जानिए सत्यम शिवम सुन्दरम का वास्तविक अर्थ

पुस्तकों में अनेक जगह इस सुन्दर वाक्य का वर्णन मिलता है, यहाँ तक की इस पवित्र पंक्ति पर बॉलीवुड में एक गाना भी बनाया जा चुका है, पर वास्तव में अधिकांश लोग सत्यम शिवम सुंदरम का अर्थ नहीं जानते।

सत्यम शिवम सुन्दरम

प्रायः लोगों को इतना तो समझ आता है की यहाँ बात शिव और सत्य की हो रही है, पर आखिर इन दोनों का सम्बन्ध एक दूसरे से कैसे है? और शिव को ही सुन्दर क्यों कहा गया है? इन प्रश्नों का हमारे पास कोई उत्तर नहीं होता।

तो चूँकि सनातन धर्म में सत्य और शिव का स्थान हमेशा से ही श्रेष्ट रहा है, इसलिए आज हम जरा बारीकी से इस वाक्य का अर्थ समझेंगे ताकि आप समझ सकें की रचनाकार ने 3 शब्दों में कितनी बड़ी बात समझाने का प्रयत्न किया है।

तो साथियों इससे पहले हमने भगवान शिव के तीसरे नेत्र के रहस्य को समझेंगे। तो आइये जानते हैं की

सत्यम शिवम सुन्दरम का अर्थ

सत्य ही शिव है और शिव ही सुन्दर है, यह सत्यम शिवम सुन्दरम का हिंदी अनुवाद है। तो चूँकि यहाँ सत्य और शिव पर विशेष बल दिया गया है तो हम दोनों ही शब्दों की चर्चा करेंगे।

सच ही शिव है, यह कहकर यहाँ शिव और सत्य को एकसमान माना गया है।

प्रश्न उठता है सत्य और शिव दोनों बराबर हैं? कैसे? क्योंकि दोनों ही इस प्रकृति के परे हैं। इस संसार में जो कुछ है उसे आँखें देख सकती हैं इन्द्रियों के माध्यम से मन उसे अनुभव कर सकता हैं।

पर यदि आपसे कहूँ आपने सच को देखा है? उसको महसूस किया है? उसकी आवाज सुनी है? आप कहेंगे नहीं सच कोई वस्तु या विषय थोड़ी है जिसके बारे में विचार किया जा सके।

इसलिए सत्य को निराकार (जिसका रंग-रूप,आकार) कहा गया है।

इसी तरह शिव कौन है? शिव कोई अवतार नहीं है? वो निराकार, निर्गुण ब्रह्म हैं। शिव का रंग, रूप,आकार कुछ नहीं है।

शिव वे हैं जिनके बारे में मन कल्पना नहीं कर सकता, विचार नहीं कर सकता। और यही वजह है की मन जिसकी कल्पना नहीं कर सकता उसकी पूजा भी नहीं कर सकता।

क्योंकि पूजा करने के लिए मन में या आखों के सामने कोई तस्वीर तो होनी चाहिए। है न उसकी आरती कैसे उतारोगे जिसको कभी देखा नहीं सुना नहीं।

तो इस प्रकार शिव और सत्य दोनों ही एक हैं जो हमारी कल्पनाओं से परे हैं, इस संसार से परे हैं। लेकिन वो हैं इस बात का सबूत यह है की हम बेचैन हैं।

देखा है न जब तक सच पता नहीं चल जाता हम कितने बेचैन और परेशान रहते हैं। हम बात बात में पूछते हैं सच्ची? ये दर्शाता है हमें सच और शिव की कितनी तलाश है।

लेकिन अब सवाल आता है सत्य और शिव दोनों एक हैं तो वो भोलेनाथ अलग हैं जिनको हम रोजाना मंदिर में पूजते हैं।

तो समझिएगा शिव निर्गुण निराकार हैं, जबकि भोलेनाथ या भोले बाबा सगुण हैं वो अवतार हैं ठीक जैसे कृष्ण और राम ने अवतार लिया था उनका भी परिवार था इसी प्रकार कैलाश में बैठे बाबा जिन्हें पूरा भारत पूजता है वो सगुण (अवतार) हैं।

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सत्य ही सुन्दर है! 

हमें लगता है सुन्दरता सिर्फ लोगों में और वस्तुओं में होती है। पर जिन्होंने भी एक सही जिन्दगी जी है और जीवन को करीब से समझा है वो साफ़ कहते हैं की सौन्दर्य मात्र सत्य में है।

किसी का चेहरा, किसी की जुल्फें, कोई कार, कोई नदी या संसार में कुछ भी अपने आप में सुन्दर या कुरूप नहीं होता। पर चूँकि हमारा मन दूषित है इसलिए हम किसी को सुन्दर तो किसी को कुरूप कहकर सम्बोधित करते हैं।

इंसान ही नहीं अपितु किसी जानवर के काले रंग को देखकर हम उससे घृणा करने लगते हैं। सच्चाई तो यह है की प्रकृति में हर जंतु या मनुष्य अपने आप में विशिष्ठ है, प्रकृतिक रूप से कोई अच्छा या बुरा नहीं होता बस अलग होता है।

उदाहरण के लिए दो खरगोश हैं एक का रंग काला और दूसरे का सफ़ेद है, क्या आप ये कहेंगे ये नन्हा काला खरगोश बदसूरत है। नहीं न आप कहेंगे ये बदसूरत नहीं मात्र अलग है।

अतः जब जीवन में प्रेम, शांति होती है और आप एक सच्ची जिन्दगी जीते हैं तो आपके लिए दुनिया में भेद करना मुश्किल हो जाता है। फिर आप किसी चीज़ को बुरा या अच्छा नही बताते क्योंकि आप जानते हैं सच क्या है?

