हम अक्सर अपने Emotions को (भावनाओं को) प्रेम कहते हैं, हमें यदि किसी विशेष तरह की क्रिया करने से या व्यवहार करने में मजा आता है तो हम कह देते हैं मुझे उस व्यक्ति या वस्तु से प्रेम है। क्या प्रेम एक भावना है?
पर क्या प्रेम सिर्फ एक फीलिंग है? क्या जैसे बाकी इमोशन ख़ुश होना, दु:खी होना,क्रोध,ईर्ष्या इत्यादि हमारे जीवन में आते हैं? इसी तरह प्रेम भी एक फीलिंग की तरह होता है जो कभी आता है जीवन में और कभी चला जाता है?
इसी को समझेंगे आज हम प्रेम सीखना पड़ता है, नामक इस पुस्तक के नौंवे अध्याय में, और जानेंगे सच्चे प्रेम और भावना में कितना अंतर होता है? तो आइये पढना शुरू करते हैं।
काम ऐसा चुनो जो नींद उड़ा दे
प्रश्नकर्ता: “आचार्य जी बचपन से ही मेरा किसी भी महत्वपूर्ण काम में मन नहीं लगता, जानता हूँ की वो काम करना जरुरी है पर फिर भी नींद आने लगती है”
आचार्य जी:- नींद तो आएगी ही प्राकृतिक है, भीतर बैठा अहंकार कुछ भोगना चाहता है तो कुछ और न मिले तो नींद का सुख भोगने में भी उसे बड़ा आनंद आता है, आमतौर पर हम काम ऐसा चुनते हैं जो नींद से बदतर होता है।
हमें लगता है रात को सिर्फ चोर को या डर और वासना में लिप्त इन्सान को नींद नही आती, लेकिन एक साधक भी तुम्हें दिखाई दे सकता है जो रात भर पुस्तकालय में पुस्तकों का अध्ययन कर रहा हो।
कहने का अर्थ है काम ऐसा चुनो जो तुम्हारी नींद, भूख को भुला दें, अन्यथा शरीर तो इन चीजों की मांग करेगा ही, लेकिन जीवन में कुछ तो इतना प्यारा हो जो नींद को भी अलविदा कह दे।
प्रेम और भावना में अंतर
आचार्य जी कहते हैं भावना और प्रेम दोनों में कोई समानता नहीं।
भावनाएं इस शरीर से अर्थात मिटटी से उठती है। अतः भाव रासायनिक होते हैं, इसलिए यह शरीर की आवश्यकता के अनुसार बदलते रहते हैं, कभी क्रोध आ गया, कभी कुछ खाने को मन ललचा गया, या मन में वासनाएं आ गई ये सभी फीलिंग्स इस संसार के अन्दर की है।
लेकिन प्रेम संसार से बाहर की चीज़ है, और जिसके जीवन में प्रेम है वहां भावनाओं का आकर्षण खत्म हो जाता है, क्योंकि राग और द्वेष दोनों चीजें भावनाओं में होती है लेकिन प्रेम न तो द्वेष जानता है न राग।
अगर तुम्हारी चाह है शरीर में अच्छी-अच्छी भावनाएं आ जाये, तो मार्केट में कई सरे टेबलेट्स और इंजेक्शन आते हैं जो तुरन्त तुम्हारे मूड को बदल कर जैसी चाहे वैसी फीलिंग देने को तैयार रहते हैं!
जो मारग साहब मिले, प्रेम कहावै सोय
दूसरी तरफ प्रेम चूँकि दुनिया के पार का है इसलिए उसे ज्यादा मतलब ही नहीं है इस संसार से और भावनाओं से, उसे इस पृथ्वी में रहने वाले सोनू-मोनू, अंटू बंटू से कोई मतलब ही नहीं है।
उसे प्रेम है सिर्फ ऊपर वाले यानी सत्य से, इसलिए चूँकि गंदगी और साफ़ सफाई दोनों एक साथ नहीं चल सकती, अतः ऐसा नहीं हो सकता की वो अंटू बंटू से भी प्रेम करें और परमात्मा यानी सत्य से भी।
इसलिए जहां भाव है वहां प्रेम नहीं हो सकता, लेकिन चूँकि सिनेमा और टीवी ने हमें यही सिखाया है न की ममता और प्रेम एक जैसे होते हैं, दुसरे से चिपका चिपकी करो, फलाने से सुख भोगो और उसे सुख दो यही प्रेम होता है।
लेकिन मै कहता हूँ प्रेम तो निर्मम होता है, आगे आचार्य जी प्रेम को और बारीकी से समझाते हैं।
जब सभी भावनाएं प्रेम के वश में चलती हैं?
जब व्यक्ति प्रेमी होता है तो फिर प्रेम में उसकी भावनाएं भी छाया की तरह ही उधर की ओर चलती है जहाँ प्रेम ले जाना चाहता है, अब अगर उसे क्रोध भी आएगा तो तभी, जब उसे कोई उसकी तरफ (ऊपर वाले) जाने से रोके!
उसे ममता का भाव भी आएगा पर सिर्फ उसके लिए, वो संसार में रहकर सब कुछ करेगा लेकिन लक्ष्य उसका एक रहेगा, वो अच्छे कपडे भी पहनेगा पर इसलिए नहीं दूसरों को आकर्षित करने के लिए!
बल्कि उस तक पहुचने के लिए, उसी तरह उसके लिए बढ़िया खाने से आशय क्या? जो भोजन उस तक पहुँचने के मार्ग तक ले जाये!
यानि खाना पीना, घूमना फिरना उठना बैठना सब कुछ उसका अन्य सांसारिक लोगों की तरह रहेगा! लेकिन इन सब क्रियाओं के बीच मन के केंद्र में वही रहेगा जिससे प्रेम है,
तो इस तरह आचार्य जी अंत में समझाते हैं की प्रेम और भावना दोनों अलग हैं! लेकिन जीवन में प्रेम है तो वो भावनाएं उसी तरह पीछे पीछे चलती है जैसे रेल के डिब्बे इंजन के पीछे चलते हैं!
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« बेबी – बेबी वाला प्यार Chapter 8 | Full Book Summary in Hindi
« प्रेम का नाम, हवस का काम | Chapter 7
« प्रेम की भीख नहीं मांगते, न प्रेम दया में देते हैं Chapter 6
अंतिम शब्द
तो साथियों इस तरह आचार्य जी क्या प्रेम एक भावना है? इस विषय पर बहुत सी ऐसी बातें कहते हैं जो आपको सिर्फ पूरा अध्याय पढ़ने पर ही पता चलेंगी, आप इस पुस्तक को घर बैठे आराम से पढने के लिए Amazon से ऑर्डर कर सकते हैं, अगर लेख पसंद आया है तो इसे शेयर भी कर दें!