शिव जी के तीसरे नेत्र के रहस्य को जानकर चौंक जायेंगे!

माना जाता है जिस दिन भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल गया तो पृथ्वी में प्रलय आ जाएगी, सभी प्राणियों का जीवन संकट में चले जायेगा। पर इन बातों में सच्चाई कितनी है यह तभी आप जान पाएंगे जब आपको शिव जी के तीसरे नेत्र के रहस्य की सच्चाई पता होगी।

तीसरे नेत्र का रहस्य

जी हाँ आप चौंक जायेंगे जिस तीसरे नेत्र को हम पृथ्वी को भष्म करने का सूचक मानते हैं, वास्तव में वो नेत्र हमारे बड़े काम है, वही नेत्र हमें शिव जी का दिया गया ऐसा वरदान है जो हमें हमारे सभी दुखों से आजाद कर देता है।

देवों के देव कहे जाने वाले महादेव, भगवान शिव हिन्दू धर्म के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक है, पर आजकल शिव के नाम पर कई तरह की भ्रामक बातें करके उन्हें बदनाम करने की साजिश रची जा रही है, और दुर्भाग्य की बात है शिव को न समझ पाने के कारण लोग इन सुनी सुनाई बातों पर यकीन भी कर लेते हैं।

इसी तरह शिव जी के तीसरे नेत्र के बारे में लोगों के बीच गहरा अंधविश्वास है, अगर आप वास्तव में सच्चाई के करीब आना चाहते हैं तो आपको पूरी बात पता होनी चाहिए।

भगवान शिव के तीसरे नेत्र को लेकर फैला अन्धविश्वास 

जनमानस के बीच भगवान शिव की तीसरी आँख को लेकर कुछ ऐसी छवि व्याप्त है जिसमें यह माना जाता है की भगवान शिव बड़े शांत और सौम्य हैं जो एकांत में कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं। वे संसार की माया और संसार में मौजूद तमाम तरह के सुख साधनों को छोड़कर बैठे हुए हैं।

उन्हें मतलब ही नहीं है इस संसार में क्या चल रहा है, लेकिन जब कभी पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ता है बेजुबान जानवरों और निर्दोष लोगों को सताया जाता है और साधु सज्जनों की उपेक्षा कर दानवों को भोग लगाया जाता है।

तो भगवान शिव यह सब अपने तीसरे नेत्र से देख रहे होते हैं, लेकिन वे फिर भी अपनी साधना में लीन रहते हैं क्योंकि अपने आनन्द के पलों में कौन चाहेगा की दूसरे पर ज्यादा ध्यान दें।

पर जब इन कुकर्मों को सहन करने की सीमा खत्म हो जाती है तो फिर शिव को मजबूर होकर तांडव करना पड़ता है, जिससे पूरी श्रृष्टि का नाश हो जाता है और दोबारा से एक नयी श्रृष्टि की उत्पत्ति होती है।

इसी मान्यता के चलते अक्सर यह सुनने को मिलता है की कलियुग में पाप बहुत बढ़ गये हैं, यहाँ झूठे और पापी लोगों का शासन बढ़ता जा रहा है, इसलिए यह पूरी पृथ्वी प्रलय के बेहद नजदीक है।

तो यह रही मान्यता जो लोगों के बीच व्याप्त है, अब हम आपके साथ वो रहस्य सांझा करेंगे जिससे आज आज तक अनजान रहे होंगे!

पर यह रहस्य जानकार शिव के तीसरे नेत्र को लेकर सारे भ्रम मिट जायेंगे और आप समझ जायेंगे की आखिर हमारे धर्म ग्रन्थों में शिव जी के तीसरे नेत्र की बात क्यों की गई।

भगवान शिव के तीसरे नेत्र के रहस्य को समझें!

शिव जी का तीसरा नेत्र बोध और विनाश का सूचक है। पर बात समझने योग्य है की यहाँ विनाश से आशय इंसान, पेड़ पौधे और पृथ्वी की तमाम तरह की चीजों को मिटाने से नहीं है। बल्कि वास्तव में शिव का तीसरा नेत्र मनुष्य को अपने ही भ्रम को, अज्ञान को, छल कपट को मिटाने का प्रतीक है।

ये तीसरी आँख बेहद जरूरी है ये न हो तो हमें अपनी सच्चाई मालूम नहीं हो सकती। इसलिए तीसरे नेत्र को दिव्य दृष्टि भी कहा जाता है।

क्योंकि बाहर जो दोनों आखें हैं वो तो अक्सर ठगी जाती हैं, इस बात का प्रमाण यह है की जो चीजें अक्सर हम अपनी दो आखों से देखते हैं वहीं हमें सच लगता है, पर वास्तव में वो झूठ होता है।

अब सवाल है जब तीसरे से बाहरी दुनिया भष्म नहीं होगी, पृथ्वी समाप्त नहीं होगी तो फिर इस नेत्र की बात क्यों की जाती है और क्यों इसके बारे में बात करके हमे डराया जाता है?

