सच्ची भक्ति क्या है? कैसे पहुंचें राम तक

कहते हैं भक्ति में इतनी ताकत होती है की वो इंसान को परमात्मा तक पहुँचने के लिए विवश कर देती है। इस लेख में एक आम इन्सान के लिए सच्ची भक्ति क्या है, महत्व, और भक्ति करने का सही तरीका बताया जा रहा है।

भक्ति क्या है?

इस सांसारिक जीवन में अगर मनुष्य को नौकरी करनी हो या किसी विषय में ज्ञान हासिल करना हो तो पहले शिक्षक या ट्रेनर की बात मानने के लिए पहले झुकना पड़ता है।

लेकिन जब इन्सान को परमात्मा चाहिए तो फिर उसे गुरु के चरणों में जाना होता है, क्योंकि वही उन्हें परमात्मा तक पहुँचने का रास्ता बताते हैं।

इसलिए जब बात होती है भक्ति की तो संत कबीर, गुरु नानक, मीराबाई इत्यादि का नाम शीर्ष पर आता है, इनमें से अधिकतर ने परमात्मा की तो ज्यादा बात ही नहीं की क्योंकि परमात्मा महाराज तो छुपे बैठे हैं, तो उन्होंने कहा गुरु ही हमें उस तक पहुंचा सकते हैं।

इसलिए गुरु के महत्व पर कबीर साहब ने यहाँ तक कह दिया की

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान। Quote

सच्ची भक्ति क्या है? भक्ति का वास्तविक अर्थ

भक्ति से आशय विन्रमता से है, जब मनुष्य का अहंकार शून्य होकर, गुरु के चरणों में नतमस्तक हो जाता है तो वह अवस्था भक्ति कहलाती है।

विन्रमता कहती है की हम तो उस निराकार सत्य/परमात्मा तक पहुँच नहीं सकते, तो इस संसार में ही जो परम की भक्ति करता हो हम उसी के सामने झुक जायेंगे।

और हम मोहब्बत भी कर लेंगे उससे क्योंकि वो परम से आशिकी करता है, अतः यहाँ गुरु से आशय उस व्यक्ति से है जो ज्ञानी है जो सत्य/परमात्मा के खातिर ही जीवन जी रहा है।

परमात्मा तक पहुँचने का रास्ता गुरु से होकर के जाता है, क्योंकि गुरु ही हैं जो हमारे अज्ञान को दूर करके हमें जीवन की सच्चाई बताकर हमें आत्मज्ञान देते हैं।

इसलिए गुरु की भूमिका इतनी बढ़ जाती है की बिना उनके परम सत्य तक पहुंचना नामुमकिन है। इसे आप इस बात से समझ सकते हैं की अगर मनुष्य जंगलों में होता, जानवरों की भाँती उसे कोई शिक्षा नहीं मिलती तो वह भी एक पशु ही हो जाता, जैसा की हम प्रकृति की आदिम अवस्था में थे।

पर चूँकि गुरु हमें ज्ञान देकर अंततः हमें इस संसार से अपने कष्ट और बन्धनों की मुक्ति के लिए परमात्मा तक पहुंचाने में मदद करता है। अतः अपने आप को गुरु को जिसने समर्पित कर दिया, फिर उसके लिए परमात्मा तक पहुँचने के द्वारा सीधा खुल जाते हैं।

भक्ति की परिभाषा क्या है?

जब मन बाकी दिशाओं को छोड़कर मात्र एक दिशा में ध्यानस्थ हो जाए यह भक्ति कहलाती है। क्योंकि ऐसा संभव नहीं है की हम ध्यान करें राम का और साथ में पड़ोस में क्या चल रहा है इसपर भी बराबर की नजर बनाये रखें। अतः जब तक आपके जीवन में एक को छोड़कर बाकी कई चीजें हैं, तब तक तुम भक्ति नहीं कर सकते।

भक्ति के लिए आवश्यक है की हम उसे दिल दें दें जो जरूरी है बाकी चीजें फिर आपके लिए उतनी महत्वपूर्ण नहीं होगी। आपने प्रेमी चुन लिया है अब राह चलते कोई भी मिले आप उसे तो दिल नहीं दे सकते ना। बस यही है जब आपका मन उसकी आस्था में उस परम सत्य/ निराकार की आस्था में लीन हो जाये तो यह भक्ति कहलाती है।

भक्ति का क्या महत्व है?

भक्ति से तात्पर्य है किसी ऐसे के सामने झुक जाना जो तुम्हें सबसे ऊँचे की तरफ ले जाए। जिस प्रकार मनुष्य की संरचना है उसके लिए भक्ति अत्यंत आवश्यक है।

क्योंकि मनुष्य का तो अहंकार ही इतना ऊँचा होता है की वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ मानता है, जीवन में कुछ न जानते हुए भी उसे लगता है मैं सब जानता हूँ, जो मैं कर रहा हूँ सही कर रहा हूँ। और यही खोखला आत्मविश्वाश उसे अक्सर ठोकरें भी देता है।

पर वह व्यक्ति जो इन ठोकरों से नहीं सीखता उसका जीवन बर्बाद होता है, लेकिन जिसे अपने प्रति जरा प्रेम हो तो वह पूछने लगता है की क्यों मैं जिन्दगी में इतने कष्ट, दुःख झेलता हूँ, कैसे मैं इस दुःख सुख के बंधन से बाहर आ सकता हूँ?

