संसार क्या है? इसके प्रकार और रहस्य के बारे में जानें!

किसी की नजर में संसार दु:खों का पिटारा है तो किसी को यह जहाँ बेहद खूबसूरत लगता है, इसलिए हर किसी की नजर में संसार की परिभाषा अलग अलग है, लेकिन वास्तव में संसार क्या है? इसकी हकीकत को आज हम बेहद आसान शब्दों में समझेंगे!

संसार क्या है

देखिये एक बच्चे के लिए संसार जहाँ काल्पनिक चीजों से भरा हुआ है, वही एक व्यस्क (मैच्योर) व्यक्ति को संसार के सुखों दुखों का अहसास होता है, लेकिन दुनिया को देखने की नजर सबसे अलग एक साधु के पास होती है! संसार से उसका रिश्ता बेहद पवित्र और सुन्दर माना जाता है, आइये समझते हैं यह

आखिर संसार है क्या?

उपनिषदों के अनुसार संसार मन का विस्तार है, इस दुनिया में जिन भौतिक पदार्थों को आसानी से देख सकते हैं, छू सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं उसी को संसार या प्रक्रति भी कहा गया है!

संसार सत्य नहीं है। परन्तु मन इस संसार में भांति भांति के रंग रूप से आकर्षित होकर इस संसार को सत्य मानकर आशाएं रखता है! और आशाएं पूरी न होने पर दुःख पाता है!

इसी बात को आसान शब्दों में समझें तो आप स्वयं से पूछिए ये संसार किसको खूबसूरत दिखाई देता है? आप कहेंगे मुझे यानी मेरे मन को,

यानि हम सभी के अन्दर अहम “यानी मैं का भाव है” जिसे यह संसार प्रतीत होता दिखाई देता है!

अतः ऋषि उपनिषदों के माध्यम से समझा रहे हैं की मन जब निर्मल हो जाये या कहे यह नष्ट हो जाए तो फिर मन सीधा आत्मा, सत्य, परमात्मा के चरणों में जाता है! और यही इस मन का अंतिम लक्ष्य है!

सत्य तक पहुँचना मन का लक्ष्य इसलिए है क्योंकि आत्मा से जिए बिना हम चैन पाएंगे नहीं, क्योंकि अगर इस संसार में चैन मिलना ही होता तो इतनी सारी चीजें जीवन में होने के बाद भी हम निराश क्यों होते।

पर चूँकि हम अज्ञान में डूबे रहते हैं अतः अपनी गलत उम्मीदों, प्रयासों के कारण हम मनगढंत चीजों पर भरोसा करके गलत कार्यों में लिप्त रहते हैं और हमें लगता है हम सही जीवन जी रहे हैं।

यह जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा का नाम ही समय और संसार है, और उपनिषद हमें सिखा रहे हैं की जीवन की इस यात्रा को सही ढंग से कैसे जियें?

ताकि इस दुनिया का अनुभव करने वाले को शांति मिल सके, अर्थात मन को आनंद की अवस्था में ले जाना ही उपनिषदों का लक्ष्य है!

संसार का रहस्य क्या है?

मनुष्य को माया के जाल में फंसाकर उसे सच्चाई से विमुख कर देना ही संसार का सबसे बड़ा रहस्य है, जी हाँ किसी तरह की पारलौकिक या दैवीय शक्ति को संसार का रहस्य नहीं माना जा सकता!

सर्वोत्तम रहस्य इसी बात में छुपा हुआ है की मनुष्य के जन्म से लेकर वृद्ध होने की अवस्था तक मनुष्य को अपने बन्धनों का, दुखों का समाधान ही नहीं मिल पाता, वह एक मजबूरी के तौर पर जीवन यापन करता है।

 और समाज की मान्यताओं को ही धर्म और सच्चाई मानकर जीवन की सार्थकता को जाने बगैर इस जीवन से विदा हो जाता है यही सबसे बड़ा सीक्रेट है इस संसार का, यही वजह है की बुद्ध, कबीर जैसे लोग बेहद कम होते हैं जो इस दुनिया की सच्चाई को समझ पाते हैं!

संसार कितने प्रकार के होते हैं?

संसार को दो प्रकारों में बांटा जा सकता है!

1. एक मनुष्य की संसार के प्रति कल्पना

2. दूसरा इस संसार की सच्चाई!

