माँ का अर्थ जानो और स्वयं को जन्म दो | Chapter 16 Summary

आचार्य जी ममता और लगाव दोनों को हितकारी नहीं मानते, मोह भय में मरता है परन्तु प्रेम को फ़िक्र नहीं होती परन्तु एक प्रश्नकर्ता ने मोह और आसक्ति के विषय पर एक बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न किया है। (माँ का अर्थ जानो और स्वयं को जन्म दो Chapter 16 Summary)

माँ का अर्थ जानो और स्वयं को जन्म दो

इस अध्याय में आचार्य जी हमें माँ शब्द का वास्तविक अर्थ बतलाते हैं और समझाते हैं मातृभाव ही हमें वास्तविक जीवन देता है, ममता नहीं चलिए इस वार्ता को समबन्ध नामक इस पुस्तक के सोलहवें अध्याय में पढ़ते हैं।

माँ शब्द के दो अर्थ

प्रश्नकर्ता: क्या माँ का अपने बच्चे के प्रति प्रेम आसक्ति होता है?

आचार्य जी कहते हैं देखिये किसी भी शब्द के दो अर्थ होते हैं, और उस शब्द के वह दोनों अर्थ अलग अलग तल (डाईमेंशन) के होते हैं।

फिर चाहे वह शब्द जीवन हो, मृत्यु हो, प्रेम हो या माँ हो, इन शब्दों का अर्थ इस बात पर निर्भर करता है की किस मन से उसे देख जा रहा है?  और मन या तो समझदार होता है या फिर नासमझ। अतः जब किसी भी बात का अर्थ निकाला जाता है तो देखा जाता है वह समझ से आ रहा है या नासमझी से।

इसी तरह माँ शब्द का अर्थ हम सामान्यतया निकालते हैं उससे अर्थ होता है शरीर से, जिस इंसान से एक नया शरीर निर्मित होता है उसे हम प्रायः माँ कह देते हैं। पर माँ द्वारा बच्चे को जन्म देना एक शारीरिक प्रक्रिया है इसलिए यह माँ शब्द का एक सतही अर्थ है।

माँ शब्द का वास्तविक अर्थ

एक दूसरा अर्थ भी हो सकता है माँ का, वह जो आपको शरीर से न जन्म दे परन्तु तुम्हें ये समझने लायक बनाती हो की ये संसार क्या है? मन क्या है? और शरीर क्या है? वही तुम्हारी वास्तविक माता है।

देखिये शारीरिक तौर पर माँ होने के लिए विशेष पात्रता नहीं चाहिए, पशु भी बच्चों को जन्म देते हैं।  तो हम किस माँ की बात कर रहे हैं वो जिससे हमें शरीर प्राप्त होता है।

लेकिन वास्तव में तो वो जन्म है ही नहीं, जन्मदात्री तो वह है न जो हमें इस शरीर से ही मुक्ति दे दे, जो हमें समझा दे ये संसार क्या है, मुक्ति क्या है?

ममता नहीं मातृभाव

दोनों माँ के बीच अंतर होता है एक माँ जो हमें जन्म देती है उसके पास ममता होती है, और दूसरी माँ जिसके पास मातृभाव होता है, और संसार में लगभाग 99 प्रतिशत महिलायें ममता जानती हैं मातृभाव नहीं।

ममता शब्द का संस्कृत अर्थ मम होता है मम यानि मेरा, जैसे मेरा मोबाइल, मेरा बच्चा, मेरी कार, ममता सिर्फ एक भाव है क्योंकि मेरे शरीर से उत्पन्न हुआ है।  वास्तविक मां तो एक गुरु होता है जो तुम्हारे अन्दर ज्ञान का प्रकाश भरता है तुम स्वयं भी अपने गुरु हो सकते हो, माँ हो सकते हो, इसलिए तो जानने वाले परम (जो सबसे ऊँचा है) उसे अपनी माँ या पिता कह गए।

एक व्यक्ति जो स्वयं अंधरे में हैं जिसे होश नहीं वो एक बच्चे को जन्म देगा तो भला कैसे वो अपने बच्चे को रोशनी दे पायेगा, जब उसे कभी खुद मिली नहीं।

ममता एक भाव है, एक केमिस्ट्री है, हार्मोन है यह पशुओं में भी होता है अपने बच्चों को लेकर इसे प्रेम मत समझिएगा।

वास्तविक माँ या पिता कौन जो प्रेम जाने, लेकिन जब कभी तुम्हारे खुद के जीवन में रोशनी नहीं रही तो बताओ न जिस नन्हे बच्चे को तुमने जन्म दिया है तुम उसे कैसे प्रकाशित कर पाओगे?

