ज्यादा पूजा पाठ करने से क्या होता है? लाभ या हानि

हम में से अधिकतर लोग भगवान की भक्ति, पूजा अर्चना इसलिए करते हैं ताकि ईश्वर हमारे दुःख मिटा सके और हमारा मन शांत हो सके, पर वास्तव में ज्यादा पूजा पाठ करने से क्या होता है? हम नहीं जानते।

ज्यादा पूजा पाठ से क्या होता है

अतः आज का यह लेख उन्हीं भक्त गणों के लिए हैं जिनके मन में भगवान के प्रति असीम आस्था है और वह चाहते हैं की भगवान ही उन्हें भवसागर से पार लगायें।

यह लेख इसलिए भी लिखा गया है क्योंकि अधिकतर लोगों को लगता है मुंह से हरे, कृष्णा, हरे रामा बोलना ही सबसे उत्तम है। क्या सिर्फ भगवान के सामने सर झुककर उन्हें प्रणाम करना काफी है या फिर इससे भी बड़ी हमारी कोई जिम्मेदारी है?

जी हाँ, ऐसा क्यों होता है की भगवान की भक्ति करने वाले लोग अक्सर ज्यादा दुखी दिखाई देते हैं, उनकी अपेक्षा जो अय्याशी करते हैं? वास्तव में इसके पीछे का कारण आप तभी समझेंगे जब आप इस लेख में दी गई एक एक बात को ध्यानपूर्वक समझेंगे।

ज्यादा पूजा पाठ करने से क्या होता है? लाभ या समय की बर्बादी

पूजा पाठ हमें थोड़ी देर के लिए मानसिक शांति दे देती है, लेकिन कुछ पल बाद वही बेचैनी हमारे समक्ष फिर खड़ी हो जाती है। ऐसे में मनुष्य इस दुविधा में पड़ जाता है की पूजा पाठ का असल में लाभ होता भी है की नहीं।

देखिये समस्या पूजा पाठ में नहीं है, बल्कि दिक्कत हमारे अज्ञान में है। हमें नहीं पता यज्ञ क्या है, हवन, भजन-कीर्तन, भक्ति क्या है? लेकिन फिर भी हम इन चीजों को निभाने लग जाते हैं।

दरअसल हम खुद को ही इस बात से ठगाए रहते हैं की हमारी वास्तविक समस्या क्या है? हम नहीं जानते हमारी परेशानी क्या है, और उस परेशानी का इलाज क्या है, हम इसके बजाय कई चीजों का प्रयोग करते हैं और पाते हैं की वो चीजें काम नहीं आ रही।

उदाहरण के लिए किसी को लोगों से बातचीत करने में शर्म आती है, डर झिझक होती है और वह सुबह शाम पूजा पाठ करे तो क्या भगवान उसकी इस समस्या को हल करेंगे? नहीं न, उसकी समस्या तभी हल होगी जब वह लोगों से बातचीत करने की हिम्मत उठाएगा।

इसी प्रकार अगर आप घर में यज्ञ करवाते हैं, सुबह शाम पूजा पाठ करते हैं तो पहले आपको पता तो हो की शाश्त्रों में यज्ञ से क्या तात्पर्य है? यज्ञ में अग्नि का क्या महत्व है? क्या यज्ञ में लकड़ी और घी जलाने से आप के जीवन में शान्ति आएगी?

अगर आप सिर्फ पंडितों के कहने पर घर में यज्ञ करवा लेते हैं पर यज्ञ का वास्तविक अर्थ नहीं जानते तो फिर यज्ञ आपके क्या काम आएगा?

पूजा पाठ कब हानिकारक होता है?

आज की नयी पीढ़ी धर्म के नाम से बिदकती है, वो पूजा पाठ भक्ति, हवन इत्यादि शब्दों से ही दूर भागती है? वास्तव में ऐसा क्या हुआ की जो भारत एक धार्मिक देश कहलाता था जहाँ ऋषियों और बड़े बड़े संतों का जन्म हुआ उसी भूमी पर जन्म लेने वाले लोग धर्म से ही दूर क्यों होने लगे?

इसके पीछे बड़ा कारण है, धर्म का अँधाअनुकरण। बिना जाने बूझे पूजा पाठ करते करते ये स्तिथि उत्पन्न हो गई की अब एक पीढ़ी धर्म से दूर ही होने लगी है। उसे पता लगने लग गया है की जो पाठ, जप हमारे माता पिता या पूर्वज करते थे उनसे वास्तव में तो कुछ लाभ होता नहीं तो भला हम क्यों करें?

उन्होंने देखा बचपन में की दादी घंटी बजाकर पूजा पाठ कर रही है तो दूसरी तरफ उनका ध्यान की कुकर की सीटी पर लगा हुआ है। तो वो जान जाते हैं की ये सब क्या चल रहा है?

अतः इस प्रकार जब धर्म को हम समझते नहीं, धार्मिक किर्याओं का असल महत्व हम जानते नहीं बस निभाते रहते हैं तो इसका परिणाम ये होता है की एक पूरी पीढ़ी ही धर्म से दूर हो जाती है।

पूजा पाठ कब लाभदाई है?

