तत्वमसि का अर्थ समझ लो जीवन बदल जायेगा!

वैदिक धर्म को शिखर तक पहुंचाने में उपनिषदों का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। पर उपनिषदों में कुछ ऐसे महावाक्य हैं जिनका अर्थ समझना आज भी लोगों के लिए कठिन हैं, आज हम छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय 6 में वर्णित तत्वमसि का अर्थ समझेंगे।

तत्वमसि का अर्थ

जी हाँ, यूँ तो उपनिषदों की कुल संख्या 200 से भी अधिक है, लेकिन उनमे से 13 प्रमुख उपनिषद हैं, और उनमें में कई श्लोक हैं और उन श्लोकों में से कुछ प्रमुख वाक्यों को महावाक्यों की सूची में शामिल किया गया।

महावाक्यों की रचना के पीछे मुख्य वजह सिर्फ यह थी की बड़ी ऊँचीं और गहरी बात लोगों को समझ में आ सके। ठीक उसी तरह जैसे हम किसी बड़ी बात को इशारों में कहने के लिए मुहावरे का प्रयोग करते हैं उसी तरह इंसान कैसा है, यह बताने के लिए महावाक्यों को उपयोग में लाया गया।

छान्दोग्य उपनिषद में यूँ तो कई अहम श्लोक हैं जो हर सनातनी को पढकर उन्हें जीवन में अपनाने चाहिए पर किसी कारणवश आप उन्हें विस्तार में नहीं पढ़ सकते तो आपको महावाक्य का अर्थ तो जरुर मालूम होना चाहिए।

अन्यथा उपनिषद जो बड़ी से बड़ी बात हम तक पहुंचाना चाहते हैं, उससे हम वंचित रह जायेंगे तो चलिए समझते हैं।

तत्वमसि का अर्थ

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय 6, अष्टम खंड, श्लोक क्रमांक ७ से लिए गये इस महावाक्य तत्वमसि का अर्थ है वो ब्रह्म तू है।

अर्थात यहाँ पर यह महाकाव्य इन्सान को उसकी पहचान को सम्बोधित करते हुए कह रहा है की तू वो नहीं है जो अपने आप को माने बैठा है। तू वो है जो अपनी सब पहचानों से परे है, तेरा नाम नहीं, तेरा रंग नहीं, तेरा परिवार नहीं यहाँ तक की तेरा शरीर नहीं।

जी हाँ सुनने में यदि रोचक लग रहा हो तो जानियेगा ऋषि ऐसा क्यों कह रहे हैं? उन्हें क्या जरूरत पड़ी इंसान को यह संदेश देने की? तो जवाब है मुक्ति, आजादी और उसकी भलाई के लिए।

देखिये आप रोजमर्रा की जिन्दगी में मजबूरी के नाम पर कई ऐसे कार्यों को करते होंगे जो आप जानते हो की साफ साफ़ ऐसा करना ठीक नहीं है। वो काम कोई घटिया नौकरी हो सकती है, किसी की गलत बात को मानना हो सकता है, झूठ के सामने सर झुकाना हो सकता है इत्यादि।

आपका दिल साफ़ साफ कहता है की तू ये कर रहा है ये ठीक तो नहीं है। अब चूँकि कभी डर तो कभी लालच या कभी मोह की वजह से आप उस काम को टाल नहीं पाते। और जिस गलत काम को कल आपने किया था निश्चित ही उसका गलत अंजाम भी आपको भुगतना पड़ता है।

तो ऐसे में ऋषिवर कह रहे हैं की जो दुःख तुम मजबूरी और बन्धनों के नाम पर झेल रहे हो इसके जिम्मेदार तुम ही हो, तुम चाहो तो सच्ची और निडर जिन्दगी जी सकते हो जो की तुम्हारा अधिकार है।

जो भी फालतू की पहचान तुमने बनाई हुई है जैसे मैं एक भाई हूँ, मैं एक पति हूँ जिस भी पहचान की वजह से तुम दुःख झेल रहे हो हटाओ उस पहचान को, याद रखो तुम शरीर नहीं हो तुम मन हो इस बात का सबूत यह है की मन पर चोट न पड़े इसके लिए तुम शरीर पर चोट खाने के लिए तैयार हो जाते हो।

तुम शरीर में नहीं जीते तुम मन में जीते हो, मन ही तुम्हें कहता है तुम ये हो और वो हो, अतः इसी मन को सच्चाई तक ले जाना ही तुम्हारा एकमात्र कर्तव्य है? इसके अलावा बाकी सभी कर्तव्य नकली हैं झूठे हैं। तुम्हारा जन्म अपने दुःख बन्धनों को मिटाने के लिए और परम शान्ति पाने के लिए हुआ है।

