यूँ तो पूरे विश्व में 100 करोड़ से भी अधिक लोग सनातन धर्म का पालन करने की बात स्वीकारते हैं पर असल में सनातनी होने का क्या मतलब है? सनातन धर्म क्या है? उनसे पुछा जाये तो वो सीधा और स्पस्ट जवाब दे ही नहीं पाते।

तो अगर आप मानते हैं गर्व से आप हिन्दू हैं तो आपको सनातन धर्म वास्तव में है क्या? और यह धर्म हमें क्या सीख देता है जरुर मालूम होना चाहिए। अन्यथा आप भी बाकी लोगों की तरह उल्टा पुल्टा जवाब दे सकते हैं! और इससे आपके अपने धर्म के प्रति आस्था को भी समझा जा सकता है!
सनातन धर्म क्या है? सनातन धर्म से क्या अभिप्राय है?
सनातन धर्म से तात्पर्य उस धर्म से है जो निरंतर अस्तित्व में हो, चाहे भूत हो, भविष्य हो, वर्तमान हो। रूढ़ियाँ, परम्पराएं सब परिवर्तनशील हैं! परन्तु मात्र सत्य ही है जो सदैव है।
हमारी अहम वृति यानि अहंकार एकमात्र वही ऐसी चीज़ है जो लगातार है और इसी अहमता की अशांति को शांति तक पहुंचाना ही सनातन धर्म है
इसे बारीकी से समझें तो प्रत्येक मनुष्य में एक चेतना (मन में एक तड़प) होती है और यह चेतना लगातार शांति की खोज में रहती है। इंसान में यह बेचैनी बचपन से लेकर मरने तक बनी ही रहती है।
इसलिए उसी शांति को पाने के लिए हर इंसान अलग अलग तरह से कार्य करता है। अतः चूँकि चेतना हर व्यक्ति में होती है फिर चाहे वह पुरुष हो महिला हो, हिंदू हो मुस्लिम हो या किसी भी पंथ समुदाय, देश में रहता हो।
अतः सनातन को तड़प भी कहा गया है, और इस तड़प को शांति तक पहुंचाना ही सनातन धर्म है!
और सनातन धर्म कभी मिट नहीं सकता क्योंकि जब तक इन्सान है, उसके अन्दर वेदना यानी चेतना होगी और तभी तक उसे शांति की तलाश होगी। अतः जब तब तक इंसान है तब तक सनातन धर्म है!
इसलिए अतीत में आप पाएंगे हमारे सनातन धर्म का लाभ विश्व में दुसरे धर्म के लोगों ने भी लिया और हमारे सनातन धर्म से बोध, ज्ञान पाकर, स्वयं की चेतना को शांति देकर इस धर्म की सराहना की है।
लेकिन एक बड़ी गलती यह हुई की हमने कई तरह की पुरानी मान्यताओं, रीती रिवाजों को ही सनातन धर्म मान लिया जिससे हम वास्तविक सनातन धर्म से दूर हो गए!
सनातन का अर्थ क्या है?
सनातन माने वह जो समय की सीमा रेखा से बाहर का है, अर्थात जिसपर समय का प्रभाव न पड़े उसे सनातन कहा जाता है।पर इस प्रकृति में जो कुछ है वह सबकुछ तो समय के घेरे में बंधा है। हमारे सभी विचार, हमारे कर्म और हमारा सम्पूर्ण जीवन ही समय के चक्र में शुरू होकर मिट जाता है।
यही नहीं सभी भौतिक पदार्थ जो हम इस संसार में देखते हैं वो भी पैदा होते हैं और एक समय बाद नष्ट हो जाते हैं।तो यह तो निश्चित है की संसार में कुछ भी ऐसा नही है जो मिटेगा नहीं, जिसपर समय का प्रभाव न पड़ता हो।
तो अब ऐसे में सवाल आता है की क्या है जो कालातीत है, जिस पर समय का प्रभाव नहीं पड़ता?सत्य/आत्मा/परमात्मा है जिसे समय छू नहीं सकता, जो न कभी जन्म लेता है और न मिटता है।
सत्य ही है जो इस संसार और समय से परे है, जिसकी मन कल्पना नही कर सकता, जिसे महसूस नही किया जा सकता पर वो हर जगह मौजूद है वो लाखों करोड़ों वर्षों से है और मनुष्य और ये प्रकृति का प्रलय होने के बाद भी वह रहेगा। इसलिए उसी शाश्वतता को सनातन कहा जाता है।
सनातन और हिन्दू धर्म में अंतर क्या है?
