कर्मयोग क्या है| एक कर्मयोगी का जीवन कैसा होता है?

कर्म करो और फल की कामना मन से निकाल दो, क्या यही कर्मयोग है? आखिर कर्मयोग क्या है? कर्मयोगी की पहचान क्या है? आइये इस लेख में विस्तार से समझते हैं!

कर्मयोग क्या है

चूँकि ये बात तो निश्चित है की इंसान ने यदि इस पृथ्वी में जन्म लिया है तो वह कर्म तो करेगा ही पर किस तरह के कर्म, कर्मयोग की श्रेणी में आते हैं यह पता होना बेहद आवश्यक है।

कर्मयोग क्या है? निष्काम कर्मयोग की परिभाषा

ईमानदारी से अपनी हालत को देखने के बाद मनुष्य द्वारा अपनी वर्तमान स्तिथि से बेहतर किसी ऊँचे काम को करने का फैसला लेना ही कर्मयोग कहलाता है।

कर्मयोग मनुष्य को सुख, दुःख, लाभ हानि की चिंता किये बिना सही कर्म को करते रहने की सीख देता है।

एक आम व्यक्ति जहाँ कोई भी कर्म इसलिए करता है ताकि उस काम को करके उसकी कोई इच्छापूरी हो जाए , उसे कुछ पैसा, सम्मान या फिर शारीरिक सुख मिल जाए।

दूसरी तरफ कर्मयोग में किया जाने वाला कर्म इच्छारहित होता है, यानी वो काम इच्छा के वशीभूत होकर नहीं बल्कि सच्चाई को देखकर किया जाता है।

कर्मयोग में मनुष्य भली भाँती जानता है की उसके द्वारा किया जा रहा कर्म कितना आवश्यक है, कितना विशेष है अतः व्यक्ति फिर उस काम से मिलने वाले नतीजे की परवाह किये बिना उस काम में डूब जाता है।

इसलिए एक कर्मयोगी जहाँ बाहर से लगातार कर्म करता है तो वहीँ भीतर ही भीतर वो आनन्दित रहता है, क्योंकि वो जानता है की जो सही है वो मैं कर रहा हूँ। इसी को कृष्ण कर्म कहते हैं।

आप कर्मयोग को कृष्ण प्राप्ति का मार्ग भी कह सकते हैं, क्योंकि सही कर्म को करने का अर्थ है आपने धर्म कार्य किया है और जो धर्म पर चल रहा है जान लीजिये कृष्ण उसे प्राप्त हो चुके हैं।

यही कारण है की गीता उपदेश के हजारों साल बाद भी कर्मयोग का यह सिद्धांत आज भी लोगों के बेहद काम आ रहा है।

कर्मयोग का सिद्धांत कैसे काम करता है?

कर्मयोग इसीलिए विशेष है क्योंकि ये इन्सान को जीते जी इस तरह कर्म करने की विधि बताता है जिससे की जीवन में सच्चाई और शान्ति आ सके और वो एक सुन्दर जीवन जी सके।

कर्मयोग का सिद्धांत

जी हाँ, कर्मयोग पर गीता में विशेष बल इसीलिए दिया गया है क्योंकि हम बोध से, समझदारी से कर्म नहीं करते।

हम कर्मों का फैसला समाज को देखकर, लोगों के कहने पर करते हैं, परिणाम ये होता है की जितना कर्म हम करते हैं उतना ज्यादा मन बेचैन हो जाता है।

हम ये सोचकर पैसे कमाते हैं की पैसा कमाने से जिन्दगी में सुकून आएगा लेकिन व्यक्ति जितना धन कमाता है उतना उसे दुःख होता है क्योंकि उसकी इच्छाएं बढती जाती हैं और इच्छाएं ही तो दुःख का कारण बनती हैं।

पर जब व्यक्ति कृष्ण के करीब आता है यानी भगवदगीता पढता है तो उसे मालूम होता है की अगर मन को शांति तक ले जाना है तो कृष्ण कर्म आपके काम आएगा।

कृष्ण कर्म माने वो काम जो सच्चा है, शुभ है। उस काम को बिना कुछ पाने की इच्छा से करना ही कर्मयोग कहलाता है।

भले वो काम कितना ही कठिन क्यों न हो, वो काम अगर ठीक है तो मैं उसे करूँगा! जान लीजिये ये कर्मयोग है।

कर्मयोग की विशेषताएं क्या है?

