पारम्परिक नजरिये से देखा जाए तो जो इंसान पूजा पाठ, भगवान के अस्तित्व को नकारता है उसे हम नास्तिक कह देते हैं पर आप जानकार हैरान होंगे की नास्तिक का वास्तविक अर्थ हमें मालूम ही नही है।
जी हाँ, नास्तिकता का यह अर्थ कदापि नही की एक इंसान जो किसी देवी देवता के सामने सर न झुकाए, रस्मों रिवाज का पालन न करे वह इन्सान अधार्मिक हो जाता है, बिलकुल नहीं।
भगत सिंह, बुद्ध जैसे अनेक महापुरुष इस धरती पर पैदा हुए जिन्होंने दैवीय सत्ता को स्वीकार नही किया लेकिन उनके आदर्शपूर्ण जीवन से हम सभी प्रेरणा लेते हैं।
उनके जीवन को पढ़कर कहीं से नहीं लगा यह कोई अधार्मिक व्यक्ति है, लेकिन उन्होंने कभी भी प्रचलित धर्म और धर्म के नाम पर होने वाली मान्यताओं को कभी सहमति नहीं दी।
अतः नास्तिकता की सच्ची परिभाषा क्या है? अगर आप समझ लेते हैं तो यकीन मानिए जो अनेक तरह के व्यर्थ की बातें नास्तिक व्यक्ति के बारे में कही जाती है, उनका सच आपको मालूम हो जायेगा। आइये इस महत्वपूर्ण लेख की शुरुवात करते हैं
नास्तिक होने का असली अर्थ| जानकार चौंक जायेंगे!
नास्तिक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है न + अस्ति, अर्थात जो नहीं है। अतः ईश्वर या किसी दैवीय सत्ता के नाम पर लोगों द्वारा रची गई कहानियों और मान्यताओं को स्वीकृति न देने वाले व्यक्ति को नास्तिक कहकर सम्बोधित किया जाता है।
उदाहरण के लिए एक बच्चा है उसे भगवान के आगे सर झुकाने, उनसे जुडी कई तरह की कहानियां बताई जाती है, पर वह बच्चा यह सब मानने से इनकार करता है तो उसे नास्तिक कह दिया जाता है।
और हिन्दू, मुस्लिम विभिन्न धर्मों में धर्म के बारे में कई तरह की काल्पनिक कहानियां रची गई हैं। और लोगों से यह आशा की जाती है की वे बिना सवाल किये चुपचाप इन कहानियों का अँधा अनुकरण करें।
अतः जो व्यक्ति इन्हें मानने से इनकार करता है, वह कहता है जो आप कह रहे हो इसमें कोई सच्चाई नहीं है। वो कहता है ये सब जो कहानियां, किस्से भगवान के बारे में बता रहे हो ये सब मन की उपज है।
क्योंकि किसी मंदिर की मूर्ती बनाने वाला भी मन ही है, उन मूर्तियों के बारे में कहानी बताने वाला भी मन है, और फिर उन सबको हकीकत मानने वाला भी मन ही है।
तो वह व्यक्ति कहता है ये सब मन का खेल है। पर एक चीज़ जो तय है और हर इन्सान को मालूम है की “मैं हूँ” क्योंकि है न कोई भीतर जो भगवान के होने या न होने पर सवाल उठा रहा है? अब भले भगवान् में आपको कोई यकीन न हो आप कहेंगे मैं तो हूँ ही।
और यह सच्ची बात है की आप हैं। इसलिए आप पर यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है की आप खुद को जानें, आप भले भगवान के आगे सर न झुकाए लेकिन आपका खुद को यानी अपने मन को समझना बेहद जरूरी है।
मन क्या है? ये क्यों इधर-उधर भागता है? ये शांत क्यों नही होता? ये सही रास्ते पर चलने की बजाय आलस्य,डर और झूठ के रास्ते पर क्यों चलता है?
नास्तिक होना क्यों जरूरी है?
