मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे| Chapter 5 Sambandh Book Summary i

अक्सर हमें अपने परिवार के भविष्य की बड़ी चिंता सताती है, क्योंकि हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है हमारा परिवार! इसलिए परिवार से हमारी बड़ी उम्मीदें जुडी होती हैं।

मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे

कई लोग तो अपने वर्तमान को छोड़कर भविष्य में जीना शुरू कर देते हैं ताकि जो परिवार की स्तिथि आज खराब है वो आने वाले समय में तो ठीक हो जाये! और ये तभी होता है जब जीवन में प्रेम नहीं बल्कि मोह होता है।

आचार्य जी सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के चौथे अध्याय में हमें प्रेम और मोह के हमारे सम्बन्धों से घर-घर में क्या होता है? बताते हैं, आइये इस अध्याय की समरी पढ़ना शुरू करते हैं।

परिवार के भविष्य का डर

आचार्य जी अध्याय के आरम्भ में रोहित (प्रश्नकर्ता) को सम्बोधित करते हुए कह रहे हैं रोहित का सवाल है क्यों हमें परिवार में किसी के नुकसान का डर या कुछ अशुभ हो जाने का डर होता है? परिवार के प्रति ये डर क्यों और इसका सामना कैसे करें?

आचार्य जी जवाब में कहते हैं रोहित, हमने सदा से मोह, लगाव, आसक्ति को जाना है प्रेम को कभी समझा ही नहीं, एक बात बताइए ये सब डर जो तुम्हें भविष्य को लेकर सताते हैं। क्या कभी सोचा है वर्तमान में तुम्हारे सम्बन्ध अपने परिवार के साथ कैसे हैं? बताइए जीवन वर्तमान में है या भविष्य में?

वर्तमान में न?

लेकिन चूँकि भविष्य की चिंता करने से परिवार के प्रति डर थोडा शांत हो जाता है, इसलिए तो लोग जमके लाइफ इंश्योरेंस करवाते हैं ताकि ये तसल्ली तो हो जाये की मेरे बाद परिवार अच्छे से जी सके।

पर सच्चाई इसमें नहीं है, बस ऐसा करके इंसान अपने पति, बच्चों और मां-बाप के साथ अपना रिश्ता सुधारने की बजाय पैसा जोड़ने में बिता देता है।

पर फिर सवाल है वर्तमान में परिवार के साथ सही सम्बन्ध होना जरूरी है या फिर भविष्य की कल्पनाओं में जीना?

एक कहावत है पूत कपूत तो क्यों धन संचय, और पूत सपूत तो क्यों धन संचय

अगर औलाद अगर अच्छी है तो फिर वो खुद धन इक्कट्ठा कर लेगी, और अगर औलाद बेकार निकल गई उसे तुम्हारा एकत्रित किया पैसा हाथों में मिल गया तो वो पैसा तुम्हारे लिए ही घातक सिद्ध होगा।

परिवार पर ध्यान दो, भविष्य पर नहीं

आगे आचार्य जी कहते हैं तो तुम किसके लिए पैसा इक्कठा कर रहे हो? सबसे जरूरी है अभी तुम्हारा अपने बच्चों पर ध्यान देना, पर चूंकि प्रेम नहीं होता न रिश्तों में इसलिए तो फिर बेटी के पैदा होते ही उसके दहेज़ के लिए fd खोल देना, लड़के के आराम के लिए प्रोपर्टी खरीद लेना ये सब चीजें करी जाती है।

ये प्रेम है तुम्हारा अपने बच्चों से? वाकई प्रेम होगा तो फिर जो शिक्षा, जो चीज़ उन्हें जिसकी सख्त जरूरत है इस समय तुम उन्हें वो दोगे।

भविष्य की योजनाओं के कारण प्रेम का रिश्ता कभी पनप ही नहीं पाता, फिर जो तुम कहते हो दुनिया बड़ी खराब है, तो बताओ न ये बच्चे जो कॉलेज, घरों से निकलकर आ रहे हैं? हमारे ही परिवारों से तो..

प्रेम है आज में तो, कल स्वयं सुन्दर होगा

आगे इस अध्याय में आचार्य जी हमें यह सन्देश देते हैं की अपने आज में डूबो, और ऐसा तभी होगा जब प्रेम होगा क्योंकि प्रेम का अनिवार्य लक्षण है की वो आज, अभी के बारे में सोचता है कल क्या होगा उसे पता नहीं।

लेकिन हमारे रिश्तों में प्रेम की जगह मोह, लगाव होता है तो हम आज से ज्यादा भविष्य में जीना शुरू करते हैं।

मोह यानी लगाव ही वह कारण है जिसकी वजह से वह अपने वर्तमान को भी अपने भविष्य की उम्मीदों को पूरा करने में लगाते हैं, जैसे कोई अपने परिवार में खूब धन दौलत लाना चाहता हो तो वो आज भी कर्म करेगा तो इसलिए ताकि कल धन सम्पन्नता आये।

लेकिन प्रेम की ख़ास बात है वो कल में नहीं जीता इसलिए वहां फिर चिंता भी गायब हो जाती है, प्रेम कभी नहीं कहेगा की तुम मुझे बड़े अच्छे लगते हो चलो तुमसे 3 महीने बाद शादी कर लेंगे और फिर ये रिश्ता आजीवन रहेगा, हो गया इंश्योरेंस।

कल की चिंता का समाधान

आचार्य जी हमें कल की चिंता को खत्म करने का एक आसान सूत्र देते हैं, कहते हैं जब भी मन कल की/भविष्य की चिंता करे तो पूछना खुद से क्या मैं इस पल वो कार्य कर रहा हूँ जो करना उचित है?

जब आप अपने वर्तमान में वो चीज़ करने लग जाते हैं जो सही है तो फिर समय नहीं बचता भविष्य के बारे में सोचने का, चिंता करने का! क्योंकी आगे की अगर सोचोगे तो फिर आज भी खो दोगे और जब बीज ही ढंग से पोषित नहीं किया तो कल पेड़ कैसे प्राप्त करोगे।

तो समझ लो जब भी आगे की चिंता सताए तो समझ लो प्रेम नहीं है, लगाव है, मोह है, आसक्ति है और जहाँ लगाव नहीं होगा वहां क्लेश होगा, हिंसा होगी।

अंतिम शब्द

धन्यवाद!! तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी हमें समझाते हैं की मोह भय में मरता है जबकि प्रेम में चिंता नहीं सताती, अगर आप इस पूरे अध्याय (मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे) का अध्ययन करना चाहते हैं तो Amazon से यह पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैं।

इस पुस्तक के पिछले अध्याय पढ़ें:-

« हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध | अध्याय 4 

« क्या मित्रता बेशर्त होती है? Chapter 3

« माँ- बाप समझते क्यों नहीं? Chapter 2

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