मन को काबू में कैसे करें? 100% कारगर उपाय जरूर आजमायें!

मन की चंचलता के बारे में हम सभी जानते हैं, मन हमेशा सही काम से बचकर इधर उधर भागने की कोशिश में जुटा रहता है, ऐसे में प्रश्न आता है की मन को काबू में कैसे करें?

मन को काबू में कैसे करें

देखिये जीवन में अगर कुछ बेहतर करना है तो मन को नियंत्रित करना अर्थात उसे वश में करने का तरीका मालूम होना चाहिए! अन्यथा बाहर से आप कुछ भी बदल लें, लेकिन अन्दर से आपका मन पहले जैसा ही है तो फिर कुछ भी नया नहीं हो सकता!

मन को सही दिशा में ले जाने के लिए उसे बदलना बेहद जरूरी है, और बिना मन को वश में किये उसे बदला नहीं जा सकता! आइये इस लेख में समझते हैं!

मन को काबू में कैसे करें? मन को वश में/नियंत्रित कैसे करें?

मन को अपना दास बनाने की इच्छा हम सभी में हैं, लेकिन इससे पहले की आपको मन को काबू करने की कुछ पुरानी विधियाँ बताई जाए, जैसे बुरी संगती से बचो, सुबह उठकर ध्यान करो, हंसो मुस्कुराओ इत्यादि!

ध्यान से पहले ज्ञान है जरूरी

सवाल आता है कौन है वह आपके भीतर जो मन को वश में करना चाहता है? कौन है इतना शक्तिशाली और विराट जो कहता है मैं मन को काबू कर अपने हिसाब से चलाना चाहता हूँ!

आप अगर उसे जान गए तो आप ये भी समझ जायेंगे की मन तो उसकी सिर्फ छाया मात्र है, अतः जो भीतर बैठा हुआ है वो जैसा है मन भी वैसा ही होगा!

अगर वो जो मन को अपने काबू में करना चाहता है वो कमजोर है तो जाहिर सी बात है मन में भी आपके डरावने विचार आयेंगे!

और वहीं खुश है तो ख़ुशी के विचार आयेंगे, अगर वह लालची है तो आपके मन को कई चीजों का लोभ होगा, अगर वह किसी से मोहित हो गया है तो आपका मन भी मोह में लिपट जायेगा!

मन को काबू करने वाला कौन है?

आपके भीतर मौजूद तमाम तरह की इच्छाएं रखने वाला, आपके मन को ही नियंत्रित करने वाला कोई और नहीं आपका अहंकार है जिसे “अहम” भी कहा जाता है!

आपके भीतर बैठा वही अहम भाव जो कहता है मुझे ये पाना है, मेरा ये खो गया, मेरे लिए वो सबसे बड़ा है इत्यादि!

अतः जब तक वह भाव भीतर है तब तक मन को काबू में रखने की इच्छा बनी रहेगी!

और वास्तव में अहम यानी अहंकार के काबू में मन आ ही नहीं सकता, क्योंकि मन कोई भौतिक चीज़ तो नहीं है, वो तो अहम् की छाया है!

अगर मैं आपसे कहूँ अपनी छाया पकड़ कर देखिये तो क्या आप उसे पकड़ पायेंगे, नहीं न

तो इसी तरह अहम की छाया है मन, अहम की स्तिथि जैसी होगी मन भी वैसा ही हो जायेगा! तो यह समझने के बाद की मन और अहम् का रिश्ता क्या है आइये जानते हैं

मन को काबू में करने की विधि

यदि आप मन में आने वाले विचारों से परेशान हैं, और उन विचारों से छुटकारा पाने हेतु मन को वश में करना चाहते हैं तो इसका एकमात्र उपाय है अपनी मान्यता को बदलना!

जैसे ही आप खुद को जो माने बैठे थे वो मानना छोड़ दोगे तो आप पायेंगे अचानक मन में से बुरे विचार भी गायब हो गए हैं!

#1. अपनी मान्यता को बदलें!

उदाहरण के लिए आप किसी बात से चिंता में डूब गये हैं अब जाहिर सी बात है मन उसी बात पर विचार करेगा!

अपनी मान्यता बदलें

अब सवाल यह नहीं की मन में आने वाले विचारों को कण्ट्रोल कैसे करें? अब आपको उस बात को समझना है, जिसने आपको चिंतित किया है!

जब आप अपनी बुद्धि का प्रयोग करके नाप तोल लोगे अच्छे से की इस बात में वाकई चिंता की आवश्यकता नहीं तो मन से विचार भी गायब हो जायेंगे!

