प्रभु श्रीराम हमारे आराध्य हैं, और उन्हीं को आदर्श मानकर भारतीय घरों में रामचरित मानस का पाठ सदियों से किया जा रहा है, पर रामायण की गाथा और पात्रों को देखते हुए कई बार मन में प्रश्न आता है की क्या रामायण काल्पनिक है?
क्योंकि रामायण का पाठ करने पर या टीवी सीरियल देखने के दौरान कई ऐसे द्रश्य आते हैं फिर चाहे बात हो कुम्भकरण के 6 माह की निद्रा की या फिर रावण के पुस्तकविमान की, इन बातों को सुनकर कई बार पाठकों के लिए इन घटनाओं पर यकीन करना थोडा मुश्किल हो जाता है।
तो सवाल है रामायण की घटना महज काल्पनिक है और मात्र लोगों को धर्म पर चलने का संदेश देने के लिए इस महाकाव्य की रचना की गई है या फिर वास्तव में रामायण की घटना घटित हुई हैं, आइये समझते हैं।
क्या रामायण काल्पनिक है? जानें असली सच।
रामायण की घटनाएँ काल्पनिक नहीं हैं, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से कृष्ण और राम कभी न कभी इस धरती पर पैदा हुए थे पर चूँकि वो कोई सामान्य राजा नही थे, वे अवतार थे अतः वो कब पैदा हुए, कब उनकी मृत्यु हुई इस बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
क्यों नहीं दिया गया? क्योंकि रामायण जैसे महाकाव्य की रचना इसलिए नहीं की गई ताकि हम राम और कृष्ण के होने के प्रमाण खोजें, सेतु पुल और हनुमान जी के पैरों के निशान देखकर खुद पर गर्व करें की हम हिन्दू हैं और हमारी भूमि पर इतने महान अवतारों का जन्म हुआ है।
बल्कि वास्तव में, रामायण का उद्देश्य हमें रामत्व सिखाना है, अर्थात राम जी के महान गुण जैसे त्याग, प्रेम, अनुशासन को सीखकर हम अपनी मतलब से भरी जिन्दगी से थोडा ऊपर उठकर कुछ अच्छे कर्म करके इस जीवन को सार्थक बना सकें।
लेकिन हमारी बुद्धि यह नहीं समझना चाहती की राम ने तो सोने की लंका त्याग दी और हम इतने स्वार्थी और लालची हैं की दो ग्राम सोना तक किसी की भलाई के लिए नहीं त्याग सकते।
कहाँ राम और कहाँ हमारा जीवन, और इस घटिया जीवन को सुधारने की अपेक्षा हम बात करते हैं की रामायण की घटनाएँ सच है की नहीं।
निश्चित तौर पर जब रामायण लिखी गई तब कलैंडर होता होगा, अतः हजारों वर्ष पहले लिखी गई रामायण में रचनाकार चाहते तो तिथि और जन्मस्थान भी शामिल कर देते, पर चूँकि जो घटना रामायण में है वो कालातीत है यानि समय के पार की है।
देखिये राम जी के पास जो चुनौतियाँ थी वो चुनौती आज भी मौजूद हैं, सत्य और असत्य की लड़ाई तब भी होती थी। आज भी होती है, अतः रचनाकार ने तिथि, स्थान से ज्यादा मूल्य उस बात को दिया जिससे हमें फायदा मिल सके।
रामायण में कितनी सच्चाई है?
रामायण की घटना में सभी ऐतिहासिक पात्र हैं, और रामायण में घटी अनेक घटनाओं के प्रमाण आज भी यदा कदा मिल जाते हैं।
पर राम जी का जन्मस्थान, जन्मभूमि इत्यादि को जानने में अगर हम दिलचस्पी रखते हैं तो इसका प्रभाव हमारी जिन्दगी पर क्या पड़ेगा? अगर हम जान भी गए रामसेतु बना था इस बात का प्रमाण भी आपको सीधा सीधा मिल जाता है।
तो बताइए न राम के होने के सबूत ढूँढने से क्या आपके जीवन में राम जैसा प्रेम, उनके जैसा त्याग और झूठ के सामने समपर्ण न करने का भाव आ जायेगा? नहीं न, वो तो तभी आ सकता है जब आपकी नियत हो सीखने की, अपने जीवन को बदलने की।
तभी तो राम हमारे काम आयेंगे जब हम उनसे सीखकर जिन्दगी को बेहतर कर पाएंगे। अपने लालच और स्वार्थ से ज्यादा जीवन में हम दूसरों की भलाई को तवज्जों देंगे।
पर नहीं हमारे भीतर गहरा अहंकार है जो ये कहने में तो फक्र करता है की मेरे देश में राम का भव्य मंदिर बनेगा, पर उन्हीं राम से सीख लेकर जीवन में झूठ के खिलाफ लड़ने की जरा भी हिम्मत हम नहीं रख पाते।
क्योंकि मेरा देश महान है, मेरा धर्म सबसे बड़ा है ये कहने वाला भीतर बैठा अहंकार इसलिए खुश है क्योंकि मुंह से बोलना सरल है और खुद महान बनने में जीवन बदलना पड़ता है, तकलीफ उठानी पड़ती है न।
राम ने तो सच्चाई की खातिर 14 वर्ष का वनवास भी स्वीकार कर लिया और हम तो सही काम को करने के लिए परिवार से कुछ दिन भी दूर नहीं रह पाते।
क्या रामायण सत्य है?
