मन को पवित्र कैसे करें? मन की शांति और शुद्धता के उपाय

किसी के हृदय में कृष्ण वास करते हैं तो किसी का मन इतना कपटी, दुर्बल होता है की वह व्यक्ति स्वयं की नजरों में ही नीचे गिर जाता है, अपनी इसी हालत को ठीक करने के लिए लोग जानना चाहते हैं की मन को पवित्र कैसे करें?

मन को पवित्र कैसे करें?

अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी है अच्छे विचारों का होंना, लेकिन जब मन तमाम तरह की बुरी आदतों से जकड़ा हुआ हो तो फिर वह होश में रहकर फैसले नहीं कर पाता! इसलिए सही कर्म करने के लिए मन की शुद्धि जरूरी है!

अब बाहरी तौर पर तो हम अपने शरीर को या कपड़ों को साफ सुथरे रखकर स्वस्थ रख सकते हैं लेकिन आंतरिक तौर पर शुद्ध होना इतना आसान नहीं हैं उसके लिए श्रम लगता है, समपर्ण लगता है और सही निर्णय लेने पड़ते हैं!

पवित्र मन क्या है?

मन की वह स्तिथि जब न कुछ पाने की लालसा हो न कुछ खोने का भय रहे यही पवित्रता है, अर्थात जब मन कपटी, कुविचारों से दूर रहकर स्थिर हो जाये इसी दशा को पवित्र मन कहा गया है!

पर प्रायः मन हमारा ऐसा होता नहीं है, मन में हजारों विचार चलते रहते हैं और हमें हमारी वृतियां (आदतें) जहाँ ले जाती हैं हम उसी दिशा में आगे बढ़ते हैं!

एक सहज जीवन जीने के लिए मन की पवित्रता बेहद आवश्यक है, बिना मन के शुद्ध हुए बगैर हम बाहरी जीवन में कुछ भी हासिल कर लें या कितनी ही सफाई कर लें!

सब कुछ व्यर्थ ही रहेगा! पर चूँकि मन में सभी मनुष्यों के आलस, मोह, लोभ, वासना जैसी वृतियां पाई जाती हैं अगर इनमें से आप भी अपनी किसी वृति से परेशान हैं तो आपको जरुर उसी समबन्ध में विचार आते होंगे!

उदाहरण के लिए आप लोभी व्यक्ति हैं तो हर दम आपके दिमाग में अधिक से अधिक पैसे कमाने के ख्याल आयेंगे, वहीं अगर आप वासना से ग्रस्त व्यक्ति हैं तो आपके दिमाग में दूसरे लिंग के प्रति आकर्षित होने के विचार आते रहेंगे!

मन को पवित्र कैसे करें- पैसा

अतः किसी भी विचार को खत्म करने के लिए आपको वृति को मिटाना होगा, यदि आपमें लोभ या वासना की वृति खत्म हो जाये या फिर बिलकुल कम हो जाये और आप अपना ध्यान किसी महत्वपूर्ण कार्य में लगा दें तो आप पाएंगे यह विचार स्वतः ही खत्म होते जा रहे हैं!

इस तरह मन जब भाँती-भाँती की वृतियों से व्यक्ति अशांत नहीं होता तो इसी अवस्था को मन की शुद्धता कहकर सम्बोधित किया गया है!

मन को पवित्र कैसे करें?

मन को शुद्ध करने की एकमात्र विधि है, मन को अहंकार से मुक्त करना! देखिये हमारा मन जिसे अहम कहा जाता है यह इस दुनिया में कभी लोगों से तो कभी वस्तुओं या चीजों से रिश्ते बनाता है!

और अंततः इन्हीं रिश्तों को बनाने के कारण वह दु:खी भी होता है, यही नहीं आपके मन में लालच, डर या वासना भी इसलिए आती है क्योंकि आप किसी दूसरी चीज़ से समबन्धित हो जाते हैं!

अतः इस दुनिया में अहम जिस किसी के साथ भी जुड़ता है यानि सम्बन्ध बनाता है उसी चीज़ को वह मलिन कर देता है, अगर मन विचारों के साथ जुड़ जाता है तो विचार गंदे हो जाते हैं, वह किसी व्यक्ति के साथ जुड़ता है तो उस व्यक्ति को गंदा कर देता है!