देखा है न कई बार हम किसी बात से परेशान हो जाते हैं, लेकिन तभी कोई आकर हमें समझाता है ऐसा नहीं है जैसा तुम माने बैठे हो, बात कुछ और है तो हम तुरन्त उठ खड़े होते हैं और चिंता गायब हो जाती है!

इसी तरह देखिये जीवन में तुमने क्या माना हुआ है खुद को, अगर कमजोर माना है तो कभी तुम्हारे मन में शक्ति, ताकत के विचार नहीं आयेंगे!

#2. मन अहंकार की छाया है!

अहंकार से तात्पर्य है आपके भीतर मौजूद अहम भाव, जिसे आप मैं कहते हैं! यदि आप किसी बात को लेकर अटल हैं तो आपका मन कभी भी आपको उसके प्रति झुकने नहीं देगा!

shadow~ मन को काबू में कैसे करें

लेकिन वहीँ आप शंकित हैं, ईर्ष्यालु हैं तो मन में उसी तरह के भाव पैदा होंगे, इसलिए यह समझ लें की मेरा मन मेरे जैसा ही है, जैसा मैं हूँ मन भी वैसा ही होगा! मन वास्तव में और कुछ नहीं है!

#3. अहम् भाव को मिटा देना!

जो कहता है आज मुझे मन को नियंत्रित करना है? वही कल तक कुछ और बोलता था मुझे ये चाहिए, काश मुझे ये मौका मिल जाता इत्यादि!

है न कोई भीतर आपके बैठा जो हर दम कुछ चाहता है, उसी को अहम भाव कहा गया है! ये आज मन को नियंत्रित करने की बात कहता है, कल यही अहम भाव आपसे कुछ और कहेगा!

तो जो भी इंसान मन को वश में करना चाहता है, उसे अपने भीतर मौजूद इस अहम भाव को खत्म करना होगा, क्योंकि ये जब तक बचा हुआ है तब तक ये तो अपनी मांगे करता ही रहेगा!

और दुर्भाग्य से आप इस अहम् भाव को मरते दम तक मिटा नहीं सकते! जी हाँ और इसीलिए मनुष्य के अंतिम समय तक मन उसका इधर उधर भागता रहता है!

तो क्या इसका अर्थ है मन को भटकने से रोकने का क्यों उपाय नहीं है?

है, परन्तु इसके लिए अहम भाव को बदलना होगा!

यानी जब तक आपके भीतर मौजूद अहम भाव सही कार्य में, सही दिशा में नहीं आगे बढ़ता तब तक मन के घोड़े इधर उधर दौड़ते रहेंगे!

#4. अहम को सही दिशा में लगायें!

हमारे भीतर बैठा मैं भाव ही हमारा जीवन तय करता है, अगर  यह आलस, लोभ, दुर्बलता का प्रेमी हो गया तो फिर व्यक्ति का जीवन भी ऐसा ही हो जाता है!

लेकिन अगर अहम को सही लक्ष्य मिल गया और इसे प्रेम हो गया तो फिर जीवन भी बेहतर हो जाता है!

स्वामी विवेकानन्द, गौतम बुद्ध इत्यादि जितने भी महापुरुष हुए हैं वो भी हमारी तरह आम इंसान थे!

लेकिन उन्होंने अपने अहम भाव को सही दिशा दी, जिससे उनका मन और विचार बदले, और फिर जीवन ही बदल गया, इसलिए आज हम उनके जीवन की मिशाल देते हैं!

#5. भीतर से पूर्ण रहो!

हम हमेशा एक आंशिकता, एक खालीपन के साथ जीवन जीते हैं, यही वजह है की थोडा और थोडा और पाने की आस हममें बनी रहती है!

मन का तृप्त होना

इसी स्तिथि को अध्यात्म में अधूरा मैं कहा गया है, लेकिन जब यही मैं पूरा हो जाता है तो फिर जीवन आत्मस्थ हो जाता है!

यानि ऐसी स्तिथि जहाँ मन पूर्ण है उसे अब अंदर से कुछ पाने की आस नहीं, मन तृप्त है!

हालाँकि बाहर बाहर से शरीर को चलाने के लिए जितनी भी जरूरतें होती हैं, व्यक्ति उन्हें पूरी करने के लिए कर्म करेगा, लेकिन अन्दर से उसकी स्तिथि पूर्णता की होगी!

अन्दर से वो राजा रहेगा, भिखारी नहीं जो इस दुनिया से थोडा सा इज्जत, पैसा इत्यादि पाने की आस रखे!

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अंतिम शब्द

तो साथियों उम्मीद है मन को काबू में कैसे करें? यह पूछकर हमारे भीतर बैठे उस दुश्मन के बारे में आप जान गए होंगे, आशा है यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा और आप अपने जीवन में इसका मनन भी करेंगे, कोई प्रश्न है तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में शेयर भी कर दें!

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