कुंडलिनी शक्ति का रहस्य | जानकार चौंक जायेंगे!

वे लोग जो संसार में रहते हुए दिव्य अनुभव पाना चाहते हैं, उनके लिए कुंडलिनी योग बेहद फायदेमंद माना जाता है, आखिरकार क्या है कुंडलिनी शक्ति का रहस्य आइये इस लेख में जानते हैं।

कुंडलिनी शक्ति का रहस्य

माना जाता है तपस्या और साधना की मदद से एक आम इंसान भी अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त कर सकता है, और कुंडलिनी योग में मूलाधार चक्र जागृत करने वाले व्यक्ति को जो अनुभव होते हैं वो किसी आम व्यक्ति को नहीं होते।

कहा जाता है मूलाधार चक्र की जाग्रति होते ही इन्सान के अन्दर से सभी नकारात्मक विचार गायब हो जाते हैं, उसे ऐसा महूसस होने लगता है जैसे मानो आकाश से बिजली गिर रही है, बादल गरज रहे हैं।

हालाँकि कई लोगों के लिए इन बातों को समझना थोडा मुश्किल हो जाता है, अतः वे लोग कुंडलिनी शक्ति के पीछे का रहस्य और सच्चाई जानना चाहते हैं तो आइये जानते हैं।

कुंडलिनी शक्ति क्या है?

कुंडलिनी शक्ति से अभिप्राय इसान के भीतर मौजूद उस दिव्य दृष्टि से है जिसकी मदद से इंसान के पास संसार को देखने की ऐसी शक्ति आ जाती है जिससे उसे ध्यान के चमत्कारिक अनुभव होने लगते हैं। उसे वे सभी असाधारण चीजें दिखने लगती हैं जिन पर आम इन्सान का कभी ध्यान नहीं जाता।’

कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया 7 चक्रों में पूर्ण होती है पहला चक्र मूलाधार होता है जो मनुष्य के जननांग से शुरू होता है। उसके बाद शरीर के उपरी भाग नाभि को स्वाधिधिष्ठान कहा जाता है फिर मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और अंतिम चक्र सहस्त्रार तक आते आते मनुष्य आत्मज्ञानी हो जाता है।

कुंडलनी शक्ति के लाभ

माना जाता है जिस इंसान के भीतर कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है उसका आत्मविश्वास बढ़ जाता है, उसके भीतर से सभी नेगेटिव वाइब्स दूर हो जाती हैं। इन 7 चक्रों में मनुष्य को अलग अलग अनुभव होते हैं।

  1. पहले चक्र में मनुष्य की मूल आवश्यकताएं पूर्ण होती है।
  2. अगले चक्र में जीने वाले व्यक्ति के भीतर से रचनात्मकता बढ़ जाती है।
  3. फिर आगे मनुष्य में आत्मविश्वास बढ़ता है।
  4. चौथे चक्र में मनुष्य के भीतर प्रेम जाग्रत होता है।
  5. पांचवे चक्र में व्यक्ति को प्रभावशाली वाणी प्राप्त होती है।
  6. फिर छटे चक्र तक आते आते उसे बहुत सारी शक्तियाँ मिलती हैं।
  7. अंततः उसे आत्मज्ञान प्राप्त हो जाता है।

तो इन सभी फायदों को जान लेने के बाद लोग कुंडलिनी शक्ति जागृत करने के लिए ध्यान की क्रिया में लम्बे समय तक एक निश्चित विधि में बैठ जाता है। हालाँकि इससे उसे कितना लाभ होता है, और इस बात में कितनी सच्चाई है। इसे जानने के बाद कुंडलिनी शक्ति जागृत करने पर विचार कर सकते हैं।

कुंडलिनी शक्ति का रहस्य

प्रायः कुंडलिनी योग के 7 चक्रों को हम ऐसे देखते हैं मानों वो कोई भौतिक या शारीरिक चक्र हो। हमें लगता है कुंडलिनी जागरण की शुरुवात मूलाधार चक्र से होती है और जैसे जैसे हम ऊपर की ओर बढ़ते हैं तो हमें इसके शारीरिक और मानसिक लाभ मिलने शुरू हो जाते हैं।

कई लोग कहते हैं कुंडलिनी जागृत होने पर शरीर में पॉजिटिव वाइब्स आती हैं, सुरसुरी होने लगती हैं और मनुष्य को दिव्य अहसास होने लगते हैं।

पर वास्तव में ये मात्र अन्धविश्वास है, आज बाजार में कई ऐसे तथाकथित धार्मिक लोग और गुरु बैठे हुए हैं जो कुंडलिनी योग के नाम पर लोगों को डराते हैं, धमकाते हैं और दुष्प्रचार करते हैं।

