हमें लगता है जिससे प्रेम है उसी से शादी भी होनी चाहिए? और शादी होगी तो आजीवन प्रेम रहेगा। और शायद यही सोचकर दुनिया में लोग शादी के बंधन मे बंधते हैं। ( प्रेम और विवाह Chapter 8 Summary)
पर क्या वास्तव में जहाँ प्रेम है वहां विवाह होना जरूरी है? ऐसा क्यों है शादी के बाद प्रेम ख़त्म-सा हो जाता है? इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के आठवें अध्याय में जिसमें आचार्य जी हमें प्रेम और विवाह के सम्बन्ध की सच्चाई बता रहे हैं।
प्रेम के तीन तल जिसमें छुपा है प्रेम का अर्थ
आचार्य जी कहते हैं हमें लगता है प्रेम और विवाह का कोई गहरा ताल्लुक है इसीलिए कई बार हम इसे प्रेमविवाह भी कह देते हैं।
पर इससे पहले की हम विवाह और प्रेम के सम्बन्ध को समझें हमें प्रेम के तीनों तलों को जानना होगा!
प्रेम का सबसे निचला तल आकर्षण होता है, जब हमें किसी व्यक्ति से या वस्तु से भी आकर्षण होता है तो हम कहते हैं की हमें प्यार हो गया फलाने शक्स से या फिर किसी चीज़ से।
कोई आपको कार भा गई या मोबाइल पसंद आ गया तो आप कह देते हैं मुझे इस कार से बड़ा प्यार है, लेकिन उस वक्त आप उस गाडी की सच्चाई तक जा नहीं पाते।
आप ये सोचते ही नहीं की आपका प्यार इस गाडी से कब तक रहेगा! कुछ समय बाद जब उसमें खराबी होना शुरू होती है और उसका रंग फीका पड़ने लगता है तो क्या तब भी तुम्हें उससे वो प्यार रहेगा?
नहीं न, इसी तरह हमें व्यक्ति की सुन्दरता से आकर्षण होता है और हम इसी को प्यार का नाम देते हैं जो की प्यार है ही नहीं। लेकिन आपकी सुविधा के लिए इसे प्रेम का सबसे निचला तल कहकर सम्बोधित करेंगे।
प्रेम का दूसरा तल जिसमें लगा रहता है किसी को खोने का डर
अब आते हैं प्रेम के दूसरे तल पर, आपके जीवन में कोई आया, जिसके आने से आपके जीवन में शांति आई और जीवन में आनन्द का अनुभव हुआ।
कोई है जिसके पास आने से आप अपने और करीब चले जाते हैं, जिसके होने से आप सब सुख-दुखों को भूल जाते हैं।
अब जो आपको ये अधूरा-अधूरा आनंद मिलता है आप चाहते हैं यह भर जाए, तो फिर उस व्यक्ति से आजीवन आनंद की चाह में हम रिश्ता जोड़ लेते हैं विवाह का।
अब देखो आपने यहाँ अपने सुकून के लिए क्या कर दिया किसी को बंधन में बाध दिया, ये ऐसे ही है जैसे आपको कोई चिड़िया बहुत पसंद हो और आप चाहते हैं वो चिड़िया आपसे कहीं दूर न जाए। तो आप उसके खाने पीने का इन्तेजाम कर देते हैं, उसके लिए पिंजरा बना देते हैं चाहे सोने का सही और उसे एक हार पहना देते हैं।
पर आपने ऐसा करके अपने आनदं के लिए उसकी आजादी तो छीन ही ली, और जो हमारा विवाह होता है वो भी तो इसी के आधार पर होता है कोई हमे अच्छा लगा और अब यह सुकून के पल हर समय साथ रहें इसके इन्तेजाम के लिए हम शादी कर लेते हैं।
पर जैसे ही आपने अपने सुख के लिए किसी को बंधन में बाँध दिया तो वहां से प्रेम ख़त्म हो जायेगा।
क्योंकि प्रेम बड़ी मुक्त चिड़िया है, उसे जैसे ही आप कैद करने की कोशिश करोगे वो फुर्र से उड़ जाएगी, सर्दियों के दिनों में धूप बड़ी अच्छी लगती है, पर उसे पकड के देखो हाथ नहीं आएगी, इसी तरह हवा को जैसे ही पकड़ने के लिए मुट्ठी भीचोगे, हवा गायब..
