सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम रहित | अध्याय 6

प्रेम को लेकर अनेकों बार आचार्य जी ने विस्तार से चर्चा की है, लेकिन इस अध्याय में हम समझेंगे न सिर्फ लोगों से बल्कि वस्तुओं से भी हमारा सम्बन्ध बहुत गलत होता है। ( सम्बन्ध लाभ-आधारित तो प्रेम रहित Chapter 6)

सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम रहित

जिस तरह लोग अपना मतलब साधने के लिए लोगों का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह हम जीवन में कई सारी बेहतरीन चीजों से वंचित रह जाते हैं क्योंकि हम उन्हें उपयोग करो और फेंकों (यूज & थ्रो) की दृष्टि से देखते हैं।

आइये इस बेहतरीन अध्याय का सारांश पढना शुरू करते हैं! और अपने सम्बन्धों को सुधारने की इस पहल में आगे कदम बढाते हैं।

किताबों के साथ हमारा सम्बन्ध

प्रश्नकर्ता:- आचार्य जी परीक्षा में कहीं फेल न हो जाऊं, या नम्बर कम न आ जाये, इस डर से पढ़ाई करता हूँ ऐसा नहीं की प्रेम है किताबों से।

आचार्य जी:- तुम्हारे ऐसा करने की सीधी वजह है पढ़ाई करके कुछ पा लेना,और गलती इसमें तुम्हारी भी नहीं है क्योंकि बचपन से ही हमें यही सिखाया गया है पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब.. क्या बनोगे नवाब

तो लक्ष्य क्या है नवाब बना जा सके। और अगर नवाबी बिना पढ़े ही मिल रही हो तो फिर इन किताबों की जरूरत ही क्या?

दूर करो इन्हें, किताबों का उपयोग हम एक सड़क की तरह ही करते हैं ताकि मंजिल तक पहुंचा जा सके अब अगर सीधा हवाई जहाज तुम्हें तुम्हारे गंतव्य स्थान (डेस्टिनेशन) तक ले जा रहो फिर सडक की भला क्या जरूरत?

है न, तो किताबों का तो बस इस्तेमाल किया जाता है ताकि नम्बर अच्छे आये, नौकरी मिले और फिर कुछ बना जा सके।

किताबों का शोषण

लेकिन जो तुम्हारी ये स्तिथि है न इसमें पाओगे तुम किताबों का शोषण कर रहे हो सिर्फ, तुम्हें किताबें पढनी इसलिए नहीं है क्योंकि तुम्हें इनकी संगती अच्छी लगती है, पढने में तुम्हें आनंद आता हो तुम किताबों की तरफ आते हो फेल हो जाने के डर से।

तुम्हें पता हो बिना स्कूल जाए भी पास हो जाओगे तो तुम कभी क्लास में उपस्तिथ न हो, तुम्हें पता चले बिना पढ़े डीग्री मिल जाएगी, तो कॉलेज का मुंह नहीं देखोगे।

तो अगर किताब पूछे आपसे मेरे साथ रिश्ता क्या है? जवाब होगा “शोषक का” जब सोचो किताबों को आप घृणा की नजर से देखते हो कितना बुरा लगता होगा न उन्हें, जब तुम कहते हो पढ़ लिया चल अब साइड हो!

सुनने में बुरा लग रहा है न किताब को तुमसे अधिक बुरा लगता होगा।

हर सम्बन्ध में ढूंढते हैं हम फायदे

किताबों के साथ बनाया गया यह लाभ का रिश्ता फिर आगे इंसानों के साथ भी ऐसे ही बनता है, कॉलेज में लड़के की टी-शर्ट में लिखा दिखता है ” माई डैड इस माय एटीएम”

और फिर बुढापे में वही पिता वृद्धाश्रम में दिखाई देते हैं, कोर्ट में अधिकतर तलाक के मुद्दे क्या होते हैं जानते हो? पत्नी के मुंह पर एसिड गिर गया? अब रात को इसकी शक्ल देखता हूँ तो धक्क से दिल रह जाता है! मुझे नींद नहीं आती।

सीधे-सीधे पत्नी के साथ शरीर का रिश्ता था! तो इस तरह कुछ और उदाहरणों के साथ आचार्य जी हमें बताते हैं हमने प्यार तो कभी सीखा नहीं हमने रिश्ते बनाये हैं बस अपने फायदों के लिए।

प्रेम फायदा नहीं देखता

आचार्य जी, इस अध्याय में आगे बतलाते हैं की प्रेम कुछ मांगता नहीं है अतः जिस दिन तुम प्रेम से किताब के पास जाओगे बिना किसी लाभ की आशा के, उस दिन देखना कितना आनदं आएगा उसे पढने में, उसमें से कुछ जानने में और जब तक इस फायदे नुकसान की बात देखते रहोगे तब तक प्रेम से दूर ही रहोगे।

हर दम, हर समय तुम्हें ये प्रशिक्षण दिया जा रहा है की अपना फायदा देखो, पर जब तक लाभ-हानि के इस चक्र में हो जिन्दगी नरक रहेगी क्योंकि जिन्दगी में प्रेम नहीं होगा।

सम्बन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय-

« मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे| Chapter 5

« हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध | अध्याय 4

« क्या मित्रता बेशर्त होती है? Chapter 3

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह इस अध्याय में आचार्य जी हमें बतलाते हैं की सम्बन्ध लाभ-आधारित हैं तो प्रेम रहित होंगे ही, अगर आप इस अध्याय को विस्तार से पढ़ना चाहते हैं तो Amazon पर यह पुस्तक उपलब्ध है जिसे आप Amazon से ऑर्डर कर सकते हैं!

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