इस बात में कोई दो राय नहीं की मनुष्य के कर्मों की दिशा को तय करने में उसका मन अहम भूमिका निभाता है! इसीलिए तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण मन की तीन अवस्थाओं के बारे में हम बात कर चुके हैं आज हम इस पोस्ट में सतोगुण क्या है? समझेंगे!
सतोगुण मन की सबसे श्रेष्ठ अवस्था मानी जाती है। पर सतोगुण के लक्षण कौन से हैं ? कैसे यह बाकि दोनों गुणों से भिन्न है?
और क्या सतोगुण जो की प्रकृति में मौजूद सबसे श्रेष्ट गुण है उससे आगे भी मनुष्य जा सकता है? इन सभी प्रश्नों के जवाब आपको इस लेख को पढ़कर मिलेंगे! आइये समझते हैं।
सतोगुण क्या है? सात्विक जीवन कैसा होता है?
मन की वह उच्चतम स्तिथि जब उसे स्वयं की और संसार की हकीकत पता चल जाये तो इस ज्ञान से मन को मिल रही शान्ति मन की सतोगुणी अवस्था कहलाती है।
दूसरे शब्दों में कहें तो जब इन्सान स्वयं को जान लेता है अर्थात उसे मालूम हो जाता है की मैं कौन हूँ? मन क्या है? मन दुनिया में क्यों भटकता है? ये मन क्या पाना चाह्ता है?
और साथ ही उसे दुनियादारी का भी अहसास हो जाता है और उसे मालूम हो जाता है की इन्सान का पैसे के पीछे भटकना व्यर्थ है जीवन में शान्ति तो अपने भीतर ही है।
तो इस ज्ञान के स्वरूप जब मन इधर उधर भागना बंद कर देता है तो मन की यह अवस्था सतोगुणी अवस्था के रूप में जानी जाती है।
अतः हम कह सकते हैं की एक सतोगुणी व्यक्ति बोधवान पुरुष होता है जो तामसिक और रजोगुणी जीवन से आगे निकलकर प्रकृति में मौजूद सबसे सर्वोत्तम अवस्था में पहुँच जाता है।
तामसिक व्यक्ति के लिए जहाँ बेहोशी, आलस्य ही प्यारा होता है वहीँ एक राजसिक व्यक्ति की चेतना महत्वाकांक्षी होती है। माने उसके भीतर दुनिया में मान सम्मान, रुपया पैसा कमाने की ललक बनी रहती है।
इसलिए आमतौर पर राजसिक से सात्विक जीवन की तरफ बढ़ने की यात्रा बेहद कम लोग पार कर पाते हैं।
सच्चाई ये है की राजसिक जीवन जीने वाले बहुत कम लोग ये मालूम करते हैं की जीवन में सुख सुविधाएं होने के बावजूद क्यों उनके जीवन में असीम दुःख है जबकि आनन्द बहुत कम है।
वे लोग जो इस मूल प्रश्न का उत्तर गहराई से खोजने का प्रयास करते हैं वे अंततः जान लेते हैं की प्रक्रति के अधीन रहकर इन दुखों का जीवन में होना सामान्य है।
अतः ऐसे लोग चूँकि ज्ञानी हो चुके होते हैं अतः वे दुनिया से फ़ालतू की उम्मीदें नहीं करते, वो एक शांत और स्थिर जीवन जीने लगते हैं।
सतोगुणी जीवन के प्रमुख लक्षण
सतोगुणी जीवन के कुछ लक्षण होते हैं, जो निम्नलिखित हैं!
- सतोगुणी व्यक्ति स्वयं में संतुष्ट रहता है, उसके मन में जीवन के प्रति द्वेष और कामनाएं निम्न हो जाती हैं।
- सतोगुणी व्यक्ति के जीवन में अच्छी बुरी घटना बाहरी तौर पर घटती रहती हैं। लेकिन भीतर ज्ञान के कारण वह शांत रहता है।
- सांसारिक दुनिया से कुछ पाने की दौड़ जो आम लोगों में होती है वह दौड़ सतोगुणी व्यक्ति के जीवन से समाप्त हो जाती है।
- सतोगुणी व्यक्ति के लिए ईश्वर परमात्मा की भक्ति ही उसे अपार आनंद की अनुभूति करवाती है, भजन कीर्तन से दिल को मिलने वाला सुकून बेहद विशेष होता है।
- सतोगुणी व्यक्ति चूँकि बोधवान होता है लेकिन फिर भी वो अहम भाव में जीता है।
सतोगुणी जीवन कैसे जियें?
सतोगुणी जीवन व्यतीत करने के लिए सर्वप्रथम आपको यह निर्धारित करना होगा की इस समय आप किस तल का जीवन जी रहे हैं?
