इन्सान का जो रूप है वो संचित कर्म का परिणाम है। हजारों लाखों वर्षों में इंसान ने जानवर से इन्सान बनने की जो ये यात्रा की है ये दर्शाता है की ये संचित कर्म हैं।

संचित कर्म मनुष्य को तभी तक प्रभावित करते हैं जब तक की आप स्वयं को एक शरीर मानते हैं? जब तक आपका ज्ञानोदय नही होता, जब तक आप सच्चाई नहीं जानते आपको संचित कर्म अवश्य प्रभावित करते हैं।

मनुष्य का कर्म क्या है?

जीवन को समझकर जीना ही मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। प्राकृतिक रूप से हम सभी अज्ञानी होते हैं हमारे भीतर वे सभी गुण पाए जाते हैं जो एक जानवर में पाए जाते हैं भूख लगना, नींद आना, बच्चे पैदा करना, क्रोध आना इत्यादि।

अतः ऐसे में ये समझना की क्या है जो हमें जानवरों से अलग बनाता है? ये जानना की जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या खाने पीने सोने के लिए हमारा जन्म हुआ है?

नहीं, क्योंकी एक जानवर के लिए जो चीजें पर्याप्त है वो हमारे लिए नहीं। जानवर का पेट भरा हुआ हो तो वो मस्त अपना पड़ा रहेगा, गाय को घांस मिल जाएगी तो उसे कोई टेंशन नहीं होगी।

पर मनुष्य की चेतना ऊँचाई मानती है, मनुष्य का मन पेट भरने मात्र से शांत नहीं होता, उसका मन आजादी, शांति की तलाश में रहता है। और इस मन को शांत करने के लिए इन्सान जीवन में देखिये न क्या कुछ नहीं करता।

पर अफ़सोस जिस शांति और चैन को हम खोज रहे हैं वो हमें मिलता नही है, अगर मिलता भी है तो पल भर के लिए इसलिए जिन्होंने जाना है उन्होंने कहा तुम्हें वास्तविक शान्ति इस संसार की चीजों को पा लेने से नहीं मिलेगी। यहाँ तो जो कुछ पाओगे मन की भूख और बढ़ जाएगी।

तुम्हें चाहिए कुछ ऐसा जो इस दुनिया से परे हो जो अनंत हो असीम हो। उसी का दूसरा नाम सत्य है, परमात्मा है जिसकी हम सभी को तलाश है।

अगर हमें उसके निकट आना है तो फिर हमें जरा उन चीजों को किनारे रखना होगा जो हमें परमात्मा से दूर रखती हैं हमें उन सभी कर्मों को त्यागना होगा जो हमें असीम तक पहुँचने से रोकती है।

वो सभी कर्म जो भीतर लालच, डर बढ़ाकर आपको असत्य की तरफ ले जाते हैं और ख़ुशी देने के नाम पर और बेचैन करती हैं उन कर्मों को त्यागकर आपको सच्चाई की तरफ ले जाने वाले कर्म करने होंगे।

अच्छे कर्म क्या है?

वे कर्म जिससे आपके जीवन का अंधकार मिटे, आपके भ्रम कटे आप पहले से एक बेहतर इन्सान बनते हों वे सभी कर्म अच्छे कहलायेंगे।

दूसरी तरफ अगर आप अपने कर्मों से और बद्दतर होते जा रहे हैं, भीतर की बेचैनी लगातार बढती जा रही है जिन्दगी में क्या करूँ क्या नहीं ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा है तो समझ लीजिये कर्म ठीक नहीं हो रहे हैं और इन कर्मों में बदलाव की जरूरत है।

जानें: जिन्दगी में करने योग्य क्या है? सही काम कैसे चुनें?

कर्म की सही परिभाषा क्या है?

आत्मा से यानी सच्चाई के केंद्र से जो कर्म सम्पन्न होते हैं वे वास्तव में सहज कर्म कहलाते हैं।

मनुष्य को कौन कौन से कर्म करने चाहिए?

जीवन दुःख है~  ये पंक्ति आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व बुद्ध कह गए थे। और वास्तव में ये सच है इसलिए इंसान एक एक कर्म करता है ताकि उसे सुख मिल सके। आप अपने जीवन को ही देख लीजिये आप हर एक काम इसलिए तो करते हैं ताकि आगे चलकर ख़ुशी मिलेगी।

पर अफ़सोस जितना हम कोशिश करते हैं सुख पाने की, उसके पीछे पीछे दुःख चला ही आता है। इसलिए थोड़ी सी शांति पाने के लिए हमें बड़ा कष्ट झेलना पड़ता है।

अतः जब जिन्दगी में दुःख ही दुःख है इंसान के, तो उसे कर्म ऐसे करने चाहिए जिनको करने से उसके वहम मिटे, उसके भीतर का डर, लालच कम हो और जीवन में शांति और सच्चाई आये उसे ऐसे कर्म करने चाहिए।

