सनातन धर्म क्या है | जानिए असली सनातनी कौन है?

यूँ तो पूरे विश्व में 100 करोड़ से भी अधिक लोग सनातन धर्म का पालन करने की बात स्वीकारते हैं पर असल में सनातनी होने का क्या मतलब है? सनातन धर्म क्या है? उनसे पूछा जाये तो वो सीधा और स्पस्ट जवाब दे ही नहीं पाते।

सनातन धर्म क्या है

तो अगर आप मानते हैं गर्व से आप हिन्दू हैं तो आपको सनातन धर्म वास्तव में है क्या? और यह धर्म हमें क्या सीख देता है जरुर मालूम होना चाहिए। अन्यथा आप भी बाकी लोगों की तरह उल्टा पुल्टा जवाब देकर खुद को संतुष्ट कर सकते हैं! जिससे आपके अपने धर्म के प्रति आस्था को भी समझा जा सकता है।

सनातन धर्म क्या है? सनातन से क्या अभिप्राय है?

सनातन का अर्थ है वह जो नित्य है, शाश्वत है, अनंत है जो पहले भी था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। अब यहाँ सवाल आता है की क्या कुछ है जो सनातन है? तो गहराई से सोचने पर कुछ सवाल और उनके जवाब आते हैं।

क्या मन में आने वाले विचार सनातन हैं? क्या परम्परा सनातन होती है? क्या हमारी भावनाएं (फीलिंग्स) सनातन होती है? क्या स्थान सनातन होता है? क्या मनुष्य सनातन होता है?

तो जवाब आया नहीं ये चीज़ें तो प्रकृति के भीतर की हैं, और प्रकृति में चाहे इन्सान हो या कोई भी वस्तु एक समय बाद मिट जानी है या बदल जानी है। मनुष्य के विचार, उसका शरीर कुछ भी यहाँ स्थाई नहीं सब काल के चक्र में सिमट कर रह जायेगा।

तो जब गहराई से ऋषियों ने इस प्रश्न पर शोध किया तो मालूम हुआ की कोई भी भौतिक वस्तु यहाँ तक की उस वस्तु को देखने वाला मनुष्य कुछ भी सनातन नहीं है तो फिर जवाब आया मात्र सत्य ही सनातन है।

सत्य ही है जिसका कभी जन्म नही हुआ तो कभी उसका अंत भी नहीं हो सकता! सत्य अजर है, अमर है, अविनाशी है, और वह चूँकि अनंत है, असीम है इस प्रकृति के बाहर का है अतः वो कालातीत है इसलिय उसे सनातन कहा गया है।

तो जब सत्य ही सनातन है तो मन को सत्य यानी आत्मा की तरफ लेना ही सनातन धर्म है।

दूसरे शब्दों में कहें तो अपने मन को सच्चाई की तरफ ले जाना ही सनातन धर्म कहलाता है। अब आपके मन में ये सवाल आ सकता है की मन को सच्चाई की तरफ क्यों ले जाना है? कोई भी जो सच की राह चले वो सनातनी हो गया?

सनातन धर्म में सत्य का स्थान इतना ऊपर कैसे है? 

देखिये, प्राकृतिक रूप से हमारा मन है वो झूठ में जीता है, वो सच जानते हुए भी गलत कार्यों को इसलिए करता है क्योंकि उसे करने में उसे सहूलियत होती है। पर वो ये भूल जाता है की झूठ में जीने से मन कभी संतुष्ट नहीं हो सकता।

मन में आन्नद और सच्ची ख़ुशी तभी मिलती है जब वो सच्चाई को जाने, सच्चाई की तरफ बढे! ये ठीक वैसी ही बात है जैसे किसी व्यक्ति को मालूम हो जाए की परीक्षा को पास करके ही मैं सफल हो सकता हूँ।

तो बताओ अगर वो पढने की बजाय उसी समय को बर्बाद करने लगे तो क्या उसका मन परीक्षा में शांत होगा नहीं न वो तो फेल होने के डर से जियेगा, क्योंकि उसने झूठ में जीकर पहले ही दुःख को अपनी जिन्दगी में न्योता दे दिया था।

इसी तरह हम सभी को मालूम होता है की जिन्दगी में क्या सच्चा है, क्या सही है पर चूँकि सही काम को करने में मन विरोध करता है। लेकिन जो व्यक्ति कहता है की मन में कितना भी डर, कितना भी लालच क्यों न आ जाए।

मैं तो सही काम ही जीवन में करूँगा तो जान लीजिये वो एक धार्मिक व्यक्ति हो गया, वो सनातन धर्म की सीख समझ गया।