पहला, संसार को देखने की दृष्टि काल्पनिक हो सकती है, हम अपने मन में इस संसार के विषय पर कोई अच्छी या बुरी धारणा बना सकते हैं! और जैसे हमें अतीत में अनुभव हुए हैं, जैसी हमें शिक्षा दी गई है संसार के बारे में हम उसके अनुरूप इस संसार की व्याख्या कर सकते हैं।

और विशेष बात यह है की अधिकांश लोग मन में इस संसार की अलग अलग छवि बनाकर रखते हैं किसी के लिए वह छवि डरावनी हो सकती है तो किसी के मन में संसार बहुत सुन्दर प्रतीत हो सकता है लेकिन छवि चाहे जैसी भी हो संसार के बारे में मनगढ़ंत कहानियां सभी के मन पर होती है।

दूसरा, संसार के बारे में तरह तरह की छवि नहीं बनाना अपितु संसार की हकीकत को जान लेना, इस दुनिया में क्या झूठ है? क्या है जिस पर भरोसा बिलकुल नहीं किया जा सकता, क्या उम्मीदें इस संसार से लगानी चाहिए और क्या नहीं और फिर उसी सच्चाई को जानते हुए इस संसार में जीवन जीना एक दुसरे तरह का संसार होता है।

 खास बात यह है की बेहद कम लोग संसार को जानने के लिए लगने वाला प्रयास, श्रम और उत्सुकता दिखा पाते हैं, क्योंकि इस राह में जाने के लिए कई बार मनुष्य को अपनी सुख सुविधाओं का त्याग भी करना पड़ता है। लेकिन संसार के बारे में मात्र कुछ लोगों को ही यह ज्ञान प्राप्त हो पाता है! लेकिन ऐसे लोग कई तरह की चुनौतियाँ पाते हुए भी आनंद का जीवन जीते हैं।

तो इस प्रकार दो तरह के संसार होते हैं लकिन यह कहने की आवश्यकता नहीं की ज्यादातर लोगों के मन में किस तरह का संसार बसा होता है!

संसार का दूसरा नाम क्या है?

वो जो सच नहीं है पर सच जैसा हमें प्रतीत होता है उसे माया कहते है अतः संसार का दूसरा नाम माया कहा गया है। इस संसार में भांति भांति की वस्तुएं, लोग हैं जिनसे आकर्षित होकर मन यहाँ शांति की खोज करता है, लेकिन यहाँ कोई भी भौतिक वस्तु नहीं जिसे पाकर मन तृप्त हो सके

पर फिर भी वह मन में यह आशा या उम्मीद लगाए रहता है की आज नहीं तो कभी किसी और समय किसी अन्य वस्तु को पाकर मेरा मन शांत हो जायेगा! और इस प्रकार माया के जाल में फंसकर उसका जीवन बीत जाता है इसी माया को संसार भी कहा गया है

संसार को बौराया हुआ क्यों कहा है?

चूँकि संसार में लोग सच्चाई को स्वीकार करके सच्चाई का जीवन जीने की बजाय बेहोशी में अन्धकार में जीवन जीना पसंद करते हैं, इसके विपरीत जो उन्हें सही मार्ग दिखाए उसे ही बुरा बतलाकर उसे दुःख पहुँचाने की चेष्टा करते हैं

 वे सुख को जीवन का आधार बनाकर मनगढ़ंत मान्यताओं पर विश्वास कर धर्म को जीवन का आधार बनाते हैं, और बाहरी भक्ति के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करते हैं इसलिए संसार को कबीर बौराया हुआ बतलाते हैं

भगवान ने यह संसार क्यों बनाया?

संसार की रचना के अनेक कारण हो सकते हैं परन्तु इनमें सर्वोपरी कारण तो यही है की मनुष्य संसार में मौजूद संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार करे जिससे की मनुष्य की चेतना (जो की निचले तल पर होती है) का स्तर ऊँचा उठकर, आत्मा में विलीन हो जाए

परन्तु प्रक्रति की रचना इस तरह से की गई है की यहाँ जितने दुःख हैं उतनी ही तरह के भोग सुख उपलब्ध हैं अतः उन सुखों को पाने की इच्छा में व्यक्ति असली आनन्द जिसे परमानन्द कहा गया है उससे चूक जाता है अतः मनुष्य को इस संसार की सत्यता जाननी चाहिए और फिर अपने दुखों से मुक्ति की तरफ कदम बढाने चाहिए

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस पोस्ट को पढने के पश्चात संसार क्या है? संसार के विषय में आपके मन में चल रहे विविध प्रश्नों के उत्तर आपको मिल चुके होंगे! अगर इस लेख के माध्यम से कुछ स्पस्टता हासिल हुई है तो कृपया इस जानकारी को सोशल मीडिया पर शेयर करना तो बनता है न!

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