क्या राम मांसाहारी थे| सच्चाई या फिर अफवाह

बहुत से लोग जो मांसाहार करते हैं, अगर उन्हें पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकने के लिए कहा जाए तो उनके पक्ष में यह तर्क रहता है की जब महापुरुष, ज्ञानी लोग यहाँ तक की भगवान राम माँसाहारी थे।

क्या राम मांसाहारी थे

तो आप हमें क्यों अंडे, मुर्गी-बकरे इत्यादि के मांस का सेवन करने से रोकते हैं? इस तरह के तर्क सुनकर अक्सर इंसान का दिल धक्क से रह जाता है। तो आज आपको इस प्रश्न का जवाब की क्या भगवान राम मांसाहारी थे? सीधे और सरल शब्दों में देंगे।

पर इससे पहले ऐसे लोग जो भगवान श्री राम का अनादर करते हैं उनके बारे में कुतर्क करते हैं उनके लिए यह समझना जरूरी हो जाता है?

क्या राम माँसाहारी थे?

जी नहीं, राम शाकाहारी भोजन करने वाले एक सात्विक पुरुष थे। इस बात की पुष्टि स्वयं रामायण में की गई है, आप पाएंगे चाहे राम द्वारा जंगल में 14 वर्ष का वनवास बिताना हो या फिर एक राजा के तौर पर सिंहासन पर बैठते हुए हमेशा उन्होंने कंदमूल और शाकाहारी भोजन अपनाया।

जब गुरु विश्वामित्र ताड़का का वध करने हेतु राम और लक्ष्मण को अपने साथ लेकर चलते हैं तो एक राजपुत्र होने के बाद भी दोनो भाई भोजन के लिए जंगलों में कंदमूल, (फलों) पर आश्रित रहते हैं।

उनके मन में कदापि यह भाव नहीं रहता की हम एक राजपुत्र हैं और मांसाहार का सेवन करेंगे

यही नहीं जब पिता दशरत के आदेश पर राम 14 वर्ष के वनवास हेतु वन की तरफ जाते हैं तो रास्ते में वह अपने मित्र निषादराज गुहु के राज्य से होकर गुजरते हैं तो निषादराज उन्हें अपने राज्य में रहने का आमन्त्रण देते हैं और प्रभु श्री राम विनम्रतापूर्वक मना कर देते हैं।

इस बीच जब भोजन और खातिरदारी की बात आती है तो प्रभु श्री राम स्पष्ट शब्दों में कहते हैं हमें 14 वर्षों तक मुनि वेश में मुनि के आहार (मुनि सदैव सात्विक भोजन करते हैं) पर जीवन व्यतीत करना है। अतः यह बात सुनकर मित्र निषादराज गुहू के राज्य में भी वह कंदमूल फल खाकर पत्ते, झाडफूश के बिस्तर पर विश्राम करते हैं।

हालाँकि इस बात से इनकार नहीं कर सकते की मित्र निषादराज चाहते तो हर तरह की खातिरदारी करने में सक्षम थे, पर फिर भी वह श्री राम के आदेश पर जंगल से मधुर फल लाते हैं, डोंगे में पानी भरकर उनके लिए भोजन का प्रबंध करते हैं।

इस तरह राम के जीवन की हर यात्रा में हमें वह सात्विक भोजन करते दिखाई देते हैं। पर वे लोग जो राम से विमुख हैं वे राम जैसे आदर्श व्यक्तित्व के लिए मात्र जहर उगलते हैं, उनमें कमियां और खोट निकालते हैं ताकि अपना स्वार्थ सिद्ध किया जा सके।

राम के जीवन को समझने के लिए रामायण एक श्रेष्ट ग्रन्थ है, जिसका अध्ययन करने पर ज्ञात होता है एक राम जहाँ निडरता, वीरता के सूचक हैं। वहीँ रामायण सिखाती है एक सामान्य पुरुष की भांती भाई लक्ष्मण के मूर्छित होने पर उनकी आँखों से झर झर आंसू गिरते हैं!

राम शाकाहारी थे, तो वे शिकार क्यों करते थे?

