प्रेम बिना जीवन कैसा | Chapter 18 Summary in Hindi

जीवन में प्रेम होना बेहद जरूरी है? हमें लगातार यह बताया और सुनाया जाता है? पर किसी एक जिज्ञासु प्रश्नकर्ता के मन में सवाल आया की क्या बिना प्रेम के भी जीवन जिया जा सकता है। (प्रेम बिना जीवन कैसा Chatper 18)

प्रेम बिना जीवन कैसा

क्या बिना प्रेम के हम एक अच्छी जिन्दगी जी सकते हैं? जवाब में आचार्य जी विस्तार से बतलाते हैं की आखिर एक प्रेम युक्त जीवन और प्रेम हीन जीवन में क्या अंतर होता है?

हमें आशा है यह जानने के बाद आप जरुर यह निर्णय ले पायेंगे की जीवन में प्रेम की महत्वता कितनी है? और आपको जीवन में किसी से प्रेम होना चाहिए या नहीं।

बिना प्रेम के जीवन कैसा होता है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी एक प्रेममय जीवन कैसे जिया जा सकता है? बिना प्रेम के जिन्दगी कैसी होती है?

आचार्य जी: कभी देखा है पेड़ से जब पत्ता अलग हो जाये तो वह सूखा पत्ता हवाओं के झोकों पर किसी भी दिशा में चल पड़ता है, वैसे ही एक इंसान की भी स्तिथि होती है जीवन में प्रेम न होने पर।

ठीक ऐसे ही बिना प्रेम का जीवन एक शराबी की भांति होता है जिसके पैर उसी दिशा में लडखड़ाकर बढ़ रहे हैं जिधर उसका मन उसे ले जाता है।

दूसरी तरफ जिसके जीवन में प्रेम होता है वह प्रेमी बखूबी जानता है की उसकी अंतिम चाह किसकी है? कौन सी चीज़ है जो उसे जीवन में पानी है? बस उस एकलौती इच्छा के खातिर वह जीवन जीता है।

लेकीन प्रेम न हो जीवन में तो क्योकी तुम्हारे पास कोई एक नहीं है जिसकी तरफ तुम्हें जाना है तो फिर आप इस संसार के हो जाते हैं जो जहाँ ले जाता है वहीँ चल देते हैं।

क्योंकि प्रेमहीन व्यक्ति का मन केंद्र से संचालित नहीं होता फिर वो जीवन में अपनी स्तिथि और हालातों के हिसाब से फैसले बदलते रहते हैं, अतः इन्सान कभी किसी व्यक्ति की तो कभी किसी वस्तु की तलाश में रह जाता है, और इस तरह वह हर किसी का होकर रह जाता है।

प्रेम हीन जीवन में शादी का चुनाव

आचार्य जी समझाते हैं एक नौजवान युवक जिसकी शादी का समय है उसके जीवन में जब प्रेम नहीं होता तो स्तिथि कुछ ऐसी होती है।

माँ उसके सामने 8-10 लड़कियों के फोटो रख देती है, अब उसे समझ नहीं आता किसको चुनुं तो कभी वो एक पर ऊँगली रखता है तो एक घंटे बाद सोचता है नहीं नहीं उससे बेहतर ये दूसरी वाली है।

फिर थोड़ी देर में उसकी बड़ी बहन आती है और कहती है तेरे लिए ये वाली बेस्ट है, वो भी हाँ हाँ कहकर उससे शादी करने का चुनाव कर लेता है।

तो ये होती है एक प्रेमहीन व्यक्ति के जीवन की कहानी,उसके निर्णय, उसकी इच्छाएं उसकी अपनी नहीं होती। लेकिन उसे लगता है ये मेरी पत्नी है, बच्चे हैं , गृहस्थी इत्यादि ..लेकीन उसे ये अहसास ही नहीं है जीवन की हवा जिस ओर चलती है उसे उसी तरफ ले जाती है।

वो अनजान है जरा सा हवा का झोंका आता है, वह उसे दूसरी तरफ बहा ले जाता है! और जिन्दगी कुछ और हो जाती है. और नादान लोग फिर भी उसे अपना कहते हैं।

बिना प्रेम के जीवन में टीवी और चैनल

आचार्य जी कहते हैं की प्रेम न हो जीवन में तो फिर जो भी चीज़ तुम्हें जिन्दगी में आकर्षित करती है तुम उसकी तरफ बढ़ जाते हो, जैसे घर में खाली बैठे बैठे उब गए थे तो चल दिए मॉल की तरफ वहां दायें बाएं विंडो में कुछ चीजें पसंद आई और 50 हजार की बेमतलब शोपिंग कर आये, मुबारक हो क्रेडिट कार्ड! ये है प्रेमहीन जीवन।

एक इन्सान आधी नींद में सोफे पर टीवी के सामने लेटा हुआ हो, अर्धनींद की इसी अवस्था में वो चैनल बदले जा रहा है ताकि कुछ तो मन को बहलाने के लिए मिल जाये, और फिर ऐसा करते करते उसे नींद आ गई, सामने टीवी पर 6 घंटे से एक चैनल चला जा रहा है..

और जब आँखे खुलती हैं तो वह कहने लगता है ये ही तो मेरा पसंदीदा चैनल है पूरे 6 घंटे देखा है, और फिर इसी को कहता है ये मेरा चुनाव था, मेरी इच्छा थी इस चैनल को देखना।

आचार्य जी कहते हैं यही है प्रेम हीन जीवन जो कभी जमाने के थपेड़ों पर, कभी समाज के संस्कारो पर और कभी शरीर की वृत्तियों पर चलता है।

प्रेम नहीं तो फिर तुम किसी के नहीं

इस तरह इस अध्याय में आचार्य जी समझाते हैं की बिना प्रेम के जीवन में किसी का गुलाम होना सरल हो जाता है, फिर तुम्हें कोई भी यूँ ही जैसे चाहे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेता है।

जो भी चीजें तुम्हें लुभाती है तुम उसकी तरफ बढ़ जाते हो, सैलरी के लिए एक जॉब को छोड़कर तुरंत दूसरी जॉब पकड लेना हो चाहे किसी खूबसूरत लड़की को देखकर उस पर लट्टू हो जाना हो, या फिर किसी वस्तु को भोगने के लिए उसे पाना हो ये सब प्रेम हीन जीवन के लक्षण हैं और बड़े भयंकर हैं।

बिना प्रेम का जीवन वेश्यावृति ही है, जिसमें तुम हर किसी के हो जाते हो।

इस अध्याय में आचार्य जी ने कई और उदाहरणों के जरिये हमें इस विषय को समझाया है जिसे पढने में आपको आनदं तो आएगा ही साथ ही सच्चाई भी पता चलेगी।

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अंतिम शब्द

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