सनातन और हिन्दू धर्म में मुख्य अंतर निम्नलिखित है।
• हिन्दू धर्म में रीती रीवाज और परम्पराओं का अहम स्थान हैं, वहां देवी देवताओं के पूजन को विशेष बल दिया गया है। जबकि सनातन का अर्थ सत्य है, वहां सत्य के सिवा कोई पूजनीय नहीं होता।
• सनातन कोई विचारधारा या मान्यता नहीं है जो किसी विशेष देश या स्थान के लोगों के लिए अनिवार्य है, जबकि हिन्दू धर्म में मान्यताओं को विशेष बल दिया गया है।
• धर्म में संस्कृति होती है जिसका पालन करना धर्म के अनुयाइयों के लिए आवश्यक होता है, जबकि सत्य किसी विधि, रिवाज या परम्परा पर नहीं चलता। उसका एकमात्र लक्ष्य इंसान को उसके बन्धनों से मुक्ति देना है।
• हिन्दू धर्म में देवी देवता, त्यौहार और कर्मकांड की तमाम विधियाँ वास्तव में व्यक्ति को सनातन तक यानी सत्य तक पहुंचाने के लिए इजाद की गई। हिन्दू धर्म उस सीढ़ी की तरह है जो व्यक्ति को सनातान नामक उस मंजिल तक पहुंचाने में मददगार साबित होती है। पर जब लोग इस बात को नहीं समझते तब इस कथन का दुरूपयोग होता है।
• हिन्दू धर्म में विशेष तरह का आचरण जैसे भगवा वस्त्र पहनना, माथे पर टीका लगाना, मन्त्र जाप, संस्कृति इत्यादि प्रचलित और कुछ हद तक अनिवार्य भी हैं। जबकि सनातन इंसान को किसी तरह का आचरण करने के लिए बाध्य नहीं करता।
• हिन्दू धर्म सच्चाई तक पहुँचने का एक साधन है, दूसरी तरफ सनातन ही लक्ष्य है। कोई व्यक्ति स्वयं को धार्मिक या हिन्दू कह सकता है पर यह बिलकुल जरूरी की वो सनातनी हो अर्थात सत्य के रास्ते का अनुसरण करे। मात्र सनातनी कहने का अधिकार उसे है जिसे जीवन और संसार का मिथ्यापन मालूम हो चूका हो।
सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई?
देखिये सनातन धर्म की स्थापना का निश्चित समय ज्ञात नहीं किया जा सकता, सनातन अर्थात सत्य अजर, अमर होता है उसकी आयु ज्ञात नहीं की जा सकती। क्योंकि गणना मात्र उस वस्तु या विषय की जाती है जो कभी जन्मा हो और जिसका कभी अंत होगा।
पर फिर भी इस प्रश्न के एवज में कहा जा सकता है की उपनिषदों की रचना के साथ ही सनातन धर्म की शुरुवात हो गई। चूँकि उपनिषद ऋषि मुनियों और शिष्य के बीच हुए संवाद का महत्वपूर्ण अंश हैं जो व्यक्ति के सामने मानव जीवन का सच उघेडकर सामने रख देते हैं।
उपनिषद इसलिए भी विशेष हैं क्योंकि यहाँ पर जिज्ञासु शिष्य जंगल में ऋषियों से एक के बाद एक प्रश्न संसार और जीवन से सम्बन्धित प्रश्न पूछ रहे हैं।
और ऋषि बड़े प्रेम से सच्चाई को शिष्य के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।उपनिषदों में अधिकांश प्रश्न-उत्तर तो आज भी इतने उपयोगी हैं जिन्हें पढने पर इंसान को ज्ञात होता है की ये घटना तो मेरे जीवन में घटती है, और रोजाना घट रही है।
और उपनिषद आपको आपकी विभिन्न समस्याओं का समाधान देकर विशुद्ध धर्म की ओर ले जाते हैंइसलिए ये कहा जा सकता है की आज के समय में हिन्दू या सनातनी कहने का अधिकार मात्र उसको है जिस अपने उच्चतम धर्मग्रन्थों जिसने उपनिषद का पाठ किया हो।
सनातन धर्म क्या सीख देता है?
सब कुछ त्याग कर सत्य की खोज ही सनातन धर्म है, बाकी सब बातों की परवाह किये बगैर मुझे सच्चाई, रोशनी की तरफ जो ले जाये वही सनातन धर्म है। अपनी मूल तड़प जिसे लेकर हम पैदा हुए हैं उसे शांति तक पहुंचाना ही सनातन धर्म का संदेश है!
भले लोग वेद, उपनिषद या किसी भी शास्त्र को मानने से इनकार कर दे पर सनातन धर्म का महत्व, उसका स्थान तब भी रहेगा!
क्योंकि अगर आकस्मित दुर्घटना में चाहे हिन्दू रहे न रहे सनातन धर्म रहेगा ही रहेगा। और इस धर्म का यही सौन्दर्य उसे अमिट बनाता है!
सनातन धर्म कितना पुराना है? सनातन धर्म के संस्थापक कौन हैं?
सनातन धर्म का अस्तित्व वेदों से भी पुराना है, इस धर्म की स्थापना या आगाज उस दिन हो गया था जिस दिन से मनुष्य की चेतना ने आँखें खोली!
