पुनर्जन्म क्या होता है? ये सच 1% लोग जानते हैं!

पुनर्जन्म को लेकर हिन्दू धर्म में अनेकों मान्यताएं हैं, और पुनर्जन्म के विषय पर तो श्रीमद्भागवत गीता में भी विस्तार से वर्णन हुआ है। पर वास्तव में पुनर्जन्म का अर्थ क्या है? आज हम इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़कर जानेंगे।

पुनर्जन्म क्या है?

पुनर्जन्म का मुद्दा इतना रहस्यमई और रोचक रहा है की इस विषय पर लोगों को रोमांचित करने वाली कई तरह की फिल्मों, कहानियो को भी लोगों द्वारा खूब पसंद किया जाता है।

पर आज हम इस बात का स्पष्ट प्रमाण देंगे ताकि आप लॉजिक के साथ समझ सके, पुनर्जन्म क्या है?

विषय सूची

पुनर्जन्म क्या होता है? पुनर्जन्म का सिद्धांत

मनुष्य के जन्म लेने के पश्चात म्रत्यु की अवस्था को प्राप्त करने के बाद किसी अन्य योनी में जन्म लेने के इस सिद्धांत को पुनर्जन्म कहा गया है।

परन्तु रोचक तथ्य यह है की हम ये जिज्ञासा रखें की मरने के बाद मनुष्य को कौन सा शरीर या किस योनी में जन्म मिलता है?

या फिर ये समझें की यह पुनर्जन्म होता है या बस एक अफवाह है? यह एक रहस्यमई विषय है, जिसको लेकर समाज में अन्धविश्वास और सिर्फ झूठ ही व्याप्त है।

बता दें पुनर्जन्म का यह सिद्धांत पूरी तरह गलत है, जो कहता है की मरने के बाद मनुष्य दोबारा जन्म लेता है और व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म की सभी पुरानी बातें याद होती हैं।

पर थोडा रुकिए! और सोचिये हमारे जीवन में अच्छी बुरी सभी स्मृतियाँ (यादें) हमारे माइंड में होती हैं।और सोचिये जब इस दिमाग को बीते कुछ दिनों की याद नहीं रहती।

इसी माइंड को ये मालूम नहीं होगा की पिछले हफ्ते आपने रात में क्या खाया, या कौन से कपडे पहने थे?

तो भला मरने के बाद जब यह दिमाग, शरीर के साथ पूरी तरह जल जायेगा तो इसे अगले जन्म में बीते जन्म की याद कैसे हो सकती है?

कोई व्यक्ति कैसे कह सकता है पिछले जन्म में वो मेरी पत्नी थी, या मेरा घर वह था जब उसके दिमाग की क्षमता बेहद सीमित है, जिसमें अगर अधिक जोर डाला जाये तो उसमें दर्द होने लगता है।

तो संक्षेप में कहें तो इन्सान का पुनर्जन्म होना और उसे पिछले जन्म की याद आना ऐसा सम्भव नहीं हो सकता।

क्या आत्मा का पुनर्जन्म होता है? | Heading

आत्मा क्या है, और क्या इसका दुबारा जन्म होता हो सकता है या नहीं आप भगवदगीता के दूसरे अध्याय के 23वें श्लोक से भली भाँती समझ सकते हैं।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ 

अर्थात इस आत्मा को न तो शस्त्र द्वारा काटा जा सकता है, न अग्नि इसे जला सकती है! पानी से यह भीग नहीं सकती और हवा इसे सुखा नही सकती।

तो इस प्रकार कृष्ण साफ़ साफ़ ये कह रहे हैं आत्मा वो है जो अजर है, अमर है, नित्य है जिसे कभी मिटाना सम्भव नहीं।

पर रुकिए। अब सोचिये जरा क्या है इस संसार में जो मिटेगा कपड़े, मकान, रुपया यहाँ तक की शरीर सब कुछ मिट सकता है, सभी चीज़ें समय के साथ बदल सकती हैं।

