राधा- कृष्ण में भी प्रेम था, पर हमारे प्रेम को सम्मान क्यों नहीं? Chapter 11

वे लोग जो किसी प्रेम प्रसंग में हैं, और इन्टरनेट पर प्रेम के सम्बन्ध में आचार्य जी की वीडियोस देखते है, उन्हें अहसास होता है की आचार्य जी की बातों में आजकल के प्रेम को लेकर बड़ी कठोरता है।

राधा- कृष्ण में भी प्रेम था

इसलिए उन्हीं लोगों में से एक व्यक्ति ने प्रेम को लेकर बेहद महत्वपूर्ण सवाल किया है। जो सम्भव है आपके भी मन में कभी आया हो? तो आइये समझते हैं इस पूरी बातचीत को प्रेम सीखना पड़ता है, नामक इस पुस्तक के 11वें अध्याय में!

हमारा प्रेम और राधा-कृष्ण के प्रेम के बीच का अंतर

प्रश्नकर्ता:- आचार्य जी कल से लगातार प्रेम पर आधारित आपके वीडियोस देख रहा हूँ, प्रेम तो राधा -कृष्ण और प्रभु श्री राम और माता सीता के बीच भी हुआ था? परन्तु आप हमारे प्रेम को लेकर क्यों इतना रोष प्रकट करते हैं?

आचार्य जी:- क्योंकि आपका प्रेम वैसा नहीं है न जैसा राधा -कृष्ण और श्री राम और सीता का था, आप कृष्ण का जीवन देखो और कहाँ अपना।

कृष्ण से अपने प्रेम की तुलना करने से पहले ये जान तो लेते की कृष्ण और राम का जीवन कितना ऊँचा था, तो फिर प्रेम भी उनका किस स्तर का होगा?

ऊँचे लोगों के प्रेम में भी गहराई होती है इसलिए सदा के लिए उनका प्रेम स्मरणीय और अमर हो जाता है।

कृष्ण के जीवन में धर्म से रक्षा, अविश्वसनीय और साहसिक कार्य हैं। वहां अन्याय का सख्त विरोध है इसलिए उनका जीवन बहुत उच्च कोटि का है।

इसलिए गीता की उंचाई, कृष्ण का जीवन और फिर उनका प्रेम इन तीनों का तल बेहद ऊँचा है! इसी तरह राम जी का जीवन बताता है की उनका प्रेम भी उच्चकोटि का था।

औसत आदमी की औसत प्रेम कहानी

तुम औसत आदमी, तुम्हारे जिन्दगी के निर्णयों में बोध नहीं, जिन्दगी में तमाम तरह के भ्रम है, बेचैनी है तो बताओ न क्या प्रेम भी तुम्हारा उत्कृष्ट हो सकता है?

जब जीवन के सभी निर्णय तुम बेहोशी में लेते हो तो बताओ तुम्हारा प्रेम कैसे होश हो गया होगा, नहीं प्रेम तो बस हो गया। अरे, कोई नशे में घटने वाली घटना है की हो गया?

जब तुम आकर्षण का अर्थ नहीं जानते? तो बताओ प्रेम को कैसे समझ सकते हो?

लेकिन तुम्हारा अहंकार चरमसीमा पर है, जो कहता है हम तो जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, लेकिन हमारे प्रेम की तुलना भी रोमियो -जूलियट, राधा कृष्ण और शिव पार्वती से कम न हो।

तुममें भी है कृष्ण बनने की सम्भावना

आचार्य जी आगे कहते हैं ऐसा नहीं है तुम्हारा प्रेम राम और कृष्ण जैसा नहीं हो सकता, सम्भावनाओं के बीज तुममे भी हैं बशर्ते उन बीजों को तुम अंकुरित करो।

और शुरुवात तुम्हें यथार्थ से करनी होगी तुम्हें जानना होगा की प्रेम की मान्यता और अवधारणायें कितनी उल्टी रहती है, इसलिए फिर मुझे ऐसे तथाकथित प्रेमियों को कठोर बातें कहनी पड़ती हैं।

लेकिन सच्चाई स्वीकार करने में तो दर्द होता है, फिर जीवन बदलना पड़ता है, उसमें तकलीफ होती है, लेकिन नहीं हमें रहना भी निम्न्कोटी का है और प्रेम भी हमारा राधा कृष्ण जैसा हो।

मेरी बातों से विरोध उठ रहा है, तो जरा देखो अपने आस पास जो युवा प्रेमी जोड़े घूम रहे हैं, देखो न कितना पावन प्रसंग है इनका

और फिर तुम इन्हीं बेफजूल की चीजों की प्रेम का नाम देने लगते हो।

लक्षण शुभ है, प्रेम की राह बढ़ते चलो

अंत में आचार्य जी कह रहे हैं की अपने प्रेम की तुलना तुमने राम और कृष्ण से की, ये लक्षण शुभता के है, अब करो पहले जीवन में राम और कृष्ण जैसी ऊँचाइयों को हासिल और फिर वहां पहुचकर अगर तुम्हारा किसी से आकर्षण हुआ तो फिर वो प्रेम भी उंचे तल का होगा और शुभ होगा!

अन्यथा उस उंचाई को हासिल किये बिना प्रेम की तरफ बढोगे तो फिर वही जीवन में फिसलते रहोगे कभी इधर कभी उधर और जीवन अपना व्यर्थ गँवा दोगे!

पिछले अध्याय पढ़ें 👇

« रिश्तों में प्रेम क्यों नहीं है? Chapter 10

« क्या प्रेम एक भावना है? Chapter 9 

« बेबी – बेबी वाला प्यार Chapter 8

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर बड़े सहज और स्पष्ट अंदाज में देते हैं, अगर आपको इस अध्याय को पूरा पढना है तो Amazon से आप इस पुस्तक को ऑर्डर कर सकते हैं, अगर यह समरी पसंद आई है तो इस विडियो को अधिक से अधिक शेयर करना बिलकुल न भूलें!

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