आपने ऐसे कई लोग देखे होंगे जिनका भगवान और किसी धार्मिक परम्परा में कोई विश्वास नही होता, पर भीतर वह प्रेम, करुणा और सच्चाई और आनन्द से भरा जीवन जीते हैं। इसका प्रमुख कारण यही है की उन्होंने मन को जान लिया है।
उन्होंने मन की सच्चाई को देख लिया और जान लिया है की ये जो भीतर मैं बैठा है यही तो सारा खेल खेल रहा है, यही तो इन्सान को सही या गलत दिशा में धकेलता है।
कभी आपने सोचा क्यों? बुद्ध जैसा करोड़ों-अरबों में कोई एक होता है, पर ऐसा इंसान जब खुद को नास्तिक घोषित करता है तो जाहिर है न कुछ तो बात होगी। नास्तिकता में।
जी हाँ, आप असल मायनों में धार्मिक इंसान बन सके इसके लिए पहले आपका नास्तिक होना जरूरी है। नास्तिक वो जो कहे जो ये धर्म के नाम पर अन्धविश्वास और तमाम तरह का आडम्बर और पाखंड हो रहा है मैं उसे बिलकुल नही मानता।
मैं बिलकुल श्री राम जी के जीवन से त्याग, बलिदान और प्रेमपूर्ण जीवन से सीख लेता हूँ, अपने स्वार्थ से भी ऊपर कुछ है ये मुझे राम के जीवन से सीख मिलती है पर मैं बिलकुल भी राम के नाम पर हो रही ये सब पूजा, परम्परा, यज्ञ, हवन इत्यादि में मेरी कोई रूचि नही है, मैं इसका समर्थन नही करूंगा।
इस बात से आप समझ पा रहे होंगे की हमारे धर्मग्रन्थ, अवतार इसलिए रचे गए थे ताकि हम इनसे सीख लेकर एक ऊँचा जीवन जी सके। पर हमने उनसे शिक्षा लेने की बजाय हमने राम और कृष्ण को अपनी इच्छा पूर्ती का एक माध्यम बना लिया।
नास्तिकता को लेकर मन में कोई सवाल है या झिझक है तो खुलकर अब आप हमसे इस विषय पर बातचीत कर सकते हैं| अपना सवाल whatsapp करें 8512820608 QUOTE
कोई भी नास्तिक नही होता
जी हाँ, अभी तक हमने नास्तिकता का अर्थ और इसका महत्व जाना अब हम कह रहे हैं की नास्तिक जैसा कुछ नहीं होता? ये क्या बात हुई।
देखिये हमारे भीतर कौन है जो भगवान के अस्तित्व पर सवाल उठाता है, कौन है जो कहता है भगवान नहीं है? मन है जो ये कह रहा है।
तो जब कोई कहे ईश्वर नहीं है तो मन तो है न। जो ये सारी बातें कर रहा है। अतः इसका अर्थ है नास्तिक नहीं है, कोई तो है, और मन ही है जिसके लिए भगवान जैसा कोई मॉडल कभी बनाया गया था।
अब समझने वाली बात है की आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? इसलिए क्योंकि मन ही तो सारी समस्याओं की जड़ है मन ही है जो इन्सान को गलत कर्मों की तरफ धकेलता है, मन ही है जिसने आज पृथ्वी की ये हालत की हुई है।
इसलिए अगर यह मन ही सुधर जाएँ तो सम्भव है पूरी दुनिया ठीक हो जाये। है न, पर Bydefault रूप से ये मन हमारा जानवर की तरह ही होता है, ये भीतर से डरा हुआ रहता है, ये उन चीजों की तरफ भागता है जिसमे मजा आता है।
अतः ये जान लेना की मन बेचैन है, अशांत है, कमजोर है, डरपोक है, आलसी है, अर्थात इसकी हालत कुल मिलाकर बहुत बुरी है, और फिर मन ऐसा है तो इन्सान की भी हालत बुरी है।
अतः अब ये समझने के बाद सवाल आता है मन को बदला कैसे जाये क्योंकी ये ठीक नहीं है तो हम ठीक नही हो सकते, मन निडर कैसे बनेगा, मन में शांति, प्रेम कैसे आयगा?