पर आत्मा वो है जो अटल है, स्थिर है जो सदा था है और रहेगा।

तो इस बात से समझिये की मात्र सत्य ही है जिसका न जन्म हुआ है न वो कभी मरेगा! वो सदा था है और रहेगा, इन्सान मिट जाये पर वो तब भी रहेगा।

इसी सत्य को गीता में भगवान कृष्ण आत्मा कहते हैं, और उपनिषदों में इसी सत्य को ब्रह्म कहकर सम्बोधित कहा गया है।

तो अब बात की जाये आत्मा के पुनर्जन्म की तो भला जिसका जन्म ही नहीं हुआ, भला उसका पुनर्जन्म कैसे हो सकता है।

अंतिम बात समझ लें सत्य का ब्रह्म का, आत्मा का कोई पुनर्जन्म नहीं होता। आत्मा के विषय में और गहराई से जानने के लिए आत्मा क्या है? ये पोस्ट पढ़ें।

पुनर्जन्म होता है पर आपका और मेरा नहीं होगा!

पुनर्जन्म प्रकृति में निश्चित रूप से होता है, रोजाना प्रकृति में लाखों मनुष्य पैदा होते हैं, हजारों लोग मरते हैं। प्रकृति (संसार) में नित्य चल रहा जन्म मरण का ये पुनर्चक्रण, पुनर्जन्म ही तो है।

हर वस्तु, हर व्यक्ति आप अपने जीवन में देखिये समय के साथ बदल रही है। आप अपने बचपन की ही तस्वीर को देख लीजिये आपके लिए खुद को पहचानना मुश्किल हो जायेगा।

आप ध्यान से देखें तो पायेंगे की 5 वर्ष के राहुल और 50 वर्ष के राहुल की फोटो साफ़ बताती है की इसका पुनर्जन्म हुआ है, यहाँ तक की आप आज जैसे हैं वैसे हैं ही जैसे आप 5 साल पहले थे।

इसी तरह घरों को, इमारतों को देखिये नित्य सब कुछ बदल रहा है, प्रकति में, संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो समय के साथ बदलें नहीं।

जिस लोहे को आज आप देखकर खुश हो रहे हैं एक दिन उसे जंग लग जाना है, जिस इन्सान को देखकर आप खुश हो रहे हैं उसे बूढा हो जाना है।

इस तरह प्रकृति में लगातार हो रहा बदलाव, जन्म मरण का ये खेल बताता है की यहाँ तो पुनर्जन्म चलता रहता है।

पर अब बात समझने वाली ये है की पुर्नजन्म तो होता है पर किसी व्यक्तिगत इन्सान का नहीं, उदाहरण के लिए आज मैं मर जाऊँगा तो ऐसा नहीं हो सकता की मैं किसी के घर में इसी रंग रूप के साथ पैदा हो जाऊं।

मेरा पुनर्जन्म होगा लेकिन वो होगा एक नए जीव के रूप में, एक नन्हे बच्चे के रूप में।

और इसी बात को समझाने वालों ने ऐसे भी कहा है की मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता उसके भीतर जो अहम वृति है।

यानी जिसे हम मैं कहते हैं, अहम भाव जो सभी के भीतर होता है। पैदा होने से ही हम सभी “मैं” कहते हैं, मैं ये, मैं वो…

वो जो मैं कहने वाली वृत्ति (टेंडेसी) है उसका पुनर्जन्म होता है। यानी एक व्यक्ति मरता है तो चूँकि उस व्यक्ति की जो अहम वृत्ति थी।

वही वृत्ति हमें एक नन्हे शिशु में दिखाई देती है, तो इस तरह इन्सान मर जाता है लेकिन अहम वृति दूसरे मनुष्य में, जीव में दिखाई देती है।

अतः हम कह सकते हैं की उसी अहम वृति का पुनर्जन्म होता है किसी ख़ास इन्सान का नहीं।

