आज सम्बन्ध नामक इस पुस्तक का सांतवा अध्याय हम आपके समक्ष लेकर आये हैं,जिसमें हमें पता चलता है सदियों से लोग जिस चीज़ को प्रेम कहते आये हैं वो वास्तव में प्रेम होता ही नहीं। ( झूठा प्रेम Chapter 7 Summary)
प्रेम को कभी हम मोह समझ लेते हैं तो कभी आकर्षण और आचार्य जी हमें इस झूठे प्रेम के बारे में विस्तार से बता रहे हैं ताकि हम इस नकली प्रेम से बचकर जीवन में सच्चा प्रेम लाकर अपने सम्बन्धों को बेहतर बना सके! आइये इस अध्याय को पढना शुरू करते हैं।
प्रेम के हैं ये नकली नाम आकर्षण और ममता
प्रश्नकर्ता: जिससे जितना प्यार होता है उससे उतनी नफरत भी होती है, अगर कोई लड़की भाग जाती है तो उसका बाप उसे मार डालने का कदम भी उठा लेता है? ऐसा क्यों सर?
आचार्य जी: देखो दो चीजें समझनी आवश्यक हैं एक वास्तव में प्रेम क्या है? दूसरा हमने कुछ चीजों को प्रेम का नाम दे दिया है लेकिन असल में प्रेम का इन चीजों से कोई सम्बन्ध नहीं है।
पहला झूट शारीरक आकर्षण को प्रेम मान लेना, जैसे ही व्यक्ति जवान होने लगता है तो शरीर की यौन ग्रन्थियां सक्रिय होने लगती है, वह दूसरे लिंग की तरफ आकर्षित होने लगता है और गलतफहमी ये की उसे लगता है मुझे प्यार होने लगा है।
ये प्रेम है तो यही प्रेम जब तुम बच्चे थे 8 साल के तब क्यों नहीं हो गया था? बस हार्मोन्स में बदलाव हो गया तो अचानक प्रेम फूट गया? समझो ये शारीरिक प्रक्रिया है इसे प्रेम नहीं कहते।
मोह का मतलब प्रेम नहीं होता
दूसरा मोह ममता को भी हम प्रेम का नाम देते हैं, पहले समझिये मम शब्द का अर्थ होता है मेरा और ममता का अर्थ हुआ ये मेरी चीज़! प्रकृति ने सभी इंसानों में ममता का भाव दिया है पर समझना प्रेम ये भी नहीं है। जब एक बच्चा पैदा होता है तो माँ का उससे लगाव होता है क्योंकि वो बच्चा उसके गर्भ से जन्मा है।
अगर 6 महीने बाद पता चले यही बच्चा किसी और का है हॉस्पिटल में अदला बदली हो गयी तो तुरंत अपने की खोज बीन शुरु हो जाएगी और मिल जायेगा तो उसे घर लाया जाएगा।
अगर प्रेम ही होता तो फिर बच्चा कोई भी हो उसे भी उतना ही स्नेह दिया जाता न जो अपने शिशु को दिया जाना चाहिए! ये उसी तरह की बात हो गयी यहाँ टेबल में कई सारे पेन रखे हैं अब आपकी नजर तो सिर्फ अपने वाले पर होगी न, तो आप झट से उसे उठा लोगे क्योंकि ये आपका है।
तो हमारा प्रेम बच्चे से नहीं मम यानि “मेरे” के भाव से होता है वरना मूल रूप से किसी बच्चे में कोई अंतर होता है क्या?
पर बचपन से ही हमें बता दिया है की इसी मालकियत की भावना को प्रेम कहा जाता है, मेरी कार, मेरा बच्चा, मेरा धर्म…
और जब आप किसी वस्तु, व्यक्ति इत्यादि को मालकियत की भावना से देखते हो तो अन्दर अपेक्षाएं फूटती हैं। ये उम्मीदें जब पूरी नहीं होती तो फिर झगड़े, द्वेष शुरू होते हैं। घरों में ऐसे झगड़े ख़ूब देखने को मिलते हैं, तुमने मेरे लिए ये नहीं किया, फलाने ने अपने पिता के लिए इतना किया… इत्यादि।
प्यार या व्यापार देखिये क्या है आपके जीवन में?
