समाज में रहने वाले हर व्यक्ति के अपने परिवार, दोस्तों या रिश्तेदारों से सम्बन्ध तो होते ही हैं, पर इन संबंधो की गुणवत्ता (क्वालिटी) कैसी होनी चाहिए? इसका चयन करना भी व्यक्ति के हाथों में ही होता है। ( सम्बन्ध क्या हैं Chapter 1 book summary)
दुर्भाग्यवश हमारी नासमझी की वजह से आजकल हर दूसरा व्यक्ति अपने सम्बन्धों से परेशान दिखाई देता है, इसी को समझते हुए एक प्रश्नकर्ता ने आचार्य जी से उचित सम्बन्ध बनाने को लेकर प्रश्न किया है, तो आइये इस वार्ता को पढने के लिए सम्बन्ध नामक इस पुस्तक के पहले अध्याय का शीर्षक पढना शुरू करते हैं।
सम्बन्ध माने क्या?
प्रश्नकर्ता: सम्बन्धों को कैसे बनाये रखें?
आचार्य जी: देखिये, सम्बन्ध बेहतर कैसे हों ये समझने से पहले समझते हैं ये सम्बन्ध क्या हैं?
सम्बन्ध दो तरह के हो सकते हैं, पहला तरीका सम्बन्धों को देखने का वह होता है जिसमें आपके पारिवारिक सदस्यों जैसे माता -पिता, भाई-बहन, दादा -दादी इत्यादि के साथ आपका रिश्ता कैसा होगा? ये पहले से ही निर्धारित होता है।
इसके साथ ही किसी दोस्त से आपका रिश्ता कैसा होगा? आपके पडोसी या राह चलते अनजान व्यक्ति से आपको क्या रिश्ता रखना है ये भी पहले से ही तय होता है।
अब इस तरह के रिश्तों में कोई अगर थोडा बहुत ऊपर-नीचे हो जाये तो चलेगा, लेकिन इससे बाहर कोई विचलन होगा तो वो स्वीकार नहीं होता।
तो इस तरह निष्कर्ष निकलता है सम्बन्ध का अर्थ है दो लोगों के बीच बंधा बंधाया रिश्ता, और मुझे लगता है रोहित (प्रश्नकर्ता) आप इसी तरह के रिश्तों को बनाये रखने की बात कर रहे हैं।
रिश्तों को देखने का दूसरा नजरिया
वहीँ एक और तरीका है किसी भी सम्बन्ध को देखने का, अभी तुम यहाँ बैठे हो तुम मुझसे संबंधित हो, मैं तुमसे संबंधित हूँ। ठीक है, यहाँ भी एक रिश्ता है लेकिन इस रिश्ते को पहले से परिभाषित नहीं किया गया है।
ठीक इसी तरह आपका किसी भी इंसान, वस्तु से रिश्ता हो सकता है, और यह रिश्ता प्रतिपल बदलता रहता है।
देखिये जब परीक्षाएं आती है तो किताबों से आपका क्या रिश्ता होता है? और फिर वही किताबें जब आप साल भर उठाकर नहीं देखते तब क्या रिश्ता होता है? और अभी आपके पास ये नोटबुक, पेन है अभी इससे आपका घनिष्ट, गहरा रिश्ता है न?
देख रहे हैं न स्तिथि के मुताबिक़ ये सम्बन्ध बदल रहा है! तो ऐसे रिश्तों का आप कुछ नाम दे सकते हैं?
तो एक तरह के संबध तो ऐसे हैं जो हमारे समाज, संस्कृति द्वारा निर्धारित कर दिए गए हैं, तुम्हें पता है बड़ा भाई है इसके साथ ऐसा रिश्ता रखना है, क्योंकि मदद भी भाई करेगा मुसीबत में।
दूसरा तुम्हें फर्क नहीं पड़ता भाई है करके, अभी इस पल में तुम्हारे भाई से आपकी बहुत अच्छी मित्रता है और आपको लगता है अगर ये मेरे भाई न भी होते तो भी संगती तो मैं ऐसे ही इंसान की करता।
तो बताओ कौन सा सम्बन्ध ठीक है? पहला या फिर दूसरा
प्रश्नकर्ता: दूसरा
आचार्य जी: रोहित, समझ रहे हो न रिश्ते निभाने के लिए नहीं होते, बल्कि रिश्ते सम्बन्धित होने की बात है। उसी में आनन्द है। लेकिन चूँकि जब हमारे दिमाग में जबरदस्ती ये चीज़ बैठ जाती है की किसी व्यक्ति से कैसा रिश्ता रखना है? तो फिर ऐसे में रिश्तों में बोरियत आ जाती है, फिर वो एक ही साथ रहते हुए भी ऐसे रहते हैं जैसे दो इन्सान जेल में एक साथ हो।
रिश्तों का आधार अतीत नहीं वर्तमान होना चाहिए
अभी तुम यहाँ बैठे हो मै तुमसे व्यवहार और रिश्ता इस आधार पर तय करूँ की तुम अतीत में कैसे थे? या फिर तुम वर्तमान में मेरे सामने बैठे हो अभी मै तुमसे सीधा सम्बन्ध रखूं? बोलों तुम अभी जैसे हो ठीक हो मेरे लिए, तभी तो मैं वार्ता कर सकता हूँ न आपसे?
लेकिन हमारे समबन्ध इस तरह के नहीं होते, हमें पहले से ही पता है दोस्त से कितना और कैसा व्यवहार करना है, दूध वाले से कैसे करना है, पडोसी से कैसे करना है, माता पिता से किस लहजे में कितनी बात करनी है सब कुछ।
फिर ऐसे रिश्तों में प्रेम की भावना का भी संचार अधिक नहीं हो पाता है, क्योंकि तुम रिश्ते के अनुसार उससे व्यवहार करते हो, बल्कि व्यक्ति को देखकर नहीं।
आचार्य जी समझाते हैं सम्बन्धों का नाम मत देखो, व्यक्ति को देखो, पापा हैं अगर जानोगे तो छिटके ही रहोगे उनसे, दिल खोल कर कहने से भी बस डरते रहोगे, कभी भी उनसे गहरी दोस्ती नहीं कर पाओगे।
तो रिश्तों के नाम को छोडो व्यक्ति को देखो तभी सम्बन्ध उच्च स्तर के होंगे और सम्बन्धों तक आपका सच्चा प्रेम भी तभी पहुंचेगा।
- प्यार है या कारोबार – अध्याय 14 | प्रेम सीखना पड़ता है पुस्तक
- प्रेम का नाम, हवस का काम
अंतिम शब्द
तो साथियों इस तरह सम्बन्ध क्या हैं? इस पहले अध्याय की समाप्ति होती है, अगर आप इस अध्याय को विस्तार से पढना चाहते हैं तो मेरी तरह आप भी Amazon पर अब तक हजारों लोगों द्वारा पसंद की गई इस पुस्तक को ऑर्डर कर सकते हैं।