पुनर्जन्म की सच्ची कहानी

आंठ्वी कक्षा में एक छात्र था जिसे सब बुढउ कहकर बुलाते थे, इसकी दो वजह थी एक तो परीक्षा में फेल होने की वजह से उसकी उम्र बाकी अन्य छात्रों की तुलना में ज्यादा थी।

दूसरा उसने जीवन कुछ इस तरह जिया था की 15 वर्ष की छोटी आयु में ही उसके बाल सफेद होने लगे थे।

हाफ इयरली (अर्द्ध वार्षिक) परीक्षाएं होती हैं,  बुढउ के लिए नतीजे इस बार भी वैसे ही आते हैं जैसे पिछले वर्ष आये थे, अब बुढउ यह जान चुके थे की इस वर्ष भी उनका पत्ता कटने वाला है।

तो देखा जाता है की वो सांतवी के लड़के लड़कियों से मेलजोल बढ़ा रहे हैं, उन्हें बतौर सीनियर टिप्स दे रहे हैं।

और एक दिन तो हद्द हो गयी आंठ्वी कक्षा में पढने वाला बुढउ असेम्बली में सांतवी की कक्षा में लग जाता है, यह देखकर मॉनिटर द्वारा उसे अपनी कक्षा की पंक्ति में लगने के लिए कहा जाता है!

तो बुढउ चिढ़े हुए स्वरों में कहते हैं छोड़ों हमें, तुम्हारा क्या तुम तो बीत जाओगे!…

अतः बजाय आने वाले अंतिम चरण की परीक्षाओं की तैयारी में डूब जाने के, बुढउ यह उम्मीद ही छोड़ देते हैं की अभी भी कुछ समय बाकी है और परीक्षा पास कर अगली कक्षा में प्रवेश किया जा सकता है।

हमारी भी कहानी बुढउ की तरह ही है, हमें लगता है आधा जीवन तो व्यर्थ जा चुका है, अब जो कुछ अच्छा हो सकता है वो अगले जन्म में होगा!

इसलिए तो 25-35 की उम्र में ही लोगों के चेहरे में थकान वो उबाउपन बताता है की जीवन से उनके प्रेम, करुणा गायब हो चुकी है और वो कम उम्र में ही बुड्ढे हो चुके हैं।

हमारे जो बंधन हैं, खराब स्तिथि है वो तो इस उम्र में अब ठीक होने से रही तो लोग तैयारी करने लगते हैं अगले जन्म की वो कहते हैं मुक्ति, आत्मज्ञान, ये सब अब होने से रहा तो कहते हैं अगले जन्म में ही होगा।

और फिर ऐसे ही आलसी, अयोग्य, डरपोक लोगों द्वारा पुनर्जन्म के सिद्धांत रचे जाते हैं।

भूलिए मत जन्म मात्र एक है अभी समय है जो करना है अभी करना है, जन्म भी है इसी पल मृत्यु भी है, बंधन भी है और मुक्ति भी है, अज्ञान भी और आत्मज्ञान भी है।

आने वाले समय का इन्तेजार न करो | अभी उठो और अपना जीवन बदलने की तैयारी करो।

मनुष्य का पुनर्जन्म कैसे होता है?

मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता, कोई भी विधि, मन्त्र या जाप करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता।

सनातन धर्म के शीर्ष ग्रन्थ उपनिषद, गीता, पुनर्जन्म की इस झूठी धारणा को स्वीकार नहीं करते।

अगर आपको लगता है कोई व्यक्ति मरने के बाद उसी अवस्था में किसी और परिवार में, किसी और स्थान में जन्म लेता है तो आपको पुनर्जन्म के सिद्धांत की सच्चाई मालूम नहीं है।

क्या हिंदू धर्म में पुनर्जन्म होता है? 

हिन्दू धर्म में बहुत से लोग पुनर्जन्म की धारणा में विश्वास रखते हैं, परन्तु बेहद कम लोग हैं जो पुनर्जन्म के सिद्धांत का सच समझने की कोशिश करते हैं?

