भारत ही नहीं अपितु विश्व भी शिव को नमन कर उनके आगे सर झुकाता है, पर करोड़ों शिवभक्तों से यदि कह दिया जाये शिव कौन हैं? शिव माने क्या तो वे सीधा और स्पष्ट जवाब नहीं दे पाते।

ऐसे में आज का यह लेख भगवान शिव में आस्था रखने वाले लोगों के लिए हैं, इस लेख को पढने के बाद शिव से जुड़े आपके मन में सभी भ्रम दूर होंगे और आप सच्चाई के करीब आयेंगे।
देखिये समाज में शिव के नाम पर इतनी सारी पौराणिक कथाएं हैं, मान्यताएं हैं की कोई भी शिव को जैसे चाहे वैसे प्रचारित करने की कोशिश करता है ताकि वह अपनी बात को सच साबित कर सके।
पर वास्तव में शिव कौन हैं? ये जानने के लिए हमें शिव गीता, रिभुगीता को पढना होगा, क्योंकि वहीँ से वास्तव में हमें मालूम होगा की क्या शिव और शंकर दोनों एक ही हैं?
अन्यथा बाकी हम शिव के नाम पर यदि कुछ भी करते रहें, उससे हमें शिव के बारे में समझ नहीं आ पायेगा। अतः आज हम जरा विस्तार से इस विषय की चर्चा करंगे।
शिव कौन हैं| देवता या फिर परम सत्य
शिव ब्रह्मा या परम सत्य का दूसरा नाम हैं, सत्य का रूप, आकार, रंग इत्यादि नहीं होता। लेकिन सच सर्वोपरी होता है अतः शिव ही सत्य हैं जिनकी न कोई प्रतिमा और रूप हो सकता है न ही उनका घर, लिंग, या संतान इत्यादि हो सकती हैं।
सत्य एक होता है अतः शिव की पूजा भी संभव नहीं हो सकती, जब सत्य एक है तो फिर पूजा करने वाला भी कोई एक चाहिए न, अतः सत्य दो नहीं होते इसलिए शिव की न मन में कोई छवि बनाई जा सकती है न ही उन्हें पूजा जा सकता है।
हमारे धर्म में कई ऐसे ऊँचे ग्रन्थ हैं जो शिवत्व का असली अर्थ हमारे सामने लाते हैं फिर चाहे रिभुगीता हो शिव गीता हो, पर हम इन्हें पढने का कभी साहस नहीं करते और अंधाधुंध होकर शिव के नाम पर गाने, हो हल्ला करते हैं।
हम किसी की भक्ति कर पायें, उनके सामने सर झुका पायें, इससे पहले उनके बारे में जानना तो बनता है न, लेकिन नहीं हम परम्परा के चलते शिव को जानते नहीं बस मानने लगते हैं।
शंकर कौन हैं? भगवान शंकर रूप की सच्चाई
शंकर, निराकार शिव के ही एक सगुण रूप हैं, शिव तो निर्गुण हैं जब उनका ही कोई रूप नहीं है तो परिवार, लिंग, घर इत्यादि कैसे हो सकता है, सत्य हर जगह मौजूद हैं।
लेकिन चूँकि शिव अद्रश्य हैं अतः निराकार जानकार उन्हें पूजना कई लोगों के मुश्किल होता है, अतः लोगों को सत्य और शिव के करीब लाने के लिए शंकर का आगमन होता है।
अब शंकर वे हैं जिनका मनुष्यों की तरह घर भी है, लिंग भी है पत्नी भी है बच्चे भी हैं। यहाँ तक की उनके नाम की कई पौराणिक कथाएं भी हैं, यहाँ तक की शिवपुराण में जिन शिव का वर्णन किया गया है वह शिव नहीं बल्कि शंकर हैं।