अगर आप बिलकुल निम्नकोटी का यानी तामसिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो आपको आलस्य हटाकर जीवन में थोडा सा महत्वाकांक्षी होना होगा।
आपको ज्यादा नहीं दुनिया में इतना तो अर्जित करना है जिससे की आपको पैसों के लिए, और अन्य जरूरतों के लिए दूसरों पर बोझ न बनना पड़े।
अब एक बार आप राजसिक जीवन जीने लगते हैं, तो जीवन में बहुत कुछ ऐसा मिल जाता है।
जिसे पाने से आपको असीम आनन्द और सुख मिल जाता है, पर आप पाते हैं जो सुख, आनंद की अनुभूति आपको हुई है वो सिर्फ कुछ पलों के लिए है।
यह ऐसे ही है जैसे महीने भर बोरियत से भरा कार्य करने के पश्चात व्यक्ति अंत में महीने की सैलरी से कुछ दिन घूमने या फिर रेस्टोरेंट में बढ़िया भोजन खाने की तरफ रवाना हो जाता है।
ऐसा करके थोड़ी देर पैसे से उसे सुख तो मिलता है पर वो सुख कुछ समय या दिन ही टीक पाता है!
इन सबके बीच उसकी जिन्दगी में ऐसा दिन घटित होता है जिससे उसे अपने जीवन की हकीकत मालूम हो जाती है। यानी उसे अपना असली चेहरा दिख जाता है।
अर्थात एक दिन उसे आध्याम्तिक ग्रन्थों या एक अच्छे गुरु की सहायता से उसे अपने जीवन की समस्याओं का मूल कारण पता चलता है।
वो जान लेता है की जीवन में मेरे जो दुःख है उसका कारण मेरा लालच, और मोह है जिसकी वजह से मुझे हर बार गलत जगह पर झुकना पड़ता पड़ता है।
इस तरह व्यक्ति को गुरु अथवा किताबों के ज्ञान का प्रकाश मिलता है वो अमूल्य होता है।
फिर उसके लिए वो सभी चीजें लगभग व्यर्थ होती है जो की किसी तामसिक या राजसिक व्यक्ति को बहुत सुहाती है और वो उन्हें पाने की लालसा में दौड़ता रहता है।
दुसरे शब्दों में कहें तो सतोगुणी होने पर व्यक्ति के जीवन में अन्धकार मिट जाता है, उसकी दुनिया में भाग दौड़ करने की रेस समाप्त हो जाती है।
और इस अवस्था में उसे असीम आनद और शांति मिलती है, ऐसा व्यक्ति फिर यह समझ जाता है इस दुनिया में जितना हम भोगते हैं वस्तुओं को, लोगों को उतना ही अन्दर का दुःख गहरा होता चला जाता है।
अतः सतोगुणी व्यक्ति का जीवन श्रेष्टतम हो जाता है उसे इश्वर की भक्ति में आनन्द आने लगता है!
बाहर बाहर उसके जीवन में कुछ भी घटता है उसे कुछ प्रभाव नहीं पड़ता, अन्दर से चूँकि उसका मन शांत और अविचलित रहता है।
सतोगुण से बाहर का जीवन कैसा होता है?
क्योंकि सतोगुण परम आनंद की अवस्था होती है, अतः इस स्तिथि पर आने के बाद इससे पार जाने के विषय में बेहद कम लोगों की जिज्ञासा रहती है।
क्योंकि इस अवस्था में आना सबके बस की बात नही होती, जो ज्ञान आपको मिला होता है उस ज्ञान से जीवन में निश्चित रूप से एक आनन्द, शांति मिलती है।
पर स्वयं कृष्ण भगवान् हमें गीता में इन गुणों से बाहर जाने की बात कहते हैं। क्योंकि सतोगुणी श्रेष्ठ अवस्था तो है पर प्रकृति में श्रेष्ठ होने से बेहतर होता है प्रकृति के पार निकल जाना!
क्योंकि वहीँ से मात्र व्यक्ति सत्य देख पाता है! अतः प्रकृति के इन तीनों गुणों यानि रजोगुण तमोगुण और सतोगुण के आगे जो व्यक्ति चला जाता है वो गुणातीत हो जाता है।
सतोगुण में व्यक्ति के अन्दर ज्ञान अपार होता है, लेकिन गुणातीत होने पर व्यक्ति का अज्ञान तो समाप्त होता ही है उसका ज्ञान भी गायब हो जाता है।
इस तरह वो ज्ञान और अज्ञान दोनों से खाली हो जाता है।
ज्ञान नहीं होता तो फिर न व्यक्ति के पास अतीत होता है न भविष्य को लेकर योजनायें होती है।
उसके सभी कर्म वर्तमान में होते हैं, जिस पल जो कर्म उचित है वही गुणातीत व्यक्ति करता है अतः वह सुख और दुःख के पार हो जाता है!
अब ऐसा नहीं है की वो इस संसार को त्याग देता है वो आपको कभी सोया दिखाई देगा, तो कभी किसी कर्म को करने में लिप्त दिखाई देगा, कभी खेलता दिखाई देगा तो कभी शांत बिलकुल अतः बड़ा मुश्कल हो पाता है गुणातीत व्यक्ति को पहचानना।
इसलिए गुणातीत व्यक्ति को किसी भी श्रेणी में वर्गीकृत करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
अंतिम शब्द
तो साथियों इस अध्याय को पढने के बाद सतोगुण क्या है? यह आप जान चुके होंगे, अगर इस लेख को पढ़कर जीवन में स्पष्टता आई है तो इसे शेयर भी कर दें।
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ye lekh acharya prashant ki shikshao se prerit hokar likha gya hai.