नास्तिक होना ऐसे है फायदेमंद
अतः अब तक की बातचीत के आधार पर कह सकते हैं की मन को शांति तक ले जाना ही इंसान का लक्ष्य होना चाहिए। मन में कोई छल कपट न रहे, मन लालची होकर किसी का शोषण न करे, मन भयभीत होकर अपना ही नुकसान न करे।
इसके लिए मन को ठीक करना जरूरी है, पर ये काम इतना आसान नही था। इसलिए मन सच्चाई, शान्ति,आनन्द, प्रेम को प्राप्त हो इसके लिए धर्म की स्थापना की गई। और देवी देवताओं के जीवन से हम सभी को परिचित करवाया गया।
ये बताने के लिए की देखो। हमारे ही भीतर राक्षस भी हैं और देवता भी अर्थात अच्छाई भी बुराई भी। इसलिए राम,कृष्ण या अन्य धर्मों के गॉड को एक अच्छे इंसान के रूप में प्रस्तुत किया गया। ताकि उनसे सीख लेकर हमको ये समझ में आ जाए की अच्छा या बुरा दोनों तरह का जीवन जीने का क्या प्रभाव पड़ता है?
अतः संक्षेप में कहें तो किसी भी पंथ या धर्म की स्थापना इसलिए की गई ताकि मनुष्य का कल्याण हो, पर जब हम ये बात समझते नहीं और बिना जाने बूझे किसी मान्यता या परम्परा को निभाते हैं तो भीतर जो बुराई थी और बढ़ जाती है।
जब हम यह नहीं समझते भगवान राम किसके प्रतीक हैं, उनका जीवन हमें क्या सीख देता है? और क्या हम अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसा कर रहे हैं जिसमें त्याग हो, प्रेम हो, अनुशासन हो तो फिर राम के आगे सर झुकाने और राम राम कहने का कोई फायदा होगा?
नही न, पर नही हमें राम के नाम पर कई तरह के कर्मकांड करने हैं पर वो क्या बात कह रहे हैं उनका जीवन हमें क्या इशारा दे रहा है हमें उससे कोई मतलब नही है।
इसलिए फिर आज से सैकड़ों हजारों वर्ष पहले से चाहे आदि शंकराचार्य हो, बुद्ध हो,संत कबीर हो इन्होने धर्म के नाम पर हो रहे पाखंड के बारे में लोगों को बताया ताकि वो इन चीजों में फंसे रहकर जिन्दगी बर्बाद न करे।
पर लोग न तो तब मानते थे न आज मानते थे बल्कि जो इंसान किसी को सच बताये उसे नास्तिक घोषित कर दिया जाता है।
लोग नास्तिक क्यों हो जाते हैं?
व्यक्ति की नास्तिकता की शुरुवात तभी से हो जाती है जब सच उसकी आँखों के सामने आ जाता है। उसे ज्ञात हो जाता है की धर्म को तो हमने अपने उद्देश्य की पूर्ती का माध्यम बनाया हुआ है।
जब वह देखता है अपनी छोटी छोटी कामनाओं को पूरा करने के खातिर जब लोग देवी देवताओं की शरण में जाने लगते हैं, भगवान से अपने कुकर्मों की रक्षा करने की प्रार्थना करना शुरू कर देते हैं।
और पंडितों, ज्योतिषियों के कहने पर वे सभी तमाम तरह के कर्मकांड, पूजन विधि का उपयोग करते हैं बिना यह जाने की हम क्यों कर रहे हैं? हमारी असली समस्या क्या है? और जो हम कर रहे हैं क्या वास्तव में ये करने लायक है।
जब बिना यह जानें लोग भक्ति पूजा पाठ करना शुरू कर देते हैं तो यह जानकार व्यक्ति का धर्म से विश्वास उठ जाता है और वह स्वयं को नास्तिक सिद्ध कर देता है।
नास्तिक लोग किसकी पूजा करते हैं?
