मुक्ति क्या है| मुक्ति क्यों जरूरी है? ~ Biosinhindi

जीवन से मुक्ति या फिर जीवन में मुक्ति इन दोनों में से कौन सी चीज़ आपको चाहिए? इसका चुनाव आप तभी कर पाएंगे जब आपको मुक्ति क्या है? इसका वास्तविक अर्थ मालूम होगा।

मुक्ति क्या है

अधिकांश लोगों को लगता है म्रत्यु और मुक्ति एक ही हैं इसलिए आदमी के मरने से उसे मुक्ति मिल जाती है, पर जीते जी अगर आपको इस संसार में खुलकर जीना है तो मुक्ति तो आपको यहीं चाहिए होगी।

अब मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? और वास्तव में मुक्ति पाने से क्या आशय है? यह आपको इस लेख को ध्यानपूर्वक पढने से ही मालूम होगा।

मुक्ति क्या है?

मुक्ति से आशय आजादी से है, यानि वह जो किसी पर निर्भर, निराश्रित नहीं है वह मुक्ति कहलाती है। और विशेष बात यह है की मुक्त होना मनुष्य का स्वभाव है, मनुष्य के जन्म लेते ही मुक्ति की आंकाक्षा (चाहत) जन्म लेती है।

इसलिए गुलामी सहना, बंधन में रहना कोई भी नहीं चाहता। पर उम्र बढ़ने के साथ हमारी चेतना (मन) पर हमारे, संस्कार, समाज, परिवार इत्यादि अपने विचार थोप देते हैं। जिससे हमें गुलामी का जीवन जीते हैं अतः फिर मन में एक बेचैनी, पीड़ा होती है जो हमें लगातार सन्देश देती है की इस गुलामी से बाहर निकलो।

इसलिए मुक्त होना स्त्री, पुरुष, बच्चे -बड़े सभी का अधिकार है और यह मुक्ति अगर मनुष्य को जीते जी नहीं मिल पाती तो फिर वह बेचैनी, कष्ट में इस जीवन को व्यतीत करता है।

और संभव है अगर आप भी अभी किसी तरह के दुःख या परेशानी में है तो जाहिर हैं आप किसी तरह के पारिवारिक या सामाजिक बंधन में हैं और आपकी चेतना आजादी के लिए छटपटा रही है।

ध्यान दें मुक्ति से तात्पर्य किसी खास प्रकार के आचरण से नहीं है यानी विशिष्ट तरह के कार्यों को करना, सोचना बिलकुल मुक्ति नहीं कहलाता।

बल्कि मुक्ति का अर्थ ध्यान से है, अर्थता जानना ही मुक्ति  है जो कुछ भी चीज़ आपने समझी नहीं, जानी नहीं लेकिन वह आपने मान ली तभी तुम्हारी आजादी छिन गई।

देखा होगा पहले के समय में आदिमानव बिजली कड़कते ही सामने सर झुका लेता था क्योंकि न तो उसको विज्ञान का बोध था न इस शरीर का पर आज हम जान सकते हैं इसलिए बिजली कडकने से डरते नहीं!

बंधन क्या है?

किसी विषय या वस्तु को जाने समझे बगैर सुनी सुनाई बातों पर यकीं कर उनका पालन करना ही बंधन है, दुसरे शब्दों में दूसरों के बताये ढर्रे पर अपना जीवन जीना ही दासता या बंधन है। बंधन और कुछ नहीं अज्ञानता का दूसरा नाम हैं।

और विशेष बात यह है की एक आम सांसारिक मनुष्य बंधन में ही जीता है। बचपन से उसे कुछ बातें बता दी जाती हैं और आँख मूंदकर फिर वह उन बातों पर भरोसा कर जीवन जीने लगता है।

  • जैसे तय उम्र और कक्षा तक आपको पढ़ाई करनी है,
  • फिर नौकरी करनी है,
  • बच्चे पैदा करने हैं!
  • फिर उन्हें इस तरह बड़ा करना है
  • कुछ जिम्मेदारी के खातिर कुछ काम हैं जो करने ही पड़ेंगे! इत्यादि!
  • किसकी बात माननी चाहिए?
  • किसका आदर करना चाहिए?