प्रेम ऐसा है जिसे कैद नहीं किया जा सकता।
प्रेम का तीसरा तल- जहाँ है परम आजादी, निर्भयता और आनदं
प्रेम का एक तीसरा तल भी है, दूसरे तल पर जो आनन्द, शांति व्यक्ति को दूसरे के निकट होने से मिल रही थी उसी आनंद के लिए अब उसे किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता, यानी जो अपने आप में ही भरा हुआ हो, मुक्त हो तो फिर उसे किसी को बांधने की आवश्यकता नही पडती।
और यही वास्तव में सच्चा प्रेम होता है, क्योंकि इस तल पर आप भिखारी नहीं होते जो कहे किसी से प्लीज मुझसे शादी कर लो न और मेरा जीवन खुशियों से भर दो, या थोड़ी देर के लिए ही सही मेरे साथ समय बिताओ।
नहीं तीसरे तल का व्यक्ति तो राजा समान होता है चूँकि वो प्रेम से भरा हुआ है तो वो फिर दूसरों से भी प्रेम बांटता है, उसका प्रेम का पात्र (कटोरा) इतना भरा रहता है की फिर वह छलकता है और वही प्रेम दूसरों को भी प्राप्त होता है।
दूसरे तल पर तो व्यक्ति शादी करता है परिवार के, समाज के डर से की शादी नहीं की तो इस शक्स से दूर न हो जाऊं, लेकिन इस तल पर जीने वाला व्यक्ति बेख़ौफ़ होकर प्रेम करता है, उसे प्रेम करने के लिए समाज और लोगों की स्वीकृति की जरूरत नहीं होती।
प्रेम होता है दूसरे तल पर जिससे मिलते हैं बंधन
आचार्य जी अंत में कहते हैं जो विवाह होता है वो न तो पहले तल पर होता है और न तीसरे तल पर इसलिए जहाँ विवाह होता है वहां बंधन होते हैं।
तुम्हें मिल जाए कोई जो बहुत विशेष हो जिसके आने से तुम्हें लगता है जीवन में नयी ताजगी, बहार सी आ गई है, तो तुम्हें उसे खोने का डर भी सताने लगता है, तो फिर इस डर का अंतिम इलाज होता है उससे शादी करना।
ध्यान देना इस तल पर प्रेम नहीं होता क्योंकि विवाह के बाद रिश्ता प्रेम का नहीं पति पत्नी का हो जाता है, तुम रोज शाम घर की तरफ लौट रहे हो इसलिए नहीं क्योंकि प्रेम है, बल्कि मजबूरी है तुम एक पति हो, बाप हो!
एक शादी शुदा जीवन तयशुदा होता है जिसमें पहले से ही पता होता है पति पत्नी को एक दूसरे के साथ कैसा आचरण करना है, क्या नहीं करना है और कौन सी उम्मीदें रखनी है इत्यादि और यह रिश्ता एक तरह से शर्तों के आधार पर खड़ा होता है।
तभी तो देखिये न विवाह के समय इतनी कसमें क्यों खाई जाती ? बंधन में जीने के लिए, और जहाँ बंधन है वहां प्रेम नहीं हो सकता।
समबन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय 👇
« झूठा प्रेम | Chapter 7 | Sambandh Book Full Summary
« सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम रहित
« मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे| Chapter 5
अंतिम शब्द
उम्मीद है यहाँ दी गई चैप्टर की समरी आपको अधिक स्पष्ट और सच्चाई का बोध करवाने में साहयक हुई होगी। अगर आप इस अध्याय (प्रेम और विवाह Chapter 8 ) में आचार्य जी द्वारा कही गई प्रत्येक बात को विस्तार से समझना चाहते हैं तो Amazon पर यह पुस्तक उपलब्ध है! जिसे आप अभी ऑर्डर कर सकते हैं, साथ ही इस अध्याय को अन्य मित्रों के साथ भी सांझा कर दें।