तो इस प्रश्न के जवाब की खोज में उसे ज्ञात होता है की प्रकृति में लाभ हानि का खेल निरंतर चलता रहेगा, हम जैसा चाहते हैं प्रकृति हमारे हिसाब से नहीं चल सकती।

जब उसे इस बात का ज्ञान होता है तो अब उसके मन में प्रकृति यानि इस संसार के प्रति थोडा लगाव कम हो जाता है, और वह जीवन में कुछ ऐसा पाने का प्रयास करता है जो इस प्रकृति से भी आगे का हो, क्योंकि प्रकृति में तो जो कुछ वह अपने लिए पायेगा उससे तो उसे शान्ति नहीं मिलती।

तो वह फिर कहता है इस जन्म-मरण, सुख दुख के खेल से मुझे बाहर आना है तो परमात्मा ही अंतिम लक्ष्य है, अतः वह फिर ऐसे व्यक्ति की खोज में चला जाता है जो उसे परमात्मा तक ले जा सके।

अब जब ऐसा गुरु उसे मिलता है तो वह पहले तो मनुष्य की पुराने भ्रम और व्यर्थ की धारणाओं को तोड़ता है जो उसने जीवन में बनाई हुई थी, जो पहले मनुष्य के मन को सच लगता था गुरु उसे झूठ बतलाकर उसके पूरे जीवन को ही बदल देता है।

वो उसे पहले जैसा रहने नहीं देता, उसके काम करने और सोचने का ही तरीका बदल जाता है। अब उसका हर कार्य, उसका उठना बैठना अपने लिए नहीं उस परमात्मा के लिए होने लग जाता है। इसी को परमात्मा की प्राप्ति कहा जाता है, ऐसा व्यक्ति फिर मौत से भी नहीं घबराता क्योंकि वह जान जाता है की शरीर नष्ट होता है, पर मैं शरीर नहीं मैं आत्मा हूँ।

लेकिन ध्यान दें, ये बातें जितनी पढने में और सुनने में आसान लगती है, उतनी होती नहीं। क्योंकि अहंकार हमारा इतना प्रबल होता है की वो किसी के आगे झुकना नहीं चाहता। लेकिन जिसे खुद से प्रेम है वो गुरु की भक्ति करके सत्य तक जरुर पहुँचता है।

 भजन कीर्तन और भक्ति का असली महत्व | भक्ति कैसे करें?

अधिकांश हिन्दुओं के लिए भक्ति शब्द का मतलब सुबह शाम आरती करना, भगवान का नाम लेना, किसी विशेष दिन या पर्व पर हरी नाम का भजन कर लेना ही भक्ति है।

पर वास्तव में भक्ति का अर्थ बहुत ऊँचा है, भक्ति करना इतना सरल और हल्का नहीं होता। क्योंकि आपके मन में डर, लालच और तमाम तरह के कुविचार हैं और उसी मन से यदि आप हरे राम। हरे राम बोल भी देते हैं तो क्या इससे जीवन में राम या परमात्मा आयेंगे नहीं न।

चूँकि भक्ति करने के लिए अपना जीवन ही राम को, सच्चाई को समर्पित करना पड़ता है। जिसके लिए हमारा अहंकार राजी नहीं होता, यह तमाम तरह के बहाने खोजता है सच्चाई का जीवन जीने से बचने के लिए।

पर जिसमे यह साहस होता है जो यह जानकार की जीवन में क्या पाने लायक है और क्या करना उसका धर्म है फिर वह व्यक्ति हिम्मत जुटाकर उस काम को करना शुरू कर देता है।

और इस तरह जब उसकी जिन्दगी अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि धर्म की खातिर चलती है तो वह वास्तव में परमात्मा का भक्त बन जाता है, और उसे परमात्मा जीते जी इसी जन्म में मिल जाते हैं।

लेकिन वे लोग जो समझते हैं बुढापे में या मौत के बाद परमात्मा मिलते हैं तो ऐसे लोग घोर दुख और अन्धकार में जीवन बिताते हैं।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात भक्ति क्या है? इस प्रश्न का सीधा और सटीक उत्तर आपको मिल चुका होगा, हमें आशा है इस लेख को पढ़कर  भक्ति का महत्व और वास्तव में सच्ची भक्ति कैसे होती है? पता चल गया होगा, इस लेख को पढ़कर यदि जीवन में स्पष्टता आई है तो इस लेख को अधिक से अधिक शेयर भी जरुर कर दें।

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