अगर आप एक हिन्दू हैं और पुर्नजन्म की मान्यता को स्वीकार करते हैं तो हम आपसे निवेदन करेंगे की एक बार उपर बताई गई पुनर्जन्म की धारणा के बारे में पढ़िये, आपके सामने सच्चाई आ जायेगी।

गीता के अनुसार पुनर्जन्म क्या है? 

भगवदगीता अध्याय 2 के 27वें श्लोक में भगवान कृष्ण कहते हैं-

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।

तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।

अनुवाद: जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है, और जो मर चुका है उसका जन्म अनिवार्य है। इसलिए किसी की मृत्यु पर शोक करने (दुखी होने) का प्रश्न ही नहीं उठता।

इसी बात को आधार मानते हुए बहुत से लोग ये कहते हैं की स्वयं कृष्ण भगवान पुनर्जन्म की बात गीता में कर रहे हैं इससे ये स्पष्ट होता है की व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसका अगला जन्म होता है।

पर जरा रुकिए। और समझिये भगवान कृष्ण यहाँ क्या कहना चाहते हैं वो कह रहे हैं की प्रकृति में माने संसार में तो लगातार जन्म और मरण का चक्र चलता रहता है।

अतः वो ये नहीं कह रहे हैं की आपका दूसरा जन्म होगा। बल्कि वो कह रहे हैं की अहम वृति जिसे हम सभी मैं भाव कहते हैं उसका जन्म होगा।

समझिएगा, पैदा होने से ही हम सभी के भीतर एक अहम भाव होता है, जिसे मैं कहते हैं उसे अहम वृति (टेंडेंसी) कहा जाता है और यह सभी मनुष्यों में होती है।

और भगवान कृष्ण असल में इसी मैं भाव के पुनर्जन्म की बात कह रहे हैं, वो कह रहे हैं एक व्यक्ति मरता है तो वहीँ अहम भाव दूसरे मनुष्य के पैदा होते ही उसमें जन्म लेता है।

इस तरह अहम वृत्ति निरंतर अस्तित्व में रहती है। यहाँ पर ये नहीं कहा जा रहा है की अर्जुन तुम्हारी मृत्यु के बाद आपका ही किसी और घर में, किसी और कुल में पुनर्जन्म होगा।

पर जिन्होंने ये बात समझी नहीं उन्होंने अज्ञानवश इसी बात को सच्चा ठहराने का बड़ा प्रयत्न किया है।

पुनर्जन्म में कौन सा धर्म विश्वास करता है? 

जैन, बौद्ध अथवा किसी भी धर्म में पुनर्जन्म के बारे में जब भी आप पढ़ें तो आपको पुर्नजन्म की वास्तविक अवधारणा को समझना होगा। आपको जानना होगा की पुनर्जन्म किसका सम्भव है? किसका नहीं?

पुनर्जन्म निश्चित रूप से होता है, प्रति पल कुछ जन्म ले रहा है, मिट रहा है। पर बात आती है? किसका पुनर्जन्म?

आपको जानना पड़ेगा की पुनर्जन्म किसी एक ख़ास व्यक्ति या जीवात्मा का तो नहीं हो सकता, फिर चाहे वह व्यक्ति आम व्यक्ति हो या फिर बेहद ज्ञानी व्यक्ति किसी का कोई पुनर्जन्म नहीं होता।

क्या विज्ञान पुनर्जन्म को मानता है? 