आप जानते हैं कोई चीज़ बुरी या सुन्दर लगती है तो उसके पीछे का कारण क्या है? आपकी यही समझ या बोध ही वास्तव में सुन्दर है। इसलिए जानने वालों ने कहा की समझ से सुन्दर कुछ नहीं है।

अगर जीवन में अँधेरा है, नामसझी है तो जिस चीज़ को भी आप सुन्दर कहेंगे निश्चित रूप से वो सुन्दर तो होगी ही नहीं।

पर जिसे अपने मन, इस संसार का सत्य मालूम है जो जीवन को समझ गया है वह भली भाँती जान जाता है की सुन्दरता चीजों में नहीं होती बल्कि देखने वाले के भीतर होती है।

इसलिए फिर सनातन धर्म में सच्चाई पर बल दिया गया। इसी सत्य को कभी परमात्मा तो कभी आत्मा, ब्रह्म कहकर सम्बोधित किया गया। और कहा गया की परमात्मा यानि ब्रह्म को पाना ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए।

ऋषियों ने तो यहाँ तक कह दिया की सत्य ही बाप है, उससे बड़ा कोई नहीं। और इसीलिए हम पाते हैं की सत्यम शिवम सुन्दरम इस पंक्ति में हमें संसार का झूठ मालूम हो जाता है।

संसार में सत्य हारता है!

भले ही हमें ज्ञात हो जाए की सच्चाई अमूल्य होती है, सच के सिवा कुछ भी सुन्दर नहीं है पर हम उस सत्य को स्वीकार नहीं कर पाते।

देखिये कितनी ताज्जबु की बात है जिस वैदिक धर्म ने दुनिया को सच्चाई का पाठ पढाया, जिस धरती से उपनिषद और भगवद्गीता जैसे धार्मिक ग्रन्थ फलीभूत हुए।

उसी धरती ने सैकड़ों वर्षों तक गुलामी झेली, अत्याचार सहे। पर कभी हम यह विचार नही करते यह कैसे संभव हो पाया? क्या हमें हमारी धार्मिकता ने हमारी सच्चाई ने हराया या फिर किस्मत थी।

देखिये बहाने और कारण अनेक हैं लेकिन एक बात तय थी की हमारी हार तभी निश्चित हो गयी थी जब हमने सच्चाई को महत्व देना छोड़ दिया था।

जब हमने अपने दिल में उपनिषद और भगवद्गीता के संदेश को स्थान देने के बजाय धर्म के नाम पर हो रहे तमाम तरह के अंधविश्वासों को मानना शुरू कर दिया।

अंग्रेज, फ़्रांसिसी , पुर्तगाली न जाने कितनों ने हम पर राज किया। पर अगर जरा भी किसी ने कृष्ण की बात का मनन किया होता तो उसे सर कटाना मंजूर होता लेकिन एक शोषित, दमित और गुलामी भरा जीवन स्वीकार न होता।

और जहाँ सत्य नहीं होता वहां झूठ कभी लालच तो कभी डर या कभी मोह के रूप में अलग अलग मुखौटे पहकर हमेशा उपस्तिथ होता है।

आज भी दुनिया में बहुत से अधर्मी, पापी और झूठे लोग शासन कर रहे हैं, जो अपने लालच,डर, और अपनी अंधी इच्छाओं के कारण पूरी प्रकृति का और लोगों का शोषण कर रहे हैं। जानवरों की भाँती उन्होंने इंसानों को भी गुलाम बनाया है।

परिणामस्वरुप आज हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ प्रकृति के अंत का समय नजदीक आ रहा है। तो अगर आज हमने फिर से सच्चाई का साथ नहीं दिया तो वही हाल होना निश्चित है जो हाल महाभारत के युद्ध में दुर्योधन के जीत जाने से हस्तिनापुर का होता।

पर चूँकि अर्जुन के साथ कृष्ण थे सच्चाई के रूप में और हमारे साथ भी उपस्तिथ हैं वो गीता के रूप में यदि उन्हें फिर से हमने ठुकरा दिया तो फिर हम जीवन से प्रेम, शान्ति और सच्चाई को भी ठुकरा देंगे।

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सत्यम शिवम सुंदरम किस उपनिषद से लिया गया है?

हिन्दू धर्म के सभी प्रमुख उपनिषदों का अध्ययन करने पर आप पाएंगे की कहीं पर भी इस पंक्ति का जिक्र नहीं किया गया है। अतः हम यह कह सकते हैं की हजारों वर्ष पूर्व रचित उपनिषदों में ऋषियों की वाणी से यह वाक्य प्रस्फुटित नहीं हुआ है।

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तो साथियों इस पोस्ट को पढने के बाद सत्यम शिवम सुंदरम का अर्थ अब आप भली भाँती जान गए होंगे। हमें उम्मीद है एक सही जीवन जीने की आपकी अभिलाषा को बढाने में यह पोस्ट आपके लिए मददगार साबित होगी। इस लेख में दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं, तो इसे शेयर कर दें।

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