देखिये न मन जिस भी चीज़ के साथ जुड़ेगा वो गंदी होगी ही, उदाहरण के लिए अहम का सीधा सम्बन्ध घर से रहता है इसलिए घर में कितनी भी सफाई कर लो पर घर पूरी तरह साफ़ नहीं होता!

घर में गंदगी

पर अहम् जंगल से जुड़ा नहीं होता इसलिए वहां झाड़ू पोछा न होने के बवसाफ सफाई रहती है!

अब चूँकि जब तक इंसान जीवित है अहम किसी वस्तु से या व्यक्ति से रिश्ता यानि सम्बन्ध तो बनाएगा ही, लेकिन मन को पवित्र रखने के लिए उसे हर उस चीज़ से अपना सम्बन्ध तोडना होगा जिससे उसका मन मैला होता है!

अगर किसी व्यक्ति से रिश्ता रखने पर आपका मन कमजोर, दुर्बल होता है उसमें घृणा का भाव आता है या फिर लालच और मोह या निर्भरता बढती है तो क्या आप उस वस्तु या व्यक्ति से रिश्ता बनायेंगे? नहीं न!

और दूसरी तरफ कोई ऐसी किताब, व्यक्ति या समूह है जिसके पास रहने पर आपके मन से कपट, लालच,भय कम होता है तो आप ऐसे व्यक्ति की संगत करेंगे न, जिससे आपका मन शुद्ध होता जायेगा!

मन में गंदा विचार क्यों आता है| मन को शुद्ध कैसे करें?

मन में बुरे विचारों के आने की एक वजह होती है, इसलिए कहा गया है की बुरे विचार को मत देखिये बल्कि देखिये उस विचार का स्त्रोत क्या है? विचार के पीछे कौन बैठा है?

देखिये पानी तो पानी है लेकिन एक पानी का स्त्रोत है गंगा और दुसरे पानी का स्त्रोत है गंदा नाला!

तो पानी की भाँती विचार तो आयेंगे ही लेकिन देखिये न जब विचार आ रहे हैं तो किस भावना से आ रहे है?

उदाहरण के लिए जब विचार कहता है मुझे घर चाहिए तो पीछे विचार करने वाला डर है. जिसे सुरक्षा चाहिए!

इसी तरह जब आप कहते हैं मुझे पैसा कमाना है, तो आपके विचार का स्त्रोत क्या है की मैं निर्धन हूँ या मेरे पास पैसे की कमी है!

अतः जब आप खुद को कमजोर, दुर्बल होकर, निर्धन इत्यादि मानकर कोई विचार करते हैं तो आपके सारे विचार गंदे नाले के समान हैं! और दुर्भाग्यवश हमारे सारे विचार इसी तरह के होते हैं जिनमें कुछ कामना छिपी रहती है!

लेकिन जब आप स्वयं को न दुर्बल मानते हैं न शक्तिशाली और फिर विचार करते हैं तो यह सहज विचार हैं, और ऋषि मुनि हमें इसी तरह विचार करने को कहते हैं! यही विचार शुद्ध हैं!

इस तरह विचारने पर मन निर्मल रहता है क्योंकि उसका स्त्रोत शुद्ध है!

मन को पवित्र करने का मन्त्र

मन को पवित्र करने की कोई विधि या मन्त्र नहीं है, ऐसा कोई भी श्लोक या मन्त्र नहीं है जिसका पाठ करने से आपके जीवन से अचानक लालच, डर, वासना, इत्यादि गायब हो जाये!

हालाँकि यह निश्चित रूप से सम्भव है की आप गायत्री मन्त्र या किसी श्लोक को जपते हुए थोड़ी देर के लिए ध्यानस्थ हो जाये, इससे जरुर आपके मन से वो कुविचार गायब हो जायेंगे!

लेकिन एक दो घंटे बाद फिर वही विचार, वही जीवनशैली आपकी रहेगी और फिर से आप उन्हीं कार्यों को उसी माहौल में आप करेंगे तो मन को भला आप कितना बचा पाएंगे बाहर के माहौल से छूने से!

इसलिए मन को पवित्र करना है तो देखिये जिन्दगी में कितना लालच है, कितना कपट है, कितना झूठ है और फिर जो आपको इमानदारी से दिखाई देता है उसे किनारा करते रहिये मन पवित्र होता जाएगा!

अन्यथा आपकी सारी कोशिशें मन को पवित्र करने की व्यर्थ जाएँगी!

मन को अशांत करने वाले कामों से कैसे बचें?