जी नहीं विज्ञान पुनर्जन्म की मान्यता को स्वीकार नहीं करता, इसके बावजूद बहुत से लोग अपनी झूठी मान्यताओं को साबित करने के लिए झूठी कहानियां फैलाते हैं ताकि बाकी लोग भी झूठी बात को सच मान सके।

इन्हीं अफवाहों में ये बात भी शामिल है जिसके अनुसार कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया था जिसमें मरने से कुछ समय पहले एक व्यक्ति को कांच के शीशे में फिट किया गया था।

जैसे ही उस व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो कहते हैं की सीसा टूट गया और फिर लोगों ने उससे बाहर एक छोटी सी रौशनी को बाहर जाते देखा। जिससे ये साबित होता है की मरने के बाद आत्मा उडती है।

और वहीं आत्मा जिस शरीर में प्रवेश करती है उसी मनुष्य का पुनर्जन्म उस इन्सान के भीतर हो जाता है।

पर सच तो ये है की मरने के बात व्यक्ति के शरीर से उड़कर आसमान में कोई रोशनी नहीं जाती, ये एक झूठी बात है और इस तरह की किसी भी बात से ये साबित नहीं हो जाता की विज्ञान भी इस बात को मानता है।

पुनर्जन्म का इतिहास

व्यक्ति की मृत्यु के बाद न तो कोई भविष्य बचता है और न ही कोई इतिहास। इतनी छोटी सी बात लोगों को समझ में नहीं आती। पुनर्जन्म की जो कहानियां हमने किताबों में पढ़ी हैं अथवा टीवी में देखी हैं।

हमें लगता है वे सभी कहानियां तो सच्ची होती हैं। पर हम भूल जाते हैं की बचपन में हमें जो बता दिया गया, उसे मान लेना मजबूरी थी। आज तो हमारे पास बुद्धि है, विवेक है तो ऐसे ही हमें किसी की बात को तो नहीं मान लेना चाहिए।

अगर व्यक्ति 4 बजे मर गया तो समझ लीजिये अब उसके लिए कोई साढ़े चार या पांच नहीं बज सकता। बस आँखें बंद हुई शरीर जल गया तो जान लीजिये मिटटी का शरीर मिटटी में मिल गया।

पुनर्जन्म क्यों होता है? 

प्रकृति में होने वाला पुनर्जन्म आवश्यक है, क्योंकि अगर जन्म और मृत्यु का ये चक्र चलेगा नहीं तो इसके कई घातक परिणाम हो सकते हैं।

एक तरफ लगातार जनसंख्या बढती जाएगी। दूसरी तरफ मृत्यु का भय न होने पर व्यक्ति हिंसक हो जायेगा। वो तमाम तरह के उपद्रव करेगा और तहस नहस और बर्बादी करेगा।

इससे पृथ्वी में भी संकट उत्पन्न होगा अतः पृथ्वी में पुनर्जन्म बेहद आवश्यक है।

किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है? 

देखिये अकाल मृत्यु हो या फिर बीमारी की स्तिथि या फिर कोई सडक दुर्घटना अर्थात मृत्यु की चाहे जो भी वजह है, व्यक्ति चाहे मूर्ख हो या फिर महाज्ञानी किसी का भी पुनर्जन्म नही हो सकता।

और ये बात जो जानते थे उन्होंने कई बार लोगों को समझाया की अवसर बार बार नहीं आवें, एक ही जन्म मिला है इसी को सार्थक कर लो। दस बारह जन्म किसी को नहीं मिलते।

एक ही जिन्दगी है, जैसे जीना है ईमानदारी से जिओगे तो इसी जन्म में सुन्दर होगा और अगर झूठ, कपट, बेईमानी में जियोगे तो यहीं पर जीना आपके लिए नर्क हो जायेगा।

मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता? 

मोक्ष यानी मुक्ति की बात हम सबने सुनी है और प्रायः लोगों को लगता है की मुक्ति तो इन्सान को मरने के बाद ही मिलती है। पर भारत की भूमि विशेष रही है क्योंकि यहाँ जीवन मुक्ति की बात कही गई है।

माने ये कहा गया की जीते जी तुम मुक्त हो सकते हो। जिस दुःख, परेशानी में जी रहे हो, चाहो तो इसी क्षण तुम मुक्त हो सकते हो। जीते जी तुम आजादी के साथ, आनन्द के साथ जी सकते हो।

जी हाँ प्रायः हम जैसे होते हैं हमारे भीतर, दुःख, बेचैनी, तमाम तरह की कामनाएं होती हैं। और उन कामनाओं के चलते हमें मजबूरी में, दुःख में जीना पड़ता है।

पर अगर आप उपनिषदों को पढ़ें तो वहां साफ़ साफ़ ऋषि आपको मुक्ति शब्द का अर्थ बतायेंगे।

ऋषियों ने तो यहाँ तक कह दिया की मरने के बाद कोई मुक्ति नहीं होती। जीते जी आजाद होना तुम्हारा धर्म है।

मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता? 