सबसे पहले समझिएगा धार्मिक ग्रन्थों में लिखी गई बातें किसी ऊँची बात का इशारा करती हैं, पर हमारा जैसा मन और समझ होती है हम उसी के हिसाब से उस बात का अर्थ निकाल लेते हैं।

तो जब कहीं आपको शिव के तीसरे नेत्र की बात होती दिखाई दे, तो समझिएगा की ये हमारी ही बात यहाँ हो रही है। हम इन्सान हैं हमारे पास दो आँखें हैं, जो संसार में तमाम चीजों को देखती हैं।

लेकिन इन प्राकृतिक आँखों के आगे भी एक आँख है, वो अद्रश्य है लेकिन हमारे लिए यही आँखें इतनी जरूरी है की वे हमें हमारे सारे दुखों से मुक्त करके हमें शिव की तरह आनन्द से भर सकती है।

पर हम शिव की तरह मौज में नहीं जीते हैं, क्योंकि हमारा मन तो हमारा ही दुश्मन है जो शांति, सच्चाई से ज्यादा दुःख को छल कपट को न्योता देता है। इसलिए कहा गया की मन को मारे बिना तुम सत्य, आनंद तक नहीं पहुँच सकते।

अतः जो लोग शिव यानी सत्य तक पहुंचना चाहते हैं उन्हें मन को देखना होगा अतः इसी मन को देखने के लिए आँख कौन सी है तीसरी आँख?

जिसका काम हमारे मन के हाल को देखना है, मन में क्या चल रहा है, मन अशांति की तरफ क्यों भागता है, ठोकर खाकर भी यह उसी जगह क्यों चला जाता है, अर्थात ईमानदारी से मन की एक एक हरकत पर गौर करना ही तीसरी आँख का काम है।

तीसरा नेत्र खुलने के पीछे का रहस्य

तीसरा नेत्र खुलते ही बाहर जो कुछ है वो भस्म हो जाता है। देखिये हमारी दो आँखे, इस संसार में कई तरह की चीजों को देखती हैं और उन चीजों को मन सत्य मानकर आकर्षित हो जाता है, और फिर किसी तरह हमारा मन उन चीजों को पाने की कोशिश करता है।

लेकिन इन आखों से आकर्षित होकर हम यहाँ जो कुछ भी पाने की कोशिश करते हैं, उससे हमारा मन तो भरता नहीं। बल्कि जितना ज्यादा हम इन आखों से देखी हुई चीजों पर भरोसा करते हैं और सुख के पीछे भागते हैं उतना दुःख पीछे पीछे चले आता है।

तीसरा नेत्र खुलने का अर्थ है बाहर जो कुछ था अब वो हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा। हमने देख लिया ये मन ही है जो बाहर की ओर दौड़ता है। और हर चीज़ में शांति ढूँढने की कोशिश करता है। तीसरी आँख खुलने का मतलब है हम ज्ञानी हो गए। हमें मालूम हो गया सच क्या है?

और सच के आते ही सब कुछ जो झूठ था, मन की चाल थी वो मिट गई। इसलिए हर कोई इन्सान जिसे जीवन में सच्चाई, शान्ति पसंद है उसके पास तीसरा नेत्र होना जरूरी है जो मन को देखता रहे, और साथ ही उस तीसरे नेत्र का खुलना भी जरूरी है जो आपको झूठ और भ्रम को मिटा सके।

शिव की तीन आँखों का अर्थ क्या

आम इन्सान की भाँती भगवान शिव की भी दो आँखें हैं जो संसार को देख रही हैं। लेकिन उनका तीसरा नेत्र विशेष है क्यों क्योंकि?

दो आँखें तो मात्र इंसान को संसार की अनेक वस्तुओं और लोगों के बारे में बता रही हैं। वो आँखें ये तो बता देती है की ये घर है ये गाडी है ये सडक है और ये मंदिर है लेकिन ये आँखें इतनी काबिल नहीं है की वो हमें सच तक पहुंचा सके।

ये आँखें हमें ये नहीं बता सकती की इंसान के लिए घर ज्यादा जरूरी है या पढ़ाई? ये कौन तय करता है ये निर्धारित करता है हमारा मन।

आप रास्ते पर चलते हो आपको अनेक लोग या चीजें दिखाई देती है पर आपका ध्यान किसी विशेष इन्सान या चीज़ पर ही क्यों जाता है? क्योंकि आपका मन कहता है ये मेरे लिए उपयोगी है

तो इन दोनों आखों से ज्यादा जरूरी क्या है मन? जिसके कहने पर हम जिन्दगी बिताते हैं, आखें तो बिचारी एक माध्यम है। अब मन को तो देखने वाली कोई आँख हमारे शरीर में है नहीं, मन कोई शरीर का भौतिक पदार्थ तो है नहीं जिसे डॉक्टर या इंसान देख सके।

तो इसलिए फिर शिव का तीसरा नेत्र हमें बताता है की जिस तरह मन अदृश्य है, उसी तरह आपकी समझ ही तीसरा नेत्र है, जो आँख दिखाई तो नहीं देता पर है बड़े काम का।

अगर वो बोधयुक्त आँख तुम्हारी जागृत है तो फिर संसार में रहते हुए तुम यहाँ वहां भागते नहीं फिरोगे तुम परेशानी और दुःख भरा जीवन नहीं जिओगे।

तुम समझ जाओगे की मन हमारा बेचैन क्यों है? और इसे शांति कैसे मिलेगी? अतः शिव की तीसरी आँख यह समझाती है की इन दो आँखों के साथ साथ एक तीसरी आँख जिसे समझ भी कहते हैं उसका खुला होना बहुत जरूरी है। वो खुली है या नहीं यह जानना है तो बस जान लो सच्चाई से कितना प्यार है आपको?

अगर सच पता चलते ही पैरों से जमीन खिसक जाती है, सच से दूर दूर भागते हो तो समझ लो अभी तीसरी आँख खुलने में अभी समय लगेगा ।

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अंतिम शब्द

तो साथियों इस लेख को पढने के पश्चात शिव के तीसरे नेत्र के रहस्य को जानने के बाद आपको इस नेत्र की भूमिका और उपयोगिता मालूम हो चुकी होगी। इस लेख को पढ़कर जीवन में यदि स्पष्टता आई है तो ब्लॉग में प्रकाशित अन्य लेखों को भी पढ़ सकते हैं।

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