साथ हैं, क्योंकि प्रेम है, या आदत है? Chapter 9 Full Summary in Hindi

कई लोगों के लिए अकेलापन एक डरवाने सपने की तरह होता है, थोड़ी देर वो एकांत में रहें तो वो परेशान हो जाते हैं वो मोबाइल ढूंढते हैं, उठकर किसी से मिलने चल देते हैं! यह अवस्था अगर आपकी जिन्दगी में भी है तो आपकी स्तिथि कुछ अच्छी नहीं है। ( साथ हैं, क्योंकि प्रेम है, या आदत है Chapter 9)

साथ हैं, क्योंकि प्रेम है, या आदत है

जी हाँ क्यों अकेले रहने से लोग डरते हैं? आपस में प्रेम न होने के बाद भी लोग भीड़ में क्यों रहना पसंद करते हैं? यह सब हमें समझ आएगा सम्बन्ध पुस्तक के नौवें अध्याय का अध्ययन करने पर! आइये पढना शुरू करते हैं।

अकेलेपन का सही अर्थ

प्रश्नकर्ता: क्या अकेले रहने से मनुष्य का विकास सम्भव है?

आचार्य प्रशांत: बिलकुल, पहली चीज़ समझें बाहर से जितनी भी चीजें आती हैं जीवन में वो महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि उनसे शरीर को चलाने में मदद मिलती है।

दूसरा बाहर की जितनी भी चीजें हैं उनसे आपका प्रेम का सम्बन्ध है तो भी अच्छा है।

पर अगर बाहर की चीज़ तुम पर हावी हो जाये तो फिर वो चीज़ खुद तुमसे भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी न, अगर बाहरी लोग या चीजें ही तुम्हारे सर पर चढ़ जाए जैसे एक मिठाई के चारों तरफ मक्खियाँ घिरी रहती हैं, तो फिर बाहर की चीजें तुमसे भी ऊपर की हो गई, जो की नहीं होना चाहिए था।

तो थोडा जाँचिये आपके दुनिया के साथ सम्बन्ध कैसे हैं? अगर वो ऐसे हैं जो शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए हैं, या फिर प्रेम से हैं तो बेहतरीन है। पर अगर बाहरी लोग ही तुम पर हावी हो गए हैं तो फिर स्तिथि खराब हो चुकी है! पर वास्तव में हम में से अधिकतर लोगों के साथ यही होता है।

झुण्ड में व्यक्ति का विकास संभव नहीं

आगे आचार्य जी कहते हैं इसलिए अकेलापन जरूरी है क्योंकी झुण्ड में व्यक्ति का विकास नही हो सकता, झुण्ड में पांच लोग एक दूसर से चिपकते इसलिए थोड़ी दिखाई देते हैं क्योंकि आपस में प्रेम हैं, बल्कि उसके पीछे पुरानी आदत होती है क्योंकि बचपन से ही हम झुण्ड में रहना सीखता आये हैं।

और विकास का अर्थ यह मत समझिएगा रूपया, पैसा या कोई भौतिक तरक्की कर लेना, नहीं विकास तब होता है जब पुरानी गंदगी, पुराने ढर्रे अर्थात जो हमारी पुरानी आदतें हैं वो साफ़ हो जाये।

और अकेले हो जाने का यह अर्थ कतई नहीं की सबसे अलग हो जा कर दूर बस जाना! अकेलापन ही वास्तव में तुम्हें सिखाता है लोगों के साथ आपके सम्बन्ध कैसे होने चाहिए।

अन्यथा आदमी बाहरी लोगों के साथ इसलिए नही रहता क्योंकि प्रेम है बल्कि एक दूसरे से बंधने के लिए होता है जैसे एक जेल में 2 कैदी एक कमरे में साथ हो और वो कहें हम तो साथ रहते हैं हमारी यारी है, अरे नहीं ये मजबूरी है तुम्हारी।

अकेलापन यानि मुक्ति जिससे बनते हैं सही सम्बन्ध

आचार्य जी आगे कहते हैं सिर्फ 2 मुक्त व्यक्ति ही एक दूसरे के हो सकते हैं, क्योंकि वो आदतवश नहीं जुड़े होते जैसा प्रायः झुण्ड में होता है!

