पिछले अध्याय में हमने जाना की कौन प्रेम के काबिल होता है? आज हम प्रेम सीखना पड़ता है नामक इस पुस्तक के चौथे शीर्षक “सच्चे प्रेम की पहचान” का अध्ययन करते हैं।

अध्याय की शुरुवात में प्रश्नकर्ता पूछ रहे हैं ” आचार्य जी प्रेम दूसरे से चिपकने का नाम नहीं है, लेकिन अतीत में मुझे इसी तरह का प्रेम हुआ अब मैं आगे कैसे परखूँ की प्रेम सच्चा है या नहीं”
आचार्य प्रशांत: देखिये, प्रेम सच्चा है या नहीं इसे परखना बेहद सरल है। यह बात तो तय है की जीवन में सम्बन्ध तो बनेंगे ही, क्योंकि हर पल हर समय आप किसी न किसी से तो रिश्ते बनायेंगे, बस आप जिसके निकट हैं देखिये वो आपको दे क्या रहा है?
अगर बस वो तुम्हें अपने हाल में रखना चाहता है यानि तुम जैसे हो अच्छे हो, मै जैसा हूँ अच्छा हूँ तो समझ लीजियेगा वो आपसे किसी इच्छा पूर्ती की वजह से जुड़ रहा है।
यह इच्छा किसी भी तरह की हो सकती है, जैसे उसे आपसे किसी तरह का सुख मिल जाये, चाहे शारीरक-सुख हो, आर्थिक-सुख हो या फिर सुरक्षा। पर ये समझ लेना ये सच्चा प्रेम नहीं हो सकता।
अध्याय 2~ सच्चे प्रेम की पहचान
किसी से अपनी इच्छा मनवाने के लिए उसके निकट आना, दूसरे को भोगना या फिर शोषण करना कहलायेगा, और दुःख की बात है की समाज में आपको अधिकतर ऐसे ही आशिक/ प्रेमी देखने को मिलेंगे।
जो अपनी इच्छाओं को पाने के खातिर दूसरे व्यक्ति को चने के झाड में बैठा देते हैं, तुम ही मेरा रब हो, ये सब जो गाने, कहानियां प्रेम के नाम पर रचाई जाती हैं बिलकुल इसलिए ताकि दूसरे को इस बात की भनक ही न लगे की तुममें सुधार की, बेहतर होने की सम्भावना है।
अगर ऐसा पता चला गया तो प्रेमी नाराज हो जायेगा, और नाराज हो गया तो समझ लो जो सुख आप उससे लेना चाहते हैं वो आपको नहीं मिल पायेगा।
सच्चा प्रेम क्या है?
आचार्य जी समझाते हैं सच्चा प्रेम कोई विरला ही कर सकता है क्योंकि सच्चे प्रेम का अर्थ दुसरे की भलाई होता है, इसलिए दूसरे की भलाई और बेहतरी की खातिर तुम्हें कई बार गुस्सा, आलोचनाएँ भी सहन करनी पड़ती है।
झूठे प्रेम की तो वजह होती है,जिसमें कुछ कामना छिपी होती है, लेकिन सच्चा प्रेम नि:स्वार्थ होता है! ऐसे प्रेम में व्यक्ति सिर्फ दूसरे के जीवन में बेहतरी के उद्देश्य से आता है।
इसलिए ऐसे व्यक्ति से कोई पूछे आप किसी से प्रेम क्यों कर रहे हो?
जवाब होगा “भलाई के लिए”
हालाँकि ऐसे में कुछ लोग कहेंगे दूसरे की भलाई में आपको क्या मिलेगा?
जवाब होगा ” सामने वाले व्यक्ति को उसके दु:खों, भ्रम से आजादी मिलेगी” और वो आजादी देखने में बड़ा आनन्द आता है,
और आजादी तेरी मेरी नहीं होती, वो हर जीव की चाहत होती है इसलिए वो बड़ी प्यारी होती है।
और हम तुम्हारे सम्पर्क में आ रहे हैं इसलिए नहीं की तुम बहुत सुन्दर हो, चतुर हो, बलवान हो नहीं.. वो सब नही… हम तुम्हारे करीब आये हैं इसलिए क्योंकि तुम अभी वो नहीं हो जो हो सकते हो।
तुम वो फूल हो जो निखर सकते हो.. आसमान में उड़ सकते हो लेकिन अभी जी नहीं रहे जिन्दगी बस ढो रहे हो! हमारा प्रेम है तुमसे इसलिए तुम्हारे निकट आये हैं ताकि उस जिन्दगी से निकलकर तुम एक बेहतर जिन्दगी जी सको।
जो कहते हैं सच्चा प्रेम नहीं मिलता?