कर्मयोग क्या है? यह समझने के बाद जाहिर सी बात है आपके मन में ये बात होगी की एक कर्मयोगी का जीवन बाकी सांसारिक लोगों से कैसे अलग होता है? आइये जानते हैं।

कर्मयोग की विशेषताएं

#1. लक्ष्य से मुक्ति:-

एक कर्मयोगी क्योंकि श्रेष्ठ और असम्भव प्रतीत होने वाला कार्य चुनता है। इस वजह से उसके कार्य के खत्म होने की समयसीमा नहीं होती।

काम कब पूरा होगा उसे न तो ये चिंता सताती है और न ही लक्ष्य को पाकर क्या मिलेगा उसे इस बात की चिंता करने की आवश्यकता पड़ती, कर्मयोगी तो बस कर्म इसीलिए करता है क्योंकि उसका वह कर्म शुभ है।

#2. आशा से मुक्ति

आमतौर पर हम सांसारिक लोग जो भी कार्य करते हैं, उस काम को करने के पीछे कोई उम्मीद होती है।

पर जिस आवश्यक कार्य में कर्मयोगी डूबा हुआ है उससे उसे क्या मिलेगा? इस चीज से वह मुक्त हो जाता है। इसलिए न वो आपको गहरे सुख में दिखाई देगा और न ही गहरे दुःख में दिखाई दे सकता है।

#3. वर्तमान में जीना

वे लोग जिन्हें भविष्य की चिंताएं, दुःख सताते हैं उन्हें कर्मयोग का सिद्धांत जरुर जानना चाहिए, एक कर्मयोगी के मन में चूँकि भविष्य की आशाएं नहीं रहती।

अतः वह जिस भी कार्य को करता है उसे वर्तमान में वह डूब कर करता है, इसलिए मन उसका तृप्त होता है, शांत रहता है क्योंकि आगे क्या होगा? उसे सोचना नहीं पड़ता।

#4. कर्ता भाव नहीं रहता

कर्मयोगी भली-भाँती जानता है वो जिस कार्य को कर रहा है, वो बस एक माध्यम है तो फिर वह कार्य को न तो करने का श्रेय लेता है और न ही कार्य के सफल होने का परिणाम देखकर खुश या चिंतित होता है।

कर्मयोगी कैसे बनें?

कर्मयोगी बनने की विधि निम्नवत है।

कर्मयोगी कैसे बनें

1. सर्वप्रथम आत्मज्ञानी बनें, बिना स्वयं को जाने हम जो भी कर्म करेंगे वो अधूरा ही होगा तो अगर जीवन में कोई श्रेष्ठ काम करना है तो मैं कौन हूँ? मुझे जन्म क्यों मिला है? सही काम कौन सा है? कैसे चुनें? इत्यादि बातें आपको स्पष्ट होनी चाहिए।

क्योंकि अगर आपको साफ़ साफ मालूम होगा की मुझे करना क्या है तो आप जीवन में सही चीज़ें कर पायेंगे।

पढ़ें: आत्मज्ञानी कैसे बनें?

2. यह जानने के बाद अब आप देखिये आज के समय में कौन सा श्रेष्ठ कार्य अर्थात ऐसा कार्य है जो न सिर्फ आपके लिए अपितु इस विश्व और समाज के लिए कल्याणकारी हो।

2.  अब उस कार्य को करने के लिए पर्याप्त कौशल सीखिए! भले कार्य कितना ही कठिन और असम्भव प्रतीत हो उसे करने का चुनाव करें। ये परवाह न करें की आपको सफलता मिलगी अथवा नहीं।

3. अब उस कर्म में अपने सभी संसाधन चाहे समय हो, पैसा हो, ज्ञान हो उसे झोंक कर उस कार्य को करने की यथासंभव कोशिश कीजिये।

4. कार्य के फलस्वरूप लाभ हानि का विचार किये बिना, साथ ही उसका परिणाम क्या होगा? इसे सोचे बिना नित अपना कार्य करते रहें! आप एक कर्मयोगी बन जायेंगे।

उदाहरण स्वरूप आपके शहर या गाँव में बड़ी गंदगी है और साफ़ सफाई की सख्त आवश्यकता है।

लेकिन कोई भी व्यक्ति या सरकार इस कार्य को गम्भीरता से लेकर इस कार्य को अंजाम नहीं दे रही है और आपको लगता है यह कार्य है जो इस समाज और विश्व के लिए करना श्रेष्ट है।

तो अब आप इस कार्य को करने का बीड़ा उठा लेते हैं, अब इस कार्य को करने में भले आपको शर्म, झिझक हो आप इसे करने का साहस करते हैं।

और इस कार्य को पूरा करने में यदि आपको अपना समय, श्रम लगाने के साथ ही कुछ पैसा इत्यादि भी खर्च करना पड़े तो वो भी आप कर रहे हैं।