सनातन धर्म किसी व्यक्ति विशेष या समूह द्वारा नहीं बनाया गया है! न ही इसे किसी निश्चित काल में या किन्हीं परिस्तिथियों में किन्ही व्यक्ति द्वारा बनाया गया है जो समय के साथ नही मिट सकता।
इसलिए सनातन धर्म को इतिहास में सबसे पुराना धर्म माना गया है, और इसके पीछे की वजह भी आप जान चुके हैं, अगर कोई व्यक्ति समूह या देश इस धर्म को न मानने का दुः साहस भी करता है।
या इस धर्म की अवहेलना या इसे मिटाने का प्रयास करता है तो वह व्यक्ति भी खुद स्वयं सनातन ही है, जिसके अन्दर की चेतना शांति की खोज में है। अतः जो इस धर्म के विरुद्ध है वास्तव में वो भी सनातन ही है बस अज्ञान के कारण उसे ज्ञान का बोध नहीं है।
वास्तव में सनातनी कौन है?
वह व्यक्ति जो चाहे किसी भी पंथ या सम्प्रदाय में विश्वास न रखकर सिर्फ सत्य से मतलब रखता है, मात्र वही सनातनी है। सनातनी होने का यह अर्थ कतई नहीं आप एक हिन्दू हैं बिलकुल नहीं।
अधिकांश लोग जो खुद को धार्मिक होने का दावा करते हैं उन्हें सत्य से मतलब नहीं होता बल्कि वो पुराणी धारणाएं, रुढियों को ही धर्म कहकर पालन करते हैं। फिर चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,इसाई किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखते हों।
कोई भी वेशभूषा, खान पान या फिर रहन सहन को अपनाना सनातनी नहीं हो सकता, सनातनी वह है जिसे सत्य से, आत्मा से प्रेम हो गया है। अतः उसे इन किस्से कहानियों में अब कोई रुचि नहीं होती उसे सिर्फ उस मार्ग जाना है जहाँ शांति हो सच्चाई हो वही सनातनी हो।
और वास्तव में अन्दर से हम सभी शांति चाहते हैं लेकिन चूँकि हमें न तो खुद का ज्ञान है और न ही इस संसार का इसलिए फिर हम भटकते रहते हैं, उस इंसान की भांति जिसे प्यास तो पानी की है पर वो मिट्टी का तेल पी रहा है! अतः खुद के प्रति अज्ञानता ही हमें सनातनी होने से रोकती है।
क्या नास्तिक व्यक्ति भी सनातनी हो सकता है? भगत सिंह नास्तिक थे
आस्तिक का अर्थ है जो व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास रखता हो जबकि नास्तिक का ईश्वर पर विश्वास नहीं होता। पर चूँकि सच्चाई का, आत्मा का, सम्बन्ध किसी इश्वर से नहीं है।
अतः व्यक्ति भले किसी भगवान, ईश्वर पर आस्था न रखता हो पर वह सच्चाई का प्रेमी हो जो सच की खोज में रहता हो तो वो वाकई सनातनी हो सकता है।
इसलिए आप पाएंगे भारत के इतिहास में इश्वरवादियों, अनीश्वरवादियों दोनों के लिए स्थान रहा है। अतः किसी ईश्वर या भगवान को मानने या न मानने से आप सनातनी नहीं हो जाते, गहरे तौर पर भगत सिंह एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे भले वह ईश्वर को न मानते हो।
FAQ
सनातन धर्म का एक ही लक्ष्य, एक ही नियम, एक ही कर्तव्य है इन्सान को उसके बंधन, मजबूरी और दुखों से आजाद कर उसे मुक्ति देना है।
सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा की जाती है, ताकि परमात्मा यानि सच्चाई तक पहुंचा जा सके। पर दुर्भाग्य है की अधिकांश लोग इन देवी देवताओं को इच्छा पूर्ती का साधन मानते हैं।
क्योंकि यह किसी धर्म विशेष की परम्पराओं को मानने और भगवान इत्यादि पर आस्था रखने की बात नहीं कहता, यह कहता है की सत्य ही सर्वश्रेष्ठ है उसके सिवा न कोई ईश्वर बड़ा है न ये संसार।
जी नहीं सनातन धर्म मूर्ती पूजा को स्वीकार नहीं करता, हालाँकि लोग अपनी सुविधा और इच्छा के अनुरूप मूर्ती पूजा करते हैं। परन्तु समझने योग्य बात है सत्य की कोई तस्वीर या छवि नही होती उसे भला कैसे पूजा जा सकता है।
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस तरह हमने इस अध्याय में जाना सनातन धर्म क्या है? यह धर्म हमें सीख देता है? हमें आशा है इस लेख से आपको अपने जीवन में कुछ गहराई और स्पस्टता मिली होगी अतः आप इस पोस्ट को शेयर भी जरुर करेंगे।