पर मुक्ति का अर्थ है जीवन का बारीकी से अन्वेषण (एक्सप्लोरेशन) करना याने जानना ताकि इसी संसार में रहते हुए हम एक सही जीवन जी सके। मुक्ति आपको बताती है यूँ ही नहीं किसी बात को मान नहीं लेना है, समझना है।

  • समझूं तो आखिर यह धर्म क्या है? इश्वर क्या है?
  • समझूं तो करियर का मतलब क्या है?
  • समझूं तो क्यों शादी करना जरूरी है या नहीं?
  • समझूं तो पैसा नाम की चीज़ क्या है? कितना कमाना है औअर कहाँ खर्च करना है?
  • सम्झूं तो जीवन क्या है, मृत्यु क्या है?
  • क्या चीज़ पाप है? ये सिर्फ मानना नहीं है समझूंगा पहले
  • उम्र के अनुसार किसी की बात मानें या सच्चाई के हिसाब से?

और फिर जो लोग इतना जानने की चेष्टा नहीं रखते या आलस करते हैं वे एक ढर्राबद्ध जीवन जीने लगते हैं, दुर्भाग्यवश समाज में अधिकांश लोग ऐसे ही हैं!

लेकिन मुक्ति कहती है तुम होश में या चैतन्य होकर जियो यानी पहले जानो, समझो तब निर्णय लो। ध्यान दें

मुक्ति ये नहीं कहती की जो समाज आपको कह रहा है, उसका उल्टा जीवन जियो। क्योंकि ऐसा करने पर आप एक दूसरे यानि विपरीत ढर्रे पर जीवन जीना शुरू कर दोगे, लेकिन मुक्ति का अर्थ है किसी ढर्रे को न मान लेना।

हम गुलामी का जीवन क्यों जीते हैं?

आज वह दौर नहीं जब कोई हमें बेड़ियाँ पहनाकर गुलाम बनाये, आज मामला उल्टा है आज मनुष्य को गुलाम बनाने के लिए उसे लुभाया जाता है, आकर्षित किया जाता है ताकि वह प्यारी बातें सुनकर जाल में फंस सके। और यह मत समझिएगा गुलाम सिर्फ वही है जो किसी की नौकरी करे नहीं गुलाम हर वो क्यक्ति है जो अपनी नैतिक जिम्मेदारियों के तले मजबूरी से कार्य कर रहा है।

1. अच्छा होने की उम्मीद

मनुष्य चूँकि अज्ञानता में जीता है, हर पल हर समय वह कोई कार्य इसीलिए करता है ताकि भविष्य में कुछ अच्छा हो और उसकी खराब स्तिथि ठीक हो सके।इसी के आधार पर मनुष्य नौकरी, शादी इत्यादि का फैसला लेता है! पर समझिएगा उसके यही निर्णय बाद में उसी बन्धनों में फंसने के लिए मजबूर करते हैं!

 2. सुरक्षा

मनुष्य अपने कई फैसले सुरक्षा की खातिर भी लेता है, चाहे पैसे से सुरक्षा हो या फिर किसी इंसान से, और जब उसे अपनी सुरक्षा के लिए किसी बाहरी चीज़ पर निर्भर होता है तो फिर उसे उसी बाहरी चीज़ के खातिर गुलाम होना पड़ता है।

उदाहरण के लिए आपके नजदीकी कोई व्यक्ति है जिसका आपके मौहल्ले में दबदबा है अब अगर आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी वह व्यक्ति लेता है तो जाहिर है आपको उसकी कही गई बातों को भी मानना पड़ेगा!