जी हाँ, इस बात का सबूत यह है की सच्चाई और बुराई की लड़ाई यानी अज्ञान और बोध का संघर्ष जो हमें राम और रावण के जीवन में रामायण को पढने पर पता चलता है वो आज भी मौजूद है।
आज भी रावण जैसे अनेक विद्वानी लोग इस संसार में मौजूद हैं जिनके पास रावण की भाँती धन भी है, बल भी है और ज्ञान भी है।
लेकिन उस ताकत का इस्तेमाल वे इस प्रकृति का विनाश करने, दुनिया के बेजुमान जानवरों को मारने, आम लोगों को अपने स्वार्थ के लिए गुलाम बनाने के लिए करते हैं।
जिस प्रकार साधुओं को यज्ञ, अनुष्ठान करने में राक्षस डराते थे। उसी प्रकार आज भी जब कोई व्यक्ति सही काम करने की इच्छा से आगे बढ़ता है तो ये समाज, परिवारिक लोग, दोस्त असुरों की भाँती उसे पीछे खीचने में जुट जाते हैं।
पर चाहे असुरों का कितना ही अत्याचार पृथ्वी पर हो रहा हो, कोई राम इस प्रथ्वी में जरुर मौजूद है जो सत्य के लिए लड़ता है, जिसके लिए अपने निजी स्वार्थों से ज्यादा प्यार कुछ और है। और वो राम हमारे साथ है इसका प्रमाण यह है की हम आप तक यह सच्ची बात पहुंचा पा रहे हैं।
रामायण की भाँती आज भी जो लोग अधर्मी, पापी हैं जो दुनिया को खा जाना चाहते हैं उनके पास श्रेष्ठ कोटि के संसाधन हैं लेकिन वे लोग जो पृथ्वी को इन पापियों से बचाना चाहते हैं उनके पास राम की तरह संसाधन बेहद कम हैं।
लेकिन सत्य चूँकि हारता नहीं अतः जिस प्रकार संसाधनों की कमी के बावजूद वानरों की सेना के माध्यम से राम सेतुपुल बनाकर लंका में रावण का अंत कर विजय पताका फहराते हैं।
उसी प्रकार आज पृथ्वी के तमाम प्राणियों के विनाश हेतु जो धर्मयुद्ध लड़ा जा रहा है उसमें आप राम के साथ खड़े होंगे या रावण के ये फैसला आपका होगा।
क्या रामायण और महाभारत असली है?
जी हां वास्तव में ये असली हैं, पर सवाल है किसके लिए? अगर मन दुर्योधन जैसा है जिसे सत्य से कोई प्रेम नहीं जिसके लिए अपना ही स्वार्थ सबकुछ है।
ऐसे इंसान के लिए ये दोनों धर्मग्रन्थ खतरनाक हो जायेंगे क्योंकि एक तरफ रामायण में राम का चरित्र हमें लोभ, स्वार्थ को त्यागकर सच्चाई के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
तो दूसरी तरफ महाभारत के युद्ध में कृष्ण और अर्जुन के बीच के संवाद के रूप में उपलब्ध भगवदगीता हमें समझाती है की अर्जुन धर्म से बड़ा कुछ नहीं, सच के खातिर अगर अपनों से भी लड़ना पड़े तो भिड जाओ। क्योंकि परम सत्य ही बाप है।
अब बताइए ऐसा इंसान जिसके मन में शकुनी जैसा छल हो दुर्योधन जैसा सत्ता का लोभ हो और दु:शासन जैसी कामनाएं हो वो इंसान रामायण और महाभारत के करीब आने की चेष्टा कर पायेगा? उसे तो डर लगेगा की कहीं मेरी पोल न खुल जाएँ।
क्योंकि धर्मग्रन्थ उस दर्पण (शीशे) की भाँती होते हैं जिनके सामने बैठने से ही हमें हमारी सच्चाई मालूम हो जाती है, और एक बार हम जान गए की भीतर हमारे क्या बैठा हुआ है? वो कितना खतरनाक है तो फिर उस राक्षस को मारने के लिए हमें भीतर देवता को स्थान देना पड़ता है।
और झूठ को मिटाकर सत्य को स्थान देने में बड़ी तकलीफ होती है, सोचिये कैसा लगता है जिस चीज़ पर आपको बड़ा भरोसा था और वही आपको धोखा दे जाए तो।
जब आप जान जाते हैं मेरी जो इच्छाएं थी, सपने थे उनको एक दिन टूटना ही होगा तो आपको बुरा लगेगा न सत्य तो बड़ा कडवा होता है इसलिए देवता को पूजना आसान होता है लेकिन झूठ का जो वार होता है उसे झेलना कठिन।
तो आप देखिये आप सत्य को प्राथमिकता देंगे या चोट के डर से झूट के साथ खड़े रहेंगे।
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात क्या रामायण काल्पनिक है? रामायण की घटनाओं को देखने का क्या नजरिया है? रामायण के विषय पर फैले इन भ्रमों को मिटने के बाद आपके जीवन में सच्चाई और शांति आएगी इसी सोच के साथ आज के इस लेख की समाप्ति होती है, लेख आपके लिए उपयोगी साबित हुआ है तो इसे शेयर भी कर दें।