आपने अक्सर सुना होगा शायरों को, दोस्तों को यह कहते की कमबख्त जिन्दगी में हमें किसी से सच्चा प्यार नहीं मिला,
आचार्य जी कहते हैं ” मै कहता हूँ सच्चा प्यार पाने की तुममें हैसियत ही नहीं होती”
तुम्हें तो ऐसा प्रेमी चाहिए न जो खुद को बदले और न तुम्हें बदलने दें, जैसे हो एक दुसरे से सुख भोगते रहो…
कोई आ जाये जिन्दगी में तुम्हारे और वो तुम्हारी चेतना को ऊँचा उठाने का काम करे, तुम तुरंत उससे लड़ने चले जाओगे।
कहोगे तुम क्या मेरा भला करोगे? मै जैसा हूँ I am the best और ऐसा करने से भीतर बैठा अहंकार बड़ा खुश होता है।
बस.. इसलिए कह रहा हूँ सच्चा प्रेम मिल सकता हैं! लेकिन तुम्हें उस प्रेम को झेलने की शक्ति है क्या…?
आचार्य जी आगे कहते हैं की आपके घनिष्ट मित्र, पारिवारिक सदस्य जो आज तुम्हें तुम्हारी वर्तमान हालत जो बहुत बुरी ही क्यों न हो, उसमें भी तुम्हें बहुत अच्छा बताते हैं! इसलिए नहीं क्योंकि उन्हें तुमसे प्रेम है नहीं.. अधिकतर मामलों में स्वार्थ जुड़ा होता है।
तुम घर में नोटों की गड्डी से कार, घर जैसे भोग विलास के साधन ले आओ, दोस्तों पर जमकर पैसा उडाओ हर कोई तुम्हारे सपोर्ट में रहेगा।
लेकिन वहीँ अगर तुम अपनी बेहतरी के लिए कुछ करना शुरू कर दो तो फिर देखना तुम्हारे साथ कितने लोग खड़े होते हैं।
इसलिए सच्चा प्रेमी वही है जो “आपकी आंतरिक यानी असली तरक्की में आपका साथ दें” बाकी कोई और नहीं करता आपसे सच्चा प्रेम
तो साथियों इस तरह सच्चे प्रेम पर आचार्य जी बड़ी लम्बी बातचीत करते हैं, जिसमें आचार्य जी आजकल के लोंडे जो सच्चे प्यार के नाम पर फूहड़पन दिखा रहे हैं, उन पर भी कटाक्ष करते हैं।
साथ ही हमारे समाज में प्रेम के नाम पर जो हरकतें लोगों द्वारा की जाती हैं, और साइंस में जिसे प्रेम कहा जाता है, उसे बड़े मजेदार अंदाज में बताते हैं ताकि हमें सच्चे प्रेम का वास्तविक अर्थ पता चल सके।
प्रेम सीखना पड़ता है से सम्बन्धित अन्य पोस्ट –
« प्रेम- सीखना पड़ता है Chapter 1 | आचार्य प्रशांत
« अध्याय -2 क्या प्रेम किसी से भी हो सकता है?
« अध्याय 3 ~ कौन है प्रेम के काबिल ?
अंतिम शब्द
अध्याय में सार निकलता है की ” सच्चा प्रेम इन्सान को न तो समाज सिखा सकता है, न सविंधान और न ही विज्ञानं केवल अध्यात्म ही सच्चा प्रेम सिखा सकता है, जिसके जीवन में अध्यात्म नहीं होगा उसका जीवन रसहीन, प्रेम हीन होगा”
तो साथियों अगर आपको सच्चे प्रेम की पहचान नामक इस अध्याय को विस्तार से पढना है तो आप इसकी इबुक या हार्ड कॉपी Amazon से आर्डर कर सकते हैं।