पूजा पाठ तभी लाभदाई है जब हम धार्मिक क्रियाओं का महत्व जानें। कोई भी धार्मिक गतिविधि का हम पालन करें, इससे पूर्व यह समझें की इसका उद्देश्य क्या है? , अगर आप धर्म नहीं जानते तो भला कोई भी पूजा पाठ किस काम आएगा।

✔ अगर आप घर में यज्ञ करवाते हैं इस मंशा के साथ की यज्ञ में लकड़ी जलाकर हवा शुद्ध हो जाती है, तो इससे आप भला किसको बेवकूफ बना रहे हैं। वैसे ही पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। पर वास्तव में यज्ञ का अर्थ है स्वयं की आहुति देना, अर्थात अपने ज्ञान, उर्जा, समय, पैसे इत्यादि सभी संसाधनों को किसी सही कार्य में झोंक देना ताकि सीधा आपको दुखों से मुक्ति हो और परमात्मा से मिलन हो सके। तब वास्तव में यज्ञ का फायदा हुआ।

✔ इसी प्रकार अगर आप कृष्ण, राम की मूर्ती के आगे झट से हाथ जोड़ लेते हैं और समझेंगे की भगवान आपको आशीर्वाद देंगे तो ऐसा करके लाभ नहीं होगा। फायदा आपको मात्र तब होगा जब आप राम का योग वशिष्ट सार पढेंगे और कृष्ण की गीता में लिखी बातों को समझेंगे। देखिये मूर्तियाँ प्रतीक यानी इशारा मात्र होती हैं उनका उद्देश्य हमें सही जिन्दगी जीना सिखाना होता है। पर हम जिन्दगी घटिया जीते हैं और मूर्तियों के सामने झट से झुक जाते हैं।

✔ इसी प्रकार सभी लोग मंदिर जाते हैं, और वहां जाकर अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। पर वास्तव में मंदिर का निर्माण इसलिए किया गया था क्योंकि वहां जाकर मनुष्य का मन साफ़ हो। पर हमारे लिए उल्टा होता है हमारा मन साफ़ होने की बजाय हम मंदिरों को अपनी इच्छा पूरी करने का साधन बना लेते हैं।

इसी प्रकार धर्म समबन्धित इन शब्दों को जरुर समझें-

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क्या पूजा कीर्तन करना जरूरी है?

देखिये पूजा कीर्तन का महत्व आपको शान्ति, सच्चाई और सहजता तक लेकर जाना है, आप देखिये जिस तरह आप परिवार में पूजा करते हैं उससे आपके जीवन में ये चीजें आ रही है या नहीं। सुबह शाम पूजा करने के बाद भी अधिकांश लोगों की जिन्दगी और मन में कुछ ख़ास बदलाव नहीं आता।

ऐसे में यहाँ समझना जरूरी है की आम संस्कृति में जो पूजा प्रचलित है उसी तरह आप भी पूजा करें, अगर रोज की आरती और पूजा में आपको कुछ विशेष मन नहीं लगता तो अब समय है की आप असली पूजा करें।

उदाहरण के लिए कबीर राम के बड़े भक्त थे, उन्होंने अपना जीवन ही उन्हें समर्पित कर दिया। पर उनका एक दोहा कुछ इस प्रकार है।

माला जपु न कर जपूं और मुख से कहूँ न राम. राम हमारा हमें जपे रे कबीरा हम पायों विश्राम

कबीर साहब कह रहे हैं की अब उनका उठना बैठना, सारे काम राम के आदेश पर हैं तो मैं क्या राम के नाम की माला जपूँ या मुख से राम राम कहूँ। अब तो राम ही हमें जपता है, हमें राम नाम कहने से भी मुक्ति मिल गई।

पर कबीर के ये शब्द आम संसारी के लिए हैं, हमारे अन्दर तो ढेर सारा डर, लालच और अज्ञान है हम ये पंक्तियाँ नहीं कह सकते, लेकिन कबीर जिन्होंने भले कभी आरती की थाली से राम को न पूजा हो।

उन्होंने तो अपना पूरा जीवन ही राम को, सत्य को समर्पित कर दिया। अतः राम के प्रति अपनी भक्ति में वो ये कह देते हैं की अब बाहरी तौर पर उन्हें पूजने की जरुरत नहीं क्योंकि उनके अन्दर तो राम बैठे हैं।

अतः आपके लिए पूजा और कीर्तन वह है जब हमारा सर डर, लालच, आलस के सामने नहीं बल्कि सिर्फ सत्य के समक्ष यानी राम के समक्ष झुकेगा तब वास्तव में समझ लीजियेगा की अब हम राम के भक्त हो गए हैं, फिर आप बाहरी तौर पर पूजा कीर्तन करे या न करे इस बात से विशेष फर्क नहीं पड़ेगा।

इसी बात को कृष्ण भी कहते हैं की सारे धर्मों को छोड़ तू मेरी शरण में आजा, एक बार आप कृष्ण को समर्पित हो गए फिर उनके आदेश पर जीवन चलता है। फिर कृष्ण आपको बतायेंगे की जीवन कैसे जीना है?

अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात ज्यादा पूजा पाठ करने से क्या होता है? अब आप भली भाँती यह समझ चुके होंगे, इस लेख को पढ़कर जीवन में स्पष्टता और बोध आई है तो कृपया इस लेख को अधिक से अधिक साँझा करना मत भूलियेगा।

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