प्रेम की भीख नहीं मांगते, न प्रेम दया में देते हैं Chapter 6 | Book Summary in Hindi

अधिकतर लोगों के बीच जब बात होती है प्रेम की, तो इससे हमारा आशय सुख और दुःख बांटने से होता है, अर्थात जब हम किसी को सुख दें, या किसी से हमें सुख मिले तो हम उसे प्रेम कहते हैं लेकिन वास्तव में प्रेम कुछ और है! प्रेम की भीख नहीं मांगते और न प्रेम दया में देते हैं!

प्रेम की भीख नहीं मांगते

और आचार्य जी इस अध्याय में हमें समझा रहे हैं की प्रायः समाज में आप जिसे प्यार कहते हैं वो प्यार बिलकुल नहीं होता, आइये इस अध्याय की शुरवात करते हैं और समझते हैं प्रेम को।

प्रश्नकर्ता अध्याय की शुरुवात में कह रहे हैं की “आचार्य जी मैं लोगों से प्यार पाने का बड़ा इच्छुक रहता हूँ, इसलिए मैं उनसे उसी तरह का व्यवहार करता हूँ जिससे वो मेरे साथ भी प्रेमपूर्वक व्यवहार करे, हालाँकि मुझे पता नहीं है की सच्चाई क्या है

जवाब में आचार्य जी पूछ रहे हैं

आपको कैसे पता की लोग आपसे प्रेम करते है?

प्रश्नकर्ता कहते हैं ” ये बस मेरी सोच है, मुझे लगता है”

तो आचार्य जी कहते हैं की ” सोच में ही प्यार कर लिया करो न, ख्याल करते रहिये की मैं कुछ विशेष तरह का आचरण करूँगा और उससे कोई आकर गले मिल गया, और तुम्हें बाँहों में भर लिया, इत्यादि.. लेकिन इस तरह तुम कभी भी यह जान नहीं पाओगे की कौन तुम्हें प्रेम करता है वास्तव में”

क्योंकि प्रेम किसी तरह का आचरण नहीं होता, तुमने अभी तक कुछ खास तरह के व्यवहारों की सूची बनाई हुई है की मै इस तरह का व्यवहार फलाने व्यक्ति के साथ करूंगा तो वो खुश हो जायेगा” और किसी के साथ इस तरह का करूंगा तो वो मुझसे प्रसन्न हो जायेगा”

लेकिन आचार्य जी कहते हैं “प्रेम और ख़ुशी में अंतर होता है, प्रेम न तो किसी को सुख देने का नाम है, न ही दुःख”

हम सुख दुःख के आदान प्रदान को प्रेम कहते हैं?

हमारे अधिकांश रिश्ते सुख और दुःख के ही कारण होते हैं, हम किसी से सम्पर्क में आते इसीलिए हैं क्योंकि वो हमें ख़ुशी देता है, लेकिन बाद में जब लोगों को उस रिश्ते से सुख की प्राप्त नही हो पाती तो वो उसी को बंधन का नाम देते हैं।

यह बात समझना की सुख और दुःख दोनों प्रकृति के अन्दर मौजूद है और यह हमेशा बंधन को साथ लेकर आते हैं, इसलिए कई बार जब लोगों को इस बात का अहसास होने लगता है तो वह रिश्तों को बंधन बताने लगते हैं।

ख़ुशी दने का मतलब यह कतई नहीं की कोई आपको प्रेम करता है, आचार्य जी समझाते हैं अगर कोई नीबूं पानी की बोतल में भी शराबी को शराब देता है तो निश्चित ही शराबी को ख़ुशी होगी।

लेकिन क्या ये प्रेम है? दूसरी तरफ अगर कोई शराब के बोतल में भी शराबी को नींबू पानी दे दे… ताकि उसका स्वास्थ्य सही रहे तो निश्चित ही शराबी उस व्यक्ति को गरियायेगा लेकिन ये प्रेम है

प्रेम मुक्ति है, ख़ुशी नहीं

आचार्य जी कहते हैं ” दुर्भाग्य से प्रेम के इस मुद्दे को सही से न समझने के कारण प्रेमी आपस में कितना सारा समय, उर्जा, संसाधन खर्च करते हैं” लेकिन प्रेम से फिर भी वो वंचित हो जाते हैं!

हम इस आशा में रहते हैं की प्रेम करने पर हमें सुख मिलेगा या दूसरे को सुख मिलेगा परन्तु वास्तव में प्रेम तो हमें बोध, मुक्ति और आजादी देता है!

इसलिए तो हमें प्रेम करने वाले काफी कम होते हैं, आप देखिये आपको उन लोगों के नाम भी पता नहीं होंगे जो आपको प्रेम करते हैं।

आप अपने दोस्त, परिवार,रिश्तेदारों को अपना प्रेमी मानते हैं लेकिन वो आपसे प्रेम नहीं करते बस वो आपसे सुख दुःख बांटते हैं।

उन्हें आपकी आजादी से कोई मतलब नहीं है, उनके बीच बस सुख दुःख का लेनदेन है।

प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी दूसरे से किसी चीज़ यानी किसी सुख को पाने के खातिर उससे प्रेम नहीं करता, क्योंकि प्रेम भिखारी नहीं होता, बस उसकी अधिक से अधिक चाह यही होती है की प्रेम के खातिर हम आपके लिए जो कुछ कर रहे हैं उसमें हमें रोकों मत, गरियाओ मत।

एक परेशान आदमी की चाहत होती है शांति की, एक बंधन में फंसे व्यक्ति की चाहत होती है मुक्ति और एक बेईमान इंसान को जरूरत होती है सच्चाई की और ये सब जो आपको देने के काबिल हो वही आपका प्रेमी है!

अन्यथा बाकी कुछ भी प्रेम नहीं हो सकता!

प्रेम करना या पाना कठिन है?

सच्चा प्रेम हमें चुनौती देता है हमें बेहतर होने के लिए, वो हमारी खराब जिन्दगी से हमें आजाद कर मुक्ति की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करता है!

आप जो हैं, प्रेम आपको वह होने नहीं देता, प्रेम आपको ऊँचा और ऊँचा उठने के लिए प्रेरित करता है, अगर दिखे तुम्हे कोई जो ऊँचा उठाये तो समझ लेना वही आपका सच्चा प्रेमी है!

इसलिए तो एक सच्चा प्रेमी होना या प्रेम पाना बहुत मुश्किल है, इस राह में भलाई के खातिर हमें कई बार गलियां भी खानी पड़ती है!

और आखिर में ये बात ध्यान देना की कोई तुम्हें सुख दे या तुम किसी को सुख दो वो प्रेम बिलकुल नहीं हो सकता।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह हमने जाना प्रेम बेवजह होता है इसलिए प्रेम की भीख नहीं मांगते, और न प्रेम दया में देते है। आशा है आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी, तो इसे शेयर करना न बिलकुल न भूलें!!

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पिछले अध्याय –

« अध्याय 1~ प्रेम- सीखना पड़ता है 

« अध्याय -2 क्या प्रेम किसी से भी हो सकता है?

« अध्याय 3 ~ कौन है प्रेम के काबिल ? 

« Chapter 4 सच्चे प्रेम की पहचान 

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