उसके लिए तो तुम्हें खुद का जीवन अलग तरह से जीना होगा, माता पिता से अधिक कोई सम्माननीय नहीं पर सिर्फ वही सम्माननीय हैं जो वास्तविक माता पिता हैं, एक सच्चा मित्र कौन जो तुम्हें बेहोशी की तरफ बढ़ने से रोके उसी तरह वास्तविक मां वह नहीं हुई जो सिर्फ तुम्हें एक शरीर की तरह देखती हो, प्रायः घरों में बच्चे ने खाना खाया की नहीं, शरीर तो उसका दुबला नही हो गया इसकी बहुत फ़िक्र होती है।

पर बच्चे की आत्मा को क्या हो रहा है मां को कोई मतलब नहीं, और ऐसा नहीं है की माँ निष्ठुर है उसे बच्चे की फिक्र नहीं है। बल्कि सच्चाई ये है की उसे ही समझ नहीं है तो कैसे वो बच्चे को समझ दे सकती है।

आज दुनिया अँधेरे में डूबी हुई है, इसलिए जो उनकी संतानें होती है वो भी फिर अंधरे में डूबी रहती है।  वास्तविक माँ वह जो वास्तविक जन्म दे। पर बहुत कम ऐसे सौभाग्यशाली होते हैं जिनकी माँ ही उनकी वास्तविक माँ होती है, पर तुम्हारे साथ अगर ऐसा नही है तो कोई बात नहीं मौका है तुम जानो, और उस ज्ञान के प्रकाश को और लोगों तक पहुँचाओ।

सत्य को जान, दूसरों को जन्म दो

कहते हैं जो सत्य को जान गया समझो तर गया, अतीत में जो हुआ भूल जाओ अब तुम्हें तो नहीं रोका न किसी ने संसार को जानने से, मुक्त होने से, इतिहास में ऐसे भी उदाहरण है जहाँ पर एक पिता ने बेटे के ज्ञान के प्रभाव से उसके पैर छुए, तुम क्यों ऐसे बेटे नहीं बनना चाहते, डूबा होगा संसार अँधेरे में पर तुम क्यों नहीं दूसरे के जन्म का कारण बन सकते, वही होगा एक सच्चा प्रेम।  

जिसमें वास्तविक प्रेम होगा वो खुद भी जागेगा और दूसरों को भी जगायेगा ये है मातृभाव, इससे पहले की तुम किसी को जन्म दो एक शर्त रख रहा हूँ की तुम पहले खुद को जन्म दो, उस बोध के बिना कोई कैसे किसी को जीवन दे सकता है।

अंत में आचार्य जी कहते हैं माँ बाप की मान्यताओं, पूर्वाग्रहों को आगे बढ़ाना सेवा नहीं है अपितु उन्हें बोध देकर नव जीवन दो यही एक सच्चे बेटे का फर्ज है ये नहीं की माँ के अंधविश्वासों और पिता की धारणाओं को चोट न पहुचें इसके लिए मैंने उन्हें सत्य के करीब आने ही नहीं दिया।

हर साल जन्मदिन मनाते हो इस बार असली वाला जन्मदिन मनाओ, जिसमें वास्तव में तुम्हारा जन्म हो जाए।

सम्बन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय 👇

« ममता स्वार्थ है, मातृभाव प्रेम है | Chapter 15 

« बिना उम्मीद, बिना मतलब | Chapter 14 

« हम पशुओं को क्यों मारते हैं? सम्बन्ध पुस्तक अध्याय 13

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह इस अध्याय माँ का अर्थ जानो और स्वयं को जन्म दो नामक इस अध्याय की समाप्ति होती है, अगर आप इस लेख को विस्तार से पढना चाहते हैं तो Amazon से यह पुस्तक ऑर्डर कर सकते हैं।

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