जिन शिव को हम घरों में मंदिरों में पूजते हैं वो भी शंकर हैं। इसी बात को गहराई से समझने के लिए आप निम्न शब्दावली को पढ़ें:-
प्रकृति:- प्रकृति से तात्पर्य मात्र जंगलों और प्राकृतिक संपदाओं से नहीं है, अध्यात्म में वह सब कुछ जिसे ये इन्द्रियां देख सकती हैं, जान सकती है मन जिसकी कल्पना कर सकता है। सब प्रकृति के क्षेत्र में आता है।
सगुण:- प्रकृति में ही सभी गुण और दोष होते हैं, इसलिए जो भी प्रथ्वी में यानि प्रकृति में जन्म लेता है उसमें दोष भी होते हैं और कमियां भी। इसलिए चाहे मानव हो या भगवान जो भी सगुण रूप में हमारे सामने आते हैं उनमें कमियां और दोष जरुर होते हैं।
निर्गुण:- दूसरी तरफ वह जो प्रकृति से भी आगे है, जिसे न देखा जा सकता न छुआ जा सकता, जिसका नं लिंग होता न जिसके बारे में कुछ कहा या सुना जा सकता। वह सभी गुण दोषों से बाहर का होता है उसे निर्गुण कहा जाता है।
सत्य:- सत्य निर्गुण है, प्रकृति से परे है। इसलिए परम सत्य को ही बाप कहा गया है, सत्य से ऊँचा कुछ नहीं, परन्तु हमारा अहंकार स्वयं को ही बड़ा समझता है। अतः अध्यात्म हमें सत्य का खोजी बनने के लिए प्रेरित करता है।
शिव का क्या महत्व है?
प्रश्न आता है की जब हम शंकर को पूज सकते हैं उनकी भक्ति कर सकते हैं और उनसे सीख सकते हैं तो फिर शिव यानी सत्य की क्या महत्वता रह जाती है?
देखिये, हमारा मन ऐसा है जो किसी भी चीज़ की छवि बनाकर उससे अपने सम्बन्ध जोड़ लेता है और जिसे वह सच और असली समझता है वही कुछ टाइम बाद नकली निकलकर सामने आता है, और इंसान को दुःख देता है।
इसलिए जो संत, ऋषि ज्ञानीजन हुए उन्होंने कहा की जो कुछ भी प्रकृति में सगुण रूप में मौजूद है, वह इंसान की इन्द्रियां (आँख, नाक, कान इत्यादि) के संपर्क में आता है। मन उससे कोई न कोई रिश्ता बना लेता है। और अंत में उसे दुःख होता है।
इसलिए ज्ञानी जन इस प्रकृति को ही झूठ कह देते हैं, वो कहते हैं यहाँ कुछ ऐसा नहीं जो इंसान को शांति, तृप्ति दे सके और उसे सच्चाई तक पहुंचा सके।
अतः इस प्रकृति से परे मात्र सत्य है, और उस सत्य को भी अगर हम कोई रंग, रूप आकार दे देते हैं तो मन उसकी भी सामग्री बना लेगा। अतः सत्य प्रकृति से अछूता रहे उसके बारे में मन कोई कल्पना न कर सके इसलिए शिव निर्गुण, निराकार हैं।
इसलिए सच्चाई जानकार इन्सान अपने दुखों से मुक्ति पा सके उसके लिए शिव की महत्वता बेहद जरूरी है। इसलिए कहा गया बिना शिव की मुक्ति कहाँ?