नास्तिक व्यक्ति का एक ही भगवान, एक ही धर्म होता है “सत्य” अतः उसका किसी काल्पनिक कथा, कहानी, ईश्वर पर भरोसा नही होता वो कहता है मेरे लिए सत्य सबसे ऊँचा है। जो सच है वो मैं करूंगा, जो सच है उसी के आगे सर झुकाउंगा, जो बात सच है उसी बात को मानूंगा।
अतः हम कह सकते हैं की नास्तिक व्यक्ति सत्य को पूजता है, हालाँकि यहाँ पूजने से आशय दिया बाती जलाकर आरती करने से नहीं है। पूजने से आशय उस सत्य को स्वीकार कर उस रास्ते में आगे बढ़ने से है। सत्य कोई इंसान, भगवान या किसी तरह की कोई छवि तो नही है जिसका ध्यान करके मन में उसे पूजा जा सके।
नास्तिक होने के फायदे
जीवन में नास्तिक होने के अनेक लाभ हैं, उनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं।
- नास्तिक होने का अर्थ है आप भगवान, ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास नही करते। अतः पूजा,पाठ तथा तमाम विधियां जो एक धार्मिक व्यक्ति द्वारा ईश्वर को खुश करने हेतु की जाती हैं उन्हें करने में आपका समय और उर्जा बचती है जिसे आप सही कार्य में उपयोग कर सकते हैं।
- धार्मिक व्यक्ति जो सभी तरह की परम्पराओं का पालन करता है, राशिफल और नक्षत्रों में घोर विश्वास करता है ऐसे व्यक्ति संशय (शक) में जीवन जीता है लेकिन चूँकि नास्तिक व्यक्ति का इन चीजों में भरोसा नही होता तो उसे यह समस्याएं नहीं आती।
- एक नास्तिक व्यक्ति तर्क कर सकता है, उसके पास प्रायः वह सभी कारण मौजूद होते हैं जिससे वह भगवान के अस्तित्व को नकार सकता है। परन्तु धर्मग्रन्थों और विज्ञान से परिचित न होने के कारण एक धार्मिक व्यक्ति अक्सर तर्कों के सामने हार जाता है।
- एक नास्तिक व्यक्ति अपनी कामना या लक्ष्य को पूरा करने के लिए सीधा मार्ग अपनाता है, जबकि एक धार्मिक व्यक्ति को जीवन में कोई भौतिक वस्तु या इंसान चाहिए तो वह भगवान के सामने पहले अपनी इच्छा प्रकट करता हैं, उन्हें खुश करने के लिए तमाम विधियाँ अपनाता है। और फिर उस दिशा में आगे बढ़ता है।
- सबसे बड़ी बात आप किसी धर्म विशेष की बात को मानने के लिए बाध्य नही होते। आप निष्पक्ष होकर सही को सही और गलत को गलत कहने का फैसला कर पाते हैं।
नास्तिक होने के नुकसान
जहाँ नास्तिक होने के ढेरों फायदे हैं तो वहीँ इससे आपके जीवन पर कुछ नकरात्मक प्रभाव भी पड़ते हैं।
- लोगो की नजरों में आपका सम्मान घट जाता है, क्योंकि जिस दिशा में सभी चलते हैं उस दिशा में जाने से आप इनकार कर देते है।
- कई बार समाज या लोग आपके मन में भगवान का खौफ या भ्रम पैदा करने की कोशिश करते हैं, खासकर। आपके जीवन में यदि बुरा समय आता है तो ऐसे समय में लोग आपकी नास्तिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं।
- समाज में लोग आपको अहंकारी, अधर्मिक व्यक्ति समझने लगते हैं, कई बार उन्हें लगता है आप अपने धर्म को त्यागकर दूसरे धर्म का अनुसरण करने को तैयार हैं।
- आपके पास सच्चाई को साबित करने के लिए पर्याप्त तर्क होने के बावजूद, आपकी बातों पर भरोसा करना और आपका साथ देना मुश्किल हो जाता है क्योंकि अधिकांश लोग एक झूठे और अन्धविश्वासी जीवन जीने पर भरोसा करते हैं।
- निश्चित रूप से बुराई के रस्ते पर चलना हमेशा से ही आसान रहा है तो सच्चाई पर चलने के दौरान मन आपका बड़ा विरोध करता है, यह प्रमुख नुकसानों में से एक है।
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अंतिम शब्द
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