प्रेम सीखना पड़ता है पुस्तक के दूसरे अध्याय में हमने जाना था मनुष्य के प्रेम के चार तल होते हैं, उन्हीं में से एक तल पवित्र प्रेम का भी होता है! पर चूँकि पवित्र प्रेम के बारे में लोगों की राय भिन्न-भिन्न है तो इस पोस्ट में आपको पवित्र प्रेम क्या है? बतायेंगे!
कई लोग जहाँ मानते हैं प्रेम शारीरिक होता है एक दूसरे के साथ रहना ही प्रेम है, वहीँ कुछ मानते हैं अपने परिवार और प्रियजनों की भलाई करना ही प्रेम है। पर इस बीच पवित्र प्रेम की परिभाषा तो हम कभी जानने का प्रयास ही नहीं करते! आइये समझते हैं!
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पवित्र प्रेम क्या है? पवित्र प्रेम का वास्तविक अर्थ
किसी से कुछ प्राप्ति के उद्देश्य के बिना प्रेम करना ही पवित्र प्रेम है। दूसरे शब्दों में हम जब किसी से बिना किसी उम्मीद रखे उसकी भलाई चाहते हैं वही सच्चा प्रेम यानि पवित्र प्रेम है! गीता में इसी प्रेम को निष्काम प्रेम या नि:स्वार्थ प्रेम भी कहा गया है।
पवित्र प्रेम से तात्पर्य एक ऐसे रिश्ते से नहीं है जिसमें आप एक दूसरे के साथ सदा साथ रहने का वादा कर लेते हैं, जैसा शादी के बंधन में होता है। और यह भी आवश्यक नहीं की पवित्र प्रेम अपने परिवार या किसी परिचित व्यक्ति से हो, पवित्र प्रेम इस संसार में हर उस पुरुष/महिला से हो सकता है जिसकी आप सिर्फ भलाई चाहते हैं।
इस तरह का सच्चा प्रेम किसी एक नहीं बल्कि कई लोगों से होता है। उदाहरण के लिए ऋषि मुनियों का प्रेम किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं था वे सभी मनुष्यों का कल्याण चाहते थे। इसलिए उन्होंने रामायण, वेद, श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद जैसे ग्रन्थ रचे ताकि मनुष्य जिस अंधकार में जीवन जीता है, उस अज्ञान से दूर होकर जीवन में ज्ञान का प्रकाश आ सके! और एक मुक्त जीवन जी सके।
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पवित्र प्रेम में किसी को प्रेम करने की वजह नहीं होती अतः इस प्रेम में बड़ी स्वतंत्रता होती है, कोई आपको प्रेम करने के लिए बाधित नहीं कर सकता। क्योंकि आपको प्रेम से रोकने वाले को अगर वजह मालूम होती की प्रेम क्यों कर रहा है तो वो तुम्हारी इच्छा को पूरी न होने के लिए प्रयास करता। पर जहाँ वजह ही नहीं है प्रेम की, ऐसे प्रेम को करने से कौन रोक सकता है।
पवित्र प्रेम और झूठे प्रेम में अंतर
यूँ तो प्रेम शब्द अपने आप में ही पवित्र होता है लेकिन फिर भी हम बोलचाल की भाषा में इसे कई तरह से पुकारते हैं जैसे सच्चा प्रेम, झूठा प्रेम। इसलिए अक्सर प्यार के नाम पर हम लोग या तो अपनी कामवासना की पूर्ती करते हैं, या किसी से लेना देना करते हैं या फिर कोई अन्य इच्छापूर्ती करते हैं।
1. झूठा प्रेम आपको सुख देता है, पर पवित्र प्रेम आपको सच्चाई, शांति देता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति नसेड़ी व्यक्ति को नशा करा दे तो उसे बड़ी ख़ुशी होगी, लेकिन वहीँ अगर कोई व्यक्ति उसे नसे से दूर ले जाए उसे होश का जीवन जीने में मदद करे वही एक पवित्र प्रेम है।
2. झूठा प्रेम हमेशा कुछ पाने के लिए होता है! पर पवित्र प्रेम में बनाया गया कोई भी रिश्ता चाहे दोस्ती का हो या कोई भी उसमें फिर इंसान किसी से कुछ पाने की आशा नहीं रखता फिर चाहे बदले में प्रेम ही क्यों न हो! वो ये भी नहीं चाहता मेरी भलाई करने के बदले सामने वाला मुझे सम्मान दे।
3. झूठा प्रेम किसी का शरीर चाहता है, अगर ऐसे रिश्ते में कोई दूर चले जाए तो प्रेम कम होने लगता है! पर पवित्र प्रेम चूँकि किसी के शरीर से नहीं होता अतः फर्क नहीं पड़ता व्यक्ति उसके साथ है या नहीं बस सच्चा प्रेमी चाहेगा वो जहाँ भी रहे उसका भला हो।
4. अपनी कामवासना, हवस मिटाने के लिए किसी से संबंध बनाना या उससे प्रेम करना झूठा प्रेम है।
5. झूठे प्रेम को फर्क नहीं पड़ता आपके मन की हालत क्या है? आप अंदर से बेचैन है, दुखी हैं उसे सिर्फ फर्क पड़ता है। आप दिखने में कैसे हैं। आप बाहर से कितने खुश है कैसे आपने कपडे पहने हैं इत्यादि। पवित्र प्रेम शारीरक नहीं होता वो आत्मा से किया जाता है इसलिए हमेशा एक प्रेमी दूसरे प्रेमी की चेतना यानी मन को शान्ति की दिशा की तरफ ले जायेगा!