मुक्ति इन्सान को चाहिए होती है अपने दुखों से, अपनी परेशानियों से। आत्मा को नहीं चाहिए किसी तरह की मुक्ति।

आत्मा का अर्थ है सच्चाई, और सत्य तो चूँकि नित्य और शाश्वत होता है। हर समय और हर काल में रहता है भला सच को कौन मुक्त कर सकता है।

तो ये कहना की आत्मा को मुक्ति मिलती है, जी नहीं सत्य तो हमेशा ही मुक्त रहता है। सच्चाई को भला कौन बाँध सकता है।

पर इन्सान बंधा होता है अपने विचारों से, अपनी कल्पनाओं से और ऐसे में उसे दुःख होता है अतः उसकी मुक्ति की बात की गई है।

मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है?

मोक्ष का अर्थ है मुक्त हो जाना, अतः जो व्यक्ति अपने बन्धन, कष्ट से आजाद हो जाता है, ऐसे मुक्त पुरुष का दुबारा जन्म नहीं होता।

जन्म की ख्वाहिश किसे होती है? अहम को, यानी आपके भीतर जो मैं भाव है वो चाहता है की जीता रहे।

पर जीते जी मुक्ति मिलने का अर्थ है की अब आपका अहंकार मिट गया है, आपके भीतर जो मैं भाव था वो समाप्त हो गया।

अतः आम लोग जहाँ मौत का नाम सुनते ही डरते हैं, मुक्त पुरुष जान लेता है की मौत तो अनिवार्य है उसमें क्या डरना।

तो फिर इससे आप समझ सकते हैं जिसके लिए जन्म ही विशेष न हो, जो मौत से न डरे उसे भला अगला जन्म सोचने की जरूरत क्यों होगी।

अतः चूँकि मुक्त पुरुष के भीतर दोबारा जन्म लेने की चाहत नहीं होती इसलिए कहा गया की मोक्ष मिलने के बाद पुनर्जन्म होना बंद हो जाता है।

पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है? 

दुबारा जन्म के विषय में अगर आप नहीं सोचना चाहते तो एक ही उपाय है इस जन्म की सच्चाई जानो। समझो की ये जीवन क्या है? क्यों मिला है?

और ये जानने के बाद जिसने अपना ये जन्म सार्थक कर लिया यानी जिसने वर्तमान में सही जीवन जीना शुरू कर दिया तो फिर उसे भविष्य में होने वाली मौत या पुर्नजन्म के बारे में नहीं सोचना पड़ता।

पर चूँकि हमारा वर्तमान खराब रहता है इसलिए हमें भविष्य के बारे में सोचने की बेहद जरुरत पड़ती है। जो व्यक्ति मुक्त हो जाता है? जिसे जीते जी मुक्ति मिल गई।

अब उसे अगले जन्म की कोई फ़िक्र नहीं रहती, वो चुपचाप जो सही है वो कर्म इस जन्म में करते रहता है।

क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं? 

जी नहीं पुनर्जन्म का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, आप जितना समय पुनर्जन्म की झूठी बातों को स्वीकार करने में बिताते हैं उससे बेहतर है की आप इसी समय को पुनर्जन्म की सच्चाई मालूम करने में लगा दीजिये।

एक बार आप ये जान गए की पुनर्जन्म श्रृष्टि में होता है, आपका और मेरा नहीं। अतः हम कह सकते हैं की पुनर्जन्म होने का कोई प्रमाण उपलब्ध नही है।

पुनर्जन्म कितने दिन बाद होता है?