शिव और शंकर में अंतर
शिव निगुण, निराकार हैं! जिसकी मन कोई कल्पना नहीं कर सकता! | शंकर सगुण हैं, साकार हैं उनकी पूजा अर्चना की जा सकती है! |
शिव का दूसरा नाम आत्मा, सत्य, ब्रह्म है! | शंकर के अन्य नाम चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, इत्यादि हैं! |
शिव प्रकृति से परे हैं, उन्हें प्रकृति में चल रही अच्छी बुरी घटनाओं से कोई प्रयोजन नहीं! | पर शंकर का प्रकृति से सीधा संबंध है! उन्हें प्रकृति का रक्षक, देवता भी कहकर सम्बोधित करते हैं! |
मनुष्य के मन/अहंकार का शून्य हो जाना ही शिवत्व कहलाता है! | मनुष्य के अन्दर सच्चाई के करीब आने की जो प्रबल कामना है वो शंकर है! |
शिव खुला आकाश हैं, बस मौन है न सुख न दुःख | वह मन जिसकी आकश की तरफ ऊँची से ऊँची उड़ान है वह शंकर है! |
कबीर के शब्दों में राम का अर्थ सत्य से है, ब्रह्म से है, शिव से है! | जबकि दूसरी तरफ विष्णु के अवताररामायण के राम शंकर हैं!` |
शिव को पूजने के लिए मन को मिटना पड़ता है, अहंकार के गायब होने पर मात्र आत्मा बचती है! | दूसरी तरफ मन जैसा है वैसा ही रहते हुए शंकर आसानी से चिन्तन और ध्यान कर सकता है! |
शिव और शंकर उसी तरह भिन्न हैं जैसे आकाश और पृथ्वी में अंतर है, एक पक्षी कितनी भी ऊँची उड़ान भर ले वो आकाश के अंतिम बिंदु तक नहीं पहुँच सकता। इसी प्रकार शिव वो खुला आकाश हैं जिसकी मन चाहे कितनी कल्पना कर ले, प्रयास कर ले वह शिव तक नहीं पहुँच सकता।
शिवमय कहने का मात्र अधिकार उसी को है जिसका अहंकार, खत्म हो चुका हो। जो आत्मस्थ यानि आत्मा के कहने पर जीवन जीता हो, मन के कहने पर नहीं।
शिव शक्ति क्या है? शिव और शक्ति का सम्बन्ध
अक्सर शिव का शक्ति के साथ सम्बन्ध जोड़ कर देखा जाता है, पर क्या शिव और शक्ति एक ही हैं? चलिए गहराई से समझते हैं।
शिव की शक्ति ही समस्त सगुण संसार हैं, प्रकृति की सम्पूर्ण व्यवस्था, जन्म मरण और यहाँ सब कुछ जो घट रहा है वह शक्ति कहलाती है।
अर्थात जो कुछ भी प्रकृति में हम देख सकते हैं, सुन सकते हैं सब कुछ वह शक्ति ही हैं, क्योंकि शिव तो अद्रश्य है अतः उनकी शक्ति को ही हम नमन कर सकते हैं, उसी में जी सकते हैं।
यदि इन्सान को शिव तक भी पहुंचना है तो उसके पास शक्ति ही माध्यम बनेगी। अतः अहंकार को कम कर आत्मस्थ होकर जीवन जीना है तो भी शक्ति माने यह संसार ही हमारा रास्ता बनेगा इस भवसागर से पार जाने के लिए।
जो इन्सान इस संसार की उपेक्षा करके अपने दुःख, बन्धनों से आजादी पाना चाहता है उसे तो इस संसार को छोड़कर दूसरे संसार में जाना होगा? पर क्या यह सम्भव है? नहीं न।
अतः जो वास्तव में मुक्ति का अभिलाषी है जो मन की पकड़ में आने से बचना चाहता है और सत्य में स्थापित होना चाहता है उसे पहले इसी मन से यानी संसार से सही रिश्ता बनाना होगा।
क्योंकि मंजिल तक पहुँचने के बाद भले सीढ़ी की कोई जरूरत न हो पर, उससे पहले उसकी उपयोगिता बहुत होती है। इसलिए इस प्रकृति से ही पार जाने के लिए प्रकृति का ही सही इस्तेमाल करना होगा
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अंतिम शब्द
तो साथियों इस लेख को पढने के बाद शिव कौन हैं? इस सवाल का सीधा और स्पष्ट जवाब मिल गया होगा, शिव भक्ति में लीन होने के सही अर्थ से अब आप रूबरू हो चुके होंगे। अगर आपका इस लेख के सम्बन्ध में कोई भी विचार है तो आप बेझिझक पूछ सकते हैं। साथ ही यह लेख फायदेमंद साबित हुआ है तो इसे शेयर भी कर दें।