दूसरों से प्रभावित क्यों हो जाता हूँ? अध्याय 19 सम्बन्ध पुस्तक सारांश

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मुझे सुनना है

अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा हम महज इस बात पर गवा देते हैं की हमारे ऐसा करने पर लोग क्या कहेंगे? या हमारे दोस्त, परिवार या समाज हमारे बारे में क्या सोचेगा?

दूसरों से प्रभावित क्यों हो जाता हूँ

वास्तव में हम दूसरों का ये बोझ अपने सर पर लेकर जी रहे होते हैं, इसका उपाय तुम्हें इस संसार में कहीं नहीं मिलेगा, आइये सम्बन्ध पुस्तक के 19वें अध्याय में हम आचार्य जी के शब्दों में इस समस्या का निवारण समझते हैं!

अपने सर के इस बोझ से मुक्ति लो

प्रश्नकर्ता: क्या मेरा हल्का होना सामने वाले को पता चलेगा?

आचार्य जी: जो सवाल पूछा है यही बोझ है, आपका ये प्रश्न की मेरे हल्केपन की स्तिथि सामने वाले को कैसे पता चलेगी, इस क्षण में तुम्हें ये विचार मन में आ कैसे सकता है?

प्रश्नकर्ता: क्योंकी सर, अगर उसको मेरा?

आचार्य जी: अगर अभी भी मन में ख्याल आते हैं उसे मेरे बारे में पता चलेगा या नहीं तो अभी सामने वाला ही बोझ है आपके लिए! तुम्हारे कहने का सीधा तात्पर्य है की मेरे मन में कोई छाया हुआ है, इस प्रश्न का तुम्हें कोई उत्तर नहीं मिल सकता।

जब तुम ये प्रश्न पूछ रहे हो तब तुम वास्तव में हलके हुए कहाँ? जिस पल तुम हलके हो जाओगे तुम्हारे मन से ये प्रश्न ही गायब हो जायेगा की मेरे हल्का होने से इस पर या उस पर क्या प्रभाव पड़ेगा, तब तुम मुक्त हो गए!

तुम्हारा सबसे बड़ा बोझ ही यही है की दूसरे क्या सोचेंगे! दूसरे पर क्या असर पड़ेगा और तुम्हें अपने इस प्रश्न का उत्तर नहीं चाहिए तुम्हें इससे मुक्ति चाहिए!

दूसरों को देखो आत्मा के प्रकाश की तरह

मन सवालों का जंगल है हममें से कोई नहीं जो इसे साफ़ कर सके, सिर्फ एक बोध है जो इसको पूरी तरह से हटाने में काबिल है और वो बोध है लोगों को एक आत्मा के प्रकाश की तरह देखना!

जब तक तुम इस बोध के साथ जीना शुरू नहीं करोगे, लोग तुम्हारे समक्ष एक जंगल की भांति हर दम खड़े रहेंगे! जंगल में कितने पेड़ है और उन पेड़ों की कितनी टहनियां, शाखायें आप काटोगे!

इस पूरे जंगल के मूल में जाओ जब तक यह जान नहीं लेते चारो और जो कुछ दिख रहा है वो अलग है नहीं बस प्रकाश का स्त्रोत है! तब तक यह बीमारी बनी रहेगी!

प्रश्नकर्ता: सर एक तरह का मेमोरी loss इस कार्य में मदद कर सकता है?

आचार्य जी: हाँ, बिलकुल अष्टावक्र ने भी भी कहा है ज्ञान का विस्मरण ही मुक्ति है, तो देखो तुमने क्या क्या याद रखा हुआ है, भूल जाइए उसे!

मनुष्य न सामजिक है न पशु

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी हमें बतलाते हैं दूसरों का बोझ कैसे हम सिर से हटा सकते हैं, अगर आप विस्तार से इस अध्याय ( दूसरों से प्रभावित क्यों हो जाता हूँ) का अध्ययन करना चाहते हैं तो Amazon से आप इस पुस्तक को ऑर्डर कर सकते हैं!

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