एक छत के नीचे दशकों तक जिनके साथ मनुष्य रहता है, कई बार उन पारिवारिक लोगों के बीच भी सच्चा प्रेम नहीं पनप पाता। ( परिवार में प्रेम क्यों नहीं Chapter 20 Summary in Hindi )
परिणामस्वरुप एक दूसरे से उनकी शिकायतें, गले सिकवे बने ही रहते हैं! इसी बात को गहराई से समझते हुए प्रश्नकर्ता ने आचार्य जी से इसी विषय पर मन की बात रखी आइये इस पूरी बातचीत को प्रेम सीखना पड़ता है नामक इस पुस्तक के 19वें अध्याय में पढ़ते हैं।
परिवार में अध्यात्मिक माहौल न होना
प्रश्नकर्ता: हाल ही में परिवार में एक अतिप्रिय व्यक्ति को मैंने खोया है! उनके जाने के बाद अहसास हो रहा है की एक साथ रहने के बावजूद वो प्रेम और निकटता घर के सदस्यों के बीच नहीं आ पाती। प्रेम से हमारे वंचित रहने का क्या कारण हो सकता है?
आचार्य जी: देखिये ये तो निश्चित है की परिवार तो रहेंगे ही जब तक मनुष्य में देह भाव है! और फिर देह भाव के कारण ही मन में एक दूसरे के साथ अलग रहने का भाव भी रहेगा।
आप देखिये जब भीड़ में दो नौजवान जोड़े आपस में मिलते हैं, और उनके बीच बातचीत बनने लगती है तो आप पाएंगे वो सबसे पहले दूर कोई ऐसा कोना खोजेंगे जहाँ जाकर उन्हें लोगों से परेशानी न हो।
और फिर यही कोना एक परिवार बन जाता है, जिसमें चार दिवारी होती है जो यह संकेत देती है की हम इस संसार से जुदा हैं और कोई भी हमारे बीच नहीं आ सकता।
आचार्य जी स्पष्ट कहते हैं की इस तरह का प्रेम झूठा है जिसमें आपके बीच प्रेम का रिश्ता तभी कायम हो सकता है, जब आप पूरी दुनिया से कट जाए।
खैर, इस तरह हमारे परिवारों की नींव तयारी होती है जिसमें जिन्दगी जब तक तुम्हें कष्ट नहीं देती तब तक खूब मौज लेने का, हुल्लड़बाजी करने का आपको बेपनाह मौका भी मिलता है।
दो हैं गुरु एक जिन्दगी दूजा गुरु
इसलिए इस बीच हम ये भूल ही जाते हैं प्रकृति यानी जिन्दगी में कोई करुणा नहीं होती, आचार्य जी समझाते हैं जीवन में 2 तरह के गुरु हो सकते हैं एक चेतना और दूसरा प्रक्रति।
एक गुरु हो सकता है एक इंसान आपका कोई मित्र जो आपकी चेतना को उठाये, तुम्हें समय रहते होश में लाये और तुम्हें जिन्दगी के थपेड़ों के प्रति सावधान करें।
दूसरा गुरु होती है प्रकृति जिसमें इन्सान की भाँती कोई करुणा नहीं होती जो सीधा सभी कर्मों का फल भुगतने के लिए विवश करती है।
एक गुरु जो तुम्हारा दोस्त है या कोई इंसान है वो तो तुम्हें दंड भी देगा तो इतना नहीं की तुम मर ही जाओ, या पूरी तरह टूट जाओ।
लेकिन प्रकृति के पास कोई दया भाव शेष नहीं होता, वो जब हिसाब करने पर आती है तो सीधा तबाही मचाती है, उसके पास कोई रियायत नहीं होती किसी को छोड़ने की, उसको मतलब ही नहीं तुम जीवन से सीखते हो या इसका दुरूपयोग करते हो।
प्रकृति को व्यक्ति विशेष से कोई मतलब ही नहीं, वो सिर्फ दल देखती है एक मादा खरगोश अगर आठ बच्चे पैदा कर रही है तो प्रकृति जानती है दो – तीन तो बचेंगे ही! अब वो कौन से होंगे वो पता नहीं, तो तुम प्रकृति की नजर में क्या हो? उसे कोई फर्क नहीं पड़ता वो अपना काम करती है।
जब हर तरफ मौज तो धर्म की क्या जरूरत?
आचार्य जी कहते हैं जैसे आपने कहा परिवार में कोई दिवंगत हो गए, तो चूँकि अब वो वापस तो आयेंगे नहीं अब श्रेष्ट यही है की इस घटना से सीखा जाये, लेकिन सीखने में फिर बाधा आती है क्योंकि परिवारों में आध्यात्मिक माहौल तो होता नहीं।
हर क्षेत्र में विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है की आज हर भौतिक समस्या का समाधान इंसान के पास है, और घर में भरपूर पैसा है तो ऐसे में लाजमी है सुख सुविधा, भोग विलास के सब साधन भी होंगे! जिनमें इंसान डूबा रहता है,मजे मारता है।
अब जब उसे जीवन में बेहोशी, मजे और अपनी समस्याओं के समाधान सीधे तौर पर मिल ही रहे हैं तो फिर उसे लगता है भला, धर्म की जरूरत क्या है? उसके बिना भी काम तो मजे में चल रहा है!
बाहरी मौज के दो नुकसान
फिर इसलिए इंसान अपने जीवन को मस्त बतलाने लगता है क्योंकि सब कुछ उसे बाहर-बाहर से बढ़िया नजर आने लगता है, लेकिन आंतरिक रूप से ख़ुशी जीवन से गायब रहती है, और इस बाहरी ख़ुशी के दो बड़े नुकसान हैं जिससे वहा अनजान रहता है!
पहला इस ख़ुशी पर कभी भी गाज गिर सकती है, कोई भी प्राकृतिक आपदा आती है जैसे अभी कोरोना वायरस आया, तो न जाने कब इन खुशियों पर विघ्न बाधा पड़ जाये!
दूसरा बाहर से सभी आपको खुश होते चेहरे दिखेंगे लेकिन उनके मानस पटल को जरा भी आप गहराई से जांचेंगे तो पता चलेंगे तो अन्दर असीमित दुःख, मानसिक विकार हैं।
लेकिन सोशल मीडिया और हर जगह आपको मुस्कुराता चेहरा मिल जाता है क्योंकि आंतरिक रूप से खुश न होने के कारण दिखावटीपन जरूरी हो जाता है!
तो जितना सम्भव हो सके परिवार में अध्यात्मिक माहौल बनाकर रखिये, क्योंकि परिवार हैं और रहेंगे ही यही इसका मूल समाधान है!
प्रेम से सम्बन्धित पिछले अध्याय
☞ प्रेम बिना जीवन कैसा | Chapter 18
☞ क्या ख़ास लोगों से ख़ास प्रेम होता है? Chapter 17
अंतिम शब्द
तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी इस वार्ता को विराम देते हैं, अध्याय में बहुत सी बातें उदाहरण सहित बताई गई हैं ताकि हमें पता चल सके परिवार में अध्यात्मिक माहौल होना कितना जरूरी है? साथियों अगर आप इस पूरे अध्याय (परिवार में प्रेम क्यों नहीं) को पढ़ना चाहते हैं तो Amazon से आप इस पुस्तक को आर्डर कर सकते हैं! जानकारी पसंद आये तो शेयर भी कर दें!