जो कुछ भी तुम्हें उस सचिदानंद यानि परम आनंद से वंचित रखता है आज ही उसे उखाड़ फेंको।

तत्वमसि वो ब्रह्म अर्थात सत्य तू है

यह महाकाव्य हमें सीधे तौर पर संदेश दे रहा है की जिस ब्रह्म को अर्थात जिस परमात्मा/ सत्य को तू बाहर खोजता है वो कहीं और नहीं तेरे ही भीतर है।

वो तो सदा से उपस्तिथ है, उसका न जन्म होता है न ही उसकी कभी मौत होती है, वो हर काल में हर जगह विद्यमान है, और वो न मंदिर में है न मस्जिद में और न कहीं किसी विशेष स्थान पर है।

वो है ठीक तेरे भीतर, पर इतना करीब होने के बाद भी मन न तो उसके बारे में विचार कर सकता है, न मन उसकी कल्पना कर सकता है, न मन उसके बारे में कोई छवि बना सकता है।

वो कोई देवी देवता नहीं है मन जिसे पूज सके। पर वो है इस बात का सबूत है की हम उसे पाए बिना शांत तो होते नहीं, हर पल हर समय हमारी आँखें इस संसार में उसी को ढूंढ रही है और मानो कह रही है कहीं तो मिलेगा।

पर कुछ भी इस संसार में पा लो मन भरता ही नहीं। इसलिए फिर ऋषियों ने कहा जिस परमात्मा को तुम इस दुनिया में तलाश रहे हो वो यहाँ तो बिल्कुल नहीं मिलेगा।

उसे पाया जा सकता है पर ऐसे नहीं जैसे तुम प्रयास कर रहे हो, इधर उधर भागकर, कई चीजों को इक्कट्ठा करके वो तो मिलने वाला नहीं है। वो कोई छोटी चीज़ थोड़ी है जिसे तुम अपने छोटे से कमरे में बंद कर सको।

वो बहुत बड़ा है, असीम है अगर उसे पाना है तो फिर तुम्हें अपना छुटपन, बौनापन भी त्यागना होगा क्योंकि परमात्मा उसी को मिलेंगे जिसको अब इस संसार में तमाम चीजें आकर्षित न करती हो, जिसके भीतर 100% ये बात बैठ गई हो की जो चैन इस संसार में खोज रहा हूँ वो यहाँ तो बिलकुल नहीं मिलेगा।

जब एक बार ये बात समझ आ गई तो अब सवाल आता है की उस सत्य या परमात्मा को पाने की विधि क्या है?

ब्रह्म को कैसे पायें? ब्रह्म को पाने की विधि 

ब्रह्म कोई देवता, कोई पदार्थ तो नहीं है जिसे पूजा या पाया जा सकता हो, तो यदि परमात्मा को पाने की चाहत भीतर से उठ रही है और आप खुद ब्रह्म के करीब हैं या नहीं देखना चाहते हैं तो बस आप देख लीजिये आप आनन्द, मुक्ति, सत्य के कितने निकट हैं।

अगर जीवन में बेचैनी, मजबूरियां, डर, लाचच, छल कपट हैं अभी, तो समझ लीजिये उस ब्रह्म, उस परमात्मा से कोशों दूर अभी आप हैं। और इसके विपरीत यदि जीवन में प्रेम है, आनन्द है,निडरता है तो समझ लीजिये परमात्मा आपके जीवन में कदम ताल कर रहा है।

वो हर पल आपके साथ है, पर साधारणतया जैसी हम जिन्दगी जीते हैं उसमें लालच, स्वार्थ ही ज्यादा होता है इसलिए हम डरे हुए रहते हैं। हमारा जीवन हमें बार बार कष्ट देकर हमें संदेश देकर मानो जगाता है की जैसा जीवन जी रहे हो, वैसा जीने के लिए जन्म नहीं हुआ था तुम्हारा।

जिन मजबूरीयों के नाम पर खुद को घिसे दे रहे हो उन मजबूरियों को उखाड़ फेकों। हिम्मत दिखाओ। जिस इंसान को खोने के डर से या अपनी जेब भरने के लालच से तुम उस चीज़ से दूर हो जो पाने लायक है तो समझ लो अनमोल जीवन गंवा रहे हो।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख में हमने तत्वमसि का अर्थ विस्तारपूर्वक समझने का प्रयास किया और जाना की ऋषि इस महावाक्य के माध्यम से हमें क्या संदेश देना चाहते थे। इस लेख को पढ़कर यदि जीवन में कुछ स्पष्टता, सच्चाई प्राप्त हुई हो तो इस लेख को अन्य लोगों के साथ सांझा कर उनका भी कल्याण जरुर करें।

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