ऐसे लोग कहते हैं कुंडलिनी शक्ति अर्जित करनी है तो पहले तुम्हें गुरु की शरण में आना होगा, तमाम तरह की विधियाँ अपनानी होगी और फिर आपको अचानक से दिव्य ज्ञान होगा आपको ऐसे अनुभव होंगे जो जीवन में कभी नहीं हुए। और फिर लोग इन्हीं की बातों पर आकर फँस जाते हैं।

अब सवाल आता है कुंडलिनी योग में फिर 7 चक्रों का क्या महत्व है? और एक आम इन्सान के लिए कुंडलिनी शक्ति जागृत करने का क्या तरीका है?

तो बता दें कुंडलिनी योग के 7 चक्र हमारी मन अर्थात चेतना की स्तिथि को दर्शाते हैं, कुंडलिनी शक्ति में जो पहला चक्र मूलाधार है, वह जननांग की तरफ इशारा करते हुए वह हमारे मन की पाशविकता को दर्शाता है। वह बताता है की प्रकृतिक रूप से हम सभी जानवर की तरह ही जीते हैं।

हमारी आदतें, सोच और हमारे काम, इच्छाएं सब एक जंगली जानवर की भाँती ही हैं, पशु को भी भोजन चाहिए हमें भी चाहिए, पशु में भी वासना उठती है, हममें भी तीव्र वासना का संचार होता है, जंगल में पशु भी ताकत और बल के लिए लड़ते हैं, मनुष्य में भी यही भावना होती है।

पशु भी खुद के लिए और अपनों के लिए जीवन जीता है एक इन्सान भी अपने और अपने परिवार के खातिर जीवन जीता है।

इसलिए देखा जाए तो मूलाधार चक्र हमें बता रहा है की मूल रूप से हमारा मन हमें एक पशु की तरह जीने पर मजबूर करता है।

भले इंसान के दो हाथ दो पैर हैं लेकिन अधिकांश लोगों का जीवन एक पशु की भाँती ही बीतता है, इसलिए कुंडलिनी योग का अगला चक्र स्वाधिधिष्ठान है जो की नाभि की तरफ होता है, वो हमें संदेश देता है की अपने पाशविक जीवन से थोडा ऊपर उठो।

तुम्हें यह शोभा नहीं देता की तुम पशु की भाँती जीवन जियो तुम इंसान हो। क्या तुम्हारे जीवन में प्रेम, करुणा, सच्चाई है?

यदि आपके कर्मों में यह नहीं है और सिर्फ आप प्रकृति के बहाव में जीते हैं जैसा की अधिकांश लोग जीवन जीते हैं। उन्हें कभी आलस्य आता है, कभी डर लगता है तो कभी वासना आती है जैसा प्रकृति उनसे करवाना चाहती है वो उसी की तरफ चल देते हैं।

इसलिए कुंडलिनी योग के चक्र हमें संदेश देते हैं की ऊपर की तरफ बढ़ो, बढ़ते जाओ बढ़ते जाओ, और एक चक्र,दो चक्र, तीन चक्र और एक दिन अततः सांतवे चक्र तक पहुँचने का मतलब यही है की अब तुम सभी चक्रों से बाहर आ गए।

अब आपको किसी विधि की कोई आवश्यकता नहीं आपको अब जीवन जीने के लिए चेतना यानि मन की भी जरूरत नहीं क्योंकि अब आप सच्चाई को समर्पित हो गए।

इससे आप समझ सकते हैं की कुंडलिनी योग में यह सभी चक्र सांकेतिक हैं जो मनुष्य की चेतना को ऊँचा उठाते हैं।

वास्तव में भीतर कोई ऐसे चक्र नहीं होते, अगर आप इंसान की सरंचना को समझने के लिए विज्ञान को पढ़ें तो आपको ऐसा ज्ञान नहीं मिलेगा। पर चूँकि हम इन्सान मन में जीते हैं, अतः यही मन छोटी चीजों में न फंसा रह जाये इसके लिए इन चक्रों का निर्माण किया गया है।

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अंतिम शब्द

 

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात कुंडलिनी शक्ति का रहस्य आप भली भाँती जान चुके होंगे और आपको इसके यथार्थ से परिचित होने का मौका मिला होगा। यदि इस लेख से जीवन में कुछ सच्चाई और स्पष्टता आई है तो इस लेख को सोशल मीडिया पर शेयर करना तो बनता है।

 

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