यदि जीवन में बहुत अशांति है और आपको पता भी है की कुछ कार्य हैं जिनको करना भी जरूरी है लेकिन इनसे मन भी निराश, उदास या बुझा बुझा रहता है!

तो सबसे पहले जरूरी है की आप उन कार्यों की सूची बनाएं जो आपको दैनिक जीवन में करने ही पड़ते हैं, अब उनमें से देखिये कौन से ऐसे कार्य हैं जिनमे आपका समय भी खराब होता है और मन में अशांति भी होती है!

यह काम घर में बच्चों या बीवी या अन्य सदस्यों के साथ उलझना हो सकता है या फिर गलत दोस्तों के साथ समय बिताना हो सकता है या फिर इन्टरनेट पर वीडियोस या गेम्स खेलना और गोशिप करना इत्यादि हो सकता है!

इस तरह इमानदारी से मन को अशांति तक ले जाने वाले कार्यों की सूची बनाइए और फिर धीरे धीरे समझदारी के साथ और थोड़ी सी इच्छाशक्ति के साथ उन कार्यों को छोड़ना शुरू कीजिये जो आपके मन को अशांत करती हैं, मन में हावी रखती है!

और उस काम की जगह जिन्दगी में कुछ बेहतर काम को लाइए जिससे शांति बनी रहे और आपको खालीपन भी महसूस न हो!

इस तरह आप पायेंगे धीरे धीरे आपने जिन्दगी में सारे व्यर्थ के काम छोड़ दिए हैं और आपका मन अब शांति की तरफ बढ़ता जा रहा है!

मन में अच्छे विचार कैसे लायें?

जीवन में अगर दिन भर फ़ालतू के विचार आते हैं, अतीत की यादें आती हैं तो इससे बचने मन को पवित्र कैसे करें? का एकमात्र उपाय है जिन्दगी में किसी सही काम को पकड़कर उस काम में अपनी सारी शक्ति और श्रम को झोंक देना!

जब आप किसी सही काम में अपनी उर्जा, समय लगाते हैं तो जो फ़ालतू के विचार दिमाग में घूमते रहते हैं वो या तो आना बंद हो जाते हैं या फिर आप जिस काम में लगे हैं, उसी काम में बेहतर होने के विचार आते हैं!

अर्थात आप या तो निर्विचार हो जाते हैं या फिर जो विचार आपके मस्तिष्क में आते हैं वो सुविचार होते हैं! पर अगर आप दिन भर खाली बैठे हैं और अनाप शनाप विचार आपके दिमाग में आ रहे हैं तो फिर ऐसा होना लाजिमी है!

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मन को पवित्र करने के तरीके

1. मन की अशांति/अपवित्रता का कारण जानें

जब भी दिमाग में फ़ालतू के ख्याल आते हैं और उनके आने से हम परेशान होते हैं तो इसकी वजह जानने का प्रयास नहीं करते, हम बस उपरी सतह पर उपचार कर देते हैं!

 उदाहरण के लिए आज आप टेंशन में हैं तो आप ये नहीं करेंगे की मैं इस टेंशन की वजह जानूं और फिर इसे खत्म करूँ उल्टा लोग दो पेग लगाकर सो जाते हैं! और फिर कल से वही सिरदर्द और समस्या बनी रहती है!

नशा

पर अध्यात्म कहता है की अगर आपका मन परेशान हैं कुछ विचार बार बार आ रहे हैं तो आप उसकी जड़ में जाइए, उदाहरण के लिए आपको अतीत की यादें दिमाग में घूमती हैं और आपको लगता हैं वो यादें बुरी है उनसे आपको दुःख पहुचता है!

तो ऐसी स्तिथि में सबसे पहले समझिये की वो यादें या कार्य जो आपने पहले किये थे वो बुरे हैं वाकई? या फिर ऐसा होना सामान्य है और आप बेवजह उस चीज़ को बुरा माने बैठे हैं!

अगर वो वास्तव में बुरा था तो उसे छोडिये और अगर ठीक था लेकिन आपने गलत माना था तो अब आप उस विचार से बाहर आ जायेंगे!

2. चीजों को मानें नहीं बल्कि जानें

जी हाँ, बहुत सी ऐसी बातें मन की शुद्धता में अवरोध बनती हैं और दुःख का कारण बनती हैं जिन्हें हम परिवार या समाज के कहने पर मान लेते हैं, पर उन बातों की हकीकत को कभी परखते नहीं!