इसलिए अगर आप सनातन धर्म के मुख्य दर्शन वेदान्त को पढेंगे अथवा उपनिषद और भगवदगीता को पढेंगे तो आपको मालूम होगा वहां बार बार सत्य की बात की गई है।

याद रखें भगवदगीता में भी भगवान कृष्ण बार बार अर्जुन को यही कह रहे हैं की अर्जुन मोह में फंसे मत रहो! इस युद्धभूमि में तुम्हारा एकमात्र धर्म है सच्चाई का कर्म करना! और फिर हम पाते हैं कृष्ण की उस बात से अर्जुन ने अधर्म की लड़ाई में विजय प्राप्त की।

इस तरह अनेक ऐसी घटनाएँ हैं जो बताती हैं की सनातन धर्म में सत्य का विशिष्ठ स्थान कैसे है?

सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई?

सत्य शाश्वत है, जिसका कभी जन्म ही न हुआ हो भला उसकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है! मनुष्य के जन्म से पहले भी सनातन धर्म का अस्तित्व था है और उसके मरने के बाद भी रहेगा। इसलिए इसकी उत्त्पति का प्रश्न ही नहीं उठता।

पर चूँकि ये बात समझने में मानव को काफी समय लग गया! और सर्वप्रथम वो ऋषि ही थे जो घर से दूर ज्ञान की खोज में जंगल में आये और उन्हें मालूम हुआ की इस समस्त संसार में मात्र सत्य ही अचिन्त्य है, अमिट है, सदा है और रहेगा।

बाकी सबकुछ समय का ग्रास बन जायेगा! और फिर जब उन्होंने यही अनमोल बात लोगों को समझाने की कोशिश की तो इसी मकसद के साथ फिर उपनिषदों की रचना की गई।

उपनिषदों में हम पाते हैं की ऋषि शिष्य को बतला रहे हैं की संसार में सुख क्या है? माया क्या है? सत्य क्या है? और इन्सान के दुखों का कारण क्या है? तो हम कह सकते हैं की उपनिषदों की रचना के साथ ही सनातन धर्म की स्थापना हो चुकी थी।

हालाँकि आपको ये भूलना नहीं चाहिए की सत्य तो सदैव था, मान लीजिये कोई चीज़ है इसका अहसास हमें भले ही देर में हो लेकिन वो चीज़ तो सदा से ही उपस्तिथ थी न तो सनातन धर्म की शुरुवात भले ही उपनिषदों से मानी जा सकती है।

पर सत्य तो ये है की सत्य हमेशा से ही मौजूद है अतः इसकी उत्पत्ति का कोई समय नहीं बतलाया जा सकता।

सनातन धर्म क्या सीख देता है?

सत्य की खोज ही सनातन धर्म है, क्योंकि हम सभी जिस बेचैनी के साथ पैदा हुए हैं, उस बेचैन मन को शान्ति मात्र सत्य से मिल सकती है। अगर यह मन सत्य को नहीं स्वीकार करेगा तो जाहिर सी बात है झूठी बातों पर इसको भरोसा करना होगा।

और झूठी बातें इन्सान को सदैव दुःख देती हैं। आपको जानकर हैरानी होगी की हम सभी अपनी नामसझी के कारण जीवन में उन चीज़ों पर भरोसा करते हैं जो चीज़ें हमें कुछ पल का सुख देकर हमें ढेर सारी चिंता में छोड़ देती हैं।

हम कभी पैसे को ही सच्चा सुख मान लेते हैं तो कभी अपने सगे समबंधियों को ही सच्चा मानकर उनके लिए अपना सब कुछ लुटा देते हैं! और फिर जिस दिन हमारी आँखें खुलती हैं हमें मालूम होता है की नासमझी में, दुःख में हमने गलत चीज़ों पर विश्वास कर लिया।

अतः सनातन धर्म कहता है की सच्चाई जानो, सच्चाई किसकी अपनी? अपने मन की? इस दुनिया की? ताकि नामसझी में नहीं बल्कि आनन्द के साथ इस जीवन को जी सको।

सनातन धर्म कितना पुराना है? सनातन धर्म के संस्थापक कौन हैं?