3. डर

जिन्दगी में जब जब इंसान खुद को बचाने यानि डर की खातिर फैसले लेता है तो वही निर्णय उसके लिए बंधन का कारण बनता है।

 जैसे उदाहरण के लिए अगर अधिक पैसे कमाने के खातिर अगर इन्सान किसी ऐसी जॉब को करता है जिसमें उसे दिन रात कठिन मेहनत करनी पड़ती है तो जाहिर है उसे बॉस का गुलाम तो रहना ही होगा।

4. निर्भरता

यही नहीं समाज में सामान्यतया एक इंसान अपने परिवार, प्रेमी या फिर किसी व्यक्ति पर अपने किसी कार्य हेतु या इच्छा की पूर्ती से निर्भर तो होता ही है।

लेकिन अक्सर यह निर्भरता उसके बंधन का कारण बन जाती है, आपने देखा होगा जब हम किसी पर निर्भर रहते हैं तो वह हमें दबाने की या अपनी इlच्छाएं पूरी करने की कोशिश करता है ये बात आप अपने परिवार में ही देख सकते हैं!

क्या मुक्ति जरूरी है?

बिलकुल एक सहज, सरल, आनंदमई जीवन जीने हेतु मुक्ति बेहद आवश्यक है, और अगर आप मुक्त नहीं है तो लगातार आपकी चेतना आपको कष्ट, पीड़ा देकर अहसास करायेगी की वाकई तुम बंधन में हो, और अगर आप तैयार रहें उन बन्धनों को त्यागने के लिए तो आप मुक्त हो जायेंगे।

लेकिन दुर्भाग्यवश हम अपनी दुर्गति कराकर खुद ही बन्धनों के लिए खुद को आमंत्रित करते हैं, कोई व्यक्ति बंधन में है और दुःख झेल रहा है तो वह बंधन का मूल कारण नहीं समझेगा वो दुःख में होगा तो शराब या नशा कर लेगा।

 जिससे थोड़ी देर के लिए वह अपनी स्तिथि से बेहोश हो जायेगा! यही नहीं शराब,ड्रग्स का ही नहीं लोग और भी तरह के नशे करते हैं अपने दुःख या पीड़ा को थोड़ी देर छुपाने के लिए वह कहीं घूमने निकल पड़ते हैं, या कहीं कुछ खा लेते हैं इत्यादी।

पर ऐसा अगर आप भी कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए जिन्दगी आपको जगाना चाहती है यह बतलाकर की कहीं गलत जगह पर आपका जीवन जा रहा है रुकिए जरा! और अपने बंधन से बाहर आ जाइए।

लेकिन चूँकि अधिकांश लोग मन की इस बेचैनी को जीवन का अहम हिस्सा मानकर आगे बढ़ते रहते हैं और और नए तरह के बन्धनों में फंस जाते हैं।

और फिर ऐसे ही उनकी मृत्यु हो जाती है,लेकिन इससे पहले मृत्यु करीब आ जाये आपको अपने बचे हुए जीवन को खुलकर जीना है तो बन्धनों का त्याग तो करना ही पड़ेगा।

मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है?

मुक्ति और मोक्ष में परस्पर दोनों में कोई अन्तर नहीं है मुक्ति और मोक्ष दोनों का लक्ष्य जन्म मरण के इस बंधन से आजादी पाना है, मुक्ति और मोक्ष दोनों सुख दुःख से परे हैं, आत्मा ही सर्वोच्च है, अजर है अमर है, अविनाशी है।

जिसे इस बात का अहसास हो जाता है वह इस जीवन के सभी सुख, दुखों के चक्र से बाहर आ जाता है क्योंकि सुख दुःख दोनों प्रक्रति के भीतर हैं जबकि आत्मा मुक्त है प्रकृति से परे है।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख के माध्यम से हमने मुक्ति क्या है? सरल और स्पष्ट शब्दों में आपको बताया है,मुक्ति का यह अर्थ जानकार आपके लिए यह लेख फायदेमंद साबित हुआ होगा तो आप इसे अधिक से अधिक दोस्तों के बीच शेयर भी करेंगे।

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