राम एक राजा, मर्यादित पुरुष होने के साथ साथ एक क्षत्रिय भी थे, जिन्होंने अपनी वीरता, श्रेष्ट धनुर्धारी कला के फलस्वरूप जीवनकाल में अनेक बड़े बड़े राक्षसों को म्रत्यु की सैय्या पर लेटाया।

राम की वीरता के अनेकों किस्से और प्रमाण रामायण में भली भाँती देखने को मिल जाते हैं, अब प्रश्न की जब वह शाकाहारी थे तो उन्हें हिरण, बाघ जैसे वन्य जानवरों को मारने की क्या आवश्यकता? 

तो जवाब है खेल या रणभूमि में विजय पाने हेतु पहले कठिन अभ्यास की आवश्यकता होती है। और आखेट करना क्षत्रियों का व्यायाम है! ताकि बलिष्ट जानवरों का संहार किया जा सके!

 अतः जिस प्रकार एक चिकित्सक को मेंढक, चूहे इत्यादि जीवों के शरीर को फाड़कर उनकी शारीरक संरचना को समझना होता है ताकि वह श्रेष्ठ डॉक्टर बनकर मरीजों का सफलतापूर्वक  इलाज कर सके।

इसका अर्थ कदापि नहीं की वह डॉक्टर माँसाहार करे! यह तो उसकी विवशता है एक प्रक्रिया है जो उसके लक्ष्य की पूर्ती में सहायक है।

उसी प्रकार राम आखेट अपने स्वाद के लिए नहीं अपितु राक्षसों को ढेर करने के लिए करते थे, जिस कार्य में अथक प्रयास और सावधानी की आवश्यकता होती है।

सोचिये एक हिरण को मारने के लिए कितनी फूर्ती, धैर्य और कुशलता की आवश्यकता होगी, यूँ ही नहीं उसका शिकार हो पाता है।

अतः वे लोग जो कहते हैं राम शिकार क्यों करते थे, उन्हें समझना चाहिए की आदिकाल में आखेट रणभूमि में दुश्मनों को ढेर करने के लिए अभ्यास का एक श्रेष्ठ तरीका माना जाता था।

पर जिन्हें स्वाद लग चुका है मांस का उनके लिए कठिन होगा इस बात को समझना पर इस तरह के कुतर्क करते रहेंगे! लेकिन इससे राम को कोई हानि नहीं होगी, अपितु नुकसान स्वयं का होगा!

भगवान श्री राम कौन हैं?

राम वो जिनके हृदय में प्रेम है, निडरता और वीरता है, राम वो जिनके जीवन में सच्चाई है और इमानदारी के प्रति समपर्ण का भाव है।

राम का सम्पूर्ण जीवन ही हमारे लिए आदर्श है, पर रामायण के मात्र अध्ययन कर लेने से और दिवाली इत्यादि त्यौहार मना लेने से और राम राम कह लेने भर से राम हमारे जीवन में नहीं आ सकते।

राम से न हमने त्याग सीखा ,न  समर्पण जाना , न  मर्यादा सीखी, और न ही कर्तव्यनिष्टता अपने जीवन में ला पाए, राम हमारे खातिर बैंकुठ लोक से इस पृथ्वी पर आ गए पर हम ऐसे लोग हैं जो फिर भी नासमझ ही रह गए।

राम के चरित्र से सीख लेकर जीवन को सार्थक बनाने की बजाय हम लोग ऐसे हैं जो कभी प्रश्न करते हैं रामसेतु कहाँ बना था? राम के पैरों की खोज देखते है! कभी उनकी खोट देखते हैं, उनमें कमियां ढूंढते हैं!

लेकिन हमारे जीवन में कितनी सच्चाई है, कितना प्रेम है, कितनी निडरता और सत्य के प्रति समर्पण है हम कभी जान नहीं पाते। और जब तक हम राम के जीवन में कमियां, बुराइयां खोजते रहेंगे तब तक स्वयं का जीवन बेहतर नहीं बना पाएंगे!

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख का अध्ययन करने के पश्चात आप समझ गए होंगे क्या राम माँसाहारी थे अथवा नहीं? आशा है इस लेख को पढ़कर हम जीवन में राम के चरित्र को समझकर उन्हें अपने जीवन में लाने का प्रयत्न करेंगे, आशा है यह लेख आपके लिए फायदेमंद साबित होगा और आप इसे शेयर भी जरुर करेंगे।

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