सनातन धर्म का अस्तित्व लाखों वर्ष पुराना है, जब से मानव ने इस पृथ्वी में कदम रखे तभी से यह धर्म अस्तित्व में आ गया। हालाँकि ज्ञान की कमी के चलते मनुष्य को ये बोध नहीं हो सका की सनातन धर्म किस तरह हर इन्सान का बेडा पार कर सकता है।

पर चूँकि सत्य तो हमेशा से हर काल में उपस्तिथ रहा है इसलिए सनातन धर्म भी हमेशा से रहा है! यह धर्म किसी व्यक्ति विशेष या समूह द्वारा नहीं बनाया गया है।

अगर हमें फिर भी इस धर्म के संस्थापक को जानने की इच्छा है तो हमें इतिहास में पन्ने पलटने होंगे और जानना होगा सबसे पहले सनातन धर्म के अनमोल ज्ञान किसने दिया।

हालाँकि ये ज्ञान वेदों से हमें मिला है इस बात में कोई दो राय नहीं, पर चूँकि सत्य की जितनी बात उपनिषदों में की गई है उसके आधार पर महान ऋषियों को सनातन धर्म का संस्थापक कहा जा सकता है।

वो इसलिए क्योंकि भले आपके पास हीरा है लेकिन आपके पास हीरा है ये आपको मालूम ही न हो तो आपके लिए तो वो व्यक्ति विशेष होगा न जो आपको बता दे की आपके ही भीतर कुछ ऐसा है जो कभी मिट नहीं सकता।

और ऋषियों ने हमें बखूबी ये बात उपनिषदों में बताई है की हर मनुष्य जिसकी चाहत में यहाँ वहां भटकता है असल में वो कुछ और नहीं सत्य है।

वास्तव में सनातनी कौन है?

वह व्यक्ति जो चाहे किसी भी पंथ या सम्प्रदाय में विश्वास न रखकर सिर्फ सत्य से मतलब रखता है, मात्र वही सनातनी है। सनातनी होने का यह अर्थ कतई नहीं आप एक हिन्दू हैं बिलकुल नहीं।

अधिकांश लोग जो खुद को धार्मिक होने का दावा करते हैं उन्हें सत्य से मतलब नहीं होता बल्कि वो पुराणी धारणाएं, रुढियों को ही धर्म कहकर पालन करते हैं। फिर चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,इसाई किसी भी धर्म से सम्बन्ध रखते हों।

कोई भी वेशभूषा, खान पान या फिर रहन सहन को अपनाना सनातनी नहीं हो सकता, सनातनी वह है जिसे सत्य से, आत्मा से प्रेम हो गया है। अतः उसे इन किस्से कहानियों  में अब कोई रुचि नहीं होती उसे सिर्फ उस मार्ग जाना है जहाँ शांति हो सच्चाई हो वही सनातनी हो।

और वास्तव में अन्दर से हम सभी शांति चाहते हैं लेकिन चूँकि हमें न तो खुद का ज्ञान है और न ही इस संसार का इसलिए फिर हम भटकते रहते हैं, उस इंसान की भांति जिसे प्यास तो पानी की है पर वो मिट्टी का तेल पी रहा है! अतः खुद के प्रति अज्ञानता ही हमें सनातनी होने से रोकती है।

क्या नास्तिक व्यक्ति भी सनातनी हो सकता है? भगत सिंह नास्तिक थे?

आस्तिक का अर्थ है जो व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास रखता हो जबकि नास्तिक का ईश्वर पर विश्वास नहीं होता। पर चूँकि सच्चाई का,  आत्मा का, सम्बन्ध किसी इश्वर से नहीं है।

अतः व्यक्ति भले किसी भगवान, ईश्वर पर आस्था न रखता हो पर वह सच्चाई का प्रेमी हो जो सच की खोज में रहता हो तो वो वाकई सनातनी हो सकता है।

इसलिए आप पाएंगे भारत के इतिहास में इश्वरवादियों, अनीश्वरवादियों दोनों के लिए स्थान रहा है। अतः किसी ईश्वर या भगवान को मानने या न मानने से आप सनातनी नहीं हो जाते, गहरे तौर पर भगत सिंह एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे भले वह ईश्वर को न मानते हो।

FAQ~ सनातन धर्म से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सनातन धर्म का नियम क्या है?

सनातन धर्म का एक ही लक्ष्य, एक ही नियम, एक ही कर्तव्य है इन्सान को उसके बंधन, मजबूरी और दुखों से आजाद कर उसे मुक्ति देना है।

सनातन धर्म में किसकी पूजा की जाती है?

सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा की जाती है, ताकि परमात्मा यानि सच्चाई तक पहुंचा जा सके। पर दुर्भाग्य है की अधिकांश लोग इन देवी देवताओं को इच्छा पूर्ती का साधन मानते हैं।

सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ क्यों है?


सत्य ही सर्वश्रेष्ठ है उसके सिवा न कोई ईश्वर बड़ा है न ये संसार।

अंतिम शब्द

तो साथियों इस तरह हमने इस अध्याय में जाना सनातन धर्म क्या है? यह धर्म हमें सीख देता है? हमें आशा है इस लेख से आपको अपने जीवन में कुछ गहराई और स्पस्टता मिली होगी अतः आप इस पोस्ट को शेयर भी जरुर करेंगे।

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