पर प्रायः हम नासमझी में ऐसे कर्म कर देते हैं जिससे हमारी चिंताएं कम होने की बजाए और बढ़ जाती हैं, हम नासमझी में जीवन के अनेकों बड़े फैसले लेते हैं जिससे जीवन भर इन्सान दुखी रहता है।

और इस दुःख को कम करने के लिए फिर वह नशे की तरफ या ऐसी गलत आदतों में लिप्त हो जाता है जिससे उसका जीवन बर्बाद हो जाता है।

तो विचार कीजिये एक एक काम जो आप दिनभर करते हैं क्या उससे आपको शांति मिल रही है? क्या उससे आपका डर कम हो रहा है? क्या लालच और क्रोध कम हो रहा है और मन को आनन्द मिल रहा है या नहीं। अगर नहीं तो जिन भी कामों को कर रहे हैं वो व्यर्थ हैं।

वो ऐसे ही हैं जैसे कोई इन्सान बहुत मेहनत करके कोई बंदूक खरीदे और अंततः उसी बंदूक की गोली से खुद पर जाए।

शुभ कर्म क्या है?

वो कर्म जो आपको जीवन में सच्चाई की तरफ ले जाये, जिन कर्मों को करने से भीतर प्रेम बढे और जिससे मन में शांति आये ऐसे कर्म शुभ कहलाते हैं।

दूसरी तरफ जिन कर्मों को करने से आप और ज्यादा मजबूर, बेबस, और दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं, और जिनसे अंततः आपको बार बार दुःख मिलता है ऐसे कर्म अशुभ कहलाते हैं।

दुर्भाग्यवश हम में से अधिकांश लोगों के लिए शुभ कर्म वे होते हैं जिससे हमारी इज्जत बढे, पैसा मिले पर हम जानते ही नहीं की जिन चीजों को हम शुभ कह रहे हैं वो तो कभी भी छिन सकते हैं, जिन चीजों को हम सफलता का सूचक मानते हैं वो तो कभी हमसे ली जा सकती है।

अतः शुभता इस बात में नहीं है की जिन्दगी में कितना पैसा, कितनी इज्जत और नाम कमाया बल्कि शुभता ये है की जिन्दगी में कोई सार्थक काम किया की नहीं, सच्चाई को इज्जत की दी या नहीं, जीवन में शांति और आनंद है या नहीं, अगर नहीं तो फिर सब कमाकर भी सब व्यर्थ गया।

कर्म का फल अलग अलग क्यों मिलता है?

जिस केंद्र से व्यक्ति द्वारा कोई भी कर्म किया होता है वहीँ से कर्म फल भी निर्धारित हो जाता है। अगर कर्ता यानि करने वाला ठीक है, उसका इरादा ठीक है तो फिर उसके कर्मों का फल शुभ ही होगा। और अगर उसी कर्ता में खोट है, बुराई है तो कर्म चाहे कैसे भी हों उनका फल अशुभ ही होगा।

देखिये, कर्म से पहले आता है कर्ता। कर्ता को आप मन भी कह सकते हैं क्योंकी यही इन्सान को बताता है की कौन से कार्य करने हैं कौन से नहीं।

अगर मन यानि कर्ता अशांत है बेचैन है या फिर लालची है तो जो भी वो कर्म करेगा उसका फल बुरा ही आएगा। उदाहरण के लिए मेरे मन में कामवासना छाई हुई है तो अब बाहर से मेरे जितने भी कर्म होंगे उनका उद्देश्य किसी स्त्री/पुरुष को पाकर अपनी कामवासना को पूरी करना होगा।

अब भले ही मेरे कर्मों को देखकर सबको सबकुछ सामान्य लगे पर भीतर से तो मैं जानता हूँ की इतना समय, इतनी उर्जा मैं इसलिए लगा रहा हूँ ताकि अंततः कामवासना की पूर्ती हो।

ठीक इसके विपरीत अगर कर्ता यानी मन ठीक है, और इरादा मेरा सच्चा जीवन जीने का है तो अब भले मेरे कर्मों को देखकर कोई कहे की ये क्या अजीब कर रहा है? मुझे फर्क नही पड़ेगा क्योंकी भीतर ही भीतर मैं जानता हूँ मेरी नियत ठीक है।

इसलिए हम पाते हैं की दो इन्सान एक ही तरह का कर्म करते हैं, लेकिन दोनों पर उन कर्मों का प्रभाव अलग अलग पड़ता है। इसलिए इंसान के कर्मों को नहीं उसके कर्ता को पहचानिए। तब जाकर आपको उसकी सच्चाई मालूम होगी।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद कर्म क्या है? कौन सा कर्म चुनें? अब आपको भली भाँती मालूम हो चुका होगा, इस लेख के समबन्ध में आप अपने विचारों को कमेन्ट बॉक्स में बता सकते हैं, साथ ही इस पोस्ट को शेयर भी कर दें।

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