रिश्ते बिना प्रेम के नहीं चल सकते| अध्याय 15 Full Summary in Hindi

देखिये, जीवन है तो जाहिर सी बात है लोगों से रिश्ते तो बनेंगे ही, अब उन रिश्तों में अगर प्रेम नहीं होता तो फिर विवाद होते हैं। (रिश्ते बिना प्रेम के नहीं चल सकते chapter 15 summary)

रिश्ते बिना प्रेम के नहीं चल सकते

अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी को देखने पर मिलता है, जहाँ प्रेम के रिश्ते बने होते हैं उनके बीच खटर-पटर बहुत होती है, बिना उसके उन्हें चैन नहीं आता ऐसा हमें अपने घरो में भी देखने को मिल जाता है।

पर क्या वास्तव में प्रेम के रिश्ते ऐसे ही होते हैं? प्रेम का रिश्ता कैसा होता है? इस लेख में आचार्य जी इस प्रश्न को गहराई के साथ समझा रहे हैं।

प्रेम में जरूरी नहीं शारीरिक रुप से साथ होना

प्रश्नकर्ता: “आचार्य जी, समझ नहीं आता पिता जी के साथ रहूँ या अलग शिफ्ट हो जाऊं”

आचार्य जी: पिता से दूरी बनाना चाहते हो तो पहले ये बताओ दोनों के बीच प्रेम की गुणवत्ता क्या है?

प्रश्नकर्ता:– ये मुझे पता नहीं है, वास्तव में उनसे दूरी बनाना चाहती नहीं बस मन में कभी ये ख्याल आता है। ऐसा नहीं की अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहती हूँ पर सिर्फ जिम्मेदारी के लिए साथ रहना मुझे थोडा अजीब लगता है।

आचार्य जी:– देखिये ये बिलकुल आवश्यक नहीं की प्रेम का मतलब है तुम किसी के साथ शारीरिक रूप से रहो। और ऐसा भी नहीं है की प्रेम है तो दूर रहो। अगर रिश्ते में आपस में प्रेम है तो इससे फर्क नहीं पड़ता तुम किस जगह रहते हो।

प्रेम है तो तुम कनाडा भी शिफ्ट हो सकते हो, या फिर घर पर ही रह सकते हो, वो आपकी स्तिथि पर निर्भर करता है।

लेकिन अक्सर देखा जाता है जहाँ प्रेम नहीं होता वहां पर शारीरिक रूप से किसी के साथ रहना जरूरी हो जाता है। थोड़ी देर ही कोई कहीं चला जाता है तो दूसरे को असुरक्षा की भावना आने लगती है, उसे लगता है कहीं मुझे भूल न जाए।

देखा होगा परिवार में, आस पड़ोस में आपने अक्सर ऐसा जहाँ लोग एक दूसरे के न होने पर चिल्लाने लगते हैं।

लेकिन प्रेम है अगर वाकई तो पिता या कोई भी पारिवारिक सदस्य पहले आपका हित देखेंगे और जहाँ आपका इस समय रहना उचित है आपको रहने के लिए कहेंगे।

रिश्तों में प्रेम के नाम पर उपद्रवी हरकतें

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी आपका मतलब है जहाँ प्रेम नहीं है आपस में वहां साथ नहीं रहना चाहिए?

आचार्य जी: पहली बात प्रेम रिश्तों में होना बहुत बहुत जरुरी है, प्रेम नहीं होगा तो क्या करोगे साथ रहकर एक दूसरे का सर फोडोगे, फिर लोग कहते हैं जहाँ दो बर्तन होते हैं वो तो आपस में बजेंगे ही न।

इस तरह ये गृहस्थी वाले फिर बड़े स्वादिष्ट झूट निकालते हैं, बासी भोजन को गले में उतारने के लिए।

अभी अभी तो सर फोड़ा है, अब ये लो जान! बैंडेज लगा लो, कल फिर सर फोड़ना है।

तू-तू मैं-मैं, गाली- गलौज, उपद्रव करके हम सोचते हैं बिना इनके गृहस्थी जीवन सूना वीरान होता है।

प्रेम का मतलब चिपका चिपकी नहीं होता समझिये प्रेम के रिश्ते में एक दूसरे का हित देखा जाता है। प्रेम में आप उनका हित देखिये, और वो आपका हित देखेंगे। बस रिश्ते में प्रेम होना जरूरी है।

ऐसा प्रेम क्यों नहीं मिलता कहीं और?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी ऐसा प्रेम आजकल किसी रिश्ते में देखने को भी नहीं मिलता?

आचार्य जी: आपकी अलमारी में टोपी क्यों नहीं है? वो मुझे कैसे पता ? ये आप देखिये न आपके रिश्ते में प्रेम क्यों नहीं है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी आम जीवन में परिवार वाले बोलते हैं की शादी कर लो, वो अपने हित के लिए बोलते हैं ऐसा या फिर कहीं उन्हें अपना हित भी मालूम नहीं है?

आचार्य जी: सही प्रश्न किया ” आमतौर पर हम अपनी इच्छा को दूसरे के कंधे पर चढ़ाकर प्रकट करते हैं! ताकि हमारा स्वार्थ, लालच सीधे तौर पर सामने न आ पाए”

देख भाई वो तेरा पसंदीदा बल्ला था न, उसे मैंने गुप्ता जी से ऑर्डर करवा दिया है वो मेरठ से ले आयेंगे! एक ही पीस था भाई मैंने कहा ले आओ पेमेंट मिल जाएगी! उस बैट से तो तेरा बैटिंग स्टाइल और बेस्ट हो जायेगा.. तो जल्दी से पेमेंट करके ऑर्डर कर दे शाम तक मिल जायेगा।

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अंतिम शब्द

इस तरह एक दोस्त अपने क्रिकेट खेलने की इच्छा को पूरा कर पाता है, तो साथियों इस तरह रिश्ते बिना प्रेम के नहीं चल सकते नामक इस अध्याय में कई और रोचक उदाहरणों के साथ आचार्य जी हमें समझाते हैं की किस तरह घर में बहू लाई जाती है। और शादी के लिए आप पर परिवार वालों द्वारा दबाव दिया जाता है।

और आचार्य जी प्रश्नकर्ता के और भी सवालों का जवाब देते हैं! अगर आप इस पूरी वार्ता को पढना चाहते हैं तो Amazon से आप इस पुस्तक को ऑर्डर कर पढ़ सकते हैं।

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