वो चाहें तो कभी भी अलग हो सकते हैं, पर वो साथ हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि प्रेम है लगाव नहीं! अगर तुम्हें दिन में रोजाना 4 कप चाय पीने की आदत लग जाये तो क्या ये कहोगे मुझे चाय से प्रेम है? नहीं ये आदत है।

झुण्ड में रहने की हमारी इसी आदत ने हमें खुद से काफी दूर कर दिया है, झुण्ड को कभी भी अक्ल और चेतना नहीं होती, मैं तुमसे बात भी तभी कर सकता हूँ जब तुम अकेले हो।

और ये बात वो लोग समझ रहे होंगे जो मानसिक रूप से अकेले हो पाए हो, जिनके मन में भीड़ बैठी हुई है उन्हें यह समझ नहीं आएगा।

ऐसे जांचें मन की भीड़ को

आचार्य जी कहते हैं तुम्हारे अन्दर भीड़ हावी है या नहीं इसे जांचने का एक आसान तरीका है सोचो अभी तुम्हारी एक एक गतिविधि ऐसी ही रहती अगर यहाँ लोग नहीं होते तो? अगर वो ऐसी ही रहती तो समझ लो तुम हो अन्यथा भीड़ हावी है।

देखिये हम में से अधिकतर लोग यहाँ भीड़ न हो तो बदल जायेंगे, कई लोग जो सवाल पूछना चाहते हैं पर नहीं पूछते भीड़ के डर से, कई लोग सवाल तो मुझसे पूछते हैं।

लेकिन उनके मन की भीड़ बाहरी भीड़ से बात करती है, इसी तरह कई लोग सत्र के बाद जब भीड़ छट जाये तो एकांत में प्रश्न पूछते हैं वो भी भीड़ का ही प्रभाव होता है।

हमारे अन्दर बैठी यह भीड़ कितनी घातक होती है हमारे लिए, सिर्फ यह समझें की हम सिर्फ 2 मिनट की वाहवाही के लिए शर्मनाक और बेवकूफ हरकतें भी कर देते हैं, जैसा हमें आजकल रियलिटी शो और सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है!

जानने वालों ने कहा है एक अकेला व्यक्ति कभी हिंसक नहीं होता, अगर कोई व्यक्ति दिखे जो बहुत हिंसक है समझ लेना भीड़ उसके अन्दर तक घुस चुकी है और ऐसे ही लोग फिर पागलपन का भी शिकार होते हैं।

और भीड़ के हावी होने का ये मामला इतना खतरनाक है की अभी अचानक यहाँ 250 लोग आ जाएँ तो आपका रवैया बिलकुल बदल जायेगा।

यही नहीं अगर यहाँ आपकी सीट के बीच एक कुर्सी का गैप रख दिया जाए तो बहुतों के विचार बदल जायेंगे, मन हल्का और साफ हो जायेगा! माहौल एकदम बदल जाएगा आपके लिए।

पर बचपन से झुण्ड में रहने की बीमारी लगी है इसलिए तो जैसे ही थोड़ी देर के लिए अकेला पाते हैं खुद को तुरन्तु कांप जाते हो!

समबन्ध पुस्तक के पिछले अध्याय 👇

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« झूठा प्रेम | Chapter 7

« सम्बन्ध लाभ-आधारित, तो प्रेम रहित | अध्याय 6

अंतिम शब्द

अंत में आचार्य जी कहते हैं भीड़ एक आक्रमण है, अगर भीड़ में प्रेम नहीं है! तो साथियों इस तरह आचार्य जी हमें बेहतरीन उदाहरणों के जरिये बतलाते हैं की जीवन में अकेलापन क्यों जरूरी है? तो साथियों अगर आप सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के नौंवे अध्याय (साथ हैं, क्योंकि प्रेम है, या आदत है) को पढना चाहते हैं तो Amazon से यह पुस्तक आर्डर कर सकते हैं!

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