देखते हो न! देखिये इन्सान दो तरह से जीवन जी सकता है एक प्यार में, दूसरा व्यापार में चूँकि उम्मीदें और लेना देना व्यापार में होता है तो अधिकतर लोग इसी में जीवन जीतें हैं मैंने तुम्हारे लिए जीवन में ये किया है अब बारी तुम्हारी है।
ये सीधा-सीधा व्यापार है, और अपेक्षाएं हमारी न सिर्फ दूसरों से होती है बल्कि खुद से भी जुडी होती हैं। इसलिए तो हमें लगातार बताया जाता है ये बन जाओ ये पद हासिल करो तभी जीवन सफल है अन्यथा व्यर्थ है, तो जब हम अपनी ये उम्मीदें पूरी नहीं कर पाते तो फिर खुद को घृणा की नजरों से देखते हैं।
अतः रिश्तों में चूँकि यही झूठा प्रेम देखने को मिलता है इसलिए वहां घृणा भी साफ़ देखने को मिल जाती है क्योंकि जहाँ उम्मीदें हैं उसी के पास घृणा भी वास करती हैं!
झूठे प्रेम को जीवन से कैसे निकालें?
प्रश्नकर्ता: सर क्या बिना आकर्षण के भी जीवन जिया सकता है, हम कैसे इस तरह के झूठे प्रेम से बच सकते हैं?
आचार्य जी: बिलकुल जीवन में सच्चा प्रेम करने की सम्भावनाएं होती है, और झूठे प्रेम को समझने और इससे दूर होने का एक मात्र तरीका है होश में रहकर जीना!
अगर कोई आकर्षित कर रहा है तुम्हें तो तुरंत ये जान लो की ये मुझे नहीं मेरे हार्मोन्स को आकर्षित कर रही है, सोचो न यही चीज़ आज से 10 साल पहले क्यों नहीं आकर्षित कर रही थी, क्योंकी अब वो हार्मोन्स सक्रिय हैं! बस इसलिए।
देखो ये मांग तुम्हारे शरीर की है, और ये होना लाजिमी है क्योंकि प्रकृति ने हमें इसी तरह बनाया है, पर ध्यान देना तुम शरीर नहीं हो तुम चेतना हो शरीर एक मशीन की तरह है ये अपना काम करेगा पर चूँकि तुम चेतना हो इसलिए शरीर की इन हरकतों को समझना तुम्हारा स्वभाव है।
तुम्हें जानना होगा की प्रकृति ने ये शरीर इसीलिए तुम्हें दिया है ताकि तुम अपनी तरह ही बच्चे पैदा करो, और आबादी बढाओ।
पर तुम्हारी समझ ही एकमात्र अपनी है जो आपको बताएगी की तुम प्रकृति नहीं हो, तुम उससे भी आगे की कोई चीज़ हो तुम चेतना हो।
सम्बन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय –
« सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम रहित
« मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे| Chapter 5
« हमारे रक्त-रंजित सम्बन्ध | अध्याय 4
अंतिम शब्द
तो साथियों इस तरह अध्याय में आचार्य जी इस बातचीत को विराम देते हैं, इस अध्याय (झूठा प्रेम ) में प्रश्नकर्ता और आचार्य जी के बीच कई तरह के सवाल जवाब होते हैं जिससे झूठे प्रेम को लेकर अवधारणाएं टूटती हैं। अगर आप इस पूरे अध्याय को पढ़ना चाहते हैं तो आप Amazon से इस पुस्तक को ऑर्डर कर सकते हैं।