और संभव है इतना करने के बाद भी सफाई पूरी तरह से न हो पर फिर भी आपने अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न किया इमानदारी से, तो आप कर्मयोगी हुए।

क्योंकि आपके मन में ये आशा तो है ही नहीं, की इससे मेरा निजी लाभ होगा या नहीं, या ये काम पूरा होगा की नहीं बस आप उस कार्य में जुट गए हैं क्योंकि यह कर्म करना इस समय सर्वधिक महत्वपूर्ण है।

कर्मयोग के प्रकार

कर्मयोग के कोई प्रकार नहीं होते, हालांकि कर्म के विभिन्न प्रकार होते हैं, कर्मयोगी वह जो श्रेष्ट कार्य में खुद को समर्पित कर दे।

गीता के अनुसार कर्म क्या है?

गीता में श्री कृष्ण द्वारा 5 तरह के कर्मों का वर्णन किया गया है, इन पाँचों तरह के कर्मों को समझने के लिए हमें इस संसार और प्रकृति को समझना होगा।

गीता के अनुसार कर्म क्या है

1. अकर्म:- प्रकृति निरंतर गतिशील हैं इसमें कुछ चीजें मनुष्य के कर्म किये बिना भी चलती रहती हैं, जैसे हवा का बहना, पेड़ से पत्ते का गिरना साथ ही मनुष्य की धमनियों में जो खून बहता है, सांसे चलती है। ये प्रक्रति की व्यवस्था है इसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता अतः ऐसे कार्य जिनमें कर्ता न हो उन्हें अकर्म कहा जाता है।

2. सकाम कर्म :- जब मनुष्य किसी वस्तु या अपनी इच्छा को पाने के खातिर किसी तरह का कर्म करता है वह सकाम कर्म की श्रेणी में आता है। लेकिन श्री कृष्ण इस तरह के कर्मों का त्याग कर निष्काम कर्म के लिए बल दे रहे हैं।

3. निष्काम कर्म:- मन की पूर्णता की स्तिथि आपको निष्काम कर्म के योग्य बनाती है! जब कर्म करने के बदले में कुछ पाने या खुश होने की लालसा आपके मन में नहीं रहती पर फिर भी आप उस कर्म को करते हैं तो ये अवस्था निष्काम कर्म कहलाती है!

4. विकर्म:- विकर्म से आशय ऐसे कर्मों से हैं जो तुम्हें बेहोशी में ही रहने के लिए मजबूर करे, उदाहरण के लिए एक शराबी कहे मुझे शांति और होश नहीं चाहिए मै जैसा हूँ वैसे ही रहने दो।

तो जहाँ सकाम कर्म में आपके अन्दर यह आस होती है की कोई कर्म करूँ ताकि मेरा मन शांत हो जाये लेकिन जब आप अपनी खराब हालत में जीवन जीना ही स्वीकार करें समझ लीजियेगा ये विकर्म है।

5. निषिद्ध कर्म:- सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए जो कार्य निर्धारित किये जाते हैं उन कर्मों को करना ही निषिद्ध कर्म कहलाता है, सामजिक व्यस्था, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यस्था इत्यादि और उनके बनाये गए नियमों को मानना ही निषिद्ध कर्म कहलाता है।

 दुसरे शब्दों में कहें तो जिन कामों को हम नैतिकता कहकर मान लेते हैं या करते हैं उन्हें निषिद्ध कर्म कहा जाता है। हालाँकि अध्यात्म में और न ही गीता में इस तरह के कर्मों को महत्व दिया गया है।

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FAQ~ कर्मयोग क्या है? से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

गीता कर्मयोग श्लोक

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबंधनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर ॥

कर्मयोग श्रीमद् भागवत गीता में कौन सा अध्याय है?

भगवदगीता के तीसरे अध्याय में कर्मयोग का वर्णन किया गया है।

कर्मयोग और भक्ति योग में क्या अंतर है?

कर्मयोग और भक्ति योग मूल रूप से एक ही हैं, क्योंकि सर्वप्रथम आता है ज्ञान, और फिर यही ज्ञान जब जीवन में लागू होता है तो इसे भक्ति कहा जाता है। और भक्ति मनुष्य को कर्मयोग की तरफ ले जाती है।

कर्म योग और सांख्य योग क्या है?

सांख्य योग जिसे ज्ञान मार्ग भी कहा जाता है, स्वयं को जानकर मुक्ति की तरफ बढना ही ज्ञान मार्ग का प्रमुख संदेश है जबकि कर्मयोग हमें कर्म के माध्यम से मुक्ति की तरफ अग्रसर करता है।

अंतिम शब्द

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