उदाहरण के लिए हम यह सुन लेते हैं की शादी करना जरूरी है, पैसे कमाना, स्कूल जाना, बड़ा घर या गाडी होना इत्यादि जरूरी है पर बिना यह कोशिश किये की इन बातों का हमारी जिन्दगी में कितना महत्व है! क्या इन बातों से इंसान सुखी रहता है या फिर दुखी!

हम कभी जानने का प्रयास नहीं करते! अध्यात्म कहता है इन्सान के पास समझने, प्रश्न करने की शक्ति होती है, इसका उपयोग करो!

3. मन की पवित्रता को समझें

जिस प्रकार साफ, निर्मल पानी को देखे या पिए बगैर आप विषैले और स्वच्छ जल में क्या अंतर होता है नहीं बता सकते!

उसी प्रकार बिना मन को पवित्र किये आप यह नहीं जान पायेंगे की जब मन निर्मल होता है तो इंसान क्या महसूस करता है या अनुभव करता है!

मन की पवित्रता का अर्थ जानने के बाद और यह समझने के बाद की आखिर मन मेरा कपटी या अपवित्र क्यों है अब बारी आती है मन को पवित्रता की तरफ ले जाने की, और यही पर अभ्यास की सख्त जरूरत होती है!

उदाहरण के लिए सही काम को करने में आलस आता है, या फिर आपका मन वासना की आग में दूसरे के शरीर से सम्बन्ध बनाने के ख्याल लाता रहता है तो आपको दोनों ही स्तिथियों में मन को शुद्ध करने के लिए ऐसे निर्णय लेने होंगे जिससे आपका मन सही दिशा की तरफ बढ़ सके!

यदि आपकी संगत ऐसी हैं, आपने खुद को इस तरह ढाल लिया है की कुछ हो जाये आप सही कर्म से बचेंगे तो फिर मन ऐसा ही बना रहेगा, जैसा अशुद्ध अभी तक वह होता आया है!

4. सही संगत है बेहद आवश्यक

किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए उसी क्षेत्र के लोगों से सीखना पड़ता है, फिर उसमें काम करना होता है उसी तरह मन की पवित्रता के लिए आपको ऐसे लोगों को चुनना होगा जो निष्कपटी हैं!

मन पवित्र करने के लिए संगती

वे लोग जिन्होंने अपने मन को पवित्र कर, खुद को जीवन में ऊँचा उठाया उनकी शरण में आपको जाना चाहिए, स्वानी विवेकानन्द, संत कबीर, गुरु नानक न जाने कितने महापुरुष इस धरती पर पैदा हुए जिनकी संगत करके मन निष्पापी हो जाता है!

उनकी किताबें एक बेहतरीन माध्यम हैं उनके समीप आने के लिए, अन्यथा आपके पास ये विकल्प हमेशा है की आप दोस्तों के साथ रहें, पार्टी करें या फिर मन को पवित्रता की तरफ ले जाने वाले लोगों के समीप आयें!

5.  समय, श्रम और अभ्यास है जरूरी

देखिये हम इस पृथ्वी पर इंसान के रूप में पैदा हुए हैं लेकिन हमारी वृतियां सभी पशुओं की तरह ही है! हमें भूख लगती हैं, लालच आता है, वासना उठती है, क्रोध आता है, मोह होता है यह सभी जानवरों में भी होता है!

सही अभ्यास है बेहद जरूरी

और दुर्भाग्यवश इंसान इन्हीं वृतियों के आवेश में जीवन जीता है और कर्म करता है लेकिन उसे लगता है मैं कुछ ख़ास हूँ! नहीं अगर आप वैसे ही रह गए जैसा एक पशु होता है जो अपनी वृतियों के लिए ही जीता है तो आपमें उसमें कोई अंतर हुआ क्या?

सिर्फ आपने कपडे पहन लिए इसका मतलब यह नहीं की आप जानवर से अलग हो गए, आप अलग तब हैं जब आपके भीतर प्रेम, करुणा आये और आप शरीर से नहीं अपितु आत्मा के बल पर जीवन जिए!

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस पोस्ट को पढने के पश्चात पवित्र मन क्या है? मन को पवित्र कैसे करें? अब आप भली भांति जान गए होंगे, मन की पवित्रता के विषय में इस लेख को पढने के बाद अपने विचारों को कमेन्ट सेक्शन में जरुर सांझा करें!

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