तो साथियों यह कुछ उदाहरण थे सच्चे और झूठे प्रेम के, जिन्हें पढ़कर आपको लग रहा होगा हमें तो सिर्फ झूठा प्रेम ही दिखाई देता है? क्या इसका अर्थ है हम जिससे आज तक प्रेम कर रहे थे वहां पवित्र था ही नहीं? तो आप सही सोच रहे हैं क्योंकी बचपन से ही हमें समाज ने झूठा प्रेम सिखाया है! सच्चा प्रेम क्या है? हमने जाना ही नहीं!
पवित्र प्रेम में किसी से शारीरिक सम्बन्ध हो सकता है?
जी हाँ अगर आप किसी स्त्री या पुरुष से प्रेम करते हैं और आपको लगता है क्या पवित्र प्रेम में सम्भोग हो सकता है? तो जवाब है। हाँ लेकिन उससे पहले आपको समझना होगा पवित्र प्रेम में आप किसी से रिश्ता इसलिए नहीं बनाते क्योंकि आपको अंत में उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना है।
बल्कि पवित्र प्रेम का उद्देश्य दुसरे की भलाई होता है, और जब आप धीरे धीरे अपने प्रेमी की कमियों को सुधारते जाते हैं तो इस बीच आप शारीरक सम्बन्ध बना सकते हैं उसमें कोई गलत बात नहीं है, बल्कि ऐसा शारीरक समबन्ध फिर ऊँचे स्तर का होता है!
लेकिन अगर आप सिर्फ किसी का शरीर देखकर उसकी तरफ आ रहे हैं तो ये प्रेम नहीं हो सकता ये फिर हवस है। देखिये आप किसी से प्रेम करते हैं उसमें डर बहुत है, वो आत्म निर्भर नहीं है, उसमें और सौ तरह की कमियां हैं। तो आप अगर उसकी हालत को सुधारे बिना अर्थात उसे एक बेहतर इंसान बनाये बिना उससे शरीर का खेल खेलते हैं तो फिर इसको आप प्रेम का नाम बिलकुल नहीं दे सकते।
पर चूँकि बहुत से लोग ऐसा ही करते हैं! और जिस्मानी खेल खेलने के बाद एक दुसरे को अलविदा कह देते हैं ये प्यार बिलकुल नहीं ये आकर्षण है, कामवासना है प्रेम बिलकुल भी नहीं! प्रेम का लक्ष्य एक दुसरे की बेहतरी होता है शारीरक समबन्ध बिलकुल अंतिम बात है!
किसी से पवित्र प्रेम कैसे करें ?
किसी से सच्चा प्रेम करना सरल नहीं है। प्रेम सीखना पड़ता है, उम्र बढ़ने के साथ प्रेम और गहरा होता है क्योंकि प्रेम तभी किया जा सकता है। जब आपकी चेतना का स्तर बहुत ऊँचा हो अर्थात जब आपका मन इस हालत में हो जहाँ उसे अपने हित से आगे दुसरे का भला दिखाई देता हो, सोचिये न उस स्तर तक पहुँचने में कितना श्रम और मन को अभ्यास करना होगा।
इसलिए एक पवित्र प्रेम वही कर सकता है जो पहले खुद प्रेम सीख चुका हो, जिसका प्रेम का घड़ा भर चुका हो! जिसे अब प्रेम पाने के लिए यानी शांति के लिए किसी दुसरे पर निर्भर न होना पड़े जो अपने आप में ही प्रेम से भरा है अब ऐसा इन्सान किसी से प्रेम करेगा तो उस प्रेम करने की कोई वजह नहीं होगी।
और जिससे भी वो इंसान समबन्ध बनाएगा वो प्रेम के होंगे किसी इच्छा को पूरी करने के नहीं।
पर हम जैसा प्रेम करते हैं उसमें तो यही सोचते हैं की किसी इंसान से प्रेम करके हम उसे अपनी जिन्दगी बनायेंगे तो हमें सुख मिलेगा। हमारे मन को शांति मिलेगी। पर दुर्भाग्यवश ऐसा होता नहीं! इसलिए एक पवित्र प्रेम करने के लिए अपने मन यानि चेतना को पहले ऊँचा उठाना होता है!
अंतिम शब्द
तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद पवित्र प्रेम क्या है? अब आप समझ गए होंगे, उम्मीद है इस पोस्ट को पढ़कर आपको जीवन में कुछ स्पष्टता मिली होगी, आपके लिए हमने ऐसे ढेरों उपयोगी लेख इस ब्लॉग में प्रकाशित किये हैं जिन्हें आप चेक कर सकते हैं।