मनुष्य के शरीर को त्यागने के बाद पिछले कुल में, उसी नाम और पहचान के साथ जन्म होना सम्भव नहीं है, अतः पुनर्जन्म कितने समय बाद, किस पल होता है?

ये प्रश्न ही व्यर्थ है, वे लोग जो इस तरह के प्रश्नों में अधिक रूचि और गम्भीरता रखते हैं वे सच्चाई से दूर होकर पुनर्जन्म की इस गलत धारणा से खुद को संतुष्ट रखना चाहते हैं।

मनुष्य का जन्म कितनी बार होता है?

इस प्रथ्वी पर जन्म मरण का चक्र तो चलता रहता है, लेकिन एक मनुष्य कितनी बार प्रथ्वी में जन्म लेता है इसका सटीक जवाब बता पाना मुश्किल है।

एक ईमानदार व्यक्ति को जन्म की संख्या गिनने की बजाय अपने वर्तमान जन्म को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए! उसे देखना चाहिए की इस पल मैं जैसा हूँ,मैं इससे थोडा बेहतर कैसे बन सकता हूँ।

जो मनुष्य ईमानदारी से अपने वर्तमान को ठीक कर लेता है उसे भविष्य की चिंता नहीं करनी पड़ती।

एक ही परिवार में पुनर्जन्म संभव है?

जी नहीं एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका उसी परिवार में, उसी पहचान के साथ जन्म लेना संभव नहीं है, इस तरह की सभी काल्पनिक धारणाएं मनुष्य को सच से दूर करने के लिए कही जाती रही हैं।

पिछले जन्म को याद कैसे करें?

पिछले जन्म को याद करने की कोई भौतिक विधि या कृत्रिम तरीका नहीं है, हम मनुष्य अपनी सीमित बुद्धि के फलस्वरूप पिछले जन्म को याद नहीं कर सकते।

अगर कोई आपके पिछले जन्म को याद करके आपके पिछले जन्म को लेकर टिप्पणी करता है।

और आपको पूर्वजन्म की रहस्यमई घटनाएँ सुनाता है तो इसका अर्थ है यह मनुष्य खतरनाक है और आपको उससे दूरी बनानी चाहिए।

FAQ

क्या एक ही परिवार में पुनर्जन्म संभव है?

जी नहीं एक ही व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त करने के पश्चात वापस उसी परिवार में उसी अवस्था में दोबारा जन्म नहीं ले सकता! पुनर्जन्म निश्चित रूप से होता है प्रकृति में लगातार कुछ मिट रहा है, जन्म ले रहा है! पर व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता उसकी चेतना का होता है!

पुनर्जन्म कितने समय बाद होता है?

पुनर्जन्म कभी नहीं होगा, अर्थात आप इसी शरीर और जाति के साथ दोबारा पैदा नहीं होंगे! एक ही जन्म है इसको व्यर्थ मत गवाइए! इसी में जीवन की सार्थकता है 7 जन्मों का इन्तेजार न करें, इस एकमात्र जीवन का सदुपयोग करें!

पुनर्जन्म का इतिहास क्या है?

पुनर्जन्म या पुनचक्रण का सिद्धांत बहुत पुराना है, वास्तव में प्रकृति के आरम्भ से ही पुनर्जन्म की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है! लाखों वर्षों से लगातार कुछ बन रहा है, कुछ मिट रहा है! रोजाना नए जन्म हो रहे हैं और मिट रहे हैं लेकिन किसी व्यक्तिगत इन्सान का जन्म लेकर दोबारा मरना सम्भव नहीं होता!

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात पुनर्जन्म क्या है? इस विषय पर पूर्ण जानकारी हासिल हुई होगी, पुनर्जन्म के विषय पर मन में उठ रहे हैं प्रश्नों और विचारों को कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से जरुर बताएं साथ ही इस जानकारी को सोशल मीडिया पर भी अवश्य शेयर करें!

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